*🌹मुझे अच्छा लगता है*🌹
उम्र के साथ साथ वक्त के बदलते परिस्थिति अनुसार माहौल के अधीन हर इंसान के अपने शौक बदलते रहते हैं अपनी पसंद बदलती रहती है कब क्या हमें अच्छा लगने लगता है या क्या अच्छा लग जाए यह हम स्वयं नहीं जान सकते।
बस ऐसे ही हमारी अपनी ख्वाहिशों के आकाश कभी बहुत विस्तृत होते थे तो कभी सीमित हो जाते थे।
खयालों के पुलिंदो को बांधते और खोलते हम खुद में ही उलझ कर रह जाते थे।
कभी कुछ पाने की ख्वाहिश की और वह ना मिल पाया तो तो समय के चलते वह ख्वाहिश वह तमन्ना वहीं पर किसी मासूम बच्चे को मनचाही चीज ना मिल पाने के दुख को झेलते जो तकलीफ होती वहीं हमने भी शायद सही होगी।
ख्वाहिशें हर वक्त अपने अपने हिसाब से जन्म ले ले कर स्वयं का अस्तित्व खत्म होते देखती रहती।
वो बात सच है ना कि
हजारों ख्वाहिश ऐसी की
हर एक ख्वाहिशें पे दम निकले
उम्र के कारवां के सफर में अनगिनत यादो की निशानियां दिल की झोली में समेटे अब ऐसे मोड़ पर आकर जिंदगी ने यह महसूस किया कि वह सब जो था बहुत अनमोल भी था और बेमानी भी था वह उस वक्त की जरूरत थी पर आज की जरूरत समयानुसार बदल गई है और कुछ ऐसा हो गया है कि जो मुझे नहीं मिला वह मुझे चाहिए
क्या नहीं मिला सोच कर हमारी आत्मा ने हमें यह जवाब दिया के एक इंसान हमेशा सच्ची मोहब्बत के लिए भटकता है कोई उससे रूहानी मोहब्बत करके अपनी जान तक निछावर कर दे बदले में हम भी उस पर अपनी जान निछावर करने की ताकत हिम्मत रखते हो।
और इस हिम्मत और ताकत के बदले जिंदगी मैं एक ऐसा भी मुकाम आ जाता है कि हम जिसके लिए सब कर रहे थे वह अलविदा कह चुका है।
और उसके बाद फिर वही भटकाव वही आवारगी और फिर एक तलाश जो मंजिल पाने तड़प रही होती है सुकून की चाहत में और दर्द दिल की पनाहों में शामिल हो जाते हैं।
सब कुछ है और सब के होते हुए भी ना जाने क्यों लगता है कि कोई नहीं है अपना।
एक छोटी सी चाहत और तमन्ना की मोहब्बत से खाली यह दामन इश्क प्यार मोहब्बत से भर जाए तडपती इस रूह को सुकून मिल जाए दिल में बसा जितना इश्क का दरिया है दिल के तहखाने से निकल कर सैलाब बनकर किसी की आगोश में समा जाए बस अब तो सिर्फ यही अच्छा लगता है कि हां बस खुश्क आंखों में कोई तस्वीर साकार रूप लेकर अपने आकार में आकर माटी की सोंधी सोंधी खुशबू जो पहली बारिश में होती है और उस प्यार की बारिश में मेरा तन मन जीवन प्राण सब भीग कर महक जाए।
हां हमें यह सब अच्छा लगता है जी हां यही अच्छा लगता है।
डॉ प्रियंका सोनी "प्रीत"