सब कुछ बन कर दिखा दिया,
ना बन सका बस वो इन्सान।
गाता रहा वो एक ही गान,
मैं हूं बड़ा, मैं ही बलवान।।
ना सिर्फ तेरी है ये धरती,
सभी जीवों का है ये जहां।
मत कर भेद, मत कर भेद,
कहते रहे ये ही भगवान।।
खुब समझाया कुदरत ने,
सच कहता हूं, मेरी मान।
मुझसे उपर कोई नहीं है,
मैं हूं तुझसे अधिक बलवान।।
फिर भी न समझा, फिर भी न माना,
बेख़ौफ़ करता रहा कत्ले आम।
निर्दोष, निर्बल, अबोल जीवों को,
काट कर खाता, सुबह-शाम ।।
दिये होंगे बहुत से मौके,
ईश्वर ने फिर किया फरमान।
अभी भी वक्त है, सुधर जा,
रोक ले खुद को, कस दे लगाम।।
लाख मनाने पर ना माने,
फिर कुदरत भी हो गई हैरान।
इक नन्हे से वायरस ने,
फिर हाथ लिया, उसका सूकान।।
क्या छोटा और बड़ा क्या?
करता रहा वो अपना काम।
चंद दिनों में इस धरती पर,
मचा दिया उसने कोहराम।।
हंस कर बोला, अब बताओ,
कौन बड़ा? कौन बलवान?
एक मौका और दे रहा हूं,
बन कर दिखा दे तु इन्सान।।
©पार्थ गढ़वी'परम'
दि. २७/०३/२०२०