ज़िन्दगी उसके साथ बिताने की है,
आस उनसे ख़्वाबों में मिलने की है।
चुरा लूं उनको किस्मत की लकीरों से,
यही एक तरकीब उसको पाने की है।
लगा है आजकल मेला मेरे शहर में,
उम्मीद उनके भी नज़र आने की है।
ख्वाइश का तो क्या? बस इतनी सी है,
एक बार उनको बांहो में भरने की है।
यही तमन्ना यही मुराद है "पागल" की,
नज़्म आखरी उनको सुनाने की है।
"पागल"