My New Poem...!!!!
आनंद सुकून चैन करार कहीं ओर नहीं
हाँ शायद हमारी खोज ही कमजोर रहीं
झांकना तो हमें बस ख़ुद के अंदर ही था
बाहरी जहाँ का जहाँ कोई शोर ही नहीं
भटकते भटकते गूजर ही गई राह-गूजर
अब आरज़ू हसरतें या तमन्ना ओर नहीं
अब रब बस काफ़ी है, मंज़िल तलाश
करते बीतीं उम्र से उम्मीद अब ओर नहीं
जो डगर पहुँचना था बस पहुँच गये हम
आज ख़्यालों में प्रभु के सिवा ओर नहीं
कलाम हम बना ले हमारी मजाल नही
प्रभु है जो रवानी-ए-क़लम से दूर नही
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