जब सारी उम्मीदें थम गई,
खुद की परछाइयां भी जम गई,
कोई किनारा ना नजर आया,
इस मिट्टी और पानी में मुझे मेरा चेहरा नजर आया|
कोशिशें अगर शिद्दत बन जाए,
तो ठिकाने हमेशा मिल जाते हैं,
हो, अगर यकीन तो मिट्टी के भी आशियाने बन जाते हैं |
धूप से जो चमक उठे,हवा से भी आगे बहे,
पानी में भी घूल जाए,वो रेत हूं मैं
मिलती तुम्हें है, शक्ति सब करने की जहां से,
तुम्हारी आंखों के सामने खाली पड़ा, खेत हूं मैं |
पतझड़ में भी हरियाली के कुछ पत्ते नजर आते हैं,
हो, अगर यकीन तो मिट्टी के भी आशियाने बन जाते हैं|
कुछ इशारे इन तेज हवाओं ने भी दिए थे,
बादलों की गड़गड़ाहट भी गूंज रही थी
चमकती बिजली धरती को चूम रही थी |
पानी की बूंद-बूंद में कुछ घूल चुका था,
ये मोम जो पिघल चुका था |
बारिशों में अक्सर ये घर बह जाते हैं,
हो, अगर यकीन तो मिट्टी के भी आशियाने बन जाते हैं|