सोचने से सब हो जाता तो कितना अच्छा होता।
सोचने से सब होता नहीं।
सोच उड़ -उड़ कर वापस दिमाग के पिंजरे में आ ही जाती है।
इस पिंजरे के दरवाज़े भी जंग खये हुए होते हैं
इतने साल आंख के पानी से जो नहाये होते हैं।
सोच के साथ इंसान भी जकड़ जाता है
किसी सोच की तरह
सोचती हूँ सोच का नाम आज़ाद पंछी क्यों न रख दूँ
फिर आज़ाद पंछी कैद नहीं रह पाएगा
जकड़ा नहीं जाएगा।
आज़ाद पंछी सोच की तरह आसमान में उड़ेगा
नए पंख लिए।
- रिम्मी ©