जब मैंने मन ही मन ये ठाना की मुझे बेटी नहीं बेटा हो क्योंकि जो मेरे साथ हुआ ना मैं वो अपनी बेटी के साथ होने दूंगी ना ही कभी मैं उसके साथ गुरुर में ऐसा करूं कि मैं तुम्हारी माँ हूँ, ये सब तुम्हारे भले के लिए है। साथ ही मैंने ऐसा सोच कर पूरे मर्द जाति पर तमाचा मारा, जब बेटियां नही होंगी तो ना कोई जुल्म करेगा ना कोई बेटी- बहु कैद हो कर रहेगी। रहेगी तो सिर्फ मर्द जाति। लेकिन कभी - कभी सोचती हूँ तो पाती हूँ कि औरत पर सबसे ज़्यादा ज़ुल्म औरत ने ही किये हैं भले ही वो किसी मर्द की शह पर क्यों ना किये गए हों। भगवान को औरत को सुंदर तो बनाना चाहिए था, और जननी भी लेकिन मर्द के मुकाबले नाज़ुक नहीं। अब इस लड़ाई में एक जननी ही बदला ले सकती है। उसे ही तय करना होगा कैसे?
-रिम्मी©