दर्द-ए-दिल कितने कम हो जाते,
अगर जिंदगी में तुम मिल जाते।
मंजिलों के फ़ासले कितने कम हो जाते,
अगर जिंदगी में तुम मिल जाते।
बाग-ए-बहार कितने खिल जाते,
अगर जिंदगी में तुम मिल जाते।
ग़म-ए-रात कितने हसीन हो जाते,
अगर जिंदगी में तुम मिल जाते।
वाद-ए-वफ़ा कितने निभाए चले जाते,
अगर जिंदगी में तुम मिल जाते।
गम-ए-जुदाई कितने कम हो जाते,
अगर जिंदगी में तुम मिल जाते।
अश्क़ निकलने बंद हो जाते,
अगर जिंदगी में तुम मिल जाते।
जो तू ना मिला तो अच्छा ही हुआ,
वरना सारी दुनिया के लोग दुश्मन बन जाते
अगर जिंदगी में तुम मिल जाते।
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धनंजय द्विवेदी 'फ़क़ीर'