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ईश्क़ के रिश्ते में तू मुझसे हमेशा अग्यार बनी रहती थी तूने ये कैसा अज़ाब दिया हमको की तुझे ना पाने की कसक हमेशा रहती थी। लोग कहते थे कि मैं तेरे अत्फ़ के काबिल नहीं, तेरे बिना जिंदगी मेरी अदम सी रहती थी। मेरे अब्सार को अब्र ने घेरा इस क़दर कि रातों में अर्श पर तेरी तस्वीर दिखती रहती थी। कितनी अश्किया बन गयी थी तू मेरी ख़ातिर मेरी साँसे भी अब तेरे नाम की असीर रहती थी। ईश्क़ के रिश्ते---------------------------- उर्दू शब्दों का मतलब अग्यार- अजनबी, प्रतिद्वंद्वी। अज़ाब- पीड़ा,संताप। अत्फ़-दया, भेंट। अदम-शून्य,अस्तित्वविहीन। अब्सार- आंखें,नेत्र। अब्र-आसुँ। अर्श-छत। अश्किया-क्रूर, कठोर। असीर-कैदी,बंदी।
दर्द-ए-दिल कितने कम हो जाते, अगर जिंदगी में तुम मिल जाते। मंजिलों के फ़ासले कितने कम हो जाते, अगर जिंदगी में तुम मिल जाते। बाग-ए-बहार कितने खिल जाते, अगर जिंदगी में तुम मिल जाते। ग़म-ए-रात कितने हसीन हो जाते, अगर जिंदगी में तुम मिल जाते। वाद-ए-वफ़ा कितने निभाए चले जाते, अगर जिंदगी में तुम मिल जाते। गम-ए-जुदाई कितने कम हो जाते, अगर जिंदगी में तुम मिल जाते। अश्क़ निकलने बंद हो जाते, अगर जिंदगी में तुम मिल जाते। जो तू ना मिला तो अच्छा ही हुआ, वरना सारी दुनिया के लोग दुश्मन बन जाते अगर जिंदगी में तुम मिल जाते। स्वरचित एवं सर्वाधिकार सुरक्षित© धनंजय द्विवेदी 'फ़क़ीर'
मैंने ईश्क़ का जहर क्या पीया लोग सरगोशियां करने लगे, मिलने नहीं आये तुम तय वक़्त पर तो हम आहें भरने लगे। ये मोहब्बत तू हमको अब ना सता इस क़दर, की जिंदगी की खुशियों को दोज़ख की नजर लगने लगे।
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