#माँ #प्रिन्शु_लोकेश
*_________माँ_________*
आज माँ पर कुछ लिखने जा रहा हूँ।
अपनी घिनौनी औकात दिखाने जा रहा हूँ।
हमें लगता नहीं माँ पर कुछ लिखा जाता है।
माँ से तो केवल हर पल सिखा जाता है।
पर क्या करूँ बहुत मजबूर हूँ।
अपनी माँ से कोशों कोश दूर हूँ।
जब सच्ची मोहब्बत की जुस्तजू होती है।
उस दिन घंटो माँ से गुफ्तगू होती है।
माँ ही पहली मोहब्बत है मेरी।
उसकी दुआ से ही तो बरकत है मेरी।
उसके हाथों का निवाला कितना लजी़ज होता है।
सूखी रोटी के आगे सब खाना बत्तमीज होता है।
माँ शब्द जब आते है अल्फाज में।
चार चांद लग जाते है मिजाज में।
कुछ लोग गलियों में माँ का नाम लेते है
फिर भी कम से कम माँ का नाम लेते है।
आग को कैसे भी छुओं जलाएगी ही।
माँ कैसे भी बोलो जिंदगी तर जाएगी ही।
माँ का मतलब केवल माँ है।
हमें पता नहीं माँ तू क्या है।
#prinshulokesh