स्व रचित
मीनाकुमारी शुक्ला 'मीनू'
क्यूं एक आँगन में खेले भाई-बहन
इस कदर पराये हो जाते हैं?
क्यूं एक दिन सब अपने जीवनसाथी
के संग दूर देश चले जाते हैं?
क्यूं हम सब के जीवन साथी समझ
नहीं हमको पाते हैं?
क्यूं विवशता की खोल में उमड़ता प्यार
मचले अरमान दबे रह जाते हैं?
क्यूं दुख में विचलित भाई-बहनों के मन
होकर व्याकुल नयन नीर बहाते हैं?
क्यूं एक मात-पिता के जाये हम अलग
अलग पंख लिये उड़ जाते हैं?
कैसी ये विधी की विडंबना हैं जिस में
हम खुद को ही छलते जाते हैं?
क्यूं भूतकाल बने प्रियजन दिन प्रतिदिन
हमें और अधिक रुलाते हैं?
क्यूं पास रह रहे बन्धु जन के संग हम
हिल-मिल रह नहीं पाते हैं??