Hindi Quote in Poem by Meenakumari Shukla

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मैं बहती नदी निर्मल, निर्झर, निश्कलंक सी,
अटल, अमर, अडिग गिरी की मासूम नंदिनी सी।

चले साथ मेरे दुख-दर्द कंटक, कंकड, पत्थर से,
हुई राहें मुश्किल, दुश्वार रिवाज़ों के प्रहारों से।

लड़ती रही स्वयं से ही बद्हाल, बेबस, बेसहारा सी,
लेकिन समझी, थमी, बदली समाज के तेज बहावों से।

साथ चली जलदि के खामोश, तन्मय, खोई-खोई सी,
डूबती रही गहराइयों में पयोधि की हुई खुद से पराई सी।

मिली सागर से, तन से, मन से अपनी अंतिम कहानी सी,
मिटा अस्तित्व मेरा जग से, नभ से, जहाँ की बयारों से।।

स्व रचित
मीनाकुमारी शुक्ला 'मीनू'

Hindi Poem by Meenakumari Shukla : 111186044
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