# काव्योत्सव 2
??? ग़ज़ल ???
यहाँ रुकने से कुछ हासिल नहीं है |
ज़रा - सी छाँव है मंज़िल नहीं है |
ग़मों की इस अंधेरी ज़िन्दगी में,
ख़ुशी की रोशनी दाख़िल नहीं है |
नुमाइश मत लगा ज़ख़्मों की अपने,
यहाँ पर कोई भी आदिल नहीं है |
शहर में गाँव से आया है लेकिन,
न आँको कम उसे जाहिल नहीं है |
मुकर जाऊँ किसी से करके वादा,
मेरी फ़ितरत में ये शामिल नहीं है |
सरलता, सादगी जीवन है उसका,
बहुत सीधा है पर ग़ाफ़िल नहीं है |
सिफ़ारिश है न आती हो खुशामद,
समझ ले तू किसी काबिल नहीं है |
लगेगा मन यहाँ पे कैसे अपना,
ग़ज़ल, गीतों की ये महफ़िल नहीं है |
रुके तो डूब जाओगे 'विजय' तुम,
यहाँ मझधार है साहिल नहीं है |
विजय तिवारी, अहमदाबाद
मोबाइल - 9427622862