नैतिक शिक्षा के बिना........
#काव्योत्सव -2
नैतिक शिक्षा के बिना, हर शिक्षा बेकार।
इसके दम पर ही बढ़े, यह सुन्दर संसार।।
शिक्षा होती औषधी, जड़मति करे सुजान।
तन मन को चेतन करे, यह अमृत रसपान।।
तिमिर हरे वह देश का, देती प्रखर प्रकाश।
अंधकार को चीर कर, भरती सदा उजास।।
ज्ञान और विज्ञान का, उसमें है भंडार।
जिसने अमृत पी लिया, उसका बेड़ा पार।।
संचय करती देश में, गुणी जनों की खान।
योगदान इनका मिले, सब होते धनवान।।
शिक्षा में परमार्थ का, प्रमुख रहे स्थान।
दोनों के संयोग से, जग में बढ़ती शान।।
नैतिकता का पाठ जब, पढ़ता है संसार।
मानवता की प्रगति का,यही है मूलाधार।।
नव सृजन रथ दौड़ता, कंटक होते दूर।
प्रगति द्वार खुलते सभी, जग में बनते नूर।।
नैतिकता पारसमणी, दूर हटें अवरोह ।
मन के दुर्गुण सब भगें, तनिक न आवे मोह।।
वर्तमान शिक्षा बनी, स्वार्थपूर्ण है आज।
परमारथ के भाव से, वंचित हुआ समाज।।
भड़भूँजों के हाथ में, सौंपी शिक्षा नेक।
सारे दाने जल गये, साबुत बचे न येक।।
नैतिकता वह बीज है, जो अच्छे फल सेत।
परहित का भी ध्यान रख, सबको वह सुख देत।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "