Hindi Quote in Poem by sangeeta sethi

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#काव्योत्सव 2
( रहस्यवाद )

क्या छतें साफ नहीं हो सकती

इतने खूबसूरत शहर की सड़के
दोनों तरफ ताज़ा पुती दीवारें
चौराहों और नुक्कड़ों पर
खूबसूरत हवेलियाँ
लक-दक शीशों के पार
दिखती मॉल की चमक
जिसके चारों तरफ मंडराते
आधुनिक पोशाकों में संवरे लोग
महज 10 रुपये में
ए.सी. बसों का सफर
करीने से सजी दुकानें
फ्लैटों की बालकनी में
बच्चों के बाल संवारती माँए
उन्हीं फ्लैटों में
अपने खूबसूरत आस-पास के
अहसास में सराबोर
एक दिन चढ गई सीढीयाँ
उस छत की
जहाँ से पूर शहर का नज़ारा
दिख रहा था मुझे
पर वो हवेलियाँ,
वो मॉल ,वो बसें
सिर्फ बिन्दु-सी दिखाई दे रही थी
दिख रहा था तो बस
छतों पर पड़ा बेतरतीब कचरा
कभी ना काम आने वाली
टूटी हुई कुर्सियाँ
गुलदान
पुताई के पंछे
पुरानी तस्वीरों के बोर्ड
टूटी ईंटें
घड़े के ठीकरे
जंग लगे मटके के स्टैण्ड,
टूटी बाल्टी
और भी ना जाने क्या-क्या
तमाम छतों पर पड़े
सामान का नज़ारा
लग रहा था भयानक
मै घबरा कर
उतर आई सीढीयाँ
दम फूलने लगा
हाँफ रही थे मैं
कहाँ गई शहर की खूबसूरती
मैं जो चिल्लाती हूँ बच्चों पर
वो सही है कि
बैठक साफ करने से
नहीं आती है सफाई
दरअसल हम सफाई की शुरुआत
बैठक से करते हैं
और तमाम कचरा
गलियारे बेडरूम किचन गैरज
और फिर छत की तरफ
बुहार दिया जाता है
जमता रहता है छतों पर
घर का तमाम कचरा
जो बरसों तक
पड़ा रहता ज्यों का त्यों
उस छत पर पड़ी
नकारात्मक उर्जा के तले
हम दिन रात
उठते बैठते
सोते जागते हैं
और बैठक को साफ कर
इतराते हैं
खुद के सफाई प्रेम पर
जिसमें ना कभी हम बैठते
उस कुण्डी जड़ी बैठक को
भूले भटके मेहमान का
रहता है इंतज़ार
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यूँ ही सजे संवरे लोग
सौन्दर्य संवारने का
दावा करती
ये तथाकथित दुकानों की
थ्रेडिंग से
ईर्ष्या का
एक बाल तक
नहीं उखड़ता
ना तो कोई मसाज
कुण्ठा को क्लांत होने से
बचा पाती है
ना ही ब्लीचिंग
द्वेष को धूमिल कर पाती है
हाँ ! वैक्सिंग फेशिअल ब्लीचिंग
जैसे ग्लोबल शब्दो से
चमकते चेहरों के
दिल की सारी गन्दगी
रक्त शिराओं से बहती हुई
दिमाग की छत पर
जमा हो रही है

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ऐसे ही हमारी बुहारी
परिवार से समाज
और समाज से
देश के रास्ते होकर
पसर गई है
विश्व की छत पर
जमा हो गया है
सारा कूड़ा कचरा
उस विश्व की छत पर
जिस पर पड़े
आतंकवाद
भ्रष्टाचार
विश्व राजनीति
और परमाणु युद्ध
के खतरों के नीचे
अपने-अपने देशों को
खूबसूरत मॉल
भवनों , हवेलियों को
सजाने का भ्रम पाले हुए
सांस भी नहीं ले पा रहे हैं
मेरा बस इतना सा ही सवाल
मेरे शहर के लोगों से
क्या छतें साफ नहीं हो सकती ?

Hindi Poem by sangeeta sethi : 111162133
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