Hindi Quote in Poem by Sumit Bherwani

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"मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!"

समय के पंखों को ओढ़कर मैं सपनों के "आकाशगंगा" में उड़ना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!

ना कल की कोई फिक्र, ना दिल में औरों के लिए 'छल' का कोई जिक्र,

ना रंग से, ना पैसों से, ना कोई जातपात से, बनाए जाते मित्र खेल-खेल में!

भूख की तो चिंता छोड़ो, खा लिया करते थे उन मिट्टी से बने "टीलों" को...!

पाठशाला था जैसे दूसरा "घर" तो वहां के शिक्षक थे हमारा दूसरा "परिवार"।

शिक्षकों के ना आने के कारण होती कक्षा में "वर्ग-व्यवस्था", तो पूरे चरम पर आ जाती हमारी "बाल्यावस्था"!

बारिश में मिट्टी की सोंधी खुशबू को मानो शरीर पर "इत्र" की तरह मल देते, कागज़ की नाव में कभी अपने "मन" को भी तैरा लिया करते थे।

पाठशाला की होती अगर आखिरी "परीक्षा", तो उस दिन ऐसा प्रतीत होता मानो जीत ली हो कोई कठिन सी "प्रतिस्पर्धा" !

गर्मियों की छुट्टियों में "ट्वेल्थ मेन" की तरह शामिल कूलर का फिर से गूंजना, गोले वाले की टीन-टीन सुनकर तेज़ी से उसकी ओर दौड़ना और दिनभर खेलते रहना....!

डोरेमोन की "टाइम मशीन" में बैठकर फिर से उन संकरी गलियों में क्रिकेट खेलना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!

मां की गोद "स्वर्ग", तो पापा के दिए दो रुपए जितनी भी 'पॉकेट मनी' से मानो दुनिया खरीद ले ऐसी होती "हसरत"!

भाई की पिटाई पर हसना और बहन की रक्षा में बड़ों से भी उलझ जाना!

बचपन के "साम्राज्य" में हुआ करते थे राजा, पर अब जवानी में भरा हुआ "मन" रूपी तालाब भी लगता है सूखा।

मैं "शकलक बूम बूम" वाली पेंसिल से बचपन की "अदृश्य" हुई यादें बनाना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं।

कभी "बस्तों" में किताबों का वज़न भी हल्का लगता, पर अब तो लोगों की उम्मीदों के भार ऐसे लगते मानों किसी "गधे" पर सामान है ढोया !

कभी "कागज़" के जहाजों से तारों को तोड़ लाया करते थे, अब तो ये तारें टूटने का नाम ही नहीं लेते !

मैं विक्रम के साहस से जवानी की "मिथ्या" को सुलझाना और बेताल के उलझे हुए "सवालों" में फिर से उलझना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!

समय के पंखों को ओढ़कर मैं सपनों के "आकाशगंगा" में उड़ना चाहता हूं, क्योंकि मैं फिर से "बच्चा" बनना चाहता हूं!

#Kavyotsav2 #childhoodmemories

(भावनाप्रधान कविता)

Hindi Poem by Sumit Bherwani : 111161996
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