तन्हाइयाँ हमने बाॅंट ली।
ना उनके क़रीब कोई था,
ना क़ुर्बत में हमारी कोई,
इसी दरमियाँ के चलते एक रोज,
तन्हाइयाँ हमने बाॅंट ली।
ना उनकी सरिश्त इश्क थी,
ना हमारी इज़हार की,
इन्हीं अदाओं के सबब एक रोज़,
तन्हाइयाँ हमने बाॅंट ली।
ना फ़िक्र उन्हें किसी की,
ना परवाह किसी की हमे,
अकेले रास्ते की गश्त में एक रोज़,
तन्हाइयाँ हमने बाॅंट ली।
ना बे-वजह का सलीका उन्हें पसंद,
ना हम मुंतज़िर बेरंग तहज़ीबो के ,
गुस्ताख़ीयों के मद्देनजर एक रोज़,
तन्हाइयाँ हमने बाॅंट ली।
ना मर्ज़ उनके हल्के थे,
ना ज़ख़्म हमारे पायाब,
माज़ी के अफ़सानो में एक रोज़,
तन्हाइयाँ हमने बाॅंट ली।
ना उन्हें फुर्सत थी चंद घडीयों की,
ना बेहिसाब लम्हें हमारे पास,
इन्हीं मसरूफ़ियतो के चलते एक रोज़,
तन्हाइयाँ हमने बाॅंट ली।
ना खौफ़ था उन्हें किसी जलालत का,
ना डर हमें किसी बग़ावत का,
वजूद की अपनाइयत में 'आफ़रीन' एक रोज़
तन्हाइयाँ हमने बाॅंट ली।
-आफ़रीन
#KAVYOTSAV -2