आज स्नेहा हुई पराई ,
पेड़ से लताए हुई पराई !
एक वर्ष पहले हुई सगाई ,
स्नेहलता-कोहिनूर की न सगाई !
जब वह बनी दुल्हन ,
तो सीना कोहिनूर दहल उठा !
क्योंकि बेपनाह इश्क था ,
जो उससे मिलने का रिश्क था !
प्राकृति का इशारा क्या था ,
उसे स्नेहा का इशारा क्या था !
उन्हें एक दूसरे का यकीन था ,
प्राकृति का नजारा और था!
वह सच कहती थी ,
ऐसा समय आएगा !
वह जहां जहां जाएगी ,
कोहिनूर वहीं वहीं पहुंचेगा !
इश्क़ उमंग हैं,
शरीर की चंचल तरग हैं !
विश्वास का नाम हैं ,
स्नेहासक्ति का संगम हैं ! 'ओंसौ'