Hindi Quote in Blog by Vijayanand Singh

Blog quotes are very popular on BitesApp with millions of authors writing small inspirational quotes in Hindi daily and inspiring the readers, you can start writing today and fulfill your life of becoming the quotes writer or poem writer.

#मोरल स्टोरीज

लघुकथा -

होली
-------
होली का दिन था।रंग-गुलाल का त्योहार।उसे पति की याद आ रही थी।अचानक सीमा पर आतंकवादी गतिविधियां बढ़ जाने के कारण छुट्टियां कैंसिल हो जाने की वजह से पहली होली पर पति के न आ पाने से आज उसका मन उदास था।पति के दोस्त और पास-पड़ोस के बच्चे बड़े उत्साह से मोहल्ले की नयी भाभी को होली के बहाने देखने आ रहे थे।परिवार के बुजुर्गों के पैर छूकर उनका आशीर्वाद लेते हुए उसके पास आते। "भाभी!भाभी!" करते हुए उसके गालों पर गुलाल लगाते।प्लेट में रखे काजू-किशमिश-मखाने के टुकड़े उठाते और खाते हुए निकल जाते। देवर सिद्धू उन्हें भाभी को गुलाल लगाते देखता रहता।मुस्कुराता रहता। उसे सिद्धू की मुस्कुराहट में कुटिल शरारत नजर आ रही थी।उसने सिद्धू से कहा -"तुम भी भाभी को गुलाल लगा लो।"
" नहीं।"उसने सिर और हाथ हिलाते हुए कहा-" सबको लगा लेने दीजिए।अंत में, जहां जगह बचेगी वहां मैं गुलाल लगा लूँगा।"सिद्धू का जवाब सुन वह ऊपर से नीचे तक सिहर गयी।बुरी तरह डर गयी।किशोरों-युवकों द्वारा होली के बहाने की जाने वाली अभद्रता और बदतमीजियों की बहुत-सी कहानियां उसने सुनीं-पढ़ी थीं।उनकी उद्दंडता से वह वाकिफ थी।अनजाने भय से वह कांप उठी।अचानक चुप हो गयी वह।पर्व- का दिन था।
परिवार में किसी से कुछ कह भी नहीं सकती थी।
देर शाम तक लोगों का आना-जाना लगा रहा।जब खाने का समय हुआ तो उसने ड्राइंग रूम में सोफे पर बैठे सिद्धू से पूछा-" देवरजी,
आप अपनी भाभी से गुलाल नहीं खेलेंगे ?"
" क्यों नहीं भाभी ? जरूर।"सिद्धू अपनी जगह से उठा।उसके मन में समाया डर अब विशालकाय हो चुका था।मगर औपचारिकता तो निभानी ही थी।वह मन ही मन सहमी हुई सिद्धू को देखने लगी।टेबल पर रखी प्लेट से अबीर ले सिद्धू जब उसकी ओर बढ़ा, तो उसने अपनी आंखें बंद कर लीं।स्पर्श के एहसास से सहसा उसने आंखें खोलीं, तो देखा सिद्धू उसके चरणों में झुका हुआ था।" भाभी, यहीं मेरी जगह है।"वह अभिभूत हो उसे देखने लगी।उसने दोनों हाथों से उसे उठाया, और अपनी आंखों में उतर आए आंसुओं को आंचल के कोर से पोंछने लगी।फागुनी बयार ने उसके रोम - रोम को छू लिया था।होली के पावन रंगों से उसका तन - मन रंग गया था।

- विजयानंद ' विजय '
पता - विजयानंद सिंह
" आनंद निकेत "
बाजार समिति रोड
पो.- गजाधरगंज
बक्सर( बिहार )-802103
शिक्षा - एम.एस-सी; एम.एड्; एम.ए.(शिक्षा)
संप्रति - सरकारी सेवा(अध्यापन)
निवास - आरा (भोजपुर),बिहार
मो.- 9934267166

Hindi Blog by Vijayanand Singh : 111123326
New bites

The best sellers write on Matrubharti, do you?

Start Writing Now