तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
जैसे आँखों से रौशनी
चेहरे से नूर
होठों से तबस्सुम और
जिंदगी से ख़ुशबू चली गई हो।
महसूस होने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
मानो जिंदगी हो रेगिस्तान
साँस जैसे बदबू
पल पल एक साल सा और
चीनी जैसे नमक
महसूस होने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसे लगने लगा।
जैसे चुभ रही हो तन्हाईयाँ।
चिक रही हो धड़कने।
रो रही हो किस्मत।
जल रही हो हस्ति।
महसूस होने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
साये में तुम्हारी तस्वीर हो जैसे।
धड़कनो में तुम्हारे स्वर हो जैसे।
साँसों में तुम्हारी महक हो जैसे।
दिल पर तुम्हारा नाम हो जैसे।
महसूस होने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
सुरज ने जैसे रौशनी खो दी हो।
वक़्त ने जैसे रफ़्तार खो दी हो..!
गुलशन ने बहार..!
और कायनात ने रौनक खो दी हो!
महसूस होने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
जैसे तुम बिन चल न पाउँगा।
जैसे तुम बिन बह न पाउँगा।
तुम बिन जिंदगी सह न पाउँगा।
तूम बिन कभी जीत न पाउँगा।
महसूस होने लगा।
तुम गए तो कुछ ऐसा लगने लगा।
Written by- बिलगेसाहब
[Dedicated to ambadas patare only]