नकारात्मकता, उन झाड़ियों की तरह है जो मौका मिलते ही जहाँ-तहाँ उग आती है, न केवल उगती है बल्कि दिन-रात बढ़ती जाती है। इनकी मौजूदगी, छिन्न-भिन्न करने वाली और कष्टकर होती है । चारों ओर, केवल रूखी, बेजान, अप्रिय झाड़ियाँ ही झाड़ियाँ नजर आती है.....
और फिर एक दिन.....बारिश की बूँदे, धूप की चादर उस अदृश्य बीज को सींचना शुरू करती है जिसे हमने मृतप्राय, नकारा और बेकार समझ लिया था। धीरे धीरे सब हरा-भरा, खूबसूरत, जीवंत और फलदायी होने लगता है.....
और यह बीज, सकारात्मकता का बीज होता है जो नकारात्मकता की झाड़ियों से अदृश्य हो गया था लेकिन मृत नही। उसका अंश तो हमेशा से मौजूद था जिसे जरूरत थी तो महज कुछ पोषण की.....आत्मविश्वास के पोषण की, प्यार के पोषण की, सही मार्ग दिखाने वाले साथी की और एक हाथ की.....❤️