दिल से तेरी निगाह जिगर तक उतर गई
दोनों को इक अदा में रज़ामंद कर गई
वो बाद-ए-सबा की सर्मस्तियाँ कहाँ उठिए
बस अब कि लज्जत-ए-ख़्वाब-ए-सहर गई
देखो तो दिल फ़रेब ये अंदाज़-ए-नक़्श-ओ-पा मौज-ए-ख़िराम-ए-यार भी क्या गुल क़दर गई नज़ारे ने भी काम किया वाँ नक़ाब का मस्ती से हर निगाह तेरे रुख़ पर बिखर गई