🏠नीड़ की ओर🏠
अंधियारे पथ का मैं दीपक हूं
मुझको नीरव ही जलने दो
ज्ञान पुंज की दीपशिखा मैं
अन्तर मन में बरने दो
आशाओं के पंक्षी बिचर रहे
मन के नील गगन में
अस्त हो रहा सूरज शाम हुई
इन्हें बसेरा करने दो
रसमय जल सूख चला, जीवन की नदिया में
आ रही विदाई बेला, तुम मुझको अब जाने दो
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