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सुना है उसे .......................... सुना है उसे शिकायत है मुझसे, मुझे लगा उसे मोहब्बत है मुझसे, वो दुनिया से कहता था कि मैं उसका आइना हूँ, मुझे क्या ही पता था कि उसके लिए तो, फक्त में ज़मीन पर पड़ा टूटा कांच हूँ ................................ अक्सर वो मुझसे मेरी शिकायत कर लेता था, बस मेरी बारी आने पर नाराज़ हो जाता था, दिल ने सोचा कि एक दफा मैं भी उससे कुछ गिला कर लूँ, जब देखा उसका उदास चेहरा तो, मैंनें कह दिया जा तुझे एक दफा और माफ कर दूँ ........................ वो जो कह - कह कर मेरी कमियां मुझे गिनाता था, मैेंनें अपनी खामोशी से सब शून्य कर दिए, शुरूआत तो उसने कि थी रूसवाई कि, हमने उसका घरौंदा क्या छोड़ा, हम बेवफा और वो दुनिया के लिए पाक - साफ हो गए ........................... स्वरचित राशी शर्मा.
मैं उससे मिला ................ मैं उससे मिला, जो रोज़ाना खुद से मिलता हैं, जानता है दुनिया को फिर भी खामोश रहता हैं, सादा रहता है, सादगी में रहता है, चकाचौंथ से दूर खुद में ही मगन रहता हैं .................. भूल गया राह मैं, उससे जा कर टकरा गया, भयभीत अवस्था में था मैं, उसको देखते ही सुकून आ गया, वो दिखाता रहा मुझे राह, मैं उसकी शालीनता में ही गुम हो गया ....................... किया जब मैंनें उससे सवाल, उसके साथ ठहर जाने का, उसने कहा क्या बांध पाओगे खुद को उसके साथ, जो सबको आज़ाद कर देता है, मैं समझा नहीं उसका मतलब, वो शायद गुत्थी में बात करने का शौक रखता हैं ........................... स्वरचित राशी शर्मा
मेरा और मैं ................................. कुछ छूट गया, कुछ छोड़ दिया, उस वक्त ने मेरे भीतर के इंतान को तोड़ दिया, सब्र को जैसे - तैसे संभाले रखा था मैंने, सफलता ने एक दफा दस्तक क्या दी मेरी देहलीज़ पर, उसने दुबारा आना ही छोड़ दिया ................................ खुद का नाम लिए हुए ज़माना गुज़र गया, दूसरो ने कभी लिया नहीं और हमसे लिया ना गया, वो देखों, कौन हो तुम, जब सबने ऐ कहना शुरू कर दिया, हमें भी लगा अब इस शहर में मेरा नाम पुकारने वाला कोई ना बचा ............................. तकदीर से सवाल करूँ या खुद से करूँ पूछताछ, ऐ आसामन दे भी दें मेरे अनकहे सवालो के जवाब, अंधेरा मुझे अपनी ओर खींच रहा है, रात का चाँद भी मुझे अपना सा लग रहा है, सूरज पूछता है मुझसे कि कौन है तू, मैंनें भी कह दिया तू है अकेला और तेरे अकेलेपन का साथी मैं हूँ............................ स्वरचित राशी शर्मा ................................
हसरतें ...................... पुरानी है फिर भी हमारी है, जो रोज़ नई लगे तो वो तुम्हारी है, हम नहीं बदलते ख्वाबों को दिन - रात की तरह, चाहे वो ही क्यों ना बदल जाएं समय की तरह, थका देने का हुनर उसे खूब आता है, जवानी को छुर्रियों में बदल देने में उसे बड़ा मज़ा आता है, हार मान जाने वालों से वो बहुत खुश होती है, ड़रती है वो हम इंसानों से जिनकी सोच भटकती रहती है, कभी थोड़ी सफलता दे के खुश कर देती है, कभी मुंह के बल गिरा के संमदर के किनारे पर बैठा देती है, झूठ कहते है वो लोग जो कभी समंदर और कभी पहाड़ो पर सुकून मिलने की बात कहते है, हमें भी पता है वो वहां शांति की नहीं अपने जैसों से मुलाकात करते है. स्वरचित राशी शर्मा
गमों का शहर ............................... आँखों में आंसू और दिल में गम़ लिए हम फिर निकल चलें, ऐ शहर गम़ देता है बहुत हम दूसरे गम़ की तलाश में निकल चलें, रास्ते में जो मिला उसने अपने बसावट की जगह की खूब तारीफ की, हम सुनते रहे खामोशी से ताकि उसे ऐ ना लगे की हमें उसकी कही बात पर यकीन हुआ नहीं ........................... क्या सड़क क्या दरिया और क्या पहाड़ हमने सब कुछ पार कर लिया, पर कहीं ना मिला वो शहर जिसका लोगों ने अपनी किताबों में ज़िक्र किया, फिर लगा की कहीं अपने गम़ में डूब हम कहीं गलत तो नहीं आ गए, ज़हन तो सोया रहा गहरी नींद में, दिल ने कहा तुम जिस गम़ के शहर से चले थे वहीं पर लौट आएं ................................. ऊँचाईयाँ झांकते हुए बोली जो तेरे अंदर नहीं वो बाहर कैसे मिलेगा, हर दफा आ कर बैठ जाता है मेरे पहलू में तुझे कौन सा तेरे सवालों का जवाब मिलेगा, तेरी मायूसी का ईलाज आखिर हम कब तक करेंगे, जा कर कह अपनी कहानी उस गम़ देने वाले से, कब तक यूँ हम तेरी आँखों में नमी का समंदर देखेंगे .......................................... स्वरचित राशी शर्मा
दरारें ................................. दिखती तो है मगर अनदेखी की जाती है, भरने की कोशिश में और गहरी हो जाती है, तारीखों में भी इसकी छाप देखी जाती है, मुद्दतों बाद भी ऐ वहीं की वहीं रह जाती है ....................................... दीवारों पर लीपा - पोती कर उसे सुंदर बनाया जाता है, कभी फ्रेम तो कभी शो पीस से उसे ढ़का जाता है, पीछा कर रही है वो हम सबका कुछ इस तरह, तिनका - तिनका कर बना रही है अपनी जगह ....................................... दीवारो की तरह ही रिश्तों पर भी पुताई हो रही है, पता है दरारें मौजूद है दरमियां फिर भी मिटाने की कोशिश हो रही है, हंसता चेहरा ग़म तो छुपा सकता है मगर तल्खियां नहीं, यकीन ना हो तो खुद की हथेलियों को देख लो, जहां दरारनुमा लकीरों की कमी नहीं ....................................... स्वरचित राशी शर्मा
क्या तुम्हें याद है ................................. मज़बूत लकड़ी के पुल पर खड़ी कमज़ोर मैं, और नदी की लहरों को पीछे ढ़कलते तुम, खोई हुई थी मैं अपनी दुनिया में, और अपनी दुनिया में गुम चप्पू चलाते तुम, ऐ बिन देखें हमारी पहली मुलाकात थी, क्या याद है तुम्हें नदी से ज़्यादा गहरी हम दोनों की आँख थी ........................................ हम दोनों वहां से चले गए मगर वो मंज़र वहीं थम गया, पुल वहीं नदी वहीं हम दोनों का उस पहली मुलाकात में कुछ खो गया, हम दोनों एक जैसे है मैं किनारा पर खड़ी हूँ और तुम किनारे पर छोड़ने वालो में खड़े हो, सुना है बड़ा शौक है तुमको सफर करने का तुम निकल पड़ते हो राज़ाना नई मंज़िल की तलाश में, और बांध जाते हो मुझे एक नए सफर के एहसास में, क्या याद है तुम्हें हम आखिरी बार कब मिले थे, जब बैठी थी में तुम्हारी नाव पर और तुम हमारी आखिरी सफर की दास्तान लिख रहे थे............................ खैर छोड़ो उस पुरानी कहानी को भूल जाते है, मैं आज भी जाती हूँ उस मज़बूत पुल पर जो अब मुझे पहचानने लगा है, बैठा लेते है मुझे अपने पास और नदी के साथ मिलकर तुम्हें याद करता है, दिन ढ़लते ही घर वापसी की तैयारी होती है, तुम शायद याद नहीं करते हमें, मगर हमारी अक्सर तुमसे जुड़ी बात होती है, क्या याद है तुम्हें कि कोई वादों का वादा नहीं हुआ था, मगर ऐ भी सच है कि किनारे पर लोगों को छोड़ जाने के व्यवसाय बंद करने का वादा भी नहीं हुआ था.................. स्वरचित राशी शर्मा
कलम और कागज़ .................................. चल आ कुछ ऐसे लिखें कि लोग दीवाने हो जाएं, जिन लोगों को मुहब्बत थी कभी हमसे, उन लोगों को हमसे इश्क हो जाएं, पन्ना पलट - पलट कर खोजे वो हम में लिखे अक्षरों को, और हम अपनी कहानी का अधूरापन उनके नक्ष पर छोड़ जाएं .......................... लिखेगें आम सा कुछ पढ़ने वाले उसे अव्वल करेंगे, अपने मुंह से वो जब हमारी बात किसी और से कहेंगे, इंतज़ार करेगी दुनिया हमारी अगली कविता का, कागज़ में बसी खूशबू और लफ्ज़ों में छुपे एहसासों का, चल आ मेरे दोस्त आज फिर हम अपनी कहानी कहते है, लोग करे वाह - वाह ऐसी कोई रचना करते है .................................... कागज़ को जब कलम छुएगा तभी तो बात बनेगी, दिल की बात लिखेगें तभी तो लोगों के दिलों तक पहुँचेगी, अलमारी में रखें पन्नें अब पीले पड़ने लगे है, सोच को जंग और कलम को नीब को हम खलने लगे है, खिड़की से आती रोशनी पूछ रही है कि तू कब जागेगा, कभी तो दें शब्दों को आवाज़ तू अपने जज़्बात तब तक छुपा पाएगा, चल आ मेरे दोस्त इस दौर को अपना बनाते है, लेखक को ज़रूरत है पढ़ने वालों की, हम कदरदानों का जमघट लगाते है ..................................... स्वरचित राशी शर्मा
चाहती हूँ ................... मरना नहीं जीना चाहती हूँ, दौड़ना नहीं उड़ना चाहती हूँ, समझना चाहती हूँ अपनी हदों को मैं, मैं खुद को तुमसे आज़ाद करना चाहती हूँ ........................ दुनिया का नहीं खुद का साथ चाहती हूँ, सुंदर नज़ारों को मेहसूस कहना चाहती हूँ, रहना चाहती हूँ दूर मैं इस दुनियादारी से, मैं तो केवल अपनी सोच में गुम जाना चाहती हूँ ................................ देखना चाहती हूँ मेरे सपने कहां ले आएं है मुझे, कितने हुए पूरे और कितनों ने अधूरा किया है मुझे, सालों - साल की जद्दोजहद ने थकावट का लिबास दिया है मुझे, दी होंगी उसने औरों को शाबाशी मुझे तो कोशिशों का पन्रा थमाया है उसने .......................... स्वरचित राशी शर्मा
आस अभी बाकी है ................................... हाथ है खाली फिर भी आस बाकी है, हर रात के बाद की सुबह का इंतज़ार अभी बाकी है, बाकी है वो भी जो अब तक गुज़रा नहीं, मिलेगा मेरे सब्र का सिला मुझे कभी ना कभी, उपरवाले पर यकीन मेरा अब भी बाकी है .............................. ज़िन्दा है सपने अब तक मेरी आँखों में, बर्दाश्त की सहर अब भी बाकी है, ऐसा कोई जुल्म नहीं हुआ हम पर, हमारी तो फक्त इंतज़ार के ना खत्म होने की शिकायत, अब तलक बाकी है ............................. रोशनी को रोशन करना अब भी बाकी है, अंधेरों से लड़ने का हुनर अब भी बाकी है, जो बचा है उसे खोना नहीं चाहते, साहस, उम्मीद और सब्र को झूठा करार करना नहीं चाहते, ऐ आस तू एक बार मुकम्मल तो हो जा, बार - बार ना सही तू मेरे लिए कभी थोड़ा सा खास तो हो जा ........................... स्वरचित राशी शर्मा
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