हसरतें ......................
पुरानी है फिर भी हमारी है,
जो रोज़ नई लगे तो वो तुम्हारी है,
हम नहीं बदलते ख्वाबों को दिन - रात की तरह,
चाहे वो ही क्यों ना बदल जाएं समय की तरह,
थका देने का हुनर उसे खूब आता है,
जवानी को छुर्रियों में बदल देने में उसे बड़ा मज़ा आता है,
हार मान जाने वालों से वो बहुत खुश होती है,
ड़रती है वो हम इंसानों से जिनकी सोच भटकती रहती है,
कभी थोड़ी सफलता दे के खुश कर देती है,
कभी मुंह के बल गिरा के संमदर के किनारे पर बैठा देती है,
झूठ कहते है वो लोग जो कभी समंदर और कभी पहाड़ो पर सुकून मिलने की बात कहते है,
हमें भी पता है वो वहां शांति की नहीं अपने जैसों से मुलाकात करते है.
स्वरचित
राशी शर्मा