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Jatin Tyagi

Jatin Tyagi Matrubharti Verified

@jatintyagi05
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"प्रेम नहीं, छल का जाल है ये"

तुम जिस मोह में फँस बैठी हो,
प्रेम नहीं—छल का जाल है ये,
जिसे भगवान मान रही तुम,
दरअसल वह घड़ियाल है ये।

क्यों भूल गई माँ की ममता,
पिता का चेहरा याद नहीं,
कैसा अंधा मोह है तुझको,
सच्चे रिश्तों का मोल नहीं।

धर्म बदलकर प्रेम का वादा,
सच्चाई कहाँ मिली इस खेल में?
सीमा–श्रद्धा कितनी बलि चढ़ी,
ना जाने कितनी जली इस मेले में।

न कोई जन्मो का बंधन इसमें,
बस खिलौना समझेगा तुझको,
जब उसका जी भर जाएगा,
तब अब्बा के नीचे सुलाएगा तुझको।

ये झूठे सपनों की दुनिया,
तेरे जीवन को छल बनाएँगे,
चाचा–मामा–भाई–बंधु,
तुझे रखैल बनाकर मिटाएँगे।

– ©️ जतिन त्यागी... ✍️

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" शहीद-ए-आज़म : भगत से अमरता तक "

पग-पग पर जाग उठी थी क्रांति की पुकार,
नन्हे से मन में थे सपनों के भंडार।
मां की गोद में सुनी गुलामी की आहें,
जन्म लिया वीर ने तोड़े बंधन की राहें।।


किताबों में ढूँढा इतिहास का नूर,
मन में जगी ज्वाला, आँखों में दूर।
कलम से निकले शब्द, तलवार बने,
विचारों के रण में वो अग्रसर बने।।


लाहौर की गलियों में जोश था प्रचंड,
हर सांस कहे – "आज़ादी अनंत।"
संगियों के संग गढ़ा इंकलाब का गीत,
युवा लहू में धड़कन बनी असीम प्रीत।।


लाठी-गोली सहकर भी हँसता रहा,
दर्द को भी उसने प्रण में कसता रहा।
मौत से खेलना मानो जीवन हो गया,
हर लम्हा वतन का परचम हो गया।।


अदालत में गूंजा सत्य का ऐलान,
"इंकलाब जिंदाबाद" बना उसकी पहचान।
जेल की दीवारें भी कांप उठीं रात,
शब्द बने बिजली, मिटा गए अंधकार।।


गुरुद्वारे की वाणी, माँ की दुआएँ,
संग चलती रहीं उसकी सच्ची लगाएँ।
फाँसी का फंदा भी माला सा लगा,
मुस्कुराकर शहीद-ए-आज़म कहलाया।।


आज भी जब देखता हूँ उसका चेहरा,
लगता है जैसे जी रहा हूँ सवेरा।
जतिन का प्रण है – न झुकेगी ये क़लम,
भगत की राह पर चलूँ, रहे अमन।।

– ©️ जतिन त्यागी

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संघ है क्या?
संघ सबसे पहले और सबसे गहरा अर्थ महोपनिषद की इस सूक्ति से प्रकट होता है—

"अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्।
उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम्॥"

अर्थात – "यह अपना है, वह पराया है" – ऐसी संकीर्ण सोच तो छोटे मन वालों की होती है।
उदार हृदय वाले लोग तो पूरी वसुधा को ही अपना परिवार मानते हैं।

संघ वही है—
जहाँ सब नदियाँ आकर मिलती हैं, वही महासिंधु है।
जहाँ सारे मत, विचार, भाव और संस्कृतियाँ एकजुट होकर बहती हैं, वही संघ है।
हम वही हैं जो पूरी दुनिया को कुटुंब मानते हैं।
और यही भाव है – "हम हिंदू हैं। – जतिन त्यागी

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“प्रेरणा-पुरुष अशोक जी”

रामजन्मभूमि के प्रहरी, धर्म-ज्योति के दीप,
आपके संकल्पों से जागे, सोए हुए अनूप।
त्याग और तप की छाया में, खड़ा हुआ अभियान,
आपके बल से जग में गूँजा, भारत का सम्मान।।

श्वेत-वसन में संन्यासी, पर भीतर ज्वाला प्रखर,
राष्ट्रभक्ति की धारा बनकर, बहते रहे अमर।
हिंदू समाज के पथ-प्रदर्शक, धर्म के प्रहरी आप,
आपके संग उठ खड़ा हुआ था, हर भारत का आप्त।।

जाग उठी थी अयोध्या जब, गूँजा आपका हुंकार,
तप-शक्ति आपकी दहकी जैसे, रण में वीर पुकार।
आपके त्याग की गाथा गाती, हर जन-जन की बानी,
आपके बिना अधूरी होती, रामकथा की कहानी।।

मेरे जीवन में आप बने हैं, प्रेरणा का प्रकाश,
आपके दर्शन से ही जगी है, सेवा की वह आस।
अगर मैं राष्ट्र-पथर बना हूँ, आपकी छाया से बना,
आपके संघर्ष का ही अंश हूँ, आप ही का वंश बना।।

आज जयंती पर शत-शत, विनम्र नमन करूँ,
आपके आदर्शों को जीवन में, अटल नियम धरूँ।
स्मृति-शेष पर भी अमर रहे, आपका जयघोष महान,
अशोक जी सिंघल अमर रहेंगे, भारत के सम्मान।।

रचयिता – जतिन त्यागी

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हिन्दी न भाषा है, न कोई व्याकरण का विधान,
ये तो आत्मा की धड़कन है, ये तो है पहचान।
हर शब्द में बसी है धरती की महक निराली,
हिन्दी है तो साँसों में गूँजती भारत की लाली।


ये मात्र बोल नहीं, ये तो हृदय की जुबान है,
इसमें झलकता हर रंग, हर ऋतु का गान है।
माँ की लोरी से लेकर वेदों का उच्चार,
हिन्दी है तो संस्कृति का है सजीव संसार।


गंगा की धार सी पवित्र, हिमालय सा अटल,
हर अक्षर है अमर ज्योति, हर स्वर है निर्मल।
सत्य, साहस, और प्रेम की ये धरोहर प्यारी,
हिन्दी है तो हिंदुस्तान की रूह हमारी।


कभी कविता की धुन है, कभी गीतों की तान,
कभी वीरों की हुंकार, कभी संतों का ज्ञान।
शब्द-शब्द में रचती है अपनापन का रंग,
हिन्दी का हर आभूषण है जैसे जीवन अंग।


ये किसान की बोली है, मज़दूर का है गान,
राजा की आज्ञा भी है, संतों का वरदान।
गाँव-गाँव में खिलती है अपनत्व की कली,
हिन्दी में झलकती है जन-जन की ख़ुशहाली।


हिन्दी है तो हम हैं, हिन्दुस्तान हमारा,
ये जोड़ती दिलों को, देती साथ सहारा।
विश्व मंच पर चमके जब इसकी मधुर वाणी,
भारत की शान बने, हिन्दी हमारी रानी।


तो आओ प्रण करें हम सब इस पावन दिवस पर,
हिन्दी को अपनाएँ हर भाव, हर रस पर।
जग में गूँजे स्वर अपना, ऊँची हो पहचान,
हिन्दी है तो हिन्दुस्तान है, यही है सम्मान।
— जतिन त्यागी

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धरती ने ओढ़ी तिरंगे की चादर,
गगन में गूँजे आज़ादी का स्वर,
हर दिल में उमंग, हर आँख में नूर,
देशभक्ति का रंग हो गया भरपूर।

याद करो वो दीप जो जलते रहे,
अंधियारे में भी जो पलते रहे,
उनके सपनों से उजियारा फैला,
उनके बलिदान ने हमको सँभाला।

ना केवल गुलामी से मुक्ति का नाम,
ये है सपनों का, संकल्पों का धाम,
जहाँ हर जन हो अपने में स्वतंत्र,
और हर मन में हो सेवा का मंत्र।

आज का दिन सिर्फ झंडा लहराना नहीं,
ये है कर्तव्य निभाना, रुक जाना नहीं,
सच्ची आज़ादी मेहनत में छुपी,
सपनों को सच करने की राह में जुड़ी।

नदी-सा बहना, पर्वत-सा अडिग रहना,
किसी भी तूफ़ान से ना कभी सहमना,
देश के लिए हर सांस को अर्पण,
यही है वीरता, यही है समर्पण।

गाँव से शहर, खेत से कारखाने तक,
मेहनत के गीत हर तराने तक,
जहाँ न भूख हो, न अशिक्षा का नाम,
वहीं होगा आज़ादी का सच्चा मुकाम।

तो आओ मिलकर लें ये प्रतिज्ञा आज,
न होगा देश पर फिर कोई ताज,
जब तक सांस, तिरंगे का मान रहे,
भारत का हर जन अभिमान रहे। — जतिन त्यागी

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जुगनू की औलादों ने फिर से,
सूरज पर प्रश्न उठाए हैं।
शेरों की मादों के आगे,
कुछ गीदड़ गरजे आए हैं।

मेवाड़ वंश, कुल कीर्ति-दीप,
जिसकी गाथा अमर हुई।
उन राणा सांगा के घावों पर,
अब भुनगे क्यों मंडराई हुई?

उनसे कह दो यह देश शौर्य की,
मुट्ठी अब और तानेगा।
जो राणा के घाव न समझे,
वह इतिहास कहाँ पहचानेगा?

हल्दीघाटी की धूल अभी तक,
राणा की गाथा गाती है।
उस माटी का हर कण हमको,
बलिदान की राह दिखाती है।

तलवार उठी तो गंगा बोली,
तप का यह महायज्ञ है।
शिवा, प्रताप के वंशजों का,
रक्त शौर्य की पहचान है।

कुम्भा की छाया, बप्पा की गाथा,
रण की ज्वाला बनती है।
जहाँ स्वाभिमान का दीप जले,
वह धरती गंगा बनती है।

इतिहास तुम्हारी सरकारों का,
बंधक अब ना रहेगा जी।
उनसे कह दो यह देश लुटेरों को,
अब नहीं मानता है जी।

यह देश ऋणी उन पुण्य प्रवाहों का,
जिनसे गाथा बलिदान बनी।
यह देश ऋणी है वीर शिवा के,
परम प्रतापी अभिमान धनी।

उनसे कह दो वे राजनीति का,
गुणा-भाग घर में रख लें।
यह देश ऋणी है महाराणा,
सांगा के अस्सी घावों का! - ©️ जतिन त्यागी

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माँ की ममता, पापा का प्यार,
जीवन की राहों में उनका आशीर्वाद अपार।
जब हम थक जाएं, वो हमें संजीवनी देते,
अपने त्याग से, हर रुकावट को पार कराते।।

माँ की आँखों में बसी है शांति की गहराई,
पापा के दिल में हर दर्द की समझाई।
उनकी चुप्प रहकर भी, वो हमें सिखाते हैं,
जन्मों तक हमें अपने साथ लेकर जाते हैं।।

माँ के हाथों का जादू, पापा के शब्दों की शक्ति,
दुनिया की कोई कठिनाई नहीं, जो हो सके उनकी ममता से कमज़ोर।
जब भी हम गिरते हैं, वो हमें फिर से उठाते हैं,
उनकी मौजूदगी से ही हम खुद को ताकतवर पाते हैं।।

माँ की दुआएं और पापा का विश्वास,
ये हैं हमारे जीवन का सबसे सच्चा प्रसाद।
कभी न थमने वाली यह यात्रा उनकी छांव में,
हर आशीर्वाद उनका हमारे साथ हो हर एक मोड़ में।।

मातृ-पितृ पूजन दिवस पर, हम नमन करते हैं,
उनकी तपस्या और बलिदान को हम सम्मान देते हैं।
उनके बिना हम कुछ भी नहीं, यह जीवन केवल उनका है,
उनकी महिमा में बसी है हर खुशी, हर सुख, यही हमारा विश्वास है।। - ©️ जतिन त्यागी

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चली थी बस वतन के रक्षकों की, उम्मीदों से भरी,
किसे खबर थी, राह में मौत छुपी होगी खड़ी?

एक धमाका… और चीखों का तूफ़ान आ गया,
धरती भी कांप उठी, आसमान स्याह हो गया।

टूटे थे सपने माँओं के, बहनों के सुहाग छिने,
नन्हे हाथों से छूट गए, पिता के मजबूत हाथ कहीं।

वो जो घर लौटने वाले थे, तिरंगे में लिपट गए,
जो वादे किए थे अपनों से, वो अधूरे ही मिट गए।

पत्नी की आँखों में आँसू, पर माथे पर गर्व था,
बेटे ने कहा – "पापा लौटेंगे, ये तो बस स्वप्न था!"

माँ ने बहाकर अश्क कहे – "मेरा लाल मरा नहीं,
जितने जन्म लूँगी, हर बार मैं फौजी को ही जनूँगी!"

बर्फीली घाटी भी रोई थी, गंगा की लहरें रो पड़ीं,
हिमालय के सीने में भी, गहरी दरारें हो पड़ीं।

हर चिंगारी एक शोला बन, दुश्मन को जलाएगी,
अब कोई भी गद्दार, हिंदुस्तान को न झुकाएगी।

ये घाव भले भर जाएं, पर दर्द सदा रहेगा,
हर सैनिक का बलिदान, देश कभी न भूलेगा।

हम झुकेंगे नहीं, मिटेंगे नहीं,
हर आतंकी से बदला लेंगे, रुकेंगे नहीं! - ©️ जतिन त्यागी

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जब-जब अंधकार घना हुआ, जब-जब सत्य दबाया गया,
तब-तब संतों ने आकर के, मानव धर्म जगाया था।

ऐसे ही एक संत महान, जन्मे थे काशी धाम,
जिनकी वाणी में बसा, सच्चा प्रेम, सच्चा राम।

जात-पात के बंधन तोड़े, हर मानव को एक कहा,
भक्ति में जो लीन हुआ, वही हुआ रैदास सहा।

"मन चंगा तो कठौती में गंगा" – जीवन मंत्र सुनाया था,
सच्ची साधना क्या होती है, यह खुद करके दिखाया था।

राजमहल भी छोटा लगता, जब भावों की गूँज उठी,
हर निर्धन, हर पीड़ित के मन में, भक्ति की जोत जली।

कर्मयोग का पाठ पढ़ाया, मानवता का गीत सुनाया,
हर हृदय में प्रेम जगाकर, समाज को नव रूप दिलाया।

तेरी वाणी, तेरे वचन, आज भी प्रेरणा देते हैं,
रविदास तेरी भक्ति में, युग-युग तक जन जीते हैं। - ©️ जतिन त्यागी

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