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पीली चूनर, हल्का रंग, आई ऋतु बसंत के संग। फूलों में महके नव गान, कोयल गाए मधुर तान। सरसों खेतों में मुस्काए, पवन सुगंधी साथ लाए। गगन में उड़ती पतंग प्यारी, देखो ऋतु कितनी न्यारी। वीणा संग माँ आई आज, ज्ञान की बरसे अब सुराज। हंस सवार, श्वेत परिधान, देती विद्या का वरदान। बालक बनें गुणी-सुजान, जग में फैले सत्य विधान। मन में हो नव चेतना आई, ज्ञान-ज्योति हो सदा जगाई। आओ गाएँ संग में गीत, माँ का करें सदा वंदन, ज्ञान, बुद्धि, और प्रेम से, रखें सदा मन पावन। - ©️ जतिन त्यागी
नेताजी, तुम भारत के हो अभिमान, तुमसे रोशन हुआ देश का स्वाभिमान। हर दिल में जलाया स्वतंत्रता का दीप, तुमने दिखाया साहस का अद्भुत रूप। "तुम मुझे खून दो," जो तुमने कहा, हर युवा ने अपना जीवन तुम्हें दिया। तुम्हारे शब्दों में थी जो शक्ति महान, जगा गए हर हृदय में आज़ादी का गान। दुश्मनों के लिए बन गए एक डरावना नाम, भारत माता के लिए दिया जीवन का दान। आजाद हिंद फ़ौज की जो गाथा सुनाएँ, तुम्हारे साहस को सदा याद दिलाएँ। तुमने दिखाया लड़ने का वो जोश, हर भारतीय के दिल में उठी गर्व की लहर। तुमसे सीखा कि क्या है त्याग, तुम हो देशभक्ति का अमर प्रकाश। आज प्रकर्म दिवस पर करें नमन, तुम्हारे आदर्श बनें हर जीवन। सतत प्रेरणा के स्रोत हो तुम, नेताजी, भारत के भाग्य हो तुम। शत-शत नमन, हे वीर महान, तुमसे बना है भारत का मान। - ©️ जतिन त्यागी
तुमने रच दी मधुशाला की गाथा, जहाँ हर घूँट में बसी थी परिभाषा। संसार को सिखाया तुमने यह पाठ, “जीवन है मधु, दुख-सुख के साथ।” तुम थे शब्दों के साधक, अद्भुत शिल्पकार, भावनाओं को दिया तुमने अमर आकार। तुम्हारी लेखनी में झलका जो प्रकाश, वो मिटा गया हर हृदय का अंधकार। “निशा निमंत्रण” में रात्रि का श्रृंगार, “सतरंगिनी” में सजी जीवन की धार। तुम्हारी कविता, जैसे गंगा की धार, हर मन को कर दे पवित्र, अपार। तुमने कहा, "अग्निपथ मत छोड़ना, हर बाधा को ठोकर में मोड़ना।" तुम्हारे शब्दों में संघर्ष की पुकार, हर युवा के लिए बने जीवन का आधार। तुम केवल कवि नहीं, एक युग थे, हरिवंश जी, तुम साहित्य के भुजंग थे। तुम्हारे बिना अधूरा है हिंदी का जहाँ। श्रद्धा के दीप आज जलाते हैं, तुम्हारे चरणों में शीश झुकाते हैं। तुम अमर हो, अमर रहोगे हरिवंश, तुम्हारे शब्दों से जीवित रहेगा सारा ब्रह्मांश। - जतिन त्यागी
रुद्र हूँ, जहर पीकर भी मुस्कुराया हूँ, फिर क्यों मधु की कामना करूँगा? जब दे चुका अस्थियाँ इन्द्र के लिए, जब विष का पात्र पी गया बिना शिकन, तो विध्वंस की कल्पना भी क्यों करूँगा? है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? देह को जलाया है, राख में सपने बोए हैं, हर झोंपड़ी को उजाले से भरकर, अट्टालिकाओं को झुकाया है। दीपक हूँ, तिमिर से संघर्ष है मेरा, तो अंधकार से समझौता क्यों करूँगा? है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? मेरे द्वार खुले हैं हर पीड़ित के लिए, साँपों को भी दूध दिया है इस आँगन ने। जीतकर शत्रु को, दया का वरदान दिया, तो अपने घर में द्वेष क्यों भरूँगा? है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? ठोकर मार दी ऐश्वर्य को, भिखारी बना, पर स्वाभिमान नहीं खोया। फिर भी क्यों तुम्हारी आँखों में जलन है? जब हृदय पर राज्य कर चुका, तो क्षणिक सिंहासनों की ख्वाहिश क्यों करूँगा? है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? मैं वो चिंगारी हूँ, जो राख में भी जिंदा रहती है, मैं वो तूफ़ान हूँ, जो रास्ते खुद बनाता है। जहर पीने वाला रुद्र हूँ, मधु की याचना मेरी फितरत नहीं। है सामर्थ्य मुझमें असीम, तो याचना क्यों करूँगा? - ©️ जतिन त्यागी
॥ सनातन की ज्योति ॥ सनातन की जोत है अमर, हृदय में जिसके बसे सागर। धर्म, करुणा, प्रेम का दीप, सुख-दुख में जो बने साथी चिर।। गंगा-यमुना की बहती धार, कुंभ में होता आह्वान अपार। त्रिवेणी के संगम का ये जल, शुद्ध करे तन, मन और अटल।। वेदों की गूँज, ऋषियों का ज्ञान, सिखाता हमें जीवन का मान। "वसुधैव कुटुंबकम्" का मंत्र, धरती बने एकता का केंद्र।। भक्ति में शक्ति, शक्ति में शांति, सनातन सिखाए सच्ची प्रार्थना गहरी। पर्वतों की गूँज, नदियों का गीत, सनातन का हर कण है पुनीत।। चलो, उठो, जागो, बढ़ो, महाकुंभ का आह्वान सुनो। धर्म का दीप जलाना है, मानवता का मर्म सिखाना है।। सनातन की जोत सदा जले, प्रेम और शांति की राह चले। महाकुंभ का पर्व जो आए, हर आत्मा को अमृत बरसाए।। - ©️ जतिन त्यागी
संघ को अपने लिए कुछ नहीं चाहिए, संघ को अपना नाम बड़ा नहीं करना, संघ कि बिलकुल इच्छा नहीं कि भारतवर्ष के भले का कोई श्रेय संघ को मिले। संघ तो कहता है समाज के लिए कार्य हो, सम्पूर्ण समाज खड़ा हो जाये और इतिहास में ये लिखा जाए कि भारत वर्ष में, समाज में ऐसी जाग्रति आई कि उसने सारे विश्व का मार्ग दर्शन करने वाला एक समाज खड़ा कर लिया जिसने अपने देश के परम वैभव कि प्राप्ति करते हुए सारे विश्व को सुख शांति कि राह बताई 🚩
जिनके जुल्म से तड़पी थी ये ज़मीं हमारी, जिनके घाव से रोई थी माँ भारती प्यारी। उन फिरंगियों के रंगों को अपनाऊँ कैसे, अपने लहू के दीप को भुलाऊँ कैसे। भगत, आज़ाद, सुखदेव की है जो पहचान, उनकी कुर्बानी का रखूँगा मैं मान। जिन्होंने जलाया सपनों का संसार, उनके लिए क्यों सजाऊँ त्योहार। हमारा हर पर्व हमारी माटी का हो, जिसमें बस भारत की ही बात हो। ग़ुलामी के रंगों को अब मिटा दो यार, चलो मनाएँ सिर्फ़ "अपनी धरती, अपना त्योहार।" - ©️ जतिन त्यागी
ये कहानी उन वीरों की है, जो झुके नहीं, टूटे नहीं, जिन्होंने गोरों की हर चाल को, अपने लहू से मिट्टी में रचा। भगत सिंह, सुखदेव, आज़ाद के वो तेवर, रानी लक्ष्मीबाई की जलती जंग का जज़्बा, नेताजी के क़दमों की धड़कन से, थरथराया था अंग्रेजों का हर सपना। जिन हाथों ने दिया था फाँसी का फंदा, जो दिल में बसा गए थे गुलामी का गंदा, जिनकी यातनाओं से तड़पा ये वतन, उनकी स्मृतियों पर क्यों जलाएँ दिए हम? उन्होंने बाँटा हमें सरहदों से, माँ की छाती पर गहरे घाव किए। वो लूट ले गए हमारी चिड़िया का सोना, फिर क्यों मनाएँ उनके रंगों का त्योहार यहाँ? क्या भूल गए हम वो जंजीरों का शोर? वो खेत, वो गांव, जो सूने पड़े थे। क्या भूल गए वो लहू से सनी धरती, जहाँ आज़ादी की फसल बोई गई थी? अब ये सोचने का समय है, क्या हमें बनना है उनके नक्शे-कदम का हिस्सा? या गढ़नी है अपनी पहचान नई, जहाँ केवल भारत की मिट्टी की महक बसी हो। हमारे पर्व हमारी संस्कृति के गीत हों, हर दीप हमारे इतिहास की रोशनी हो। फिर क्यों मनाएँ हम उन फिरंगियों का त्योहार, जिन्होंने हर घाव पर दिया था वार। तो उठो, जागो, और ये प्रण करो, कि हर उत्सव केवल भारत का हो। जहाँ तिरंगा लहराए और जयकार हो, जहाँ हर पर्व में भारत माँ का श्रृंगार हो। - ©️ जतिन त्यागी
भारत की भूमि, ऋषियों का धाम, जहां हर कण में बसता है राम। सिंधु घाटी की संस्कृति निराली, सभ्यता की पहली कहानी हमारी। वेदों का ज्ञान, धर्मों का मर्म, जीवन का अर्थ सिखाया हर कर्म। चाणक्य की नीति, अशोक का त्याग, संघर्ष से सीखा शांति का राग। गुप्तों का युग, स्वर्णिम था काल, कला, विज्ञान का गूंजा हर गाथाल। मौर्य की शक्ति, वैभव अपार, संस्कृति का खजाना, अनमोल आधार। मुगल आए, स्थापत्य बढ़ाया, ताजमहल ने विश्व को लुभाया। पर आई फिर गुलामी की पीड़ा, अंग्रेज़ों ने लूटी हमारी ये सीढ़ा। 1857 की बगावत जगी, क्रांति की चिंगारी हर दिल में लगी। गांधी का सत्य, भगत का बलिदान, नेहरू का सपना, स्वतंत्रता महान। 1947 का स्वर्णिम प्रभात, आज़ाद हुआ भारत, हुआ विनम्र आरंभ। संविधान ने दिया लोकतंत्र का दान, समता और समानता का हुआ सम्मान। हरित क्रांति, श्वेत क्रांति की राह, भारत ने बढ़ाया विकास का चाह। चंद्रयान ने दी अंतरिक्ष को छुआ, वैज्ञानिकों ने नया इतिहास लिखा। 2024 का भारत, आत्मनिर्भर महान, विश्वगुरु बनने को तैयार हिंदुस्तान। संघर्ष और सफलता की है ये कहानी, हर युग ने लिखी एक नई बानी। जय हिंद की गूंज, है भारत का नारा, संस्कृति और प्रगति का अद्भुत सहारा। इतिहास हमारा, गर्व का प्रतीक, हमेशा रहेगा भारत अद्वितीय।। - ©️ जतिन त्यागी
जनमीं धरा पर, सादगी की मूरत, ज्ञान की गंगा, नीति की सूरत। डॉ. मनमोहन, युग का अभिमान, भारत के भाग्य विधाता, महान। पंजाब की माटी में जन्म लिया, मेहनत से स्वप्नों को सत्य किया। विद्या के दीप जलाए जो ऐसे, दुनिया ने देखा, वो अद्भुत पैसे। आर्थिक संकट में जब देश घिरा, संभाला था तुमने, नहीं डिगा धरा। उदारीकरण का द्वार जो खोला, हर कोना हुआ रौशन, हर दिल बोला। प्रधानमंत्री बन देश को संजोया, संविधान के मूल्यों को उच्च किया। शांति के संदेश से दुनिया को जीता, संवाद में विश्वास, युद्ध से दूर रीता। कभी न आवाज ऊंची, न क्रोध दिखाया, मुद्दों को हल्का नहीं, पर हल करवाया। सादगी भरा जीवन, सेवा का सार, हर दिल में बसेगा तेरा अपार। आज देश गमगीन, तेरा न होना भारी, आसमान भी रोए, न रहे वो सितारे। डॉ. मनमोहन, तेरी यादें अमर रहेंगी, भारत तेरे ऋणी रहेगा, ये वचन कहेंगी। श्रद्धांजलि तुम्हें, हे भारत के लाल, तेरा जीवन रहेगा प्रेरणा का मिसाल। सादगी से जीना, कर्म से आगे बढ़ना, यही सिखाया तुमने, हर कदम पर लड़ना। -©️ जतिन त्यागी
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