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7 दिसंबर 1937 को जन्म लिया, एक साधारण बालक, जिसने बड़े सपने सिला। परिवार का नाम था, पर खुद को बनाया, देश के लिए सेवा का दीप जलाया। टाटा के घराने में कदम रखा जब, संघर्षों की राहों से पार किया हर दम। उनके दिल में था देश का बड़ा सपना, देश को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना। छोटे उद्योगों से शुरू की कहानी, हर चुनौती को मान ली, बनी नई निशानी। टाटा मोटर्स, टाटा स्टील, और टाटा टी, हर क्षेत्र में फैलाया अपना नाम और रोशनी। "नैनो" से गरीबों के सपने साकार किए, "टाटा कंसल्टेंसी" ने डिजिटल युग में सितारे छुए। कभी नहीं झुके, कभी नहीं थमे, दुनिया के हर कोने में कामयाबी के दीप जलाए। उनका दिल हमेशा समाज के लिए धड़कता था, ग़रीबों और युवाओं के सपनों को समझता था। दिया दान, दिया रोजगार, दिया देश को सम्मान, हर कदम पर उन्होंने किया देश का उत्थान। आज जब वो दुनिया से विदा हुए हैं, हर दिल में उनका नाम जिंदा हुआ है। उनकी कहानी एक प्रेरणा बनकर रहेगी, हर युवा के सपनों में रोशनी भरेगी। आज उनके जाने से आँखें नम हैं, पर उनका संघर्ष और प्रेम अमर रहेगा हर दम। रतन टाटा, आपका योगदान हम नहीं भूलेंगे, आपके आदर्शों से ही हम आगे बढ़ेंगे। "आपकी राहें हमें दिखाएंगी मंज़िल का रास्ता, "रतन टाटा जी आप हमारे दिलों में हमेशा रहेंगे, आपके सपनों से हम आगे बढ़ते रहेंगे।" - ©️ जतिन त्यागी
बजरंग दल का जोश अनोखा, वीर हनुमान का साथी है देखा। धर्म की रक्षा, सेवा का व्रत, हर संकट में ये रहता अविरत। वीर शिवाजी की धरा के सपूत, राष्ट्र प्रेम में हैं अडिग ये दूत। धर्म की मशाल हाथ में लिए, भारत माता के चरणों में जीए। गर्व से कहते "जय श्रीराम," हर दिल में भरते देश का मान। आधि-व्याधि जो भी आए सामने, बजरंगी रणबांकुरे कभी न थमने। सत्य-अहिंसा, धर्म-वीरता, इनके जीवन का अद्भुत नाता। राष्ट्रहित में सदा तत्पर, इनके बलिदान से धरा भी निखर। बजरंग दल की जय-जयकार, राष्ट्र का गौरव, सच्चा उपहार। हनुमान के आशीर्वाद से चमके, बजरंगी वीर सदा अडिग रहें। - ©️ जतिन त्यागी
----------मेरी आँखों से देखना----------- नज़्मों को पढ़ना मेरे गीतों को समझना तुम दुनिया को जीना मेरी आँखों से देखना। उम्र के साथ साथ तज़ुर्बे भी बढ़ते हैं सबके वक़्त सिखाए कुछ तो वक़्त से सीखना। तेरी आँखों में अश्क बनकर खुशी और गम के मिलूंगा कभी कभी मैं तुमसे तुम देखना। कुछ वादे तेरे बाकी हैं निभाने के लिए जिसका रह जायेगा जितना हिसाब में लिखना। कांटे दोस्त बनकर करते हैं हिफाज़त गुल की बचाकर फूलों को मेरे हमनवा हवा से रखना। जो दिखता है चहरों पर होता नहीं है अकसर हम जैसा मिले कोई तो दिल से ही परखना।
मतदान करो, ये है अधिकार हमारा, राष्ट्रहित के संग बढ़ाएं उजियारा। हर वोट है अमूल्य, हर मत है महान, रखें एकता की लौ, बनाएं नया जहाँ। भ्रष्टाचार को करें हम सब मिलकर ख़त्म, संगठित होकर चलें, ये है हमारी कसम। नारी, बच्चे, बुजुर्ग, सबकी आवाज़ बनें, राष्ट्रहित की राह में, हम सभी मिलकर चलें। शक्ति है वोट में, बदलें सूरत ये देश, सनातन संस्कृति की सुरक्षा, ये है आज का निर्णय विशेष। हर बूथ पर पहुंचे, हर दिल में हो जोश, मतदान से ही बनेगा, सच्चा भारत, अच्छी सोच।" - ©️ जतिन त्यागी
मैं स्वयंसेवक मुझे न चाह है जयगान की । मैं स्वयंसेवक मुझे परवाह न यशगान की । मैं पूजा का पुष्प हू आराध्य माता भारती । मैं स्वयंसेवक मुझे न चाह है जयगान की ॥ परम मंगलवत्सला माँ, गोद मे जिसकी पला मैं-2 जिस धरा के अन्न-जल, से नित्यप्रतिपल हूं बढ़ा मैं । प्राणदीप से मैं उतारू-2 उस धरा की आरती ...। । मैं स्वयंसेवक मुझे ...॥ धर्मपथ पे मैं चला हूं , अटल यह विश्वास मेरा -2 सुजन रक्षण असुर मर्दन श्रेष्ठ जीवन कार्य मेरा । धर्म हित महायुद्ध को हे-2 माँ मुझे ललकारती । । मैं स्वयंसेवक मुझे ....॥ अग्निपथ पर मैं चला हूं, छोड़ सुखमय मार्ग जग का-2 कण्टको से पूर्ण पथ पर नित्य हे स्वीकार चलना श्रेष्ठतम बलिदान की-2 हे मातृभू अधिकारी । मैं स्वयंसेवक मुझे ....॥ ना रहे कुछ भिन्नता अब बन सकूं मैं अंश तेरा-2 बिंदुबनकर संघसरिता कर सकूं अभिषेक तेरा । तव चरण पर वन्दना-2 स्वीकार हे माँ भारती । । मैं स्वयंसेवक मुझे न चाह है जयगान की । मैं स्वयंसेवक मुझे परवाह ना यशगान की । मैं पूजा का पुष्प हूं, आराध्य माता भारती । मैं स्वयंसेवक मुझे ....॥
दिखावे के लिए हमसे, वफ़ादारी ना की जाए। मोहब्बत है तो है, वर्ना कोई अदाकारी न की जाए।। असली चाहत क्या है, ये मतलब भी समझा जाए। दिल की गहराइयों में जो नज़र आए, कोई मोहब्बत का नकली रंग न चढ़ाया जाए।। सच्चे दिल की पहचान छुपी न रह जाए, दिल से दिल का रिश्ता नजर आए, बस इसी बात की इबादत की जाए। फरेब के रंग से सच्चाई को मिलाया न जाए, सच्ची मोहब्बत में बस दिल से दिल मिलाया जाए।। - ©️ जतिन त्यागी
"जो मिल जाए सहजता से, उसकी कोई बात नहीं है, विशेषता तब है पाई, जब कठिनाई राह में आती है। जिनकी जिद न छूटी कभी, उनकी मेहनत रंग लाई, वो सफल होते हैं सच्चे में, जो कहते थे मुक़द्दर लिखाई।" - ©️ जतिन त्यागी
मैं बाग़ी ही रहूँगा उन महफिलों का, जहां शोहरत तलवे चाटने से मिलती है। मैं अपने अज़्म की कीमत न चुकाऊँगा, ना बेवजह के तावीज़ों को सजाऊँगा।। मैं सच्चाई की राह पर चलता रहूँगा, चाहे जो भी कीमत हो, पर अपना रास्ता न छोड़ूँगा। मुझे परवाह नहीं उनकी चमक-दमक से, मैं सच की राह पर अपना इंकलाब लाऊँगा।। मैं बाग़ी हूँ और बाग़ी ही रहूँगा, सच्चाई की राह पर चलते हुए खुद को साबित करूँगा। ना तिजारत की ऊँचाइयों में खो जाऊँगा, ना फरेब के बाज़ार में बिक के आऊँगा।। मैं बाग़ी हूँ और बाग़ी ही रहूँगा, अपनी पहचान, अपने रास्ते पर अडिग रहूँगा।
गुलों में रंग भरे बाद-ए-नौ-बहार चले चले भी आओ कि गुलशन का कारोबार चले क़फ़स उदास है यारो सबा से कुछ तो कहो कहीं तो बहर-ए-ख़ुदा आज ज़िक्र-ए-यार चले कभी तो सुब्ह तिरे कुंज-ए-लब से हो आग़ाज़ कभी तो शब सर-ए-काकुल से मुश्क-बार चले बड़ा है दर्द का रिश्ता ये दिल ग़रीब सही तुम्हारे नाम पे आएँगे ग़म-गुसार चले जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ हमारे अश्क तिरी आक़िबत सँवार चले हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब गिरह में ले के गरेबाँ का तार तार चले मक़ाम 'फ़ैज़' कोई राह में जचा ही नहीं जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले
मिलने की तरह मुझ से वो पल भर नहीं मिलता दिल उस से मिला जिस से मुक़द्दर नहीं मिलता ये राह-ए-तमन्ना है यहाँ देख के चलना इस राह में सर मिलते हैं पत्थर नहीं मिलता हमरंगी-ए-मौसम के तलबगार न होते साया भी तो क़ामत के बराबर नहीं मिलता कहने को ग़म-ए-हिज्र बड़ा दुश्मन-ए-जाँ है पर दोस्त भी इस दोस्त से बेहतर नहीं मिलता कुछ रोज़ 'नसीर' आओ चलो घर में रहा जाए लोगों को ये शिकवा है कि घर पर नहीं मिलता
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