विंचू तात्या
लेखक राज फुलवरे
रात का सन्नाटा था. आसमान में आधी छिपी चाँदनी मकान की खिडकियों पर चांदी की लकीरें खींच रही थी. शहर की गलियों में देर रात तक शोर रहने वाला माहौल भी थक कर सो चुका था. पर इस शहर में एक आदमी ऐसा था जिसे रात की नींद नहीं, बल्कि रात में काम शुरू होता था. नाम था विंचू तात्या.लोग कहते —सांप डसे तो उतना दर्द नहीं होता, जितना विंचू डस ले तो होता है।शायद इसलिए उसका नाम पड गया था विंचू तात्या, क्योंकि वह भी काटता नहीं दिखता था — लेकिन डंक गहरा मारता था.दिन में वह एक श्रीमंत बंगले में नौकर था. बडा- सा सफेद बंगला, चारों ओर फूलों की क्यारियाँ, फव्वारों की आवाज और अंदर महंगी पेंटिंग्स से सजा हुआ हॉल. बंगले की मालकिन सुमन देवी, स्वभाव से शांत किन्तु व्यवहार में सख्त. उनके पति विलास राव अक्सर विदेश में बिजनेस टूर पर रहते. घर में नौकर बहुत थे, लेकिन आत्माराम पर — यानि उसी विंचू तात्या पर — सबसे ज्यादा भरोसा.हाँ, यहाँ वह आत्माराम नाम से जाना जाता था.सुबह छः बजे वह चाय की केतली चढाता, मालकिन के कमरे की घंटी बजती और वह धीमे से कहता —मालकिन, चाय रख दी है।सुमन देवी हर रोज उसे देखकर मुस्कुराती.अच्छा है आत्माराम, तुम पर ही घर चलता है. बाकी सब मौका मिलते ही सुस्ताने लगते हैं।आत्माराम सिर झुका कर आदर से कहता —जी मालकिन, आपका घर ही मेरा घर है।लेकिन मन में कहीं एक शैतानी हँसी पनपती —घर? ये तो मेरा शिकारगाह है।दिन में वह काम करता, विश्वास जीतता और रात को. वह बदल जाता. चेहरा ढाँपकर निकलता, सूनी गलियों में घूमता, महिलाओं की गर्दन पर चमकती साखली चेन, मंगलसूत्र, सोने की छोटी- सी झलक देखते ही उसकी नसों में बिजली दौडती.झटके से हाथ बढाता.दुपट्टा हटता.साखली खिंचती.और वह रात के अंधेरे में गायब.शहर भर में दहशत —विंचू तात्या फिर निकला!किसी और का मंगलसूत्र गया!पुलिस तीन महीने से परेशान. कोई सुराग नहीं. वह इतने सफाई से चोरी करता कि पहचान ही नहीं होती.एक शाम.बंगले में सब रोज जैसा. सुमन देवी किटी पार्टी की तैयारी कर रही थीं. महंगी साडियाँ, सोने के गहने, चमचमाती रोशनी. महिलाएँ हँसी- ठहाके लगा रही थीं.आत्माराम — यानी वही विंचू तात्या — ट्रे में स्नैक्स लेकर मेहमानों के बीच घूम रहा था. पर उसकी आँखें गहनों पर टिकीं थीं. किसी के गले में मोटा हार, तो किसी के कानों में हीरे की बाली.वह मुस्कुराता पर भीतर दिमाग गिनता —एक. दो. तीन. सब अमीर. आज रात तो मजा आ जाएगा।एक मेहमान पूछती —आत्माराम, ये कबाब बहुत स्वादिष्ट बनाए. किसने सिखाया?वह विनम्रता से बोला —गरीब की थाली में स्वाद ही दौलत होता है मैडम, सीखा नहीं — जीने की वजह से बन गया।सब हँसते, वाह- वाह करते. किसी को क्या पता वही सौम्य चेहरा रात में लुटेरा बन जाता है.पुलिस को भडक लगी.अगले दिन SP ऑफिस में Meeting थी. टेबल पर दर्जनों महिलाओं की शिकायतें रखी थीं. एक सब- इंस्पेक्टर बोला —सर, हमने जितने Closed Circuit Television देखे हैं, उसमें एक आदमी दिखता है — दुबला- पतला, आँखों में तेज, पर चेहरा हर बार ढका रहता है।SP ने टेबल पर हाथ मारा —कुछ तो कनेक्शन होगा! ये चोरी आम नहीं — प्रोफेशनल है. जिस घर की महिलाएँ लुटीं हैं, वो सब उसी इलाके से निकलती हैं जहाँ अमीर लोग रहते हैं।दूसरा अधिकारी बोला —सर एक शक है, उस इलाके में एक अमीर बंगला है जहाँ बहुत नौकर हैं. शायद कोई अंदर का आदमी भी.SP की आँखों में चमक आई —गुड. उसी घर पर दवा दो. चुपचाप नजर रखें।योजना बनी. चौथे दिन पुलिस सिविल ड्रेस में, साधारण गाडियों में, उसी बंगले के आसपास तैनात हुई.रात — सच्चाई का पर्दाफाशविंचू तात्या को क्या पता बाहर शिकारी उसका ही इंतजार कर रहे हैं. खाना परोसकर सब सो गए. घर में सन्नाटा.उसने धीरे से कमरे की कुंडी बंद की, बिस्तर को ऐसे सजाया जैसे कोई सो रहा हो. दरी के नीचे चोरी का अपना छोटा किट रखा था.खिडकी आधी खोली.बाहर छलाँग लगाई.पर इस बार किस्मत साथ नहीं थी.झाडियों में कैमरा फ्लैश टिमटिमाया.फिर हल्की आवाज — ठक. ठक.वह चौक गया.कौन है? पर आवाज नहीं निकली.अचानक टॉर्च की रोशनी उसके चेहरे पर पडी.रुको! पुलिस!चार पांच जवान घेर चुके थे.विंचू तात्या भागा — पागलों की तरह भागा. दीवार फांदी, पीछे से आवाज —गोली मत चलाओ! जिंदा चाहिए।भागते- भागते वह पीछे के दरवाजे से दुबारा अंदर आया. उसे लगा — अगर मालकिन के कमरे में छिप जाऊँ तो बच जाऊँगा.वह दबे पाँव ऊपर गया.पर वहाँ पहले ही पुलिस थी.मालकिन के कमरे में पूछताछसुमन देवी नींद में थीं. अचानक पुलिस दरवाजा पीटने लगी.धडाम! धडाम!मालकिन घबराकर बाहर आईं —कौन है रात को?SP ने फोटो दिखाया —मैडम, ये आदमी क्या आपके यहाँ काम करता है?सुमन देवी ने चश्मा लगाया, फोटो को गौर से देखा.हाँ. ये आत्माराम ही है. पर यह चोर कैसे हो सकता है? ये तो बहुत ईमानदार लगता है।SP सख्त स्वर में —मैडम, यही विंचू तात्या है. शहर में महीनों से महिलाओं की साखलियाँ इसी ने छीनी हैं. हमें पक्का सुराग मिला है कि वो यहीं रहता है।सुमन देवी की साँसे रुक गईं.क्या? आत्माराम? हमारे घर का नौकर? असंभव!ठीक उसी समय पीछे से विंचू तात्या भागता हुआ कमरे में घुसा.उसके हाथ में काला कपडा, सांसें तेज.मालकिन सन्न!SP ने उंगली उसकी ओर तानी —देखिए, यही है. आत्माराम नहीं — विंचू तात्या!मालकिन की आँखों में आँसू आ गए —तूने हमारे विश्वास को ऐसे तोडा आत्माराम?वह हँसा — धीमी पर खतरनाक हँसी.मालकिन, दुनिया का सबसे बडा तिजोरी विश्वास है. और मैंने वो तोड ली।पुलिस झपट पडी.तमाचा पडा. वह गिरा.हथकडी चटक कर उसके हाथों में कस गई.थाने में पूछताछकोठरी का लोहे का दरवाजा बंद हुआ. अंदर अँधेरा, सीलन भरी बदबू. पुलिस इंस्पेक्टर टेबल पर फाइल पटककर बोला —बोल विंचू! कितना माल चुराया? कहाँ रखा है?वह मुस्कुराता रहा —जो ले गया, वो जिंदगी भर याद रहेगा।इंस्पेक्टर ने डंडा टकराया —असमझदार मत बन. महिलाएँ रो रही हैं, किसी का मंगलसूत्र बेटी की शादी का तोहफा था, किसी की माँ की निशानी. है तुझमें जरा भी इंसानियत?कुछ पल खामोशी.फिर पहली बार विंचू तात्या की आँखों में दर्द चमका.धीमे स्वर में बोला —गरीबी ने इंसान का पेट नहीं — दिल चुराया है साहब. कोई मदद नहीं करता. मैंने हाथ फैलाए, सबने झटक दिए. तब समझ आया — लेने वाला ही दुनिया का मालिक है।इंस्पेक्टर शांत हुआ.तो चोरी ही रास्ता मिला?वह हँसा —जीने के लिए इंसान कुछ भी बन जाता है. मैं चोरी नहीं करता था — मैं बदला लेता था किस्मत से।SP बोला —पर तूने गरीबों से नहीं — अमीरों से छीना।विंचू तात्या उठकर सलाखों पर हाथ मारता है —हाँ! क्योंकि अमीरों के पास सब है. पर कभी किसी ने पूछा — विंचू खाना खाया? विंचू को कपडा मिला?उसकी आँखें नम थीं, पर अपराध मिट नहीं सकता था.मुकदमा और सजाअदालत में भीड थी. महिलाएँ अदालत में रोते हुए अपने टूटे मंगलसूत्र दिखा रही थीं. पत्रकार कैमरे चमका रहे थे —विंचू तात्या पकडा गया! शहर का बडा साखली चोर!जज ने कडा फैसला सुनाया —सबूतों के आधार पर आरोपी को सात वर्ष की सजा और चोरी का सामान वापस करने का आदेश।विंचू तात्या हँसते हुए बोला —जज साहब, सजा तो गरीब को जन्म से मिली है. जेल और क्या बिगाड लेगी?सुमन देवी बाहर आईं. उसकी तरफ देखते हुए बोलीं —तू चाहता तो हम तुझे अपने परिवार का हिस्सा बनाते. पर तूने घर नहीं — भरोसा लूटा।विंचू तात्या पहली बार चुप हुआ.शायद उसे एहसास हुआ — वह सिर्फ चेन का चोर नहीं, भरोसे का भी चोर था.जेल में विंचू.दिन महीनों में बदले.जेल की सलाखें उसकी दुनिया बन गईं.रातें जो कभी शिकार का वक्त थीं, अब पछतावे का सागर बनीं.वह अक्सर आसमान को देख सोचता —काश किसी ने एक बार हाथ पकडकर कहा होता — विंचू बदल जा, हम तेरे साथ हैं।पर अब देर हो चुकी थी.समय उसे अपने ही जाल में फँसा लाया था.अंत में. एक संदेशविंचू तात्या की कहानी हमें समझाती है —भूख से बडी चोरी जरूरत की होती है, पर चोरी कभी रास्ता नहीं बनती.विश्वास कमाने में साल लगता है, पर तोडने में एक पल.और जब भरोसा टूटता है — तो कोई भी चोर पहचान के साथ याद रहता है.विंचू तात्या हमेशा के लिए शहर के इतिहास में दर्ज हो गया —एक नौकर, जो फरिश्ता बन सकता था,पर रातों में विंचू बन गया.