🌙 चंद्रमुखी
अध्याय 1 – अंबरलोक की अप्सरा
अनंत तारों के बीच, एक रहस्यमयी ग्रह था — अंबरलोक।
यह ग्रह अपने सौंदर्य, रहस्य और कठोर नियमों के लिए पूरे ब्रह्मांड में प्रसिद्ध था। यहाँ कोई रानी नहीं थी, केवल अप्सराएँ थीं। ये अप्सराएँ राजाओं के दरबारों में नृत्य करतीं, लेकिन उनका स्पर्श मृत्यु का कारण बनता था।
यदि किसी भी मनुष्य ने लालसा या वासनापूर्ण इरादे से किसी अप्सरा को हाथ लगाया—
❗ वह उसी क्षण जला कर राख हो जाता।
❗ और उस अप्सरा को भी पाप का दंड भुगतना पड़ता।
इन्हीं अप्सराओं में सबसे सुंदर थी — चंद्रमुखी।
उसका सौंदर्य ऐसा था कि चाँद भी उसका प्रतिबिंब देखकर शर्मा जाए। उसके नृत्य की लय हवा को भी संगीत में बदल देती।
सैनिक, मंत्री, राजा…
हर कोई उसकी एक झलक के लिए तरसता, लेकिन उसकी शक्ति का भय भी हर मन में रहता।
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अध्याय 2 – राजा वज्रबाहू की लालसा
अंबरलोक का सबसे शक्तिशाली राजा था — वज्रबाहू।
उसकी एक कमजोरी थी—चंद्रमुखी।
वह हर दिन दरबार सजवाता। हर दिन वही आवाज लगती—
“आज रात चंद्रमुखी का नृत्य होगा!”
मंत्री डरते थे…
सैनिक दबे स्वर में कहते—
सैनिक 1:
“राजा की नज़र ठीक नहीं लगती। कहीं आज विपत्ति न आ जाए।”
सैनिक 2:
“ताकीद करो, अप्सराओं को हाथ लगाना वर्जित है। नियम तो नियम है।”
लेकिन राजा की इच्छाएँ नियमों से बड़ी होती जा रही थीं।
रात में दरबार जगमगा उठा।
चंद्रमुखी का प्रवेश हुआ — पूरे प्रांगण में जैसे चंद्रमा उतर आया हो।
उसने नृत्य प्रारंभ किया।
लय, सौंदर्य, चाल… हर कदम पर राजा का दिल लालसा से भरने लगा।
नृत्य समाप्त होते ही वज्रबाहू अपने आसन से उठा और चंद्रमुखी की ओर बढ़ा।
चंद्रमुखी (चौंक कर):
“महाराज, रुकिए! मुझे मत छूइए, नहीं तो सर्वनाश हो जाएगा!”
वज्रबाहू (हँसते हुए):
“मृत्यु? मुझे केवल तेरा स्पर्श चाहिए, चंद्रमुखी।”
उसने उसका हाथ पकड़ लिया।
⚡ प्रचंड तेज फैला।
राजा वज्रबाहू वहीं जला कर राख हो गया।
पूरा दरबार भय से काँप उठा।
चंद्रमुखी घुटनों के बल गिरते हुए बोली—
“मैंने कुछ नहीं किया… मैंने उसे रोका था…”
तभी आकाश फटा और बिजली जैसी शक्ति के साथ पंचमहाभूतों के गुरु प्रकट हुए।
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अध्याय 3 – गुरु का श्राप
गुरु की आवाज़ गूँजी—
गुरु:
“राजा का कर्म उसके साथ समाप्त हुआ।
परंतु चंद्रमुखी, जिस पर वासना का स्पर्श हुआ, वह भी पाप से बंध जाती है।”
चंद्रमुखी रो पड़ी—
चंद्रमुखी:
“मैं निर्दोष हूँ, गुरु। मैंने किसी को नहीं छुआ।”
गुरु:
“सत्य है।
परंतु नियम कहता है —
‘जिस अप्सरा को वासना से स्पर्श किया जाएगा, वह पाप का आधा भाग वहन करेगी।’
इसलिए… तुम्हें अपने पाप से मुक्त होने के लिए…
एक दूसरे ग्रह पर जाकर वही घटना दोहरानी होगी।
जब कोई मनुष्य तुम्हें पावन मन से स्पर्श करेगा और अपनी लालसा के कारण न मरे…
तुम पाप से मुक्त हो जाओगी।”
चंद्रमुखी काँपते स्वर में बोली—
चंद्रमुखी:
“कौन-सा ग्रह?”
गुरु:
“पृथ्वी… जहाँ मनुष्य रहते हैं।
वहाँ तुम्हारी परीक्षा होगी।”
अंतिम वचन के साथ गुरु ने अपनी हथेली उठाई।
चंद्रमुखी के शरीर से प्रकाश निकलने लगा।
और पलक झपकते ही—
वह पृथ्वी की ओर जा रही थी।
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अध्याय 4 – पृथ्वी पर आगमन
रात का समय था।
जंगल शांत था।
अचानक आसमान में चमकती एक रेखा उतरी और धरती पर टकराई।
तापमान बदल गया…
पेड़ों की पत्तियाँ हवा में नाच उठीं।
चंद्रमुखी धीरे-धीरे आँखें खोलती है।
उसका शरीर कमजोर था, लेकिन उसकी शक्ति अभी भी थी।
तभी झाड़ियों के पीछे से एक युवक निकला।
उसका नाम था — आर्यन।
उसने जैसे ही चंद्रमुखी को देखा, उसके कदम रुक गए।
आर्यन:
“हे भगवान… तुम कौन हो? कोई देवी हो क्या?”
चंद्रमुखी घबरा गई—
चंद्रमुखी:
“मेरे पास मत आओ! मैं तुम्हारे लिए खतरा हूँ।”
आर्यन:
“मैं तुम्हें छूऊँगा नहीं… लेकिन तुम घायल लग रही हो।
डरो मत, मैं मदद करूँगा।”
उसकी आवाज़ में लालसा नहीं थी।
बस सहानुभूति थी।
चंद्रमुखी के मन में पहली बार आशा की हल्की किरण जली।
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अध्याय 5 – मनुष्य समाज की कठोरता
आर्यन चंद्रमुखी को अपने गाँव ले जाना चाहता था।
पर जैसे ही गाँव वालों ने उसे देखा, वे घबरा उठे।
कुछ औरतें फुसफुसातीं—
“ये कौन है?”
“इसकी चमक देखो… कोई अलौकिक लगती है।”
कुछ पुरुष लालसा भरी नज़र डालने लगे।
चंद्रमुखी ने डर से अपनी नज़रें झुका लीं।
तभी एक शराबी आदमी आगे आया—
शराबी:
“ऐ सुंदरि… ज़रा करीब आ…”
वह जैसे ही चंद्रमुखी को पकड़ने बढ़ा—
आर्यन बीच में कूद गया।
आर्यन:
“पीछे हट! इसे छूना मत!”
वह आदमी हँसते हुए फिर आगे बढ़ा—
और चंद्रमुखी के हाथ को पकड़ लिया।
⚡ क्षण भर में वह राख बन गया।
गाँव में हाहाकार मच गया।
और चंद्रमुखी समझ गई—
परीक्षा शुरू हो गई है।
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अध्याय 6 – चंद्रमुखी की परीक्षा
दिन बीतते गए।
गाँव वाले डर और लालसा के बीच झूलते रहे।
कुछ उसकी पूजा करते, कुछ छूने की कोशिश में अपनी जान गंवाते।
हर बार चंद्रमुखी रो पड़ती—
“क्यों गुरु ने मुझे यह दंड दिया?”
आर्यन ही उसका सहारा था।
एक दिन आर्यन ने कहा—
आर्यन:
“तुम्हें छूकर लोग मरते हैं… लेकिन मैं तुम्हें छूना चाहता हूँ।”
चंद्रमुखी भयभीत हो गई—
चंद्रमुखी:
“पागल मत बनो! तुम मर जाओगे!”
आर्यन:
“नहीं।
मैंने कभी तुम्हें गलत नज़र से नहीं देखा।
अगर मेरा मन पवित्र है… मैं नहीं मरूँगा।”
चंद्रमुखी का दिल तेज़ी से धड़कने लगा।
यह वही क्षण था…
जिसकी भविष्यवाणी पंचमहाभूतों के गुरु ने की थी।
आर्यन ने धीरे-धीरे अपना हाथ आगे बढ़ाया।
चंद्रमुखी काँप रही थी।
और फिर…
आर्यन ने उसका हाथ पकड़ लिया।
कुछ क्षण के लिए पृथ्वी रुक सी गई।
हवा थम गई।
आकाश का रंग बदल गया।
पर…
आर्यन नहीं मरा।
उसके चेहरे पर केवल शांति थी।
चंद्रमुखी के आँसू बह निकले।
आर्यन:
“देखा? मेरा मन पवित्र था।”
उसी क्षण आकाश में तेज प्रकाश प्रकट हुआ।
पंचमहाभूतों के गुरु उतरे।
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अध्याय 7 – पापमुक्ति और वापसी
गुरु ने मुस्कुरा कर कहा—
गुरु:
“चंद्रमुखी, तुम्हारी परीक्षा पूरी हुई।
एक मनुष्य जिसने लालसा नहीं, बल्कि सच्ची करुणा से तुम्हें हाथ लगाया—
उसके स्पर्श से तुम्हारा पाप मिट गया है।”
चंद्रमुखी आर्यन का हाथ छोड़कर गुरु के सामने झुकी—
चंद्रमुखी:
“धन्यवाद गुरु।
किन्तु… इस मनुष्य ने मुझे जीवन देना सिखाया है।”
गुरु:
“यही तो परीक्षा थी।
अब तुम्हें अंबरलोक लौटना होगा।”
चंद्रमुखी ने आर्यन की तरफ देखा—
चंद्रमुखी:
“तुम्हारी दयालुता मैं कभी नहीं भूलूँगी।”
आर्यन ने आँसू रोकते हुए कहा—
आर्यन:
“क्या तुम कभी वापस आओगी?”
चंद्रमुखी मुस्कुराई—
चंद्रमुखी:
“जितनी बार चाँदनी धरती पर उतरेगी…
तुम मुझे याद करोगे, और मैं तुम्हारे पास रहूँगी।”
प्रकाश का एक स्तंभ उतरा…
और चंद्रमुखी धीरे-धीरे उसमें विलीन हो गई।
वह पुनः अंबरलोक लौट गई—
पापमुक्त, शुद्ध, और पहले से भी अधिक दिव्य।