Yaado ki Sahelgaah - 14 in Hindi Biography by Ramesh Desai books and stories PDF | यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (14)

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यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (14)


                       : : प्रकरण -14 : :

         सुहानी के व्यवहार ने मुझे तकलीफ दी थी. उस वजह से मैंने सब से बोलना छोड़ दिया था.. यह सिलसिला जारी रहा था. मेरा किसी चीज में दिल नहीं लग रहा था. उस वजह से मैं काम पर भी नहीं जा पाया था.

        शाम तक मेरा यहीं हाल था. शाम को सुहानी कोलेज से घर आई थी. तब उसे मेरे बारे में पता चला था. मैं उस वक़्त मुंह फुलाये बाहर बैठा था. वह मेरे पास आई थी. उस ने मेरे मुंह को अपनी हथेलियों में दबोचकर मुझे भावुक होकर सवाल किया था.

      " बहुत बुरा लग गया जीजू? "

      उस के ऐसे व्यवहार से मानो चमत्कार सा हो गया था. मैं नोर्मल हो गया था. उसी वक़्त मेरी भीतर एक अपेक्षा ने घर लिया था.

       बस इसी तरह सुहानी मुझे मनाती रहे.

        हम लोग पढ़ाई करने साथ में बैठते थे. ज्यादातर सुहानी मेरे घर आती थी.

       उस वक़्त एक बात हम लोग भूल गये थे.

       " सगे बाप बेटी को भी ज्यादा समय साथ नहीं रहना चाहिये. यह बात कुछ हुए अनुभवों ने हमे समजा दी थी.

      हम लोग कुछ समय के गुमराह हो गये थे.

      सुहानी कैसी थी इस बात से मेरी भीतर बैठा कामदेव कभी अपना रंग दिखाता था. मैं सुहानी का स्पर्श करता था. उस को बाहो में कैद कर लेता था.. उस की गोद में सर रख देता था. ऐसा हमारे बीच बारबार हुआ था. सुहानी को भी इस बात से एतराज नहीं था. लेकिन हम लोग बहुत जल्दी संभल गये थे.

       " साली आधी घरवाली होती हैं. "  इस बात ने मुझे गलत करने को उकसाया था. 

       उस वक़्त हसमुख सही मायने में मेरा दोस्त था. मैंने जो सुहानी के साथ किया था. वह बता दिया था.. वह मेरी गलती थी. उस ने सुहानी के साथ आगे बढ़ने का रास्ता बना लिया था..

      उस का अतीत भी उस के काम आया था

      सुहानी के बाद मेरी दो और साली से बोलने चालने का मस्ती मजाक का व्यवहार था.. तृशाली ज्यादा समय बड़ी मा के पास रही थी. इस लिये वह सब से अलग थी.

       उस का एक लडके के साथ  भाई बहन का रिश्ता था. दोनों दर्शन करने के लिये मंदिर जाते थे. दोनों बातें करते थे. उन के दिल में कोई पाप नहीं था. लेकिन एक मा हीं उस को मानने को तैयार नहीं थी. वह बेवजह अपनी बेटी पर शक करती थी.

    उस ने दूसरे किसी को भी अपना भाई माना था. वह भी शादी सुदा था. ललिता पवार की जो इमेज थी. उस ने भाई बहन के रिश्ते पर कीचड उछाला था.. उस वजह से बेटियों के ऐसे रिश्ते में शक की गुंजाईश रहती थी.

       उस के बाद तीसरी साली ऋषिका का नंबर था वह सुहानी की कार्बन कोपी थी. उस का भी एक साथ दो लड़को से चककर चलता था. 

        एक था संजय. जो हमारे सामने के बिल्डिंग में रहता था. वह अच्छे घराने ताल्लुक रखता था.. उस के तीन बडे भाइयों ने बिल्डिंग की हमारी बिरादरी की लड़कियों से शादी रचाई थी.

        उस के परिवार वाले ऋषिका को पसंद नहीं करते थे, लेकिन संजय उस के पीछे पड़ गया था

       लेकिन वह बिल्डिंग के मुकादम के लडके बाबू के साथ ज्यादा इनवॉल्व थी.. वह उस के पीछे पानी की तरह पैसा बहाता था. इतना नहीं लोगो को कहता फिरता था :

       " मैं ज़ब चाहूं तब उसे प्रेग्नेंट बना सकता हूं.. "

       एक बार संजय ने गटर पाइप के जरिये ऊपर चढ़कर किचन की बाल्कनी से ऋषिका को मिलने का प्रयास किया था..

       तृशाली की सगाई होने वाली थी. लेकिन मैंने  जान बूझकर उस की सगाई में हाजिरी नहीं दी थी. क्यों की उन दोनों के साथ अबोला हो गया था.

       उस ने जिस लडके को भाई बनाने का दावा किया था. वह एक फ़्रॉड़ था. जो पकड़ा गया था. उस वक़्त मा और मामा ने उसे मिलने से मना की थी.. वादा भी किया था. फिर भी वह सुहानी की सगाई के दिन तृशाली को उस लडके के साथ देखा था. मैंने यह बात मामा को बताई थी. और मा बेटी मुझ पर उखड़ गये थे.

      इस लिये मैं तृशाली की सगाई में हाजिर नहीं था.

      मैंने सीधा अपने साढ़ू भाई को शादी में देखा था.

      खुद अपना परिचय दिया था. वह सीधा, सरल और नेकदिल लड़का था.. उस के घर के सब लोग अच्छे, मिलनसार और व्यवहारिक थे. मैं उन सब को मिला था., और बहुत प्रभावित हुआ था.

      तृशाली को अच्छा पति और ससुराल मिला था. उस के भाग्य का सितारा चमक उठा था.

       मैंने तृशाली के सास ससुर का भी दिल जीत लिया था. लेकिन उस की सास की बात मेरे दिमाग़ में उतर गई थी.

       मैं कभी किसी काम को लेकर तृशाली को बाजार ले जाता था, जो वहाँ के लोग के लिये गलत था. उन्होंने साफ शब्दों में मुझे मना कर दिया था.

      " आप लोग इस तरह साथ में मत आया जाया करो. यहाँ के लोग संकुचित मानसिकता वाले हैं. वह लोग कुछ ना कुछ बातें करते रहते हैं.. "

      मैंने उन की बात का मान रखा था और वादा किया था:

       " मैं आइंदा इस बात का ख्याल रखूंगा.. "

        उस का पति, मेरा साढ़ू भाई मितेश भी मुझे बहुत मानते थे. मेरा एक सपना था. सुहानी का होने वाला पति मेरा छोटा भाई बनेगा. लेकिन उलटा हुआ था.. मितेश मेरा छोटा भाई बन गया था.

       वह दहानू की एक सरकारी अस्पताल में काम करता था. सब लोग उसे पहचानते थे. वह काम का आदमी था. और वह हर किसी की निस्वार्थ मदद करता था.

       ऋषिका के लिये भी लड़का ढूंढना चालू था.. लेकिन उस का कहीं मेल नहीं पड़ता था.

        वलसाड़ से किसी एक लडके का उस के लिये मांगा आया था. बाबू उसे जानता था.. वह लडके के बारे में उस के परिवार के बारे में सब कुछ जानता था.

        उसी ने ऋषिका की शादी के लिये सिफारिश की थी.

         वह बहुत पहुंची हुई चीज था.. लड़का पुरुष में नहीं था. यह बात जानते हुए उस ने ऋषिका की शादी उस लडके से करने की बुझी समझी साजिश की थी.

        उन लोगो की शादी हुई थी. उस से लडके के मा बाप ने खुश होकर बाबू को बड़ी रकम दी थी. उन के पास काफी पैसे थे. इस लिये ऋषिका का हितेच्छू बनकर उस के आगे पीछे घूम रहा था. उस के पति को उस में कोई दिलचस्पी नहीं थी.

       उन के मात पिता को सच्चाई का पता चल गया था. बाबू की वजह से घर का वारिस पैदा हुआ था.

       फिर भी उस की पैसे की भूख कम नहीं हुई थी.

       वह सब पैसे और ऋषिका को मिले गहने लेकर भाग गया था. और उसे वेश्या दलालो से बड़ी रकम ऐंठकर बेच दिया था.

                 0000000000000   ( क्रमशः )