Yaado ki Sahelgaah - 4 in Hindi Biography by Ramesh Desai books and stories PDF | यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (4)

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यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (4)


                  : : प्रकरण : : 4

        सर्वेश ने दूसरे दिन दोपहर को मेरा आंनद छिन लिया.

        " कल तुमने अनन्या के साथ क्या किया था? "

        मैंने केवल उस का दयान मेरी ओर खींचने के लिये ऐसा किया था. लेकिन उस ने क्या सोच लिया था? 

         मैंने उसे सवाल किया था.

         " उस से तुम्हे क्या मतलब हैं? "

         " तुम्हारा यहीं सवाल तुम्हारी बूरी नियत का प्रमाण पत्र हैं!! "

          मुझे उस की घिनौनी सोच पर गुस्सा आया था. फिर भी आदत के मुताबिक मैंने अपनी भूल कर ली थी.

          एक दिन मैं बाहर खड़ा था. उस वक़्त किसी लडके ने आकर मुझे बताया था :

       "  बाहर नुक्कड़ पर कुछ लोग अपूर्व की धुलाई कर रहे हैं. "

        वह मेरा दोस्त था. उसे बचाना मेरा कर्तव्य था. मैं तुरंत नुक्कड़ की और भागा था.

         देखा तो तीन लडके अपूर्व को मार रहे थे.

         और ताजुब की बात यह थी. वह तीनो मेरे दोस्त थे, और मेरे साथ पढ़ते थे. उन्हें भला अपूर्व से क्या दुश्मनी हो सकती थी.

          उन्हें देखकर मुझे लगा था. मेरे कहने पर वह लोग उसे छोड़ देंगे. लेकिन वह लोग तो मुझे पहचानने को भी तैयार नहीं थे.

        मैं वापस दौड़कर अनन्या के पास गया था.. और उसे बताया था.

        " तीन लडके नुक्कड़ पर अपूर्व को मार रहे हैं.. "

        यहाँ तक तो बात ठीक थी. लेकिन बाद में बेवकूफी का प्रदर्शन करते हुए बताया था.

        " वह मेरे साथ पढ़ने वाले मेरे अपने ही दोस्त हैं. "

        अब कोई उस का क्या मतलब निकालेगा? मैंने ही उसे मारने के लिये अपने दोस्त को रोका था.

        उस के बाद अनन्या ने मेरे साथ बोलना छोड़ दिया था. मुझे यह बात रास नहीं आई थी.मैं उस के घर में जाकर बैठता था, लेकिन वह मेरे साथ बातें नहीं करती थी. यह बात मैं बर्दास्त नहीं कर पाया था.

       ऐसी स्थिति में मैंने एक चिट्ठी लिखी थी और भाविका के हाथों उसे पहुंचाई थी.

       कुछ देर बाद उस ने मुझे अपने घर बुलाया था. 

       चिट्ठी में मैंने उस को भगवान का दर्जा दिया था.. उस की बात सुनकर मुझे अपने हाथ गर्म तेल की कढ़ाई में डालने का एहसास हुआ था.

        " आई एम नोट योर लवर. "

        मैंने कभी सजाग अवस्था में मैंने उस के बारे में ऐसा सोचा नहीं था. मेरी जो कुछ हालत थी. उस के लिये अपूर्व और अनन्या जिम्मेदार थे.

        मुझे बहुत बड़ा झटका लगा था. मैंने अपने आप को अपराधी मान लिया था.

        उस के लिये घर आकर मैंने अपना हाथ जलाने का प्रयास किया था. उस वक़्त भाविका घर में थी. उस ने मुझे हाथ जलाते हुए देख लिया था. वह दौड़कर नई मा को बुला लाई थी जो उस वक़्त अनन्या के घर में थी

        सुनकर अनन्या भी मेरे घर आई थी. उस ने मेरे जले हुए हाथ को बरनोल लगाया था. लेकिन मेरे जले दिल का क्या? उस के लिये कोई बरनोल उपलब्ध नहीं था.

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      गर्मियों की छुट्टी थी. मेरे पिताजी के जिगरी दोस्त मोहन लाल अपने परिवार के साथ भरुच में रहते थे. उन की बेटी की शादी तय हुई थी. और हम सब लोग भरुच गये थे. जगह और माहौल बदलने से मेरे घाव जल्दी से रुझ रहे थे.

        भरुच तो गये लेकिन लड़की की रुक गई थी. मोहन लाल के बडे भाई का आकस्मिक देहांत हो गया था. फिर भी उन्होंने ने मेरे पिताजी को कुछ नहीं बताया था. उन्हें मुसीबत की घड़ी में अपने दोस्त की जरूरत महसूस हुई थी.

        भरुच जाने के बाद हमें सच्चाई का पता चला था.

        हम सब लोग एक हप्ते पिताजी के दोस्त के घर ठहरे थे.

        घर के सभी लोग गरमी की वजह से सुबह शाम नदी को स्नान करने जाते थे. घर के बडे लोग सुबह जल्दी नदी को जाते थे.

         मुझे भी नहाने को मन कर रहा था.मैंने अपने पिताजी को बताया था.. यह सुनकर मोहन चाचा ने अपनी लड़की को बुलाकर सूचना दी थी.

        "  नीला! जाओ जाकर संभव भैया को नदी का रास्ता दिखाकर आओ. "

        और वह मुझे नदी तक ले जाने मेरे साथ थी. साथ में मेरी बहन भाविका भी साथ थी.

         नीला बातूनी टाइप लड़की थी.मेरे साथ चल रही थी. बार बार हमारे देह एक दूसरे से टकरा जाते थे. मैं अपना हाथ उस के कंधो पर टिका देता था. उस से नीला को कोई प्रोब्लेम नहीं था. एक दो बार मेरी कुहनी उस की छाती को छू गई थी. उस से मेरे भीतर झंझनी फैल गई थी.

        दस मिनिट में हम लोग नदी पहुंच गए थे.

        वहाँ पहुंचते ही उस ने मुझे आदेश दिया था.

        " कपड़े उतार फेंक नदी में कूद पड़ो. "

         मैं कुछ कहूं या करुं उस के पहले वह अपना ब्लाउज निकालकर नदी में कूद पड़ी. उस ने पेटीकोट पहना था. वह गिला हो गया था. और दो काली बूंद साफ नजर आ रही थी. मुझे उस के सामने कपड़े उतारने में शर्म महसूस हो रही थी. लेकिन फिर उस के बिनदास्त रवइये ने मेरी शर्म को चलता कर दिया.

      उस दौरान भाविका भी नीला की स्थिति में आ गई थी.

      मुझे तो तैरना नहीं आता था. लेकिन ठन्डे पानी में उछलना, कूदना अच्छा लग रहा था. नीला भी मेरी बाजु में थी उसे तैरना आता था. वह मजे से स्नान कर रही थी.

       करीब आधे घंटे की मस्ती के बाद हम लोग पानी से बाहर आये थे. शाम ढल चुकी थी. अंधेरा अवनि को छूने की तैयारी कर रहा था. 

       हम लोग रेत पर बैठे गप्पे मार रहे थे.

       उस वक़्त एक 20-25 वर्षीय युवान वहाँ आया था. नीला ने उस का परिचय दिया था.

       " यह डोक्टर प्रणय हैं. "

       दोनों एक दूसरे से बड़ी चाव से बातें कर रहे थे. उस बात से इतना अनुमान लगाया जा सकता था. दोनों के बीच कोई गहरा रिश्ता था.

       रात को आठ बजे हम लोग घर आये थे. तब उस की भाभी ने ही मुझे सचेत करते हुए नीला से दूर रहने का मशवरा दिया था.

       मुझे कुले पर फोडा हुआ था. कहने पर मोहन चाचा की बीवी ने मेरे लिये लेप तैयार किया था. मैं उसे लेकर दूसरे कमरे में जा रहा था. उस वक़्त मेरे पीछे आकर उस ने मुझे ओफर किया था.

       " लाओ, मैं तुम्हे लेप लगा दूं? "

       ऐसा तो बड़ी उम्र की औरत भी नहीं कहती.

        मेरे मात पिता और भाविका तो चले गये थे.

        लेकिन मोहन चाचा के आग्रह से मैं रुक गया था.

        नीला का रिपोर्ट जानकर मुझे अचरज हुआ था. उस का गांव के ना जाने कितने लोगो से चककर थे.

         मेरे जाने के अगले दिन रात को मुझसे दो कदम की दुरी रखकर सो गई थी. मैंने उस के साथ कुछ नहीं किया था. इस लिये उस ने मुझे बुद्धू का ख़िताब दिया था.

                       000000000000 ( क्रमशः)