माही और वरुण एक-दूसरे का हाथ पकड़कर मुस्कुराते हुए वहाँ से बाहर निकल गए, लेकिन नताशा का पूरा परिवार सदमे में था। यह क्या हो गया...? किसी का दिमाग़ काम नहीं कर रहा था। सभी डरे हुए थे, कहीं पुलिस केस न हो जाए, यह चिंता उन्हें सता रही थी।
नताशा ने कमरे में जाकर दरवाज़ा बंद कर लिया। वह अपने पलंग पर लेटी हुई भूतकाल के उन पलों को याद कर रही थी; जब उन्होंने मिलकर माही के साथ अत्याचार किए थे। उसे एक-एक बात याद आ रही थी और पछतावा भी हो रहा था। वह सोच रही थी वरुण ने जो भी कहा, सब ठीक ही तो था, ग़लत तो हम लोग थे। उसे अपने पति के पास चले जाना चाहिए। उसे वरुण से माफ़ी मांगना चाहिए, साथ ही माही और उसके माता-पिता से भी। उसके दिमाग़ में कई तरह के विचारों का बड़ा घमासान युद्ध चल रहा था। क्या करे...? अपने स्वयं के माता-पिता के साथ बग़ावत कर ले? इन्हीं प्रश्नों के उत्तर खोजते-खोजते काफ़ी रात बीत रही थी।
तभी नताशा के कमरे के बाहर दरवाजे पर दस्तक हुई। नताशा ने उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने शोभा खड़ी थी।
नताशा ने गुस्से में दरवाज़ा बंद करने की कोशिश की, किंतु शोभा अंदर आ ही गई।
नताशा ने उसकी तरफ़ घूर कर देखा और फिर कहा, "हमने जो पाप किया है, उसी की सजा मुझे मिल रही है। आप लोगों ने हमें भी अपने जैसा ही बना दिया।"
"लेकिन नताशा, हमने यह सब तुम दोनों भाई-बहन के लिए ही तो..."
"रहने दो मम्मी, झूठ मत कहो। मुझे पता है, यह सब आपकी लालच का परिणाम है। मुझे दुख है कि मैं लालच के एक बड़े पेड़ की शाखा हूँ। आप जाओ यहाँ से और मुझे अकेली रहने दो।"
इस समय शोभा बदहवास-सी खड़ी नताशा की तरफ़ देखे जा रही थी। वह अवाक थी क्योंकि इस समय उसके पास बोलने के लिए कुछ था ही नहीं।
वह जैसे ही कमरे के बाहर निकली, नताशा ने गुस्से में दरवाज़ा बंद करते हुए कहा, "मेरे जीवन का अब आगे क्या होगा, मैं नहीं जानती। आप फिलहाल मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और जाओ यहाँ से।"
शोभा ने जैसे ही बाहर खड़े विनय को देखा, तो वह दंग रह गई। विनय वहाँ खड़े सब कुछ सुन चुके थे। बिना कुछ बोले, वह शोभा के कंधे पर हाथ रखकर उसे अपने कमरे में ले गए। उनकी भाव-भंगिमा से ऐसा लग रहा था मानो नताशा की बातों ने उन्हें तोड़कर रख दिया हो।
कमरे में जाकर विनय ने कहा, "शोभा, आज नताशा की बातों ने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया है। आज उसकी बातों ने हमें हमारी ही नज़रों से गिरा दिया है। गलती तो हमने की है।"
विनय की बातें सुनने के बाद भी शोभा का चेहरा देखकर ऐसा लग रहा था मानो उसने अभी भी अपनी गलती स्वीकार नहीं की है।
उधर माही और वरुण जैसे ही घर पहुँचे; वरुण को देखकर पूरा परिवार दंग रह गया क्योंकि दोनों भाई-बहन ने इस योजना की किसी को हवा तक नहीं लगने दी थी।
"अरे वरुण बेटा, तुम और माही के साथ? क्या है यह सब?" कहते हुए मयंक उठकर खड़े हो गए।
तब तक रौशनी, नीरव और वंदना सभी वहाँ आ गए। मयंक ने वरुण को और रौशनी ने माही को अपने सीने से लगा लिया।
 
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात) 
स्वरचित और मौलिक 
क्रमशः