इतने में माही आई और आकर वरुण से पूछा, "वरुण भैया, काम हो गया ना?"
"हाँ मेरी बहन, काम हो गया है।"
माही ने रीतेश के पास जाकर कहा, "क्या सोचा था तुमने, मेरे पापा की खून-पसीने की कमाई दौलत को तुम यूं ही मुफ्त में लूट कर ले जाओगे? यह तुम्हारी भूल थी, रीतेश साहब।"
रीतेश की आंखों में खून उतर आया था। उसने माही पर हाथ उठाते हुए कहा, "तो यह तेरी चाल थी। मैं तुझे ज़िंदा नहीं छोड़ूंगा।"
तब तक तेजस ने वहाँ आकर रीतेश का हाथ पकड़ लिया और कहा, "डोमेस्टिक वायलेंस का एक और केस ठोक दूं क्या, रीतेश कुमार?"
रीतेश घबरा गया।
तब विनय ने कहा, "अरे, यह वरुण है कौन जो यहाँ भाई बनकर आया है? उसका तो एक ही भाई है, नीरव।"
वरुण की तरफ़ जाकर उसका माथा चूमते हुए माही ने कहा, "यह भी मालूम पड़ जाएगा, परंतु तुम सब ने क्या सोचा था? मुझे प्रताड़ित करके, ट्रक से मुझे और मेरे भाई को मारने की धमकी देकर तुम लोग बच जाओगे। मैं आज के ज़माने की नारी हूँ। अपनी जीत हासिल करना जानती हूँ। तुम लोग धोखेबाज हो, ठग हो। एक लड़की की तो पहले ही हत्या करवा चुके हो, वैसा ही तुम मेरे साथ भी करने वाले थे। लेकिन जिसका वरुण जैसा भाई हो, उसे हराना आसान नहीं है।"
नताशा उसके क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पा रही थी। उसे इस सबके अलावा उस बात का भी बहुत दुख हो रहा था कि वरुण ने उसका इस्तेमाल किया है। वह सोच रही थी कि इसका मतलब वरुण उससे प्यार नहीं करता। यह सब तो एक षड्यंत्र के तहत ही हुआ है। लंदन से आकर अचानक उसका मिलना, फिर प्यार जताना, सब उसकी और माही की योजना का हिस्सा थे।
यह सोचते हुए अपनी आंखों से बहते पश्चाताप के आंसुओं के साथ वह वरुण के पास आई और उससे पूछा, "वरुण, इसका मतलब मुझसे अचानक मिलने से लेकर शादी तक और अब तक भी जो कुछ हुआ, वह तुम लोगों की योजना थी। मतलब तुम्हारे षड्यंत्र की जो तुमने मेरे और मेरे परिवार के साथ किया है। इसका मतलब तुमने मुझसे कभी प्यार किया ही नहीं?"
उसने वरुण के कंधों को अपने दोनों हाथों से झकझोरते हुए कहा, "बोलो वरुण, बोलो? मैंने तुम्हें सच्चे मन से प्यार किया था, पर तुम तो मेरे नहीं, हमारे पूरे परिवार के दुश्मन निकले। तुमने जो भी किया, वह पाप है।"
वरुण ने अपने कंधे से नताशा के हाथों को हटाते हुए कहा, "और तुम लोगों ने जो भी माही के साथ किया, वह क्या था, नताशा? बोलो, वह क्या बड़ा पुण्य का काम कर रहे थे तुम लोग। मेरी बहन को कितना मारा, कितना प्रताड़ित किया है तुम लोगों ने। इसका जरा-सा भी दुख शायद तुम्हें अब भी नहीं है। अरे, पापा की खून-पसीने की कमाई हड़पना चाहते थे ना तुम लोग? वह भी पुण्य का ही काम था क्या? एक स्त्री होकर तुमने कभी माही का साथ नहीं दिया। तुमने भी हमेशा ही जले पर नमक छिड़का है। आग में घासलेट डालकर उसे और भड़काया है। मैंने मेरी बहन की एक-एक आह को महसूस किया है। उसके हर एक आंसू का दर्द मेरे अंदर तुम्हारे परिवार के प्रति नफ़रत बढ़ा रहा था। तुम चाहतीं तो अपने भाई और मां-बाप को समझा सकती थीं। अरे, कोशिश तो कर ही सकती थीं, पर तुमने ग़लत का साथ दिया और पाप की भागीदार बन गईं।"
नताशा ने वरुण की आँखों में आँखें डालकर पूछा, "तो वरुण, इसका मतलब क्या हमारा रिश्ता ख़त्म हो गया?"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः