अगले दिन ऑफिस पहुँचने के बाद रीतेश ने माही से कहा, "मेरी मम्मी कह रही थीं कि कल हम लोग माही के घर चलेंगे। वह आज शाम को तुम्हारी मम्मी से बात करने वाली हैं। तुम्हें मिलने के बाद, मेरी मम्मी मेरी तरफ़ बार-बार देखेंगी और इशारे ही इशारे में पूछेंगी कि क्या तुम्हें लड़की पसंद है?"
"फिर आप क्या कहेंगे रीतेश?"
"वही जो मैंने तुम्हारी तस्वीर देखते ही कह दिया था।"
अब तो रीतेश और माही दोनों ही चाहते थे कि सब कुछ अच्छी तरह से तय हो जाए और वे जल्दी ही जीवनसाथी बन जाएँ। भगवान ने भी उनके मन की सुन ली।
आज रीतेश, उसकी माँ शोभा, पापा विनय और छोटी बहन नताशा सभी माही के परिवार से मिलने और माही को रूबरू देखने आए थे।
माही के मम्मी-पापा रौशनी और मयंक ने बड़े ही आदर सत्कार के साथ उनका स्वागत किया।
उसका भाई नीरव और भाभी वंदना भी पूरे जोश में उनके स्वागत सत्कार में लगे हुए थे। सब साथ में बैठकर बातचीत कर रहे थे। तभी माही चाय और नाश्ता लेकर आई। माही को देखकर शोभा और नताशा का चेहरा खिल उठा। जैसा उन्होंने फोटो देखकर सोचा था, माही बिल्कुल वैसी ही लग रही थी।
माही को देखते ही शोभा ने रीतेश की तरफ़ देखकर इशारे से पूछा, "कैसी है? तुम्हें पसंद है क्या?"
उस समय माही उन्हीं की तरफ़ देख रही थी। उसके बाद उसकी नज़र रीतेश से मिली तो दोनों हंस दिए। क्योंकि रीतेश की माँ इशारे से ये पूछेगी, उसने पहले ही माही को बता दिया था। रीतेश ने भी इशारे में ही उन्हें हाँ कह दिया। फिर क्या था, उनकी तरफ़ से तो रिश्ता पक्का हो गया था।
कुछ ही देर में रौशनी ने माही को अंदर रसोई में बुलाया। माही जैसे ही अंदर गई, रौशनी ने पूछा, "माही, लड़का तो अच्छा है। परिवार भी ठीक लग रहा है। तुम्हें लड़का पसंद है क्या? तुम बोलो माही, तुम्हारी पसंद ज़्यादा ज़रूरी है?"
माही ने मुस्कुरा कर अपनी स्वीकृति दे दी। उसके बाद दोनों परिवार के बीच यह रिश्ता तय हो गया। चट मंगनी और पट से विवाह भी कर दिया गया। इस तरह अपने साथ ख़ूब सारे सुंदर सपनों की पोटली लेकर माही अपनी ससुराल आ गई।
वह अपने सपनों की पोटली खोल सके, उससे पहले ही विवाह के तीसरे ही दिन सुबह सासू माँ शोभा ने माही को अपने कमरे में बुलाया।
माही ने आते ही झुक कर सासु माँ के पांव को स्पर्श करते हुए पूछा, "क्या हुआ माँ? आपने मुझे क्यों बुलाया?"
"अरे बहू, तुम इस घर में नई-नई आई हो तो यहाँ के रीति रिवाज़, कायदे कानून तुम्हें समझाने पड़ेंगे ना। इसीलिए तो तुम्हें बुलाया है। आओ, बैठ जाओ।"
माही बैठ गई।
तब शोभा ने कहा, "देखो माही, हमारे घर में सुबह जल्दी उठने का नियम है। मैं भी सुबह पाँच बजे उठ जाती हूँ। घर में साफ़ सफ़ाई का पूरा काम अब तक मैं करती थी। शादी हुई तभी से शुरू कर दिया था। अब वह काम मैं तुम्हें सौंपती हूँ। हमारे घर केवल बर्तन साफ़ करने वाली बाई मीना है। बाक़ी सभी काम हम ख़ुद ही कर लेते हैं और बेटा, इसके फायदे भी हैं। घर साफ़ रहता है, पैसा बचता है और हमारे शरीर में स्फूर्ति भी रहती है। हम मोटे भी नहीं होते।"
"ठीक है माँ, मैं यह सब करने की कोशिश करूंगी।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः