MAHAASHAKTI - 23 in Hindi Mythological Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | महाशक्ति - 23

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महाशक्ति - 23

महाशक्ति – एपिसोड 23 (कालसुर का अंत और नया रहस्य)

घने अंधकार से घिरी घाटी में अर्जुन और कालसुर आमने-सामने खड़े थे। हवा में गूंजती तंत्र-मंत्र की ध्वनि पूरे वातावरण को भयावह बना रही थी। चारों दिशाओं में केवल महादेव का नाम गूंज रहा था, और अर्जुन का क्रोध सातवें आसमान पर था।

"आज या तो तू रहेगा या मैं!" अर्जुन की आवाज़ में महादेव की शक्ति झलक रही थी।

कालसुर हँसा, "तुम्हारी यह मूर्खता तुम्हें मृत्यु के द्वार तक ले जाएगी, अर्जुन!"

युद्ध का आरंभ

कालसुर ने अपनी गदा उठाई और पूरी ताकत से अर्जुन पर वार किया। वह प्रहार इतना शक्तिशाली था कि ज़मीन फट गई और विशाल शिला अर्जुन की ओर लपकी। लेकिन अर्जुन अब साधारण योद्धा नहीं रहा था।

उसने महादेव का ध्यान किया, और एक ही पल में उसकी तीसरी आँख खुल गई। उसके शरीर से एक दिव्य प्रकाश निकला, जिसने शिला को बीच में ही रोक दिया और उसे भस्म कर दिया।

कालसुर को इस शक्ति का अंदाज़ा नहीं था। उसने क्रोधित होकर एक मंत्र पढ़ा और आसमान में अंधकार फैला दिया। चारों ओर आग की लपटें उठने लगीं। लेकिन अर्जुन ने अपनी शक्ति से एक दिव्य चक्र उत्पन्न किया, जिसने उस अंधकार को नष्ट कर दिया।

अब अर्जुन ने भी आक्रमण किया। उसने अपने त्रिशूल को उठाया और पूरी शक्ति से कालसुर की ओर फेंका। त्रिशूल कालसुर के कंधे में जा धंसा, और वह दर्द से चीख उठा।

कालसुर का अंतिम अस्त्र – मृत्युबाण

अपनी पराजय को सामने देखकर कालसुर ने अपना सबसे खतरनाक अस्त्र निकाला – मृत्युबाण। यह वह बाण था जिसे कोई नहीं रोक सकता था। कालसुर ने ज़ोर से मंत्र पढ़ा और बाण अर्जुन की ओर छोड़ दिया।

अर्जुन ने अपने अंदर की शक्ति को समेटा और महादेव का नाम लेकर अपने हाथ में एक दिव्य रक्षा कवच उत्पन्न किया। जैसे ही मृत्युबाण अर्जुन के पास पहुँचा, वह कवच से टकराकर राख में बदल गया।

अब अर्जुन ने अपना सबसे प्रबल प्रहार किया। उसने महादेव से शक्ति मांगकर अपने त्रिशूल को अद्भुत शक्ति से भर दिया और पूरी ताकत से कालसुर की ओर फेंक दिया।

त्रिशूल कालसुर के हृदय में समा गया। वह तड़पने लगा, "नहीं! यह नहीं हो सकता! मैं अमर हूँ!"

लेकिन अब बहुत देर हो चुकी थी। उसका शरीर जलकर राख में बदलने लगा, और अंत में वह धूल में मिल गया।

शांति के क्षण और नया संकट

अर्जुन और अनाया ने राहत की साँस ली। पूरी धरती एक बार फिर से शांत हो गई थी। लेकिन तभी अचानक, एक गहरी गुफा से एक आवाज़ आई—"कालसुर तो केवल एक मोहरा था… असली शत्रु अभी जीवित है!"

अर्जुन और अनाया चौकन्ने हो गए। यह कौन था?

तभी अचानक, एक बूढ़ा साधु वहाँ प्रकट हुआ। उसकी आँखें आधी खुली थीं, और उसने एक गंभीर स्वर में कहा, "यह युद्ध अभी समाप्त नहीं हुआ है। तुम्हारे सामने अब वह शक्ति आएगी, जो स्वयं कालसुर से भी अधिक घातक है!"

"कौन है वह?" अर्जुन ने पूछा।

साधु ने धीरे से आँखें खोलीं और कहा, "त्रिकालराक्षस… जो स्वयं कालचक्र का स्वामी है।"

यह नाम सुनते ही अनाया कांप गई। यह नाम केवल पौराणिक ग्रंथों में सुना था। क्या यह संभव था कि अब अर्जुन और अनाया को एक और भयानक युद्ध लड़ना पड़ेगा?

(अगले एपिसोड में – त्रिकालराक्षस का आगमन और उसकी भयावह शक्ति!)