MAHAASHAKTI - 6 in Hindi Mythological Stories by Mehul Pasaya books and stories PDF | महाशक्ति - 6

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महाशक्ति - 6

महाशक्ति – छठा अध्याय: शिवनील मणि की रक्षा

गुफा के भीतर चारों ओर गहरी शांति थी। अर्जुन और अनाया के सामने शिवनील मणि रखी थी, लेकिन उसके चारों ओर एक अदृश्य ऊर्जा कवच था। इस दिव्य रत्न को पाना आसान नहीं था।

"इस मणि को वही प्राप्त कर सकता है, जो अपने अहंकार और मोह का त्याग कर चुका हो।"

यह वाक्य गुफा की दीवारों से गूंज रहा था।

शिवनील मणि का रहस्य

अर्जुन ने धीरे-धीरे अपना हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन जैसे ही उसने मणि को छूने की कोशिश की, एक ज़ोरदार ऊर्जा झटका लगा और वह पीछे गिर पड़ा।

अनाया ने उसे संभाला। "अर्जुन, यह मणि इतनी आसानी से नहीं मिलेगी। हमें कोई उपाय खोजना होगा।"

अर्जुन ने अपने चारों ओर देखा। गुफा की दीवारों पर उकेरी गई आकृतियाँ ध्यान से देखने पर कुछ संकेत देती दिखीं। उन पर महादेव की ध्यान मुद्रा में एक विशाल आकृति उकेरी गई थी।

"ध्यान... यही इसका उत्तर हो सकता है!" अर्जुन ने कहा।

ध्यान की शक्ति

अनाया और अर्जुन ने शिवलिंग के सामने बैठकर ध्यान करना शुरू किया। उन्होंने अपनी सारी चिंताओं को त्यागकर महादेव का स्मरण किया।

धीरे-धीरे, गुफा का वातावरण बदलने लगा। दीवारों पर बनी आकृतियाँ जीवंत हो उठीं, और मणि के चारों ओर का ऊर्जा घेरा मंद पड़ने लगा।

अर्जुन ने अपनी आँखें खोलीं और धीरे-से मणि की ओर हाथ बढ़ाया। इस बार कोई बाधा नहीं आई।

जैसे ही उसने मणि को स्पर्श किया, उसके मन में एक दिव्य ऊर्जा का संचार हुआ। उसे लगा कि वह किसी अन्य लोक में प्रवेश कर गया है।

महादेव का दर्शन

अर्जुन ने स्वयं को एक विशाल पर्वत के सामने खड़ा पाया। वहाँ एक ध्यानमग्न योगी बैठे थे— महादेव!

महादेव ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं।

"अर्जुन, शिवनील मणि सिर्फ एक रत्न नहीं है, यह एक परीक्षा है। जिसने इसे प्राप्त कर लिया, वह अपने भीतर की सच्ची शक्ति को जागृत कर सकता है।"

अर्जुन ने सिर झुकाया, "प्रभु, मैं आपकी शिक्षाओं को समझने के लिए यहाँ आया हूँ।"

महादेव मुस्कुराए, "शक्ति का सही उपयोग वही कर सकता है, जो अपने स्वार्थ को छोड़कर दूसरों के कल्याण के लिए कार्य करे। अब समय आ गया है कि तुम अपने मार्ग को पहचानो।"

अर्जुन ने आँखें खोलीं और खुद को फिर से गुफा में पाया। शिवनील मणि अब उसकी हथेली में थी।

नया संकट

अनाया ने उत्साहित होकर पूछा, "क्या हुआ अर्जुन?"

अर्जुन ने हल्की मुस्कान के साथ कहा, "अब मैं समझ गया हूँ कि महाशक्ति क्या होती है।"

लेकिन तभी, गुफा के द्वार पर ज़ोरदार धमाका हुआ।

एक रहस्यमयी छाया वहाँ खड़ी थी।

"शिवनील मणि मेरी है!"

उस व्यक्ति की आवाज़ गूँज उठी। अर्जुन और अनाया ने जैसे ही उसकी ओर देखा, उनकी आँखों में हैरानी झलक उठी।

रहस्यमयी योद्धा का आगमन

वह व्यक्ति एक लंबा-चौड़ा और बलशाली योद्धा था। उसके शरीर पर काले वस्त्र थे और उसकी आँखों में एक अजीब-सी चमक थी।

"तुम कौन हो?" अर्जुन ने पूछा।

वह व्यक्ति आगे बढ़ा और बोला, "मेरा नाम है कालनेश। मैं उस शक्ति का रक्षक हूँ, जो केवल सबसे योग्य व्यक्ति को ही दी जाती है। लेकिन मुझे नहीं लगता कि तुम इसके लायक हो!"

अनाया ने तुरंत उत्तर दिया, "अगर यह शक्ति केवल योग्य व्यक्ति को दी जाती है, तो अर्जुन ही इसके योग्य हैं! उन्होंने परीक्षा पास की है।"

कालनेश हँसा, "पर क्या तुमने यह मणि अपने स्वार्थ के लिए नहीं ली? क्या तुम्हारा उद्देश्य वास्तव में पवित्र है?"

अर्जुन कुछ सोच में पड़ गया। उसने शिवनील मणि को देखा और फिर कालनेश की आँखों में देखा।

"मुझे यह शक्ति अपने स्वार्थ के लिए नहीं चाहिए। मैं इसे केवल इसलिए लेना चाहता हूँ, ताकि अधर्म पर विजय पा सकूँ और न्याय की स्थापना कर सकूँ।"

कालनेश ने अर्जुन की आँखों में झाँका और फिर अचानक उस पर हमला कर दिया।

अर्जुन बनाम कालनेश

अर्जुन तुरंत पीछे हटा और अपनी ऊर्जा को समेटते हुए एक दिव्य वार किया। लेकिन कालनेश की शक्ति भी कम नहीं थी।

दोनों के बीच ज़ोरदार युद्ध छिड़ गया। गुफा के भीतर की चट्टानें टूटने लगीं, और चारों ओर धूल और धुंआ फैल गया।

अनाया ने एक सुरक्षित जगह ढूंढी और अर्जुन को चेतावनी दी, "अर्जुन, ध्यान रखना! यह व्यक्ति बहुत शक्तिशाली है!"

कालनेश ने एक ज़ोरदार प्रहार किया, जिससे अर्जुन कुछ दूर जाकर गिर पड़ा।

लेकिन अर्जुन हार मानने वालों में से नहीं था। उसने तुरंत अपनी चेतना को संभाला और उठकर खड़ा हुआ।

अर्जुन की शक्ति का जागरण

अर्जुन ने अपनी आँखें बंद कीं और महादेव का ध्यान किया। अचानक, उसकी देह से एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ।

उसकी आँखों में आत्मविश्वास लौट आया।

"अब मैं तैयार हूँ!" अर्जुन ने कहा।

और फिर, एक ज़ोरदार टकराव हुआ। अर्जुन और कालनेश की शक्तियाँ आपस में भिड़ गईं।

क्या अर्जुन इस युद्ध में विजय प्राप्त कर सकेगा?

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए—महाशक्ति!