kash tum mere hote - 8 in Hindi Love Stories by Kshitij daroch books and stories PDF | काश तुम मेरे होते ( a true story) भाग - 8

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काश तुम मेरे होते ( a true story) भाग - 8

Part - 8


तो अगले दिन मैं बहुत ज्यादा खुश था, मैं पूरी उम्मीद में था कि आज मैं उससे कह दूंगा। मैंने उसके लिए चॉकलेट और एक छोटा सा कीचेन जितना टेडी लिया था। सोचा था उसको पसंद आएगा। मैं स्कूल गया और उसका इंतजार करने लगा। वो हमेशा की तरह उतनी ही खूबसूरत दिख रही थी। मानो उसे ना देखूं तो जी ही ना पाऊं ऐसा लगता था। पर उस दिन मुझे एक काम और करना था। तो मैंने अपने क्लासमेट्स को बता दिया कि हमें एक बच्चे को ठिकाने लगाना है। वो सब तैयार थे। हम इंतजार कर रहे थे कि बस वो एक बार कहीं अकेला मिले तो उसे ठिकाने लगा देंगे। मेरे दोस्त अपना ब्लेजर लेकर तैयार बैठे थे। अगर वो उस दिन अकेला वॉशरूम चला गया होता तो उसका वो आखिरी दिन होता, पर न जाने उससे ये बात कैसे पहुँच गई थी कि आज उसकी पिटाई होने वाली है, वो क्लास से बाहर ही नहीं आ रहा था। वो इतना डर चुका था कि पुछो ही मत, शायद मेरे किसी चेले ने उसे बता दिया होगा। पर मैं सारा दिन उसके पीछे वक्त नहीं बर्बाद कर सकता था, वैसे भी उस दिन के बाद वो कभी मेरे सामने आया ही नहीं डर के मारे। मुझे रुही से बात करनी थी पर रुही के भी 2 डांस थे तो वो हर टाइम व्यस्त ही थी। मुझे उससे मिलने का वक्त ही नहीं मिला। आखिरकार मेरी परफॉर्मेंस का भी वक्त हो गया। मुझे जाना पड़ा, मैं स्टेज के पीछे खड़ा होकर बस यही सोच रहा था कि वो कहीं चली ना जाए, मैं होश में ही नहीं था, बहुत ज्यादा उदास था कि मैं अगर आज नहीं बोल पाया तो शायद कभी ना बोल पाऊं। और अचानक मैंने ये फैसला लिया कि चाहे परफॉर्मेंस रह जाए, मैं उसे बोलकर रहूंगा। मैंने नीराज से कहा कि हम जा रहे हैं, उसने कहा तेरा दिमाग खराब है, अगला डांस हमारा ही है, मैम हमें जिंदा नहीं छोड़ेगी। पर मेरे दिमाग में वो था ही नहीं, मैंने उसे जबरदस्ती खींचा और हम दोनों भाग गए। बहुत बेवकूफी वाली डिसीजन था। मैंने उसको कहा कि किसी भी तरह रुही को ले आ। मेरे पास एक ही मौका था। वो क्लास में थी और क्लास में मैम थी, आखिर कैसे बुलाता, मैंने तो उसे ये कहकर अपनी क्लास में चला गया अपना सामान निकालने। मुझे लगा नहीं था कि नीराज उसे ला पाएगा। पर नीराज मेरे लिए कुछ भी कर सकता था, उसने न जाने ऐसा क्या किया और वो उसे ले आया। मैंने क्लास से बाहर देखा और नीराज और रुही एक साथ मेरी तरफ आ रहे थे, रुही इतनी प्यारी लग रही थी कि मैं शब्दों में बयान तक नहीं कर सकता। वो हंसती थी तो मेरा दिल खुश हो जाता था। मैं अभी तक बिल्कुल सही था, पर उसको देखकर मैं नर्वस हो गया, मुझे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि मैं उससे क्या कहने वाला हूँ। वो आई और मैं उसके पास गया। उसकी आंखों में देखकर सब भूल गया। उसने मुझसे कहा क्या हुआ, जल्दी बताओ मुझे जाना भी है। और मैं तैयार था उससे कहने के लिए पर मैं क्या बोलता, उसकी वो स्माइल देखकर मेरे मुँह से कुछ निकलता ही नहीं था। शायद ये बात सबको अजीब लगे पर मेरे मन में हमेशा इस मौके पर यही बात आती थी कि अगर दुबारा वो रो गई तो मैं क्या करूंगा। मैं जब भी उससे कहने गया, मुझे हमेशा उसका वो रोता हुआ चेहरा याद आ जाता था। मेरे दिल और दिमाग की इस जंग ने मुझे कभी उससे कहने ही नहीं दिया। शायद मुझे कह देना चाहिए था, लेकिन मैंने उससे कुछ नहीं कहा, मैंने उसे चॉकलेट और टेडी दिया और न जाने कितनी हिम्मत करके मैंने उसका गाल टच करके बोला, तू बहुत क्यूट लग रही है आज। और ये सुनकर वो इतनी खुश होकर हंसी कि मैं भूल ही गया, मैं उसे कुछ कहने वाला था। वो इतनी प्यारी थी, मैं कभी सोच भी नहीं सकता था उसे हर्ट करने के लिए। और इस बार भी बस मैं यही कहकर चुप हो गया। वो हंसकर वापस चली गई और मैं इस बार भी उसे वो नहीं कह पाया। यह वह समय था जब मुझे एहसास हुआ कि मैं उससे कहीं ज्यादा उसकी मुस्कान से प्यार करता था। मैं चाहे कितनी भी कोशिश कर ले, उसकी मुस्कान को खराब नहीं कर सकता था। मैं सिर्फ यही चाहता था कि वो ऐसे ही हंसती रहे, मेरे साथ रहे, मेरी दोस्त रहे। पर अफसोस था कि मैं उसे आज भी नहीं कह सका। नीराज ने मुझे बहुत सुनाया कि तू यह कहने आया था, वहाँ सब छोड़कर। और अब मुझे याद आया कि हम परफॉर्मेंस छोड़कर आए थे, मैम पागल हो गई होंगी, पर शायद भगवान भी चाहते थे कि मैं उस दिन रुही से मिलूं। हमारी परफॉर्मेंस देरी से हुई थी क्योंकि चीफ गेस्ट को जल्दी जाना था, इसलिए उनकी स्पीच हो गई और हमारी परफॉर्मेंस बाद में हुई। उस दिन हम दोनों मरते-मरते बचें। मैं सारी रात एक तरफ अफसोस में था और दूसरी तरफ उसकी वह मुस्कान याद कर रहा था। मैंने सारी उम्मीद छोड़ दी थी और मैं बहुत डिमोटिवेट हो गया था, क्योंकि मुझे बस यही लग रहा था कि यह मेरा आखिरी मौका था, अब मैं नहीं कह पाऊंगा और वह अप्रत्यक्ष रूप से आखिरी था। फिर भी मेरी ज़िंदगी में एक उम्मीद और आई। स्कूल के मालिक ने हमारे एनुअल फंक्शन से खुश होकर हमें एक और ट्रिप गिफ्ट दी। और हम साल की तीसरी ट्रिप पर गए। इस बार मैंने खुद से ज्यादा उम्मीद नहीं की थी, मुझे यही लगता था कि मैं फिर से कह पाऊंगा। हम फिर से मूवी देखने जाने वाले थे, मैंने एक कोशिश की, मैंने किसी के ज़रिए रुही से पूछा कि क्या तू मेरे साथ थिएटर में बैठेगी और मैं शॉक हो गया कि उसने हां कहा। मेरी खुशी का तो कोई ठिकाना ही नहीं था, मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह हां बोल सकती है। मैं तैयार था, एक बार फिर, इस बार मुझे पूरी उम्मीद थी, पर जिंदगी में कभी अपनी उम्मीद के हिसाब से कुछ होता ही नहीं है। ट्रिप वाले दिन मैं सुबह उसका बहुत देर तक इंतजार करता रहा, पर वह स्कूल नहीं आई, उसकी बस भी आ चुकी थी। उस दिन मैं बहुत ज्यादा उदास हो गया था, मेरा मन कर रहा था कि घर चला जाऊं। और शायद मैं चला भी जाता, लेकिन जैसा कि यह कहानी में नहीं लिख रहा था। मैं आखिरी स्कूल का राउंड मारने गया और अचानक वह स्कूल में आई और मेरी जान में जान आई, मैं इतना खुश हुआ कि आखिरकार वह आ गई। पर थिएटर में उसे ढूंढना मेरे लिए अभी भी एक चैलेंज था, हमारी क्लासेज अलग थीं और हमारी क्लास टीचर बहुत सख्त थी, और वह पहले ही सबको बोल चुकी थी कि थिएटर में पूरी क्लास एक जगह बैठेगी, जो गायब होगा, देख लेना फिर। मैं तो क्या ही डरता, पर मेरे साथ बेचारा नीराज फिर फसने वाला था। हम थिएटर में तो क्लास के साथ गए, पर बीच में से भाग लिए, जो कि बहुत गलत फैसला था हमारा, पर क्या करें, प्यार में कुछ नहीं दिखता। हम कम से कम 20 मिनट तक पूरे हॉल में घूमे, और वहां हमें वह मिली ही नहीं, क्योंकि हॉल में 200-300 बच्चे थे, कैसे ढूंढते, ऊपर से अंधेरा। आखिरकार थक-हारकर हम आगे कहीं बैठ गए। हम बहुत बुरी स्थिति में थे, न हमें रुही मिली और ऊपर से हम अलग-अलग आ गए थे तो मैम हमें छोड़ती नहीं। मुझे खुद पर बहुत गुस्सा आया और मैं खड़ा होकर एक आखिरी बार इधर-उधर देखने लगा। पता नहीं, पर यह होना लिखा ही था, इसलिए मुझे आखिरकार रुही की क्लास के बच्चे दिखे, मैंने नीराज को उठाया और हम वहां गए। रुही के साथ उसकी दोस्त बैठी हुई थी, पर किस्मत से उसके आगे ही मेरे चेले बैठे थे। मैं वहां गया और मेरे चेले मुझे देखकर उठ गए, उन्हें पता था, वह गए और हम दोनों वहां बैठ गए। आखिरकार, कम से कम वह पास थी और उसने सबसे पहला काम जो किया, वह मेरे बाल खराब करना था, क्योंकि उसे मुझे तंग करने में बहुत मजा आता था। मैंने उससे बहुत बात की, मूवी तो कोई भी नहीं देख रहा था। और वह फिर से मेरे बाल खराब करने लगी, तो मैंने पता नहीं क्या सोचकर उसका हाथ पकड़ लिया। यह पहला मौका था चार सालों में, जब मैंने उसका हाथ पकड़ा हो। उसका हाथ इतना सॉफ्ट था कि उसका एहसास मुझे आज तक याद है। बस वह दिन उसके साथ बीत गया, पर मैं उससे कुछ कह नहीं सकता था क्योंकि सब वही थे। उसकी क्लास टीचर ने मुझे देख लिया और मेरी क्लास टीचर तो वैसे भी मुझे नहीं छोड़ने वाली थी। वह आखिरी दिन था जब मैं और रुही साथ थे, काश मैंने उस पल को थोड़ा और जी लिया होता। उस दिन के बाद जिंदगी पूरी बदल गई। मैं अजनबी था, पर शायद यही लिखा था। अगला दिन बहुत बुरा था, मुझे तब पता चला कि जिंदगी कितनी अनपेक्षित होती है। हमारी क्लास की कुछ लड़कियों ने भी बस में कांद कर दिया था, उनकी उस बात की शिकायत हो गई थी और धीरे-धीरे पता नहीं पूरी क्लास की ही शिकायत हो गई। हमारी क्लास के कई कपल्स पकड़े गए और मुझे भी डर था कि मेरा भी नंबर आने वाला है, पर मेरे साथ यह पहले भी हो चुका था, इसलिए मुझे फर्क नहीं पड़ना था। पर इस बार अगर मैं फंसता तो रुही भी मेरे साथ फंस जाती, मुझे इस बात का डर था। दिन खत्म होने वाला था, पर मेरा नाम अनाउंस नहीं हुआ। लेकिन आखिरकार हमारी क्लास टीचर स्पेशली आई और उसने मुझसे कहा, "अजा, तुझे प्रिंसिपल मैम बुला रही हैं।" मैं कुछ नहीं कर सकता था और मुझे पता चल चुका था कि अब यह आखिरी है। मैं ऑफिस गया और मेरे दिमाग में बस यही था कि चाहे कुछ भी हो जाए, रुही का नाम नहीं आने दूंगा। प्रिंसिपल ने मुझसे उसके बारे में पूछा, मैंने अपनी डिफेंस में जो भी कर सकता था, किया और एक वक्त में प्रिंसिपल मैम भी कंविंस हो गईं कि ऐसा कुछ नहीं है और उसने मुझे वापस भेज दिया, मुझे बहुत राहत हुई। और मुझे लगा कि मैं बच गया। पर वह अंत नहीं था, एक तो पता नहीं, जब भी मेरे साथ कुछ कान्ड होने वाला होता है, तो पीटीएम कैसे हो जाती है अगले दिन। अगले दिन मैं फिर से एक बार पैरेंट्स के साथ गया और हमारी क्लास टीचर ने कहा कि आपसे प्रिंसिपल मैम मिलना चाहती हैं। बस मुझे पता लग गया था कि अब कुछ सही नहीं हो सकता। मेरे पैरेंट्स भी शायद समझ गए थे कि मैंने फिर कुछ कर दिया है। हम गए और वहां पर रुही की क्लास टीचर के साथ-साथ मेरी स्टोरी की सबसे बड़ी विलन भी थी, मोनिका मैम। उस मैम ने मुझे पर बहुत टाइम नजर रखी हुई थी। प्रिंसिपल मैम ने मुझसे यही कहा कि तूने बहुत झूठ बोल लिए, पर मोनिका मैम ने तुझे बहुत पहले से नोटिस कर लिया था, उसने प्रिंसिपल से सब बता दिया, उसने मुझे एनुअल फंक्शन पर भी देखा था, स्कूल में भी कई बार देखा और उसकी क्लास टीचर ने मुझे थिएटर में देख लिया था। मैं कुछ नहीं कर सकता था। मैं अगर वहां डिफेंड करता भी, तो मेरे घर वाले तो जानते ही थे, वो बोल देते। मैंने सबके सामने स्वीकार कर लिया, हां, मेरी गलती है और सब अपनी जिम्मेदारी ले ली। वह अंत इसलिए था क्योंकि अब प्रिंसिपल और बाकी टीचर्स भी यह सब जानती थीं, तो मेरा अब रुही से मिलना इंपॉसिबल था। मुझे बहुत ज्यादा सुनाया, प्रिंसिपल ने, न जाने मेरे बारे में क्या-क्या कहा, मेरे पैरेंट्स भी मुझसे नाराज थे। पर मैं क्या करता, मानो मेरी जिंदगी का सबसे बुरा फेज़ था, वह सभी टीचर्स को कह दिया गया कि यह उसके पास नहीं दिखना चाहिए। वह पहली बार था जब मुझे गिल्टी महसूस हुआ। मैं उससे मिल नहीं सकता था, उसकी क्लास में भी नहीं जा सकता था। मेरी क्लास से बाहर जाना भी बहुत कम कर दिया गया था, उसके फ्लोर तक नहीं जाने देते थे। मैं बहुत रोता था, उसे याद करके, सब मुझे गलत ही समझते थे, क्योंकि उन्हें लगता था कि मैं उसे परेशान कर रहा था इतने टाइम से। पर यह अच्छा था कि उन्हें यह नहीं पता था कि रुही सब जानती है, वरना उसे भी दिक्कत हो सकती थी। उस समय के बाद जो भी हुआ, मैं कुछ नहीं जानता कि सब इतना बदल कैसे गया। शायद, कि प्रिंसिपल मैम ने रुही से भी बात की इस बारे में, या उसे समझाया, या पता नहीं क्या, रुही का बिहेवियर कुछ बदल सा हो गया। वैसे भी मैं उससे मिल नहीं सकता था और न वह मिलती थी। मुझे अब वह स्कूल एक जेल की तरह लगने लग गया था, पर मैं फिर भी खुश था, क्योंकि वह मेरे पास थी। मुझे उस समय भी लगता था कि सब ठीक हो जाएगा, अभी मेरे पास एक और साल है, कुछ तो होगा, पर कभी-कभी बहुत देर हो जाती है।