kaash tum mere hote in Hindi Love Stories by Kshitij daroch books and stories PDF | काश तुम मेरे होते ( a true story) भाग - 2

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काश तुम मेरे होते ( a true story) भाग - 2

Part - 2

"उसके बारे में सब जानकर उम्मीद छोड़ दी। मैं उसे देखकर खुश रहता था। कहाँ उसे हर कोई जानता था, वह हर टीचर की फेवरेट और यहाँ मैं जिसे अपनी क्लास में भी सब नहीं जानते, अकेले रहता था, कोई टीचर कभी तारीफ नहीं करती थी। मैं किस उम्मीद से सोचता कि मैं कभी उससे बात कर सकता था। समय बीता और मेरी जिंदगी में एक उम्मीद आई जब मैं 6th क्लास में हुआ, मेरी क्लास में एक नया बच्चा आया, मेरा दूसरा बेस्ट फ्रेंड नीरज। वह बहुत ही अलग था सबसे, वह भी मेरी तरह किसी काम में अच्छा नहीं था पर बहुत ही अच्छा नेचर था उसका, अगर वह नहीं होता तो शायद मेरी और रूही की स्टोरी कभी आगे नहीं बढ़ती। नीरज और मेरी दोस्ती काफी जल्दी हो गई थी। नीरज रूही की बस में ही आता था, उसका घर उसके घर से पास था। यह पता चलने के बाद मैंने नीरज को अपनी पसंद के बारे में बताया। वह हमेशा मेरी मदद के लिए तैयार रहता था। उसने रूही से दोस्ती की और काफी कुछ पता किया, पर मुख्य समस्या यह थी मैं उससे कैसे बात करूं। मेरी बस यही इच्छा थी कि मैं एक बार उससे बात करूं, वह मुझे जान पाए। मेरे दिमाग में कभी-कभी यह सवाल आता था कि मैं किस तरह स्कूल में इतना फेमस हो जाऊँ कि हर कोई मुझे भी जाने। जहाँ तक मेरी सोच थी, मेरे पास सिर्फ 2 ऑप्शन थे या तो मैं इतना पढ़ूं कि पूरे स्कूल में टॉप कर दूँ या तो मैं हमारे स्कूल के सबसे पॉपुलर भैया की तरह बन जाऊं जिनके कई सारे चेले थे। वे बहुत फनी भी थे और स्कूल के डॉन भी, उन्हें हर कोई जानता था, प्रिंसिपल मैम तक उनसे परेशान थी। पर मुझे दोनों ही ऑप्शन इम्पॉसिबल लगते थे अपने लिए। ना मेरे बस की पढ़ाई थी और ना ही उनके जैसा बनना। पर मेरा सफर बस शुरू ही हुआ था, मंज़िल तो सिर्फ रूही ही थी पर उसकी नज़रों में आना भी बड़ी बात थी। मैंने हर वह मुमकिन कोशिश की जिससे मैं उसकी अटेंशन पा सकूं, पर कुछ काम नहीं आया। मैं रोज उसे देखता और बस यही दुआ करता कि बस एक बार मुझसे बात करे। यकीन मानो जब पहली बार उससे मेरी बात हुई वह दिन मेरे लिए जन्नत से बढ़कर था। जब पहली बार मैंने उसकी आवाज़ सुनी, उसकी वह मुस्कराहट सामने से देखी, उसकी आँखों में देखा, मुझसे वह दिन कभी नहीं भुलाया गया। जल्द ही वह दिन आया मेरी जिंदगी में जब मुझे वह मौका नसीब हुआ। जिंदगी में बेचैनी बढ़ती रहती थी रोज़ पर भगवान ने मेरी सुन ही ली। एक दिन हमारे स्कूल में स्पोर्ट्स डे की तैयारी चल रही थी, नसीब से रूही मेरे ही हाउस में थी, पर हाउस में इतने बच्चे थे कि मैं कभी उसकी नज़र में नहीं आया। पर आज मेरा जिंदगी का सबसे खूबसूरत दिन था। मैं हमेशा की तरह नीरज और प्रियंशु के साथ बैठकर ज़ोर-ज़ोर से हंस रहा था और तभी हमारे हाउस की कैप्टन दीदी हमारे पास आती है और मुझे ज़बरदस्त वहां से उठा देती है क्योंकि हम बहुत शोर कर रहे थे। वह मुझे आगे लेकर जाती है और मैं सच में यह सोच भी नहीं सकता था कि वह मुझे रूही के साथ बिठा देगी। मैं आज सोचता हूँ कि यह कोई इत्तेफाक तो नहीं था, हम दोनों का मिलना लिखा ही था जो सब कुछ अपने आप होता था। पता नहीं क्या रिश्ता था उसका और मेरा। वह मुझे रूही की तरफ लेकर जा रही थी और मेरी धड़कन उतनी ही तेज़ होती जा रही थी। मैं सच में कांप रहा था कि चाहे कुछ भी हो जाए उसके साथ ना बिठा दे और वही हुआ। मैं लाइफ में पहली बार उसके इतना करीब था। उसने शायद मुझे कुछ खास नोटिस न किया हो पर मैं उसके बिल्कुल साथ में बैठा। मानो मेरे अंदर जान ही ना बची हो। कानों में सन्नाटा, दिल की धड़कनें बढ़ गई थी, कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कैसे बैठूं क्या करूं। मेरा पूरा शरीर कांप रहा था। उस दिन मुझे एहसास हुआ यह सब कितना मुश्किल है। वह भी शायद मुझे देखकर सोच रही होगी कि मुझे क्या हुआ है। मैं उसकी तरफ देखने की भी हिम्मत नहीं कर पा रहा था। फिर मैंने देखा कि मेरे कुछ दूरी पर मेरा कज़िन बैठा था, मैंने उसको अपने साथ बिठा लिया ताकि मैं उससे बात कर सकूं और नर्वस न रहूं। मैं और मेरा कज़िन अपने स्टाइल में अजीब सी बातें करने लगे। मैं थोड़ा राहत महसूस कर रहा था वरना उस दिन मेरी हालत खराब थी। दिल तो पूरी तरह से कह रहा था कि साथ बैठी है, आज ही मौका है, बात कर, कुछ तो कह। पर न जाने इतना डर क्यों था मुझमें, उसकी तरफ देख भी नहीं सकता था। सिर्फ उसके हाथ दिख रहे थे, वह बहुत शांति से बैठी थी। मैं इतना ज्यादा नर्वस था कि पूछो ही मत, अगर उस दिन बात नहीं होती तो शायद कभी भी नहीं। मेरे बस में तो था ही नहीं, पर उस दिन कुछ खास तो होना ही था। हम बहुत जोर से बातें कर रहे थे और अचानक कुछ ऐसा हुआ कि मेरे तो होश ही उड़ गए। वह जो एहसास था, मैं यहाँ लिखने में बयान भी नहीं कर सकता। उसने मेरे शोल्डर पर प्रेस करके मुझे अपनी तरफ घुमाया और अपने लिप्स पर उंगली रख कर मुझसे बस एक ही शब्द बोला "चुप"। और यह एक वर्ड मेरी एक्सिस्टेंस खत्म करने के लिए काफी था। यकीन मानो, मैं उसके लिए बिल्कुल तैयार ही नहीं था। उसकी आँखों में देखकर मैंने अपना सब कुछ भुला दिया। मेरा दिमाग इस तरह शांत पड़ चुका था कि मैं कुछ बोल ही नहीं सकता था। उसने आगे कहा, "आप कितनी जोर से बोल रहे हो, बस करो अब।" मुझे समझ ही नहीं आया कि मैं आगे क्या बोलूं। मेरा दिल जितना खुश था अंदर से उतना ही डरा हुआ। मैं क्या बोलता, मुझसे बस वहां जो हो पाया, वह सिर्फ इतना था कि मैंने अपने मुंह पे उंगली रख ली। वह देखकर उसका गुस्सा एकदम से शांत हो गया और वह हंसने लगी। और उसने कहा, "इतनी जल्दी मान भी गए, अब ऐसे ही रहना एकदम चुप।" बेहद खूबसूरत... ऐसी मुस्कुराहट थी उसकी कि मानो जिंदगी के सारे गम भुला दे। उसका वह हंसना मेरा दिल खुश कर देता था। मैं बहुत खुश था। हमने काफी बात की। मेरी हिम्मत तो नहीं थी पर वह बहुत फ्रेंडली थी। मेरे लिए तो उससे ज्यादा हो ही क्या सकता था। आखिर मुझे जान तो गई कम से कम वह। मेरा कज़िन और वह एक ही क्लास में थे, उस वजह से हमारी बातचीत ज्यादा हो गई। उसके साथ बिताया हुआ वह एक घंटा मेरी जिंदगी बदल गया। मैं उन दीदी का आज तक शुक्रगुजार हूँ। मैं वहां उसको बाय करके क्लास में भागा, मैंने सबसे पहले जाकर यह बात नीरज और प्रियंशु को बताई। वे दोनों भी बहुत ज्यादा खुश थे। उस दिन से मेरी जिंदगी ही बदल गई। अब जब भी वह मुझे कहीं मिलती, तो मुझसे हमेशा उसी अंदाज में हंसकर कहती थी "चुप"। उसका वह एक वर्ड मानो मेरा दिन बना जाता था। सारी सारी रात मैं बस उसकी वह आवाज़ याद करता था। बहुत खूबसूरत टाइम था वह, पर यहाँ से शुरू हुई असली कहानी। मेरी उसको लेकर चाहत बढ़ गई। मैं उसको देखे बिना रह ही नहीं सकता था। वह मेरी लाइफ का एक हिस्सा थी। पर क्लास अलग होने के कारण मैं उससे ज्यादा बात कर ही नहीं सकता था। बस कभी मौका मिले तो हाई हेलो हो जाता था, पर अब यह काफी नहीं था। मैं हमेशा नीरज से यही पूछता रहता था, क्या तुझे लगता है कि वह कभी मुझे पसंद करेगी? और उसका जवाब साफ-साफ ना होता था। और बेशक यह सच था, हमारा कोई मैच ही नहीं था। पर यहाँ बात खत्म नहीं होती। मैं तो उसको अपना सब मान चुका था, तो कैसे मान लेता। मैंने ठान लिया कि अपने आप को इतना चेंज करना है कि वह भी कभी मुझे पसंद करे। पर यह जितना दिखता है, उससे कहीं ज्यादा मुश्किल था। सबसे पहले मेरी यह कोशिश थी कि इस साल के एनुअल फंक्शन के प्ले में मुझे पार्टिसिपेट करना था। क्योंकि मैं अक्सर देखा करता था, प्ले में जिसको मेन रोल मिलता था, वह स्कूल में काफी हद तक अटेंशन पा लेता था। पर मैंने आज तक एक्टिंग की ही नहीं, यह कैसे करता मैं। मैंने नीरज से कहा कि हम इस साल डांस नहीं करेंगे, प्ले में पार्टिसिपेट करेंगे। And he said, "तुझे लगता है हम दोनों में से कोई एक्टिंग कर सकता है।" अब चाहे मुझे भी खुद पर भरोसा ना हो, पर प्यार में कोई किसी भी हद तक जा सकता है। मैंने तो ठान लिया था और नीरज कभी मना नहीं करता था, तो हम दोनों ने कोशिश शुरू कर दी प्ले में जाने की। हर साल प्ले एक ही टीचर करवाती थी, हमें बस उनसे बात करनी थी। हमने काफी कोशिश की, पर बहुत हद तक हमें प्ले में कोई खास रोल मिला ही नहीं। मेन रोल तो दूर, हमें तो कोई डायलॉग तक नहीं मिला। और मुझे यह भी लगा था कि इस साल भी रूही प्ले करेगी, पर उसने भी अपनी क्लास के डांस में ही पार्टिसिपेट कर लिया। पर पर कुल्हाड़ी तो मार ही चुका था, अब करता भी क्या। 1 महीना बस उस प्ले के नाम पर छोटे-मोटे रोल की प्रैक्टिस की। मेरे चक्कर में नीरज भी फंस गया क्योंकि वह मैम बहुत स्ट्रिक्ट थी, पर वह चिल था। उससे ज्यादा कूल बंदा हो ही नहीं सकता। उसने कभी शिकायत नहीं की। फिर क्या था, मैंने तो उम्मीद छोड़ ही दी थी, पर यार भगवान मेरी स्टोरी खुद लिख रहा था। मानो सब कुछ उसके हिसाब से ही होता था। एक दिन उस प्ले के मेन रोल वाले बच्चे को मैम ने अच्छी खासी सुना दी क्योंकि मैम उसकी एक्टिंग से खुश नहीं थी, पर यहाँ से अब मेन एक्टर को चेंज करना कोई छोटी बात नहीं थी। उसकी ऑडियो तक रिकॉर्ड की जा चुकी थी। मैम ने अचानक सभी से कहा कि यहाँ कोई है जो यह रोल कर सकता है। काफी बच्चों ने हाथ खड़ा किया, पर मुझमें हिम्मत ही नहीं थी। मेरा दिल कह रहा था कि कर, तुझे यही तो चाहिए था, पर क्या करूँ, मैं बहुत डरपोक था। मैंने आंखें बंद की और मुझे बस 2 चीजें याद आईं। एक वह, उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा, और एक वह शब्द "चुप"। और पता नहीं कहां से मुझमें हिम्मत आ गई। मैंने हाथ खड़ा किया। आज तक कभी एक्टिंग नहीं की थी। सभी को डायलॉग दिए गए और सबने बारी-बारी ट्राय किया। मेरी हालत तो मानो एक अंजान मुसाफिर की तरह थी, जो कुछ जानता ही ना हो। नीरज ने मुझसे कहा, "यह तेरा आखिरी मौका है, जा रूही के लिए कर दे और जीत ले यह रोल।" मैंने भी अपना डर साइड करके अपनी पूरी जान लगा दी वह परफॉर्मेंस देने में। और यकीन मानो, यह सब उस स्टोरी का हिस्सा था जो भगवान लिख रहा था, वरना मेरे जैसा लड़का कभी वह रोल कर ही नहीं सकता था। जब मेरा वह ट्रायल खत्म हुआ तो मैम तो अपना डिसीजन पहले ही दे चुकी थी। मैम ने मुझसे कहा, "अबसे तू तैयारी कर, यह रोल तू ही करेगा, वॉइस इसकी ही रहेगी, तुझे लिप-सिंकिंग सीखनी है।" मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि यह सच में हुआ है। दिन बहुत कम थे और मुझे बहुत बड़ा टास्क करना था। सभी डायलॉग याद करने थे, साथ में उस वॉइस के साथ मैच भी करने थे जो पहले से रिकॉर्ड की जा चुकी थी। पर जहाँ इतना सब हो गया था, वहाँ स्टोरी आगे भी बढ़नी ही थी। मैंने दिन-रात प्रैक्टिस की, सिर्फ इसी उम्मीद में कि मैं रूही की अटेंशन पा सकूं। पर उसकी अटेंशन मिले ना मिले, सभी टीचर्स और काफी हद तक स्कूल की अटेंशन मुझे मिल गई थी उस रोल के चलते। काफी बच्चे मुझे जानने लगे थे, पर वह मेरे लिए काफी नहीं था। मैं तो यह सब बस एक ही इंसान के लिए कर रहा था। एनुअल फंक्शन से एक दिन पहले मुझे अपना रोल पूरे स्कूल के सामने करना था। उस दिन मुझे एहसास हुआ कि यह सब कितना मुश्किल है और सबसे बड़ी प्रॉब्लम थी कि मुझे वह रूही के सामने करना था। पर यही तो मैं चाहता था। मैं पूरी तैयारी के साथ स्टेज पर गया, अपना पूरा ट्राय कर रहा था, पर तभी मेरी नजर रूही पर पड़ी और वह मुझे देख रही थी। सच कहूं तो वह टाइम मेरा दिमाग काम करना बंद कर गया। मैंने अभी तक की प्रैक्टिस में अच्छा परफॉर्म किया था, पर वहाँ मैं कुछ नहीं कर पाया। मैं बहुत ज्यादा नर्वस हुआ और शायद इस वजह से प्रिंसिपल मैम को भी मेरी एक्टिंग अच्छी नहीं लगी। हमारे प्ले की हेड मैम ने प्रिंसिपल मैम से कहा कि यह अच्छा करेगा कल। उसके बाद मुझे समझना भी पड़ा कि ऐसा क्यों हुआ। पर मैं क्या बोलता। मैम को लगा कि यह नर्वसनेस थी, पर असल में यह होना ही था। मैंने उसके बाद भी रिहर्सल की, तो सब सही से किया। और मैं यह भी जानता था कि कल सब सही ही होगा। मैं बस यह रूही के सामने नहीं कर पाऊंगा। पर जिस वजह से मैंने यह सब किया, उसका मुझे कोई खास असर नहीं नजर आ रहा था। अगले दिन अपने रोल का कॉस्ट्यूम देखकर तो मुझे और उम्मीद आ गई थी कि इस रोल का कोई फायदा नहीं है। मेरा कॉस्ट्यूम बहुत अजीब था। एक जंगली आदिवासी जैसा। कहाँ मैंने सोचा था कि प्ले करूंगा तो अच्छा दिखूंगा और रूही से बात करूंगा, पर यहाँ सब उल्टा ही था। असल में रोल बुरा नहीं था, पर मुझे कॉस्ट्यूम अच्छा नहीं लगा। मैं यही सोच रहा था कि मुझे उसके सामने नहीं जाना है आज। पर सब उल्टा ही हुआ। उसने मुझे देख लिया। पहले मुझे लगा कि यह नहीं होना चाहिए था, पर जब वह मुझे देखकर जोर से हंसी तो मैं सब कुछ ही भूल गया। उसकी हंसी का कारण बनना भी मेरे लिए अच्छा था। उसको हंसता देखकर मैं भी हंसने लगा। मैंने उससे थोड़ी बात की और वहाँ से हमारी दोस्ती थोड़ी सी तो बढ़ी। एनुअल फंक्शन खत्म हुआ। रूही की अटेंशन तो नहीं मिली, पर पूरे स्कूल में मेरी एक्टिंग के चर्चे जरूर हुए। स्टेज 1 तो क्लियर हो ही गई, पर यह सिर्फ शुरुआत थी। मैं सोच भी नहीं सकता था मैं क्या कर जाऊंगा उसके लिए। समय बीतता गया, मेरी सभी तरीके बेकार ही जा रहे थे। मुझे मौका ही नहीं मिल रहा था। तभी अचानक स्टोरी में एक बहुत बड़ा ट्विस्ट आया जिसने सब कुछ ही बदल दिया।"