kash tum mere hote - 3 in Hindi Love Stories by Kshitij daroch books and stories PDF | काश तुम मेरे होते ( a true story) भाग - 3

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काश तुम मेरे होते ( a true story) भाग - 3

Part - 3

हर बार मैंने उसे देखा और हर बार मेरा प्यार उसके लिए बढ़ता ही गया। उसे देखना मेरे लिए दिन का सुकून था। हमेशा सुबह उसकी बस के आने का इंतजार करता था। हर रोज जब वह बस से उतरती तो मानो उसे देखकर ही मेरा दिन बन जाता था। उसके बाद चाहे जितना भी बेकार दिन क्यों न हो, उसकी वह मुस्कान देखकर ही मैं खुश रहता था। फिर मैंने यह तय कर लिया कि स्कूल में ऐसी प्रतिष्ठा चाहिए जिससे कि उसको मुझसे बात करने का मन हो। अब मेरे पास वही 2 विकल्प थे। दूसरा विकल्प मुझे बहुत मुश्किल लगा क्योंकि मेरे जैसे डरपोक के लिए वह असंभव था। तो मैंने पहला विकल्प आजमाया जो कि बेवकूफी ही थी। बहुत कोशिश करने पर भी कुछ खास फायदा नहीं हुआ क्योंकि पढ़ाई कैसे करता, मेरा दिमाग चाहे जितनी कोशिश कर ले, दिल हमेशा उसे ही याद करता था तो पढ़ाई में कैसे ध्यान लगता। कुछ ही दिनों में मैं जान गया था कि यह नहीं हो पाएगा। अब बचा था विकल्प 2। मैं रोज बस में उन सीनियर भाईयों को देखता था, उनका स्टाइल, उनकी बातें, और उससे मुझे यह पता लग गया था कि क्यों सब उन्हें पसंद करते हैं। वे सबको हंसाते थे, डरते नहीं थे किसी से, स्कूल में उसने कोई पंगा नहीं ले सकता था, हर टीचर उनसे परेशान थी, यहां तक कि प्रिंसिपल मैम तक उनका कुछ नहीं कर सकती थी। और मेरी तो प्रिंसिपल के नाम से ही फट जाती थी। पर रुही के लिए मुझे यह करना ही था। सबसे पहले मैंने यह सोचा कि स्कूल से पहले मुझे बस में प्रतिष्ठा चाहिए। तो मैंने पहली कोशिश यह की कि बहुत हिम्मत से मैं एक दिन सीनियर्स की सीट पर बैठ गया। सभी सीनियर और उनके चेले लास्ट सीट पर बैठते थे। उसका अंजाम मुझे पता था पर मुझे उनकी नजरों में आना था। और वही हुआ भी, उन्होंने मुझे वहां से उठा दिया। पहले दिन मैं उठ गया और तीन दिन तक लगातार वे मुझे उठाते रहे। लेकिन कुछ दिनों में उनके आगे बैठकर मेरी उनसे जान-पहचान हो गई। कुछ हफ्तों में मुझे बहुत अच्छे से समझ आ गया था कि उनमें कुछ तो खास बात जरूर है। उनका स्टाइल बहुत ही अच्छा था। मैं उनका बहुत बड़ा फैन बन गया, मैंने उन्हें गुरुजी बोलना शुरू कर दिया और मैं उनका पक्का चेला बन गया। मैं उनके पैर तक छू दिया करता था। काफी समय उनके साथ बिताने पर मुझमें आत्मविश्वास आने लग गया। कम से कम मैं उनकी तरह बातें करना सीख गया। मुझे भी दूसरों को हंसाना आने लगा। उनके स्टाइल में बातें भी करने लगा था मैं। और उनका पक्का चेला होने के कारण अब मुझे कोई कुछ कह भी नहीं सकता था। बस में काफी हद तक बच्चे मुझे जानते थे और ड्राइवर और कंडक्टर भैया से भी मेरी दोस्ती बहुत अच्छी हो गई। काफी हद तक बस के बच्चे अब मेरी बातें भी बहुत ध्यान से सुनते थे। कुछ तो मेरे साथ बैठना चाहते थे रोज। लड़कियां भी मेरी काफी अच्छी दोस्त थी बस में। आखिर में, भाईया का पक्का चेला जो था। पर जिसके लिए मैं ये सब कर रहा था, उसे कैसे इम्प्रेस करूं, यह मेरे ख्याल में रोज आता था। और जैसे कि यह कहानी भगवान लिख रहे थे तो सब अपने आप तो होना ही था। मानोगे नहीं, पर 7वीं क्लास के शुरुआत में रुही एक दिन हमारी बस में आई। उसको देखकर मैं हैरान हो गया। वह काफी आगे बैठी थी। मुझे नहीं पता था कि वह आज मेरी बस में क्यों जा रही है, इसलिए मैं ड्राइवर भैया के साथ बैठ गया जाकर। मैंने उसको पूरे रास्ते देखा, पर उसकी नजर मुझ पर पड़ी ही नहीं। मैंने ड्राइवर भैया से पूछा कि आज ये हमारी बस में क्यों आई थी। वह सुनकर तो मानो मेरी खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था। मेरा सपना सच हो गया। ड्राइवर भैया ने मुझसे बोला कि उसने अपना घर चेंज किया है इसलिए वह अब हमारी ही बस में आएगी। मैं हद से ज्यादा खुश था इस बात से। अब मेरे लिए काम आसान था। कम से कम अब मैं उससे बात कर सकता था पर मुझमें इतनी हिम्मत ही कहां थी। मैं रोज उसके आस-पास बैठने की कोशिश करने लगा। बस में अच्छी-खासी जान-पहचान होने के कारण सब बच्चे मेरी बातों पर हंसते रहते थे और मुझसे कई सारी बातें किया करते थे। रुही ये सब नोटिस तो करने लगी थी। पर मेरी उससे बात नहीं हो पाती थी। और वो काम मेरा किया नीराज ने। रुही सिर्फ दोपहर के टाइम हमारी बस में आती थी, इसलिए बेचारा नीराज रोज अपने स्टॉप से 1 किलोमीटर पैदल चलकर रुही के स्टॉप से बस में चढ़ता था। वह वहां उससे किसी तरह मेरे बारे में बात करता रहता था और रुही हमेशा कहती थी कि "हां, मैं उन्हें जानती हूं। वो बस में हमेशा बोलते रहते हैं।" उस वजह से रुही की अटेंशन तो मुझे मिलने लगी थी। अब ये सब मेरे गुरुजी ने नोटिस करना शुरू कर दिया था कि मैं कुछ समय आगे बैठता हूं आजकल और बाद में पीछे आता हूं। असल में मैं रुही के बस से जाने तक आगे बैठता था और फिर पीछे चला जाता था। अब गुरुजी ने ये नोटिस कर लिया था तो मुझे पीछे ही बैठना पड़ा कुछ दिन। मैं रोज रुही को पीछे बैठकर देखता था और मजे की बात ये थी कि वो भी घूम-घूम कर देखने लगी। उससे मुझे पता चल गया था कि मुझे उसकी अटेंशन मिल गई थी। पर एक दिन मुझसे रहा नहीं गया और मैंने क्लास में ही सोच लिया था कि आज मैं उसके आस-पास ही बैठूंगा पर **God always have better plans**। वो दिन मेरी जिंदगी का दूसरा सबसे बढ़िया दिन बन गया। मैं बस में गया। मेरी बस में इतनी जान-पहचान थी कि मैं जिस सीट को बोल दूं, वो खाली हो जाती थी। पर आज मुझे उसकी जरूरत ही नहीं पड़ी। मैं उसके साथ वाली सीट पर बैठे बच्चों को उठाता, उससे पहले ही उसने उसी दिन की तरह मेरे कंधे पर प्रेस करके बोला, "आप मेरे साथ बैठ जाओ।" ... एक सेकंड को तो मैं हैंग ही हो गया। मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि ये सच है। आखिरकार उसने सामने से कही ये बात। उसने मुझसे कहा, "आप खिड़की वाली साइड बैठ जाओ क्योंकि मैं जल्दी उतर जाऊंगी।" उसके साथ उसकी बहन भी बैठा करती थी। अब बस में कई बच्चे उससे चिढ़ भी रहे थे क्योंकि मैं उसके साथ बैठा था। और पहली बार मैं बस में किसी लड़की के साथ बैठा था, वो भी जिसको मैं अपनी जान से ज्यादा चाहता था। मेरे लिए उससे बेहतर कुछ हो ही नहीं सकता था। वो रोज मेरे लिए सीट बचाकर रखती थी। हम ढेर सारी बातें करते थे। उसका वो मुस्कुराता चेहरा मुझे इतना ज्यादा सुकून देता था कि मैं बता नहीं सकता। मैं रोज **God** को धन्यवाद करता था इतना प्यारा समय देने के लिए उसके साथ। अब यहां से शुरुआत हुई मेरी और रुही की दोस्ती की। रुही को मुझे परेशान करने में बहुत मजा आता था और वो भी नीराज की वजह से। नीराज रोज उससे सुबह मिलता और उसको तरीके बताता था मुझे परेशान करने के। वो कभी मेरे बाल बिगाड़ देती थी, कभी मेरे कान खींचती थी, कभी मुझे चुटकी मारती थी और मुझे ये सब इतना ज्यादा अच्छा लगता था कि मैं बता नहीं सकता। उसके सामने बेशक मैं दिखाता नहीं था पर मुझे ये सब अच्छा लगता था। मेरा कजिन हमेशा उसको डांट देता था कि तू मेरे भाई को परेशान मत किया कर पर मैं उसको मना करता था ये सब करने से। एक दिन रुही ने मजाक-मजाक में मुझ पर पानी ही फेंक दिया अपनी बॉटल से और मेरे कजिन को गुस्सा आ गया। वो रुही को मारने पर जाता पर मैंने उसको रोका। रुही ने बाद में सॉरी बोला, पर मुझे तो कोई प्रॉब्लम थी ही नहीं। उसके जाने के बाद मेरे कजिन ने मुझसे पूछ ही लिया कि तू उसको बचाता क्यों है, देख पूरा गीला कर दिया तुझे। मैंने मेरे कजिन को बता दिया कि मुझे वो पसंद है। वो हैरान हुआ पर लड़कों के बीच राज़ राज़ ही रहते हैं। वैसे उसको मुझ पर पहले भी शक था तो उसने ज्यादा रिएक्ट नहीं किया। पर असली दिक्कत तब हुई जब मेरे गुरुजी ने मुझसे पूछ लिया कि तू किस लड़की के साथ बैठता है रोज, क्या बात है? मैंने उनसे बस इतना कहा, "वो रोज सीट बचा लेती है तो उसका दिल रखने के लिए बैठ जाता हूं।" उन्हें समझ आ गया था कि क्या बात है, इसलिए शायद उन्होंने ज्यादा कुछ नहीं कहा। मेरा टाइम बहुत अच्छा चल रहा था। मेरी और रुही की बहुत अच्छी दोस्ती थी और मुझे इससे ज्यादा कुछ चाहिए भी नहीं था। मैं बस खुश था कि वो मेरे साथ खुश रहती है। उस साल के वार्षिक उत्सव में मैं बस रुही के साथ एक फोटो खिंचवाना चाहता था। पूरा दिन मैंने बहुत कोशिश की पर क्लास अलग होने के कारण बहुत मुश्किल था और उससे भी बड़ी दिक्कत ये थी कि उस साल वो जिस डांस में थी, उस डांस के सभी बच्चों के चेहरे पर एक अजीब सी पेंटिंग कर दी थी, जिस वजह से वो सब एक जैसे ही लग रहे थे। नीराज को तो वो पहचान में ही नहीं आई, वो सबसे नाम पूछ रहा था। पर मुझे पता था कि वो उनमें नहीं है। क्लास बाहर आने पर मुझे वो कॉरिडोर में मिल गई। बड़ी हिम्मत करके मैंने उससे फोटो के लिए पूछा और उसने भी हां कर दी। मैंने उसके साथ फोटो खिंचवाई और वो फोटो पूरे 1 साल तक रोज देखी पर वो फोटो मेरा फोन खराब होने की वजह से उसी में रह गई। मैंने बहुत ट्राई किया पर वो नहीं मिल पाई। मुझे बहुत दुख है उसका, काश वो फोटो मेरे पास होती आज भी क्योंकि मैं इसके बाद उसके साथ कभी फोटो नहीं खिंचवा पाया। तो कहानी आगे बढ़ी और कहानी का अंत भी नजदीक आते जा रहा था। अंत तो नहीं, पर हम दोनों की दोस्ती बहुत जल्द खत्म होने वाली थी। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं इतनी बड़ी गलती कर दूंगा। पर चाहे ऐसा कहो कि हालात ऐसे हो गए या फिर भगवान ने ये कहानी लिखी ही इस तरह से थी कि सब खत्म होना ही था। सब खत्म हुआ, मुझे लगा कि ये अंत है। पर असल में असली कहानी शुरू ही उसके बाद हुई।