Gunahon Ki Saja - Part - 28 in Hindi Women Focused by Ratna Pandey books and stories PDF | गुनाहों की सजा - भाग 28

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गुनाहों की सजा - भाग 28

नताशा का प्रश्न सुनने के पहले ही वरुण ने कहा, "जानता हूँ नताशा। मैं कौन हूँ ...? माही से मेरा क्या रिश्ता है ...? यही जानना है ना तुम्हें? तो सुनो, मम्मी मेरी माँ नहीं हैं। वह मेरी सगी मासी हैं, लेकिन वह मुझे माँ से भी ज़्यादा बढ़कर प्यार करती हैं और मैं भी उन्हें उतना ही प्यार करता हूँ।"

नताशा ने पूछा, "फिर पापा?"

"नताशा, पापा और मेरी माँ, वे दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे, सच्चा प्यार। उनकी शादी भी होने वाली थी। इसी बीच पापा को उनकी कंपनी ने अमेरिका भेज दिया। पापा को तीन माह के लिए भेजा था, पर वहाँ जाकर पापा जल्दी लौट न पाए। यहाँ मम्मी की डिलीवरी की तारीख नज़दीक आती जा रही थी और वहाँ से पापा का आना लंबा होते जा रहा था। इसी बीच चिंता में मम्मी को मैं आठवें माह में ही हो गया। डॉक्टर ने मुझे तो बचा लिया, लेकिन मम्मी को न बचा पाए। वह कुंवारी माँ बन गईं और दुनिया छोड़ गईं। पापा यह ख़बर सुनते ही अमेरिका से वापस आ गए, पर मम्मी तो जा चुकी थीं। परिवार के बहुत समझाने के बाद पापा ने मासी से शादी कर ली ताकि मुझे माँ मिल जाए। इस शादी से मासी भी खुश थीं क्योंकि वह अपनी बहन से बहुत प्यार करती थीं। उस समय माँ को सबसे ज़्यादा फ़िक्र मेरी थी। उसके बाद जब मैं बड़ा होने लगा, तो मैं हमेशा बोर्डिंग में ही पढ़ा, फिर कॉलेज के लिए लंदन चला गया। वहीं पढ़ाई की और नौकरी भी वहीं लग गई। मैं साल में दो बार घर आता हूँ। हम तीनों भाई-बहन, नीरज, माही और मैं, बहुत प्यार से रहते हैं। मैं यदि तुमसे यूं ही मिलता, तो यह सब पहले ही बता देता, लेकिन मैं तो तुमसे एक मिशन के तहत मिला था। इसलिए मुझे मेरी पहचान छुपानी पड़ी। नताशा, यह घर हमारा प्यार का मंदिर है, जहाँ कोई स्वार्थ, कोई झगड़ा कुछ नहीं है, केवल प्यार ही प्यार है। मुझे उम्मीद है तुम इस मंदिर की गरिमा की लाज रखोगी।"

अगले दिन सुबह जब सब नाश्ता कर रहे थे, तब वरुण ने वह ट्रक और पहली शादी वाली बात का सच सभी को बता दिया।

तभी उनके दरवाजे पर दस्तक हुई। माही ने दरवाज़ा खोला, तो सामने रीतेश, शोभा और विनय तीनों हाथ जोड़कर खड़े थे। माही तो अवाक थी, लेकिन रौशनी ने उन्हें अंदर बुलाया। अंदर सभी लोग उन्हें देखकर हैरान थे।

शोभा ने हाथ जोड़कर माफ़ी मांगते हुए कहा, "माही, हमें माफ़ कर दो।"

माही कुछ भी कह न सकी।

रीतेश ने भी कहा, "हमने गलती तो बहुत बड़ी की है, लेकिन अब माफ़ी ..."

माही ने कहा, "नहीं, रीतेश, मेरे दिल में तुम्हारे लिए कुछ भी नहीं है। तुम्हारी नीयत से मुझे नफ़रत है। मैं तुम्हारे साथ कभी वापस नहीं आऊंगी।"

रीतेश ने कहा, "परंतु माही, वह ट्रक वाली बात तो झूठ थी। शादी वाली बात भी झूठ थी। वह तो सिर्फ़ तुम्हें डराने का तरीक़ा था।"

माही ने कहा, "रीतेश, आज भी तुम्हारे साथ बीते लम्हे यदि याद आ जाएं, तो मैं डर के मारे कांप जाती हूँ। मुझे इतनी मानसिक पीड़ा देकर तुम ऐसा कह रहे हो और मकान ...? वह तो तुम्हें सच में चाहिए था ना? तुम जाओ यहाँ से, यही मेरा अंतिम फ़ैसला है।"

शोभा ने कहा, "मेरी बेटी ..."

तो रौशनी ने कहा, "नताशा हमारे घर की लक्ष्मी है, हमारी बहू, हमारी बेटी है। उसे यहाँ पलकों पर बिठा कर रखा जाएगा। आप चिंता मुक्त रहिए।"

शोभा ने नताशा की तरफ़ देखा, तो नताशा ने भी मुंह फेर लिया। रीतेश, शोभा और विनय खाली हाथ वापस लौट गए। उनके गुनाहों और अत्याचार की यही सजा थी। उन्हें न बहू मिल सकी और न ही उनकी बेटी ही उनकी हो सकी।

 

रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
समाप्त