नताशा अपने प्रश्न के उत्तर के इंतज़ार में अब भी वरुण की आँखों में देख रही थी।
वरुण ने नताशा की खूबसूरत आँखों की गहराई में डूबते हुए कहा, "नताशा, मैं वैसा इंसान नहीं हूँ। तुम्हारी ही तरह मैंने भी तुम्हें सच्चे दिल से प्यार किया है। तुम मेरी पत्नी हो, मैंने अग्नि को साक्षी मानकर तुम्हारे साथ गठबंधन किया है। मैं इस रिश्ते की गरिमा को जानता हूँ। लंदन में रहकर भी मेरे परिवार ने मुझे भारतीय संस्कारों से बाँधकर रखा है। तुम्हें यदि तुम्हारी गलतियों का एहसास हो जाए, तो तुम आज भी मेरी पत्नी ही हो।"
शोभा का गुस्सा चरम सीमा पर था। उसने कहा, "अरे, नहीं चाहिए तेरी दया मेरी बेटी को। तू निकल जा हमारे घर से।"
विनय ने भी शोभा का साथ देते हुए कहा, "और ले जा अपनी इस प्यारी बहन को अपने साथ। अब इसकी यहाँ पर कोई ज़रूरत नहीं है।"
माही ने आगे बढ़कर कहा, "पापा, आपको क्या लगता है, अब भी मैं इस नर्क में रहना चाहूंगी? आप मुझे क्या निकालोगे, मैं ख़ुद यहाँ से हमेशा के लिए जा रही हूँ। मैंने इतने दिनों तक यहाँ जो नरक भोगा है, मैं उसे कभी नहीं भूल पाऊंगी। मेरे सपनों की पोटली, जो मैं अपने संग लेकर आई थी; उसमें पिता के रूप में आप, माँ के रूप में मम्मी जी और बहन के रूप में नताशा के लिए प्यार लाई थी। रीतेश को तो मैं अपना सब कुछ देकर ख़ुद को भाग्यशाली समझ रही थी। परंतु मेरे सपनों की पोटली में आप लोगों ने मिलकर आग लगा दी या यूं समझ लो कि उसे फाड़कर उसके चिथड़े-चिथड़े कर दिए। मैं तो प्यार देने और प्यार लेने आई थी, परंतु आपको तो मकान लेना था। वह भी वो मकान जिस पर आपका कोई हक़ ही नहीं था। खैर, आप लोग शायद भावनाओं के इस पहलू को जानते पहचानते ही नहीं हो। यदि रीतेश मुझे ट्रक का कहकर नहीं डराता, तो मैंने कब का उसे तलाक दे दिया होता, परंतु मुझे मेरा परिवार भी बचाना था और आप लोगों की नीचता को उजागर भी करना था। चलो, वरुण भैया ...!"
वरुण ने कहा, "चलो, माही, घर पर हमें देखकर सब खुश हो जाएंगे।"
तेजस ने कहा, "अच्छा वरुण, मैं भी चलता हूँ। कुछ काम हो तो बता देना, तेरी एक आवाज़ पर मैं आ जाऊंगा। केस करना हो तो बोल?"
केस की बात सुनकर वरुण ने कहा, "अभी रुक जा, तेजस, मैं तेरे से इस बारे में बाद में बात करता हूँ।"
तेजस ने कहा, "ठीक है, तो फिर मैं चलता हूँ।"
वरुण और माही भी जब घर से निकलने लगे, तो तब वरुण नताशा के पास गया; उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर उसने कहा, "नताशा, यह मकान के कागज़ जो मेरे हाथ में हैं, उस मकान पर जिसका अधिकार है; मैं यह उन्हें लौटाने जा रहा हूँ क्योंकि यही सही है। किसी दूसरे के खून पसीने को रौंदकर उस पर महल बनाने वाले उसमें रहने वाले कभी खुश नहीं रह सकते। ऐसे इंसानों का कोई ईमान नहीं होता। आज मैं तुम्हें मेरी पत्नी होने के नाते यह अवसर दे रहा हूँ कि तुम यदि अपनी गलती को सुधारना चाहती हो, तो चलो मेरे साथ। चलकर माफ़ी मांगो, अपनी गलती स्वीकार कर लो।"
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)
स्वरचित और मौलिक
क्रमशः