बाजार -----18 वा धारावाहिक -----
जिंदगी मे जो तुम्हे दिल से चाहता हैं, हमेशा खुश रहना सिखाता हैं, भूल चुके हो ख़ुशी को, जनाब, जो तुम्हे सदा के लिए देना चाहता हैं। उसके तुम काबिल बन रहे हो। उसका शुक्र करो, मेहरबान बनो, उनके लिए, जो तुम्हे हर हालत मे खुश देखना चाहता हैं, वो शक्श और कोई नहीं, आपना ही होता हैं। जिसने लम्बे कारवे साथ आपका साथ दिया हो, उसे हमेशा याद रखना चाइये।
किस्मत मुठी मे आती हैं, ज़ब मुठी खुलती हैं, हर किसी की किस्मत अलग अलग होती हैं। किसी की किस्मत मेल नहीं खाती हाँ इतना जरूर हैं कभी कभार चेहरा थोड़ा बहुत मेल खा जाता हैं।
रानी आज बहुत खुश थी। देव ने उसे अपना लिया था... हर हालत मे लिली की किताब पर फ़िल्म बना देना चाहती थी। उसके लिए मुश्किल था, निर्देशक शंकर देवदास को आपने जाल मे फ़साना.. अगर फ़स गया तो बस कोई जिम्मेदारी किसी की कोई नहीं होंगी। वो किस तरा माने गा... ये रानी को पता होता तो बात बन जाती।
शंकर देवदास बस चिलम का शौकीन था... पैसा अथाह था। उसके फ़िल्म मे ब्रांड चलते थे, थ्री वीलर उसका ही लांच किया प्रोडक्ट था। जो सारे वर्ल्ड मे चल निकला।
फिर भी उसने हिमत की ----- रेड शर्ट और जींस पहने दो बॉडीगार्ड के संग वो बार मे यहाँ हुके का धुआँ चारो ओर बिखरा पड़ा था.... इस ढंग से प्रवेश की। सब उसकी ओर देखने लग गए।
पीछे से माइक से बोला गया था... मशहूर हस्ती जो एक अभनेत्री रानी को आज उतार रही हैं.. ये हैं वर्ल्ड वाच।
प्रूस्तुति शंकर देवदास जी की.... नेहले पे दहला चल निकला था।
शंकर दा ने नाम सुना था... पर देखा आज था। एक सुंदर महला, देखने मे बहुत ही जयादा एक्ट्रेक्टिव थी... उसकी कमर के हचकोले स्टेज पे ऐसे दिख रहे थे... जींस मे वो पतली ओर कठोर जाघो वाली उसके कूल्हे भरे भरे से आकर्षित कर रहे थे... उसने शर्ट के नीचे कसाव वाली ब्रा पहने हुए... दो वार झुकने मात्र से उसके स्तनो की गहरी गहरायी शंकर देवदास के आगे आँखो के यूँ चराग की तरा लू जैसे थरथरा रही थी। वो एक टक देख रहा था। बस जैसे सोच रहा हो, उसे हासिल करना.... बात तो फिर जिस्म की ही भूख की निकली थी।
आखिर चाहती भी वो यही ही थी। लपट लगा के वो जल्दी ही बूटीपार्लर जा चुकी थी। साड़ी पहन कर वो रफ्ता से कॉनटर पर से अध्यागी करके बॉडीगार्ड की, कार से निकल चुकी थी।
वो भीड़ मे खो गयी थी। शंकर देवदास को वो कही भी नजर नहीं आयी थी। सोचने पर शंकर दा ने उसकी अगली फ़िल्म के बारे मे इंड्रस्टी को फोन किया था। निर्देशक ने शंकर देवदास को सत्भवना दी थी... कि आप को ये फ़िल्म के राइट्स मिल जायेगे।
तभी एकाएक फोन की घंटी वजी।
मोबइल पर।
रानी ने तीन मिस कॉल को देखा तभी फोन की घंटी दुबारा से वजी।
अपसेट मूड था रानी का..... कयो की उसने कुछ खाया भी कुछ नहीं था। जा कर वो देव की पीठ से झूम सी गयी थी। " कया हुआ आज बहुत खुश हो। " देव ने उसके हाथों को चूमते हुए कहा.....
कठोर सीना रानी का देव की मजबूत पीठ से सटा हुआ था। " हूँ आज बहुत खुश हूँ... पूछो कयो? ?
" हाँ वही कयो.... " देव ने नजदीक का चश्मा उतार दिया था।
"--कयो की बड़ी मुदत के बाद मुझे देव तुम मिले हो। " रानी ने कहा।
"अच्छा जी..... " एक दम से बाहो पे उठा लिया था देव ने रानी को... उसके होठो पे एक चूबन तस्दीक किया था.. देव ने। पर जैसे एक दम से बुखला गयी रानी। " मेरी शपथ कोई मायने नहीं रखती... " रानी ने प्रश्न किया।
" कया हुआ रानी.... कया मैंने पी हैं... कदापि नहीं.. "
"सच बोलो देव... " रानी ने माथे पर त्यूड़ी ड़ालते हुए कहा।
सच मे.... लीवर खुद ही शराब बनाने लग गया हैं... तुम्हारी कसम। "
तुम मेरी कसम से इतना खुश हो... तो मै तुम्हारी कसम तोड़ दुगा कया... "
देव ने कहा... "रानी कुछ खा लो... मैंने दो अंडो का आमलेट तुमाहरे लिए बनाया हैं। "
रानी ने दुपहर तक अंडो का आमलेट खा लिया था।
इसके बाद वो दोनों , डॉ माथुर की लेब मै चले गए थे। देव को ठीक करना ही अब रानी का सब्जेकट था। था मुश्किल, मगर कया नहीं हो सकता, अगर आदमी चाहे तो।
(चलदा ) ------------------------ नीरज शर्मा
------------------ शाहकोट, जलधर