Bazaar - 8 in Hindi Anything by Neeraj Sharma books and stories PDF | बाजार - 8

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बाजार - 8

बाज़ार!!! 8 वा धारावाहिक असत्य मत बोलो, जो भी बोलो, मुँह पर कह दो। मत सोचो, जिंदगी एक चनोती हैं, मेहनत करो, खुद आपने लिए ईमानदार बनो, ये मेहरबान बन जाएगी। सोचना हैं तो किसी के लिए सोचो, तुम आपने लिए नहीं,  खुद का कठन कार्य भी सफल हो जायेगा। ज़िन्दगी हसते हसते गुज़ार दो... बस यही दो पल हैं।                                  गोल्ड़न के गजरे और हीरे की अंगूठी को पता नहीं कितनी दफा चूमा होगा उसने, वो घुंघट मे थी। देव ने एक गुलाब का फूल उसको दिया... और उसने बाये हाथ से लिया था। गुलाब और सफ़ेद कलियों को बिस्तर पर सजाया हुआ था, आज लिली बहुत सुन्दर लगती थी... मेयकप सधारण सा था.. कयो की वो खुद ही बहुत सुंदर थी।                           तभी ठीक दस को वजे के करीब दरवाजा खड़का। देव ने दरवाज़ा खोला... माया की दूर की रिश्ते मे बेटी दूध देने को आयी थी। देव की सालेहार थी।" ओह आप " देव ने पूछा।" आधा दूध आप और आधा लिली को पिला देना... " देव चौका और मुस्करा पड़ा।"कयो नहीं... पहले ये पिए, फिर मै पियुगा  " ---- देव ने जल्दी से दरवाजा लगाते हुए कहा। और घुटनो के भार देव ने लिली के करीब  पहुंच कर घुंघट उठा दिया। फिर एक चुभन तस्दीक किया। रात को लायट बंद कर दी गयी। एक सनाटा था।                          -----------*-------------     एक हस्पताल का दृश्य आँखो के सामने था। और डॉ विजय  देखने से ऐसा प्रतीक हो रहा था, जैसे उसने बहुत संघर्ष किया मगर किस्मत के आगे हार गया। ऐसा ही ---

"कभी कभी हम हार जाते हैं।"  डॉ की आहट थी।

"नहीं डॉ नहीं " --- मनोज का छोटा भाई बोला।

" इसके आगे कुछ भी----- नहीं हैं!!" डॉ ने अंदर से आँखो मे आंसू लाते और कहा ---" तुमने ही अब सब का ख़याल रखना हैं। " लायट बॉय बोला... पीछे अंधेरा रखो...। शूटिंग चल रही थी। इसमें देव का रोल एक पियकड़ का था, जिसमे वो बहुत दर्दनाक स्तिथि मे मर जाता हैं। वो इस फ़िल्म मे एक जॉनी नाम की लड़की से प्यार करता हैं, पर उसे खो जाने पे कहानी मे कैसे बर्बाद हो जाता हैं, ये वो फ़िल्म की कहानी हैं, जिसमे वो काम कर रहा था।

फ़िल्म चल निकली... उसका एक एक डायलॉग लोगों की जुबा पर था, फर्क इतना रहा, गीत संगीत सुपर हिट नहीं हुआ... फ़िल्म कमाल कर गयी।

पार्टियां सजती थी, साथ मे मेमसाहब लिली की विलचेयर भी सजती थी। धड़कते दिलो वाली छ छ ररे बदन वाली अक्सर बाहो मे बाहे डाल नाचती थी... जो लिली कम ही देख कर आँखो परोखे कर देती थी। कया बाते होती हो, दोनों को कोई इंट्रेस्ट नहीं था। बस ऐसा ही प्यार था दोनों का.... माया अब एक लम्बे पाइप को मुँह से लगा धुआँ उड़ाती कम ही दिखती थी... गर्म चमड़ी की मंडी मे, यहां रोज किस्मत बनती और उखड़ जाती थी.... बम्बे जो कभी सोता नहीं था... चल सो चल था।

देव को एक भय कयो सताता था, जैसे वक़्त का तूफान कुमुदनी को उसे जुदा कर रहा हैं। पर उसके चेहरे का रंग पीला पड़ जाता था। अक्सर वो कहता  खुद से , " ज़िन्दगी कितनी छोटी हैं, इसे किस तरा जीऊं, कि कुमुदनी को समय ही समय दू। उसके पास जयादा समय गुज़ारू। "  शाम सिमट रही थी, सारे आराम जैसे शाम की पनाह मे जा रहे हो.... तभी एक लोकल ट्रेन तेजी से गुज़री। टक टक... थक थक... करती। सबकी आवाज़े जैसे उसने घुट दी हो।

(चलदा )                    नीरज शर्मा 

                            शहकोट, जलधर