उपन्यास ( बाजार )
धारावाक (2)
बाजार मे जज्बातो का मलयाकन होता हैं, भावुकता का भी मूल्य लगता हैं, जनाब मंडी हैं..... हर चीज विकती हैं, बदले मे ख़ुशी मिलती हैं या गमी... ये तुम्हारी किस्मत हैं। कया नहीं मिलता... सौदा जिस्मो का भी होता हैं, कैसा जिस्म सौदा वैसा ही... हाँ बरखुरदार जिंदगी मे कुछ गम हम खुद ले लेते हैं, मशहूरी के नाम पे..
इसी को ज़िन्दगी का काल चक्र कहते हैं।
बम्बे का वो इलाका जिसका नाम आबादी.. यहाँ माया और बेटी संग उसके दूर के मामा रहते थे। माया खुश थी। आज पहली दफा वो किसी मर्द की जुबा से मिली थी... दो कमरों का छोटा सा शीश महल उसका नाम रखा था। उसकी ही बेटी ने।
ज़ब उसको मैंने देखा था, तो एक दम से आपनी किस्मत पर कुछ गिला किया था, इतनी सुंदर, सडोल जिस्म की माया की लड़की... बापरे मेरे मुँह से मेरे तक ही निकला था। वो वील चेयर पर बैठी थी... चुप सी.. जैसे उसके खाब अधूरे हो, मेरे से जयादा मुझे वो अपसेट लगी थी। " जज्बात मेरे जैसे तड़फ पड़े हो " कया सोचा... शायद यही वो खजाना हो, जो किस्मत ने दिया हो।
माया ने कहा ---" लिली वो स्वीटी, ये बाबू जो देख रही हो, तुम्हे पसंद हैं, इनका नाम देव उपदेयाय हैं.. तेरे से कहानियाँ ले कर फ़िल्म बनाना चाहता हैं। "
---- " लिली खुश और चेहरे पे मुस्कान... सच मोम। "
----" हाँ कोई शक हो लिली तो बताओ। " देव ने मुस्कराते हुए कहा।
-----" नहीं पता नहीं, कयो जी नहीं मानता.. आप कोई तमाशा करने को तो नहीं आये। " लिली ने बे झिझक कहा।
" कयो जी मैं जोकर लगता हूँ, कया। " हस पड़ा देव।
फिर थोड़ी देर लिली भी हसी खूब।
माया ने राहत की सास लीं। कॉफी बना कर उसने मेज पर रख दी। देव उसके सामने बैठ गया।
" लिली तुम्हे मेरे ऊपर यकीन हैं.------------
"यकीन तो करना ही पड़ेगा। " देव बात करके हस पड़ा। काफ़ी के घुट भरते भरते उसने कहा, "कया लिखती हो, लिली हमें भी तो दिखाओ।" लिली मुस्कराती हुई बोली ---" पढ़ोगे, तो समय लगेगा, देखोगे तो बस, कहोगे बस, अब और नहीं। "
"--चलो, दिखाओ तो सही... कुछ पसंद आ जाए।" देव ने जल्दबाज़ी मे कहा।
"अरे, इतनी पुस्तके लिखी हो। " देव ने हैरत से कहा।
"हाँ बाबा। बीस के ऊपर लिखी हैं। " देव सुन कर हैरत मे बोला, " बापरे "
एक पुस्तक उसने खोली.... उसका नाम था "मीठा जहर। " देव ने कहा " इतना सुंदर कैसे लिख लेती हो..
"मीठा ज़हर " यानी शुगर... "
" नहीं नहीं नहीं... " दोनों हस पड़े।
"फिर इसकी कहानी सुनाओ। " देव ने सीरयस होकर कहा। फिर कभी सुनाऊंगी...
तभी ------ ?
चावल और राजमाह बन कर तैयार हो चुके थे। माया ने बहुत अच्छा डिनर सेट तैयार किया था... रात के अब आठ वज रहे थे। तभी लिली ने कहा--" देव जी आप तो ऐसे घुल मिल गए हो, जैसे कोई सालो से विषड़ा हो। " यही सोच कर माया भी मुस्करा रही थी। सोच रही थी, देव मे कोई तो जादू कला का हैं... बीमार को जो ठीक कर दें।
चावल के साथ डिश राजमाह की बहुत स्वादिष्ट थी। खाने के बाद सिगरेट की पुरानी आदत देव को घर से बाहर ले आयी थी।
(चलदा ) नीरज शर्मा