बाजार ----19 वी किश्त -----
तुम किसे को ठुकरा दोगे, तो कया नतीजा निकलेगा... जिंदगी कभी रूकती नहीं हैं। खार लग जाने से तुम रुकते नहीं हो, दर्द और आत्मिक कसक के कारण तुम उसे निकाल फेकते हो। ज़हर नाग के अंदर नहीं आदमी के अंदर भी बनता हैं, तभी तो वो मारने पर उतारू हो जाता हैं। सोचो ज़िन्दगी मे सब भले लोग ही रहे तो जीवन मे बुराई का पता ही नहीं चलेगा। कौन भला हैं कौन बुरा हैं। जिंदगी के दो पहलू हैं बरखुरदार, एक दुःख, एक सुख। तुम दिमाग़ से किसे चुनते हो तुम पर लागु हैं....
रानी आज खुश थी, बहुत ही... पेट उसका आकर ले रहा था। देव को वो आज बता देना चाहती थी..
तभी मोबाइल की घंटी वजी।
निर्देशक शांता कुमार ने रानी को कया कहा ---" रानी जी, आप की अगली फ़िल्म वजूद से आपको मैंने नहीं शंकर देवदास ने निकाल दिया हैं। "
रानी हकीकत मे जैसे झटका खा गयी।
उसकी फ़िल्म प्रेम लता सुपर हिट साबित हुई थी। जो शांता कुमार के निर्देशक ने ही तैयार किया था। फ़िल्म की वाह वाह तो अथाह मिली थी। सारी कलेपीग और पैसा रानी की झोली मे ही गिरा था।
वो सोच रही थी, ख़ुशी भी थी, गम भी था, शंकर देवदास मुझे मिलने के लिए आतुर था.... ये तड़प उसकी ओर बड़ा देना चाहती थी। चाहती थी जो वो, बस यही अंजाम होना चाहिए था। पर वो ख़ुशी जो उसके अंदर एक देव के प्यार की ज़िन्दगी को किसी भी हालत मे खत्म नहीं करना चाहती थी। जो खुशियाँ रब देना चाहता हैं... पल चाहे दो पल की हो, वो तो हर हालत मे समेट लिया करो :-
मन को कुछ वो ऐसे समझा रही थी।
तभी देव ने दस्तक दी। कदमो की आहट से पता चलता था, कि वो बहुत थका सा हुआ हैं... बाडर लाइन के ऊपर उसका यूरिक एसिड था। उसने गर्म पानी किया हुआ था... रानी उसके पैर एक एक करके डबो रही थी। " हूँ आज तो बहुत खुश हो, रानी जी। " उसे सुन कर अच्छा नहीं लगा।
"रानी जी कब से हो गए, ए गुलाब के रसिया " रानी ने थोड़ा मनमुटाब किया।
"चलो फिर कुमुदनी कह देते हैं, वो भी मेरी सेवा इसी तरा करती थी ----- " रानी जैसे अर्श मे चली गयी हो।
---" देव जी तुमाहरा प्यार पाने के लिए ज़िन्दगी मुझे बेशक बूढ़ा ही कयो न करदे... आखिर मैंने तुम्हे पाना ही था... " रानी ने थोड़ा गुमान से कहा था।
देव ने सरसरी कहा-----" ज़िद्दी लड़की हो तुम "
फिर दोनों हस पड़े। टावल से रानी ने दोनों पैरो को साफ किया था।" --एक बात कहु.. तुम खुश हो जाओगे ----" रानी ने शर्माते हुए कहा।
"----हाँ कहो.... " देव ने बिस्तर पर लेटते हुए कहा।
"कैसे कहु ----" रानी ने कहा.... झिझकते हुए बोला " देव जी मै माँ बनने वाली हूँ, आपके बच्चे की। " देव एक सेकंड मे हकाबका रह गया।
फिर बोला " मजाक खूब करती हो। "
"नहीं -----" उसने उबरा हुआ पेट दिखा दिया। हम भी ख़ुशी देखेंगे।
देव मुस्करा पड़ा। हमें शादी कर लेनी चाहिए। रानी उसकी ये बात सुन कर हैरान हुई।
" ये ख़याल कयो आया। " रानी ने प्रश्न किया।
"--लोग कया कहेगे, देव ने एक आवारा लड़की से संबंध बना कर बच्चा पैदा किया। " रानी को इतनी ठेस लगी। वो रो पड़ी।
" कया मै आवारा हूँ... देव दिल से पूछ ना... " रानी जाने लगी, उसका आज इतना दिल टुटा था शायद ज़िन्दगी मे कभी भी नहीं.... प्यार से उसका विश्वास चला गया था।
" देव ये बच्चा मे जल्द गिरा दूगी। तुम कया जानो, प्यार कया होता हैं.... प्यार की हदे गुज़र जाने का शौक हैं, लेकिन अपनाने का नहीं.... बुजदिल इंसान... मैंने तुमसे प्यार करके अथाह गलती की... पर आज के बाद नहीं..."
उसने पीछे मुड़के भी नहीं देखा......
अतीत बहुत भयकर होता हैं, इसके पंने मत करेदो। किताब बंद ही अच्छी लगती हैं।
देव इतना रोयेया था... शायद अच्छा ही हुआ उसने पीछे मुड़के नहीं देखा।
एक पत्र उसने मुश्किल से रानी को लिखा था... और अमानत जानकर उसने मुंशी जी को दें दी थी। ज़ब भी हो उसे जरूर दें देना, अगर सबब लगे तो।
महीने के एडवास पैसे उसने मुंशी को एक हफ्ता न आने को कहा था। बहुत गमगीन मूड था। मुंशी कुछ भी पूछ नहीं सका था।
अगली सुबह इतनी गर्द भरी होंगी.....
तूफान जैसे आसमान पे चड़ गया हो... हवा गर्द भरी चल निकली थी। बम्बे की सड़को पे ट्रेफिक रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था... हनेरी तूफान... पत्ते इधर उधर बिखर गए थे, पेड़ो के झड़ कर। छाते खोलने भी कठिन हो गए थे। बिस्तर पर खू.. जैसे खासा हो... ये देव था, जिसका जिगर ब्लास्ट हो चूका था।
ये खबर तीन दिन बाद अखवारों मे लगी थी। कयोकि वजूद फ़िल्म पर इसका असर पड़ेगा.... हाँ पड़ा खूब पड़ा... शंकर देवदास ने माथा पकड़ लिया था... खूब पीटा था उसने।
टिकट काउंटर पर एक तरा का जीरो लग गया था।
बेमौसमी बरसात... जैसे रब भी हताश हो गया हो, देव की किस्मत पर से। इंडस्ट्री हिल गयी थी।
( चलदा)--------------------------- नीरज शर्मा
19 वा उपन्यास की किश्त आख़री होने वाली हैं....