शिज़िन को जितनी खुशी अपने घर आने पर थी उतनी ही चुभन इस बात से थी के बेला अब अपाहिज हो गई है। उसे उमर भर कोहनी बैसाखी पर चलना होगा। उसे इस तरह चलते हुए तस्सवुर कर के शिजिन का दिल फटने लगता। उसके दिल में एक ही सवाल चल रहा था के दुनिया का कोई डॉक्टर उसे ठीक कर सकता है या नहीं? चाहे कहीं का भी डॉक्टर ठीक कर दे उसे वहां ले जाऊंगा। जब भी उसके दिल में बेला के लिए चिंता छा जाती तब उसे फौरन रूमान के कहे वह अल्फ़ाज़ याद आ जाते " तुझे इश्क़ तो नहीं हो गया?"
फिर वह खुद को दिलासे देता के वह एक अकेली लड़की है और मुसीबत की साथी है इस लिए उसके लिए फिक्रमंद होना एक इंसानी फितरत है इसमें इश्क़ जैसी कोई बात नहीं है। क्या एक लड़का एक लड़की एक दूसरे की मदद और हिफ़ाज़त सिर्फ इश्क़ के नाम पर ही कर सकते हैं? ये सब बकवास है और एक ज़हनी मर्ज़ से ज़्यादा कुछ नहीं। मेरा काम है हिफाज़त करना और बेला के लिए मैं बस वोही कर रहा हूं।
वह ड्रॉइंग रूम के काउच में पड़े पड़े यही सब सोच रहा था के एक उमर दराज महिला दरवाज़े से हो कर उसके सामने आई और मोहब्बत के लहज़े से बोली :" बेटा जानी!"
शिजिन ने नज़रे उठा कर देखा तो जल्दी में उठ कर खड़ा हो गया " चची !....कैसी हैं आप?
चची नूरान ने उसका हाथ थाम कर माथे से लगाया और लरजती हुई आवाज़ में बोली :" छह साल बाद लौटे हो! बहुत इंतज़ार किया तुम्हारा पर वफ़ा की उमर हो रही थी और मुझे डर था के तुम कभी नहीं आओगे इस लिए मैं अपने वादे पर क़ायम न रह सकी और उसकी शादी कर दी! मुझे माफ करना!"
शिज़िन के चेहरे पर एक सुकून की लहर दौड़ गई और उसने मुस्कुरा कर कहा :" आप ने बिल्कुल सही किया! वफ़ा शादी से खुश तो है न?
" पहले न खुश थी और कहती थी के तुम्हारा इंतेज़ार करेगी पर मुझ पर तरस खा कर वह राज़ी हो गई! अब उसका पति उसे बहुत प्यार से रखता है इस लिए वह खुश है।"
उनके शर्मिंदगी से सराबोर चहरे को देख कर शिज़िन ने कहा :" ये तो बहुत अच्छी बात है। मैं खुश हूं के वह खुश है। आप शर्मिंदा क्यों है? आप ने मुझे सहारा दिया है आप मेरे आगे शर्मिंदा होंगी या सर झुका कर बात करेंगी तो मुझे पराया महसूस होगा!"
" देखो मैं तुम्हारे लिए पसंदीदा खाना बना कर लाई हूं!"
चची खुश हो कर टिफिन निकाल के टेबल पर रखने लगी। शिजिन उन्हें देख कर अपने पुराने वक़्त में पल भर के लिए खो सा गया जब वह कमसिन लड़का था और वफ़ा चची की फूल सी भतीजी थी जिसके मां बाप ने उसे चची नूरान को दे दिया था क्यों के चची ने अपने दो बच्चों और पति को पड़ोसी देश के बम बारी में खो दिया था। जंग में अनाथ हुए उन्हीं बच्चों में से शिजिन भी था जिस ने कम उमरी में भी चची नूरान का हाथ थामा और उन्हें जीने के लिए हौसला दिया। दोनों ने एक दूसरे को सहारे के लिए और ग़म को आंखों से बहाने के लिए अपना कंधा दिया था। जब शिज़िन ने ने आर्मी ज्वाइन किया और जवानी की सीढ़ियों पर कदम रखा तो चची ने उस से कहा था के वफ़ा जब बड़ी हो जाएगी तब वह उन दोनों की शादी कर देगी इस तरह दोनों उनके पास ही रह जाएंगे लेकिन शिज़िन देश की सेवा में मशगूल हो गया और धीरे धीरे एक दिग्गज जासूस बन गया। उसका देश विदेश जाना लगा रहता था जिसमें वह वफ़ा को अपने ज़हन में नहीं ला पाया और भूल गया के उसके इंतज़ार में किसी की जवानी और आंखें पथरा गई थीं। वह अपने ख्यालों से बाहर आया जब चची ने खाना परोस कर उसे खाने के लिए कहा। शिज़िन कुर्सी खींच कर बैठते हुए बोला :" चची, कमरे में बेला ज़ख्मी हालत में है। उसे भी अपने हाथ का खाना खिला दीजिए!"
चची कमरे की ओर हैरत से देखने लगी और फिर एक बार खामोश शिजिन को देखते हुए धीमी आवाज़ में बोली :" विदेश से बहु लाए हो क्या?
शिजिन ने उनकी ओर बिना देखे जवाब दिया :" नहीं! वह एक सिपाही है मेरे ही तरह! लड़ने में ज़ख्मी हो गई थी इस लिए मेरे घर में उसका इलाज चल रहा है।"
चची नूरान ने खुश हो कर थाली में खाना सजाया और कमरे में जाने लगी। उनके दिल में जो वफ़ा की शादी कर देने की शर्मिंदगी थी वह लड़की का नाम सुनते ही रफू चक्कर हो गई। जब की शिजिन ने कभी वफ़ा से शादी की बात को दिल में लिया ही नहीं था।
" उसे उठ कर खड़ी होने को मत कहिएगा चची"
शिजिन ने आवाज़ दे कर कहा और चची के लज़ीज़ खाने का मज़ा लेने का सोचा लेकिन वह खा तो रहा था पर स्वाद उसके दिल को वह उमंग नहीं दे पा रही थी जो कभी उनके खाने में हुआ करती थी। आज उसके दिल में एक कांटा गड़ा था के वह कैसे बेला को उसके अपाहिज होने की खबर देगा।
To be continued......