Garbha Sanskar - 13 in Hindi Women Focused by Praveen Kumrawat books and stories PDF | गर्भ संस्कार - भाग 13 - एक्टिविटीज–12

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गर्भ संस्कार - भाग 13 - एक्टिविटीज–12

प्रार्थना:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। 
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥

भावार्थ: हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन-पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें। जिस प्रकार से एक ककड़ी अपनी बेल से पक जाने के पश्चात् स्वतः की आज़ाद होकर जमीन पर गिर जाती है उसी प्रकार हमें भी इस बेल रुपी सांसारिक जीवन से जन्म मृत्यु के सभी बन्धनों से मुक्ति प्रदान कर मोक्ष प्रदान करें।

मंत्र:
ॐ ब्रह्मा मुरारि त्रिपुरान्तकारी। भानुः शशि भूमिसुतो बुधश्च। गुरुश्च शुक्रः शनि राहु केतवः। सर्वे ग्रहा शान्ति करा भवन्तु॥ 

अर्थः हे ब्रह्मा, विष्णु और महेश!
सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी ग्रह हमारे जीवन में शांति और सुख लाएँ।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारी हंसी मेरे दिल की सबसे बड़ी ताकत होगी। जब तुम पहली बार मुस्कुराओगे, तो मेरी आत्मा खुशी से भर जाएगी। मैं चाहती हूं कि तुम्हारी हर हंसी मेरे जीवन को रोशन करे। तुम्हारा हर पल मेरी खुशी का हिस्सा होगा।”

पहेली:
सिर काट दो दिल दिखाता हूँ, 
पैर काट दो आदर बना हूँ 
पेट काट दो, कुछ न बताता 
प्रेम से अपना शीश नवाता।

कहानी: आत्मा का जागरण
बहुत समय पहले की बात है, हिमालय के पास बसे एक छोटे से गांव में एक युवक रहता था जिसका नाम अर्णव था। अर्णव का जीवन भौतिक सुख-सुविधाओं में लिप्त था। वह हमेशा अपनी इच्छाओं को पूरा करने में व्यस्त रहता और कभी यह नहीं सोचता कि उसका जीवन का असली उद्देश्य क्या है।

एक दिन गांव में एक संत आए। संत ने गांव के लोगों को आत्मा और उसके जागरण के बारे में उपदेश दिया। उन्होंने कहा, “मनुष्य का जीवन केवल भौतिक सुखों तक सीमित नहीं है। आत्मा का जागरण ही जीवन का असली उद्देश्य है। जब आत्मा जागृत होती है, तो मनुष्य सच्चे सुख और शांति का अनुभव करता है।”

अर्णव ने संत के उपदेश को सुना, लेकिन वह उसे समझ नहीं पाया। उसने सोचा, “ये सब बातें मेरे जीवन में कैसे लागू होती हैं? मुझे तो सब कुछ प्राप्त है।” लेकिन संत के शब्द उसके मन में बार-बार गूंजने लगे।

कुछ दिनों बाद, अर्णव ने महसूस किया कि भौतिक वस्तुएं उसे लंबे समय तक खुशी नहीं दे रहीं। उसके मन में एक खालीपन था, जिसे वह भर नहीं पा रहा था। उसने सोचा, “क्या सच में आत्मा का जागरण मेरी समस्या का समाधान हो सकता है?”

अर्णव ने संत से मिलने का निश्चय किया। उसने संत से पूछा, “गुरुजी, आत्मा का जागरण कैसे होता है? मैं इस खालीपन से मुक्त होना चाहता हूं।”

संत मुस्कुराए और बोले, “पुत्र, आत्मा का जागरण कोई बाहरी प्रक्रिया नहीं है। यह आत्मनिरीक्षण और साधना का मार्ग है। पहले अपने मन की अशांति को समझो। ध्यान करो, अपने भीतर झांको, और जानो कि तुम कौन हो।”

अर्णव ने संत की बात मानी और ध्यान करना शुरू किया। शुरुआत में उसका मन इधर-उधर भटकता, लेकिन उसने धैर्य नहीं खोया। धीरे-धीरे, उसने महसूस किया कि उसके भीतर एक नई ऊर्जा उत्पन्न हो रही है। उसका मन शांत होने लगा है और उसे आत्मा के अस्तित्व का अनुभव होने लगा।

धीरे-धीरे, अर्णव का जीवन बदल गया। उसने भौतिक इच्छाओं को कम कर दिया और अपने जीवन का उद्देश्य समझा। अब वह अपने गांव के लोगों की मदद करने लगा, उनकी समस्याओं को सुनता और उन्हें समाधान देता। उसने महसूस किया कि आत्मा का जागरण केवल अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी होता है।

अर्णव का परिवर्तन देखकर गांव के लोग चकित रह गए। उन्होंने उससे पूछा, “तुम्हारे जीवन में इतनी शांति और सुख कैसे आया?”

अर्णव ने मुस्कुराते हुए उत्तर दिया, "जब मैंने अपनी आत्मा को जागृत किया, तो मैंने सच्चा सुख और शांति पाई। यह सुख किसी बाहरी वस्तु में नहीं, बल्कि अपने भीतर है।”

शिक्षा
आत्मा का जागरण हमें सिखाता है कि सच्चा सुख और शांति बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। आत्मनिरीक्षण और ध्यान के माध्यम से हम अपने जीवन के उद्देश्य को समझ सकते हैं और सच्चे सुख का अनुभव कर सकते हैं। जीवन में भौतिक इच्छाओं से परे आत्मा के मार्ग को समझना ही हमें पूर्णता की ओर ले जाता है।

पहेली का उत्तर : नमन
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सप्तश्लोकी गीता 
श्री भगवान ने कहा— अनुभव, प्रेमाभक्ति और साधनों से युक्त अत्यंत गोपनीय अपने स्वरूप का ज्ञान मैं तुम्हें कहता हूं, तुम उसे ग्रहण करो। 
मेरा जितना विस्तार है, मेरा जो लक्षण है, मेरे जितने और जैसे रूप, गुण और लीलाएं हैं—मेरी कृपा से तुम उनका तत्व ठीक-ठीक वैसा ही अनुभव करो। 
सृष्टि के पूर्व केवल मैं-ही-मैं था। मेरे अतिरिक्त न स्थूल था न सूक्ष्म और न तो दोनों का कारण अज्ञान। जहां यह सृष्टि नहीं है, वहां मैं-ही-मैं हूं और इस सृष्टि के रूप में जो कुछ प्रतीत हो रहा है, वह भी मैं ही हूं और जो कुछ बचा रहेगा, वह भी मैं ही हूं। 
वास्तव में न होने पर भी जो कुछ अनिर्वचनीय वस्तु मेरे अतिरिक्त मुझ परमात्मा में दो चंद्रमाओं की तरह मिथ्या ही प्रतीत हो रही है, अथवा विद्यमान होने पर भी आकाश-मंडल के नक्षत्रो में राहु की भांति जो मेरी प्रतीति नहीं होती, इसे मेरी माया समझना चाहिए। 
जैसे प्राणियों के पंचभूतरचित छोटे-बड़े शरीरों में आकाशादि पंचमहाभूत उन शरीरों के कार्यरूप से निर्मित होने के कारण प्रवेश करते भी है और पहले से ही उन स्थानों और रूपों में कारणरूप से विद्यमान रहने के कारण प्रवेश नहीं भी करते, वैसे ही उन प्राणियों के शरीर की दृष्टि से मैं उनमें आत्मा के रूप से प्रवेश किए हुए हूं और आत्म दृष्टि से अपने अतिरिक्त और कोई वस्तु न होने के कारण उन में प्रविष्ट नहीं भी हूं। 
यह ब्रह्म नहीं, यह ब्रह्म नहीं— इस प्रकार निषेध की पद्धति से और यह ब्रह्म है, यह ब्रह्म है— इस अन्वय की पद्धति से यही सिद्ध होता है कि सर्वातीत एवं सर्वस्वरूप भगवान ही सर्वदा और सर्वत्र स्थित है, वही वास्तविक तत्व है। जो आत्मा अथवा परमात्मा का तत्व जानना चाहते हैं, उन्हें केवल इतना ही जानने की आवश्यकता है।
ब्रह्माजी! तुम अविचल समाधि के द्वारा मेरे इस सिद्धांत में पूर्ण निष्ठा कर लो। इससे तुम्हें कल्प-कल्प में विविध प्रकार की सृष्टि रचना करते रहने पर भी कभी मोह नहीं होगा।

मंत्र:
अपि स्वर्णमयी लङ्का न मे लक्ष्मण रोचते। 
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।

अर्थः भले ही लंका स्वर्ण की हो, परंतु वह मुझे प्रिय नहीं है। माता और मातृभूमि स्वर्ग से भी अधिक महान हैं। 

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! हर दिन जब तुम जागो, तो उसे सकारात्मकता और उत्साह से शुरू करो। तुम जैसा सोचोगे, वैसा ही तुम्हारा दिन बनेगा। सकारात्मक सोच से तुम्हारे सामने आने वाली हर चुनौती आसान हो जाएगी। जब तुम्हारा मन सकारात्मक होगा, तो तुम्हारे आसपास का माहौल भी बेहतर हो जाएगा। मैं चाहती हूं कि तुम हर दिन एक नई उम्मीद के साथ जीओ।”

पहेली:
यदि मुझको उल्टा कर देखो 
लगता हूँ मैं नव जवान। 
कोई प्रथक नहीं रहता 
बूढ़ा, बच्चा या जवान ।

कहानी: मां की ममता का चमत्कार
एक छोटे से गांव में एक नन्ही सी बच्ची अपनी मां के साथ रहती थी। उसका नाम नंदिनी था और वह एक छोटी सी, प्यारी सी लड़की थी। जिसका हर कदम नयी आशा और नये सपने लाता था। नंदिनी की मां राधा देवी, बेहद स्नेहशील और ममतामयी थीं। राधा देवी का जीवन अपनी बेटी की खुशियों में ही बसा था। वह दिन-रात नंदिनी के लिए मेहनत करतीं, ताकि उसकी छोटी सी दुनिया में कोई कमी न हो।

नंदिनी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था। अक्सर उसे बुखार, खांसी और सर्दी-जुकाम जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता था। लेकिन उसकी मां ने कभी उसे अकेला नहीं छोड़ा। वह दिन-रात अपनी बेटी की देखभाल करतीं, उसके पास बैठतीं और उसे आराम देने के लिए तरह-तरह के नुस्खे करतीं।

एक दिन नंदिनी अचानक बहुत बीमार हो गई। बुखार बहुत तेज था और उसका शरीर कांप रहा था। राधा देवी घबराई नहीं, बल्कि उसने पहले भगवान से प्रार्थना की और फिर नंदिनी को अपने पास सुला दिया। वह रात भर अपनी बेटी के सिर पर हाथ फेरती रहीं और उसे अपनी ममता की छांव में सुलाती रहीं। वह जानती थीं कि कोई भी चमत्कार मां की ममता और आशीर्वाद से बड़ा नहीं होता।

रात को करीब दो बजे नंदिनी का बुखार और बढ़ गया। राधा देवी ने तुरन्त गांव के एक प्रसिद्ध वैद्य को बुलाया।

वैद्य ने आकर नंदिनी की जांच की और कहा, “यह बीमारी बहुत गंभीर है। इसके लिए कुछ विशेष इलाज की जरूरत है, लेकिन यह इलाज सिर्फ किसी अस्पताल में ही संभव है और वह अस्पताल बहुत दूर है। अगर इसे तुरंत ले जाया नहीं गया, तो स्थिति और खराब हो सकती है।”

राधा देवी को चिंता तो हुई, लेकिन वह ममता के संकल्प से भरी थीं। उन्होंने नंदिनी को उठाया और बिना किसी देरी के अस्पताल के लिए रवाना हो गईं। वह अकेली थीं और रास्ता लंबा था, लेकिन उनकी हिम्मत और ममता ने उन्हें रुकने नहीं दिया।

राधा देवी ने सोचा, “यह मेरा बच्चा है। मैं इसे कभी हारने नहीं दूंगी। चाहे जो भी हो। मुझे इसे बचाना है।” रास्ते में उन्होंने कभी भी थकान को महसूस नहीं होने दिया। उनका मन सिर्फ नंदिनी की तरफ था। रात भर बिना आराम किए उन्होंने रास्ते की कठिनाइयों का सामना किया।

अखिरकार सुबह के करीब राधा देवी अस्पताल पहुंची। डॉ. शिव ने नंदिनी का इलाज शुरू किया। कुछ घंटे बाद, नंदिनी की हालत में सुधार आना शुरू हुआ। डॉ. शिव ने कहा, “इस बच्ची की जान तो बच गई है, लेकिन इसकी मां की ममता ने इसे बचाया है। ऐसा लगता है कि इसने अपनी मां की शक्ति को महसूस किया तभी इसकी तबियत में अचानक सुधार हुआ।”

राधा देवी की आंखों में आंसू थे, लेकिन वह खुशी के थे। उसने भगवान का धन्यवाद किया और भगवान से प्रार्थना की कि वह हमेशा अपनी बेटी का ख्याल रखे। राधा देवी ने समझ लिया कि मां की ममता ही सबसे बड़ी ताकत है, जो किसी भी मुश्किल को पार करने की शक्ति देती है।

कुछ दिन बाद नंदिनी पूरी तरह से ठीक हो गई और राधा देवी ने राहत की सांस ली। अब उसकी बेटी बिल्कुल स्वस्थ थी। नंदिनी और राधा देवी का रिश्ता और भी मजबूत हो गया था। नंदिनी की आंखों में अपनी मां के प्रति जो विश्वास था वह अब और भी गहरा हो गया था। 

एक दिन नंदिनी ने अपनी मां से पूछा, “माँ! आपने मेरे लिए इतना कष्ट उठाया। बिना किसी थकावट के, बिना किसी शिकायत के। आपको क्या नहीं लगा कि आप भी थक सकती हैं?”

राधा देवी मुस्कराईं और कहा, “बिलकुल नहीं, बेटा। जब तक मैं जीवित हूं, तुम हमेशा मेरे लिए सबसे अहम हो। मां की ममता एक ऐसी ताकत है, जो हर मुश्किल को आसान बना देती है। तुम्हारी मुस्कान, तुम्हारी खुशी ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा इनाम है।”

नंदिनी ने सिर झुका लिया और मां के पैरों में सिर रख दिया। उसे अब पूरी तरह एहसास हो गया था कि मां की ममता का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। वह जान गई थी कि मां की ममता ही सबसे शक्तिशाली और अविश्वसनीय ताकत है।

मां की ममता ने यह सिद्ध कर दिया था कि सच्चे प्यार और विश्वास से बढ़कर कोई शक्ति नहीं होती। राधा देवी की तरह अगर हम अपने बच्चों के लिए बिना किसी स्वार्थ के अपनी पूरी ताकत लगा दें तो हम किसी भी मुश्किल का सामना कर सकते हैं और सबसे बड़ी बाधाओं को पार कर सकते हैं।

शिक्षा
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि मां की ममता और प्यार सबसे बड़ी शक्ति होती है। यह हमें किसी भी परिस्थिति का सामना करने की ताकत देता है। एक मां अपने बच्चे के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं करती और उसकी भलाई के लिए हर मुश्किल से जूझने के लिए तैयार रहती है। जीवन में यदि हम अपने प्यार और विश्वास को सही दिशा में लगाएं तो कोई भी मुश्किल हमारे सामने टिक नहीं सकती। 

पहेली का उत्तर: वायु
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प्रार्थना:
दयालु नाम है तेरा, प्रभु हम पर दया कीजे।
हरि सब तुमको कहते हैं, हमारा दुःख हर लीजे॥

विषय और भोग में निशिदिन फँसा रहता है मन मूरख।
इसे अब ज्ञान देकर, सत्य मार्ग पर लगा दीजे॥
दयालु नाम है तेरा, प्रभु हम पर दया कीजे।

तुम्हारी भूल कर महिमा, किए अपराध अति भारी।
शरण अज्ञान है तेरे, क्षमा अपराध सब कीजे॥
दयालु नाम है तेरा, प्रभु हम पर दया कीजे।

तुम्हीं माता-पिता जग के, तुम्हीं हो नाथ धन विद्या।
तुम्हीं हो मित्र सब जग के, दयाकर भक्तिवर दीजे॥
दयालु नाम है तेरा, प्रभु हम पर दया कीजे।

न चाहूँ राज-धन-वैभव, न है कुछ कामना मेरी।
रख सकूँ शुद्ध सेवाभाव, शुभ वरदान ये दीजे॥
दयालु नाम है तेरा, प्रभु हम पर दया कीजे।

तुम अन्तर्मन के भावों को, जानते हो सदा स्वामी।
यही जीने की अभिलाषा, चरणरज दास को दीजे॥
दयालु नाम है तेरा, प्रभु हम पर दया कीजे।

मंत्र:
ॐ आदित्याय च सोमाय मंगळाय बुधाय च। 
गुरु शुक्र शनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः॥

अर्थ— सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु को प्रणाम। 
आप सभी हमें शक्ति, सफलता और समृद्धि दें।

गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारे पास एक अद्भुत शक्ति है, जो तुम्हें हर चुनौती से बाहर निकाल सकती है। सकारात्मक दृष्टिकोण से तुम हर मुश्किल को आसान बना सकते हो। तुम्हारी सोच का प्रभाव तुम्हारे पूरे जीवन पर पड़ेगा और जो तुम सोचोगे वह तुम पा सकोगे। मैं चाहती हूं कि तुम कभी भी अपनी ताकत और सकारात्मकता पर संदेह ना करना।”

पहेली:
पैर नहीं पर चलती हूँ 
कभी न राह बदलती हूँ 
नाप-नाप कर चलती हूँ 
तो भी न घर से टलती हूँ।

कहानी: भाई की कुर्बानी
यह कहानी एक छोटे से गाँव के एक परिवार की है, जहाँ एक भाई और बहन रहते थे। बहन का नाम राधिका और भाई का नाम विनय था। विनय और राधिका का संबंध बहुत गहरा था, दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे। उनके माता-पिता भी बहुत ही आदर्श थे और परिवार में हर सदस्य एक-दूसरे के लिए कुर्बान रहने को तैयार था।

गाँव के बाहर एक दूर जंगल में एक शेर ने लोगों को परेशान करना शुरू कर दिया था। यह शेर अक्सर रात को गाँव के पास आता और मवेशियों को अपना शिकार बना लेता। गाँव वाले डरे-सहमे रहते थे, लेकिन कोई भी उसकी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार नहीं था। धीरे-धीरे इस शेर ने गाँव के आसपास के इलाके में आतंक फैला दिया था।

एक दिन गाँव के मुखिया ने पंचायत बुलाई और इस समस्या का समाधान करने के लिए एक योजना बनाई। पंचायत में सभी ने मिलकर निर्णय लिया कि जो भी इस शेर को मार सकेगा, उसे पूरे गाँव की ओर से पुरस्कार दिया जाएगा। यह निर्णय लिया गया कि गाँव के युवा इसे निपटाने के लिए एक साथ कड़ी मेहनत करेंगे लेकिन इसके साथ ही, पंचायत ने यह भी कहा कि इसे मारने के लिए किसी की जान जोखिम में डालनी पड़े तो वह कष्ट सहेगा।

राधिका और विनय अपने परिवार के साथ पंचायत में बैठे हुए थे। विनय हमेशा से साहसी था, जबकि राधिका बहुत सोच-समझकर निर्णय लेने वाली थी। विनय ने पंचायत के निर्णय को सुना और बिना एक पल की देर किए उठ खड़ा हुआ। उसने कहा, “मैं इस शेर का सामना करूंगा और उसे गाँव के लिए मारकर लाऊँगा।”

राधिका चौंकी और उसके मन में डर भर गया। वह जानती थी कि विनय का साहस उसे खतरे में डाल सकता है, लेकिन उसने कभी भी अपने भाई को ऐसा कदम उठाते हुए नहीं देखा था। राधिका ने विनय से कहा, “भैया, तुम ये क्या कह रहे हो? यह शेर बहुत खतरनाक है, तुम अपनी जान क्यों खतरे में डाल रहे हो?”

विनय ने राधिका के आंसुओं को देख कर धीरे से मुस्कराते हुए कहा, “राधिका, इस गाँव की शांति और सुरक्षा के लिए हमें कुछ न कुछ बलिदान देना पड़ेगा और मुझे यकीन है कि मैं इस शेर को हराकर ही लौटूंगा। तुम्हारे आंसू मुझे कभी कमजोर नहीं करेंगे, क्योंकि मेरा उद्देश्य बहुत बड़ा है।”

विनय के शब्दों में कुछ ऐसा था जो राधिका को शांत करता था। वह जानती थी कि विनय अपने निर्णय पर अडिग रहेगा। उसने विनय को आशीर्वाद देते हुए कहा, “तुम्हारा साहस ही हमारे गाँव की ताकत है। अगर तुम खुद को खतरे में डालने के लिए तैयार हो, तो मैं भी तुम्हारे साथ हूं।”

विनय जंगल की ओर चल पड़ा। गाँव वाले उसे आशीर्वाद देते हुए उसके साहस को सलाम करते थे। शेर को मारने के लिए उसने अपनी पूरी तैयारी की। उसकी आँखों में एक सच्चे योद्धा की चमक थी और उसका दिल अपने गाँव की सुरक्षा के लिए धड़क रहा था।

जंगल में कई दिन बिताने के बाद विनय ने शेर के पैरों के निशान देखे। उसकी छाया और आवाजें उसके आसपास गूंज रही थीं लेकिन विनय ने अपनी दृढ़ता बनाए रखी। शेर अचानक विनय के सामने आया, उसकी आँखें रौशनी से चमक रही थीं और उसकी दहाड़ से जंगल गूंज उठा। विनय ने अपनी तलवार उठाई और पूरी ताकत से शेर की ओर बढ़ा।

विनय और शेर के बीच भयंकर लड़ाई शुरू हो गई। शेर ने अपनी पूरी ताकत से विनय पर हमला किया लेकिन विनय ने साहस और धैर्य के साथ उसका सामना किया। वह जानता था कि यदि उसने डर दिखाया, तो शेर उसे मार डालेगा लेकिन उसकी आँखों में अपने गाँव की रक्षा का संकल्प था। 

घंटों की कड़ी लड़ाई के बाद विनय ने शेर को हराया। वह ज़ख्मी हालत में गिर पड़ा लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने शेर को मारने के बाद अपने गाँव की ओर कदम बढ़ाए। उसकी आँखों में ताजगी और गर्व था, क्योंकि उसने अपने परिवार, अपने गाँव, और अपने रिश्तेदारों के लिए अपनी जान की कुर्बानी दी थी।

गाँव में जब लोगों ने यह सुना कि विनय शेर को मार कर आया है तो सभी ने उसे बहादुरी और साहस के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया। राधिका को अपने भाई की बहादुरी पर गर्व था, लेकिन वह कभी नहीं भूल पाई कि यह साहस और संघर्ष उस व्यक्ति के कारण संभव हुआ था जिसे वह सबसे ज्यादा प्यार करती थी।

शिक्षा
इस कहानी से यह सिखने को मिलता है कि जब हमें अपने परिवार, समाज या किसी बड़े उद्देश्य के लिए बलिदान देना होता है तो हमें अपने डर को दूर करके साहस और समर्पण के साथ आगे बढ़ना चाहिए। विनय की तरह हमें अपने कर्तव्यों को निभाने में कभी पीछे नहीं हटना चाहिए क्योंकि जीवन में अगर हमें दूसरों की मदद करनी हो या किसी के लिए कुछ करना हो, तो हमें अपनी कुर्बानी देने में कोई संकोच नहीं करना चाहिए। साहस और समर्पण से हम किसी भी चुनौती का सामना कर सकते हैं।

पहेली का उत्तर : घड़ी
======================= 92

प्रार्थना:
प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुंडरीक, व्यास, अंबरीश, शूक, शौनक, भीष्म, दाल्भ्य, रूक्मांगद, अर्जुन, वशिष्ठ और विभीषण आदि इन परम पवित्र वैष्णवो का मै स्मरण करता हूं।
वाल्मीकि, सनक, सनंदन, तरु, व्यास, वशिष्ठ, भृगु, जाबाली, जमदग्नि, कच्छ, जनक, गर्ग, अंगिरा, गौतम, मांधाता, रितुपर्ण पृथु, सगर, धन्यवाद देने योग्य दिलीप और नल, पुण्यात्मा युधिष्ठिर, ययाति और नहुष ये सब हमारा मंगल करें।

मंत्र:
ॐ पृथ्वी शान्तिरापः शान्तिरग्निः शान्तिः। 
वायुः शान्तिर्ब्रादित्यः शान्तिर्चन्द्रमाः शान्तिः। 
नक्षत्राणि शान्तिरापः शान्तिः।
सर्वं शान्तिः शान्तिरेव शान्तिः॥

अर्थ— पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश में शांति हो। 
सूर्य, चंद्रमा और तारों में शांति हो। 
सभी तत्वों में शांति बनी रहे।

गर्भ संवाद:
“तुम्हारे आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच से तुम हर लक्ष्य को प्राप्त करोगे। जब तुम खुद पर विश्वास करते हो, तो कोई भी मुश्किल तुम्हें नहीं हरा सकती। मैं जानती हूं कि तुम अपनी कड़ी मेहनत और सकारात्मक दृष्टिकोण से हर सफलता प्राप्त करोगे। तुम्हारा आत्मविश्वास तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति होगी।”

पहेली:
काला हूँ, कलूटा हूँ, 
हलवा पूरी खिलाता हूँ।

कहानी: हर दिन एक अवसर है
यह कहानी एक छोटे से शहर के एक युवा लड़के की है, जिसका नाम आकाश था। आकाश एक साधारण परिवार से था और वह अपनी कड़ी मेहनत और ईमानदारी के लिए जाना जाता था। उसके मातापिता उसे अच्छे संस्कार और शिक्षा देने में लगे रहते थे। हालांकि, आकाश को हमेशा यही लगता था कि उसकी जिंदगी में कुछ कमी है। वह कुछ बड़ा करना चाहता था, लेकिन रास्ता उसे सही से नहीं मिल पा रहा था।

आकाश का सपना था कि वह एक दिन बड़ा आदमी बनेगा, और अपनी मेहनत से दुनिया को अपनी पहचान दिखाएगा। लेकिन उसका सपना कभी पूरा नहीं हो पा रहा था। उसे लगता था कि शायद वह किसी ऐसे जादू के इंतजार में है, जो उसे रातोंरात सफलता दिला दे।

आकाश का एक अच्छा दोस्त था, जिसका नाम अर्जुन था। अर्जुन हमेशा आकाश को प्रेरित करता रहता था, लेकिन आकाश उसे कभी गंभीरता से नहीं लेता था। अर्जुन एक सरल और शांत लड़का था, जो हमेशा अपने काम पर ध्यान देता था। एक दिन, जब आकाश और अर्जुन एक साथ बैठकर बातें कर रहे थे, आकाश ने अर्जुन से कहा, “मुझे लगता है कि कुछ विशेष होना चाहिए। मैं बार-बार कोशिश करता हूँ, लेकिन मुझे कभी सफलता नहीं मिलती। लगता है जैसे सब कुछ बेकार है।”

अर्जुन मुस्कुराया और फिर उसने कहा, “आकाश, क्या तुम जानते हो कि हर दिन एक नया अवसर होता है? हम में से बहुत से लोग सोचते हैं कि सफलता एक दिन आएगी, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि सफलता का रास्ता रोज़ की मेहनत से बनता है। तुम्हे जो चाहिए, वह तुम्हारे सामने ही है, तुम्हें बस उसे पहचानने की जरूरत है।” आकाश थोड़ी देर चुप रहा और फिर उसने पूछा, “क्या तुम मुझे इसका मतलब समझा सकते हो?”

अर्जुन ने कहा, “आकाश, सफलता किसी खास दिन पर नहीं आती। यह हर दिन की मेहनत का परिणाम होती है। हर सुबह जब तुम उठते हो तो तुम्हारे पास एक नया मौका होता है। उस दिन को तुम किस तरह से उपयोग करते हो, यही तुम्हारी सफलता का मार्ग बनाता है।”

आकाश की आँखों में एक चमक सी आ गई। उसने महसूस किया कि अर्जुन की बात में कुछ तो खास है। आकाश जानता था कि वह मेहनत करता है लेकिन शायद अब तक उसने अपने हर दिन को उतने अच्छे से उपयोग नहीं किया था जितना करना चाहिए था।

अर्जुन ने उसे एक उदाहरण दिया, “तुम सोचो, अगर तुम्हें हर दिन अपनी छोटी-छोटी आदतों को सुधारने का अवसर मिलता है, तो क्या होगा? जैसे अगर तुम हर दिन एक घंटा पढ़ाई करो, तो एक साल में तुम्हारी ज्ञान की स्थिति कितनी बढ़ जाएगी।”

आकाश अब पूरी तरह से समझ चुका था। उसने निर्णय लिया कि वह हर दिन को एक नए अवसर के रूप में देखेगा और उस अवसर का पूरा उपयोग करेगा। उसने सोचा कि अगर वह हर दिन अपनी छोटी-छोटी आदतों में सुधार लाएगा, तो वह निश्चित रूप से एक दिन अपने लक्ष्य तक पहुँच जाएगा।

अर्जुन की बातों को दिल में बैठाकर आकाश ने अपनी दिनचर्या को बदलना शुरू किया। उसने अपनी सुबह को व्यवस्थित किया। नियमित रूप से पढ़ाई करने लगा और अपने समय का सही उपयोग करने की कोशिश की।

पहले कुछ दिन उसके लिए कठिन थे लेकिन धीरे-धीरे वह इस नए जीवन के साथ सामंजस्य बैठाने लगा। उसे यह एहसास हुआ कि सफलता किसी खास दिन पर नहीं आती बल्कि यह एक प्रक्रिया है जो हर दिन की मेहनत और सुधार से बनती है।

कुछ महीनों बाद आकाश को अपनी मेहनत का फल मिलना शुरू हो गया। उसकी पढ़ाई में सुधार हुआ। उसके आत्मविश्वास में वृद्धि हुई और उसने अपनी मंजिल को करीब महसूस किया। एक दिन, आकाश ने अपनी पहली नौकरी प्राप्त की, जो उसे उसकी मेहनत और समर्पण के कारण मिली थी। वह समझ चुका था कि सफलता के लिए किसी विशेष दिन का इंतजार नहीं करना चाहिए बल्कि हर दिन को एक नए अवसर के रूप में स्वीकार करना चाहिए।

एक दिन आकाश ने अर्जुन से कहा “तुम सही थे, अर्जुन! मुझे समझ में आ गया कि सफलता का रास्ता हर दिन की मेहनत से तय होता है। अब मुझे यह महसूस होता है कि हर सुबह मेरे पास एक नया अवसर होता है और मैं इसे पूरी तरह से अपनाने के लिए तैयार हूँ।” अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा, “आकाश, अब तुम सही रास्ते पर हो। सफलता हमेशा उन लोगों के पास जाती है जो अपनी मेहनत और धैर्य के साथ हर दिन अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहते हैं।”

शिक्षा
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि सफलता का कोई जादू नहीं होता, बल्कि यह हर दिन की मेहनत, समय का सही उपयोग और अपने लक्ष्य के प्रति समर्पण से प्राप्त होती है। हमें हर दिन को एक नया अवसर समझना चाहिए और उस दिन को अपने जीवन में सुधार लाने के लिए पूरी तरह से उपयोग करना चाहिए। अगर हम अपनी छोटी-छोटी आदतों को सुधारने की कोशिश करें, तो एक दिन हमें बड़ी सफलता जरूर मिलेगी।

पहेली का उत्तर : कढ़ाई
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प्रार्थना:
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥

भावार्थ– जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की है और जो श्वेत वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली सरस्वती हमारी रक्षा करें ॥1॥

ॐ सहनाववतु सहनौ भुनक्तु। सहवीर्यं करवावहै। तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै॥ 
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः

भावार्थ– ईश्वर हम दोनों (गुरू एवं शिष्य) की रक्षा करें! हम दोनों का पोषण करें! हम दोनों पूर्ण शक्ति के साथ कार्यरत रहें! हम तेजस्वी विद्या को प्राप्त करें! हम कभी आपस में द्वेष न करें ! सर्वत्र शांति रहे!

ॐ असतो मा सद्गमय।।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।।
मृत्योर्मामृतं गमय।।
ॐ शांतिः शांतिः शांतिः।।

भावार्थ– हे ईश्वर! हमको असत्य से सत्य की ओर ले चलो। अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु से अमरता के भाव की ओर ले चलो।

मंत्र:
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले। 
गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम्॥

अर्थ— भगवान शिव की जटाओं से बहती जलधारा पवित्रता का प्रतीक है। उनकी गले में लटकी हुई सर्प माला उनके अद्वितीय रूप को दर्शाती है।

गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! जीवन में कभी भी ऐसी परिस्थितियां आ सकती हैं जब तुम थककर बैठ जाओ लेकिन तुम्हारी सकारात्मक ऊर्जा तुम्हें फिर से उठाकर आगे बढ़ने की शक्ति देगी। तुम्हारी यह शक्ति तुम्हें हमेशा मुस्कुराते हुए हर कठिनाई का सामना करने में मदद करेगी। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा उत्साह और आत्मविश्वास से भरे रहो।”

पहेली:
लिखता हूँ पर पैन नहीं, 
चलता हूँ पर गाड़ी नहीं, 
टिक-टिक करता हूँ, 
पर घड़ी नहीं।

कहानी: मंजिल मिलेगी जरूर
यह कहानी एक छोटे से शहर के एक लड़के राहुल की है। राहुल एक गरीब परिवार से था और उसके पास ज्यादा संसाधन नहीं थे लेकिन उसमें कुछ खास था—उसका सपना और उसकी मेहनत। वह हमेशा यही सोचता था कि अगर उसे अपनी मंजिल तक पहुंचना है, तो उसे कड़ी मेहनत करनी होगी।

राहुल के माता-पिता दोनों ही साधारण काम करते थे लेकिन वे हमेशा राहुल को अच्छी शिक्षा देने के लिए संघर्ष करते रहते थे। उनकी मेहनत और संघर्ष राहुल के लिए प्रेरणा का स्रोत थे। वह अपनी पढ़ाई में भी पूरी तरह से समर्पित था। लेकिन एक समस्या थी राहुल को लगता था कि वह अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाएगा। वह अक्सर सोचता था कि उसके पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं और वह कभी भी अपने सपनों को पूरा नहीं कर पाएगा।

एक दिन, जब राहुल अपने स्कूल के बगीचे में बैठकर सोच रहा था। तभी उसकी मुलाकात उसके गुरु श्रीराम से हुई। श्रीराम एक साधू थे जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी लोगों को शिक्षा देने और उनके जीवन को बेहतर बनाने में समर्पित की थी। श्रीराम ने राहुल को देखा और उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें देखीं। उन्होंने राहुल से पूछा, “क्या हुआ, बेटा? तुम्हारे चेहरे पर इतनी चिंता क्यों है?”

राहुल ने कहा, “गुरुजी, मुझे लगता है कि मैं कभी भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाऊंगा। मेरे पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं और रास्ते में बहुत सारी मुश्किलें हैं।”

श्रीराम मुस्कुराए और राहुल से कहा, “राहुल, तुम्हारे रास्ते में मुश्किलें तो आएंगी लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि तुम्हें हार मान लेनी चाहिए। जिंदगी में हर किसी को मुश्किलों का सामना करना पड़ता है, लेकिन अगर तुम ठान लो कि तुम अपनी मंजिल तक पहुंचोगे, तो कोई भी ताकत तुम्हें रुकने नहीं देगी।”

श्रीराम ने राहुल को एक छोटी सी कहानी सुनाई: “एक बार एक बहुत ही मेहनती लड़का था, जिसका अपने गांव के सबसे ऊंचे पहाड़ पर चढ़ने का सपना था। लोग उसे कहते थे कि यह असंभव है, लेकिन वह लड़का हमेशा यही कहता था, “अगर मैं ठान लूंगा, तो मंजिल मिलेगी जरूर।” उसने दिन-रात मेहनत की, कठिन रास्तों पर यात्रा की, और अंततः वह पहाड़ चढ़ने में सफल हुआ। उसकी मेहनत ने उसे उस पहाड़ की चोटी तक पहुंचा दिया और उसने साबित कर दिया कि अगर कोई ठान ले तो कोई भी मुश्किल उसे उसकी मंजिल तक पहुंचने से रोक नहीं सकती।”

राहुल ने गुरुजी की बातों को ध्यान से सुना और अपने दिल में ठान लिया कि अब वह अपनी मंजिल तक जरूर पहुंचेगा, चाहे रास्ते में जितनी भी मुश्किलें आएं।

उस दिन के बाद राहुल ने अपनी पूरी मेहनत की और ईमानदारी से अपनी पढ़ाई में लग गया। उसने खुद को पूरी तरह से अपने लक्ष्य की ओर समर्पित कर दिया। वह जानता था कि मुश्किलें आएंगी, लेकिन अगर उसने मेहनत करना जारी रखा तो एक दिन वह अपनी मंजिल तक जरूर पहुंचेगा।

कुछ सालों बाद राहुल ने अपनी कड़ी मेहनत के बल पर अपनी पढ़ाई पूरी की और एक अच्छी नौकरी प्राप्त की। वह अब उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा बन चुका था जो यह मानते थे कि गरीबी और संसाधनों की कमी के कारण वे अपने सपनों को पूरा नहीं कर सकते। राहुल का उदाहरण यह साबित करता था कि अगर किसी इंसान का मन दृढ़ हो और वह मेहनत करता रहे तो उसे अपनी मंजिल जरूर मिलती है।

शिक्षा
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि हमारी मंजिल तक पहुंचने का रास्ता हमेशा आसान नहीं होता। रास्ते में बहुत सारी कठिनाइयाँ और मुश्किलें आती हैं, लेकिन अगर हमारी मेहनत और आत्मविश्वास मजबूत हो, तो हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। हमें यह समझना चाहिए कि मेहनत, ईमानदारी और विश्वास से हम अपनी मंजिल तक जरूर पहुंच सकते हैं। अगर हम ठान लें, तो कोई भी शक्ति हमें हमारी मंजिल तक पहुंचने से रोक नहीं सकती।

पहेली का उत्तर: टाइप राइटर।
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प्रार्थना:
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे।।
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे।।
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे ॥ १ ॥ 
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥२॥
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..

मंत्र:
ॐ देवी महागौरी च विद्महे। 
शिवप्रिया धीमहि। 
तन्नो गौरी प्रचोदयात्॥

अर्थ– हे मां गौरी! आप शिव की प्रिय हैं। हम आपको जानें, आपका ध्यान करें और आपकी कृपा प्राप्त करें।

गर्भ संवाद 
“मेरे बच्चे! तुम्हारी मुस्कान मेरी जिंदगी की सबसे बड़ी खुशी होगी। मैं तुम्हारी हर हंसी और खुशी का हिस्सा बनना चाहती हूं। तुम मेरे जीवन का सबसे अनमोल हिस्सा हो।”

पहेली:
एक गुफा और बतीस चोर, 
बतीस रहते है तीन और, 
बारह घंटे करते है काम, 
बाकी वक्त करे काम।

कहानी: ध्यान की शक्ति
बहुत समय पहले, एक राजा था जिसका नाम विवेकाधिप था। वह अपने राज्य में बहुत प्रसिद्ध था क्योंकि वह न्यायप्रिय, विद्वान और प्रजा का ध्यान रखने वाला शासक था। लेकिन उसके मन में हमेशा एक बेचैनी रहती थी। वह दिन-रात अपने राज्य के मामलों में उलझा रहता और शांति की खोज करता।

एक दिन, एक वृद्ध संत राजा के दरबार में आए। संत की आंखों में गहरी शांति थी, और उनका चेहरा एक अद्भुत तेज से दमक रहा था। राजा ने संत से पूछा, “महाराज, आप इतने शांत और सुखी कैसे दिखते हैं? मुझे अपनी इस बेचैनी से मुक्ति कैसे मिलेगी?” 

संत ने मुस्कुराते हुए कहा, “राजन, शांति और सुख किसी बाहरी चीज में नहीं, बल्कि ध्यान की शक्ति में छिपे हैं। यदि आप अपने मन को स्थिर कर लें और ध्यान का अभ्यास करें, तो आपकी बेचैनी स्वतः समाप्त हो जाएगी।”

राजा ने संत से ध्यान का महत्व समझाने की इच्छा जताई। संत ने कहा, “ध्यान का अर्थ है अपने मन को वर्तमान में केंद्रित करना, विचारों को शांत करना और अपनी आत्मा से जुड़ना। यह आपकी समस्याओं का समाधान और आपके भीतर छिपे ज्ञान का स्रोत है।”

राजा ने संत के मार्गदर्शन में ध्यान करना शुरू किया। शुरुआत में उसका मन कई विचारों से भटकता रहा। हर बार जब वह ध्यान करता, तो उसे अपने राज्य के मामलों की चिंता सताती। लेकिन संत ने उसे धैर्य रखने और अपने ध्यान को नियमित बनाए रखने की सलाह दी।

कुछ महीनों के अभ्यास के बाद, राजा ने महसूस किया कि उसका मन शांत होने लगा है। उसकी सोच स्पष्ट हो रही थी, और वह छोटी-छोटी बातों पर परेशान होना बंद कर चुका था। ध्यान के माध्यम से उसने अपने भीतर की शक्ति को महसूस किया।

एक दिन राजा के राज्य में बड़ा संकट आया। पड़ोसी राज्य ने आक्रमण की धमकी दी। दरबार के मंत्री और सैनिक भयभीत हो गए। लेकिन राजा शांत था। उसने अपनी सोच की स्पष्टता और ध्यान की शक्ति का उपयोग करते हुए एक कुशल योजना बनाई। वह युद्ध में सफल हुआ, और पड़ोसी राज्य ने उसकी बुद्धिमत्ता और नेतृत्व की प्रशंसा की।

युद्ध के बाद, राजा ने प्रजा को संबोधित करते हुए कहा, “ध्यान की शक्ति ने मुझे इस संकट का सामना करने का साहस और समाधान खोजने की बुद्धि दी। यह केवल एक साधना नहीं, बल्कि जीवन जीने का मार्ग है।”

धीरे-धीरे, राजा ने ध्यान का संदेश पूरे राज्य में फैलाया। प्रजा ने भी ध्यान का अभ्यास करना शुरू किया।

इससे न केवल राज्य में शांति और समृद्धि आई, बल्कि लोगों का जीवन भी पहले से अधिक सुखद और सरल हो गया।

शिक्षा
ध्यान की शक्ति हमें मानसिक शांति, स्पष्टता और समस्याओं का समाधान खोजने की क्षमता देती है। यह हमारे भीतर छिपी आत्मिक ऊर्जा को जागृत करता है और जीवन को सरल, सुखद और उद्देश्यपूर्ण बनाता है। ध्यान का नियमित अभ्यास हर परिस्थिति में सफलता और शांति की कुंजी है।

पहेली का उत्तर: दांत 
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प्रार्थना:
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे।।
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे।।
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे ॥ १ ॥ 
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥२॥
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..

मंत्र:
वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

अर्थः हे वक्रतुण्ड गणेश! आप विशाल शरीर वाले और सूर्य के समान तेजस्वी हैं। हमारे सभी कार्य बिना विघ्न के पूरे करें।

गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारे सपने सच होंगे, क्योंकि तुम्हारी सोच सकारात्मक है। तुम्हारा हर सपना तुम्हारे आत्मविश्वास और मेहनत से साकार होगा। जब तुम विश्वास के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ोगे तो कोई भी रुकावट तुम्हारे रास्ते में नहीं आएगी। मैं चाहती हूं कि तुम हर दिन अपने सपनों को सच करने के लिए एक कदम और आगे बढ़ाओ।”

पहेली:
चलने को तो चलता हूँ, 
गर्मी में सुख पहुंचाता हूँ। 
पैर भी हैं मेरे तीन, 
मगर आगे बढ़ नहीं पाता हूँ ।।

कहानी: गुरु पूर्णिमा का आशीर्वाद
गुरु पूर्णिमा का दिन विशेष रूप से गुरु के सम्मान में मनाया जाता है। यह दिन उस रिश्ते को श्रद्धा और आभार के साथ मनाने का है, जो गुरु और शिष्य के बीच होता है। यह कहानी एक छोटे से गाँव के एक युवा लड़के की है, जिसका नाम मोहन था। मोहन एक साधारण लड़का था, लेकिन उसकी आँखों में बड़े सपने थे।

मोहन का सपना था कि वह एक दिन बड़ा आदमी बनेगा और समाज में कुछ अच्छा करेगा। लेकिन वह जानता था कि इसके लिए उसे कड़ी मेहनत करनी होगी और सही दिशा में मार्गदर्शन चाहिए था। वह बहुत समय से सोच रहा था कि उसे अपने सपनों को पूरा करने के लिए एक अच्छे गुरु की आवश्यकता है, जो उसे सही रास्ता दिखा सके।

गुरु की तलाश करते हुए मोहन ने कई साल बिताए। वह कई शहरों में गया। कई आश्रमों और गुरुकुलों में गया लेकिन उसे वह गुरु नहीं मिला जिसे वह ढूंढ रहा था। एक दिन, मोहन एक बहुत ही दूर के गाँव में गया जहाँ एक साधू बाबा रहते थे। यह साधू बाबा उस गाँव के सबसे प्रतिष्ठित गुरु माने जाते थे। मोहन ने बाबा के पास जाकर उनसे ज्ञान लेने का निश्चय किया।

जब मोहन साधू बाबा के पास पहुँचा, तो बाबा ने उसे अपनी ओर देखा और मुस्कुराए। उन्होंने मोहन से पूछा, “तुम क्या चाहते हो, बेटे ?”

मोहन ने कहा, “गुरुजी, मुझे अपने जीवन का उद्देश्य समझ में नहीं आ रहा है। मैं जानता हूं कि मुझे बहुत कुछ करना है, लेकिन मुझे रास्ता नहीं मिल रहा है।”

साधू बाबा ने मोहन को ध्यान से सुना और फिर कहा, “तुम्हारे खुद के अंदर उत्तर छुपे हैं। मैं तुम्हें एक छोटा सा अनुभव देना चाहता हूँ। तुम हर दिन, गुरु पूर्णिमा तक एक छोटा सा कार्य करो और मुझे परिणाम बताओ।”

मोहन ने गुरु की बात मानी और हर दिन काम करने लगा। बाबा ने उसे यह सिखाया कि जीवन में काम करने की प्रेरणा और उद्देश्य अपने अंदर से आती है और गुरु का कार्य केवल उसे सही दिशा दिखाना है।

गुरु पूर्णिमा के दिन, मोहन ने देखा कि वह अपने कार्य में न केवल सफलता प्राप्त कर चुका है, बल्कि उसके अंदर एक नई ऊर्जा और उद्देश्य आ गया है। अब उसे अपने जीवन का मार्ग स्पष्ट रूप से दिख रहा था। उसने गुरु के प्रति आभार व्यक्त किया और समझा कि असली गुरु वह होता है, जो हमें खुद के अंदर छुपे हुए उत्तरों को पहचानने में मदद करता है।

शिक्षा
गुरु पूर्णिमा का दिन हमें यह सिखाता है कि गुरु का महत्व सिर्फ ज्ञान देने में नहीं, बल्कि हमें अपने अंदर की शक्ति और दिशा को पहचानने में है। गुरु हमें खुद से जुड़ने और हमारे भीतर छुपी हुई संभावनाओं को उजागर करने का मार्ग दिखाता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि सही गुरु के मार्गदर्शन से हम अपनी मंजिल तक पहुँच सकते हैं।

पहेली का उत्तर : पंखा
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प्रार्थना:
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ

हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ

तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
हम है अकेले, हम है अधूरे
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ

मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी
वेदों की भाषा, पुराणों की बानी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ

तू श्वेतवर्णी, कमल पर विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
मन से हमारे मिटाके अँधेरे
हमको उजालों का संसार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ

मंत्र:
पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप। 
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सूरभूप॥

अर्थ– हे संकट मोचन पवन कुमार! आप आनंद मंगलों के स्वरूप हैं। हे देवराज! आप श्रीराम, सीता जी और लक्ष्मण सहित मेरे हृदय में निवास कीजिए।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे, तुम्हारे भीतर अनंत संभावनाएं हैं, जो सिर्फ तुम्हारी सकारात्मक सोच और मेहनत से ही सामने आ सकती हैं। जब तुम सकारात्मक दृष्टिकोण से सोचते हो, तो तुम्हारे सामने हर अवसर खुलता है। तुम जिस दिशा में कदम बढ़ाते हो, वहां सफलता तुम्हारे पीछे आती है। मैं चाहती हूं कि तुम अपनी शक्ति को पहचानों और हर दिन को एक नए अवसर के रूप में जियो।”

पहेली:
धरती में मैं पैर छिपाता, 
आसमान में शीश उठाता। 
हिलता पर कभी न चल पाता, 
पैरों से हूँ भोजन खाता 
क्या नाम है मेरे भ्राता।

कहानी: भाईचारे की शक्ति
बहुत समय पहले, एक गांव में चार भाई रहते थे। वे आपस में बहुत झगड़ालू थे। हर छोटी-छोटी बात पर उनका विवाद हो जाता। एक दिन उनके पिता, जो गांव के सबसे सम्मानित बुजुर्ग थे, ने उनकी इस आदत से परेशान होकर उन्हें एक महत्वपूर्ण सीख देने का निर्णय लिया।

पिता ने चारों भाइयों को बुलाया और उन्हें एक-एक लकड़ी का टुकड़ा दिया। उन्होंने कहा, “इसे तोड़ो।” सभी भाइयों ने आसानी से अपनी लकड़ी तोड़ दी। फिर पिता ने चार लकड़ियों को एक साथ बांधकर उन्हें दिया और कहा, “अब इसे तोड़ो” 

चारों भाइयों ने अपनी पूरी ताकत लगा दी, लेकिन लकड़ियों का बंडल नहीं टूटा वे हांफने लगे और हार मानकर अपने पिता की ओर देखने लगे।

पिता मुस्कुराते हुए बोले, “देखो, जब तुम अकेले होते हो, तो कोई भी तुम्हें आसानी से तोड़ सकता है, जैसे इन लकड़ियों को। लेकिन जब तुम एक साथ होते हो, तो तुम्हें कोई नहीं तोड़ सकता। भाईचारे में शक्ति है। यदि तुम एकजुट रहोगे, तो कोई भी संकट तुम्हें नहीं हरा सकेगा।”

उनके पिता की बात भाइयों के दिल में उतर गई। उन्होंने महसूस किया कि आपस के झगड़ों ने उन्हें कमजोर बना दिया था। उन्होंने वादा किया कि वे अब से एक-दूसरे का साथ देंगे और कभी आपस में नहीं लड़ेंगे।

कुछ महीनों बाद, गांव में एक बड़ा संकट आया। पड़ोसी गांव के लोगों ने उनके गांव पर आक्रमण करने की योजना बनाई। चारों भाइयों ने मिलकर गांव वालों को संगठित किया और आक्रमणकारियों के खिलाफ योजना बनाई। उनके भाईचारे और एकता ने गांव को बचा लिया।

उस दिन से चारों भाई पूरे गांव के लिए एक मिसाल बन गए। उन्होंने न केवल अपने परिवार, बल्कि पूरे गांव को सिखाया कि भाईचारे और एकता की ताकत हर समस्या का समाधान है।

शिक्षा
भाईचारे में अपार शक्ति होती है। जब हम एकजुट रहते हैं, तो कोई भी मुश्किल या संकट हमें हरा नहीं सकता। आपसी प्रेम और सहयोग जीवन को मजबूत बनाते हैं और हर चुनौती का सामना करने की ताकत देते हैं। हमें हमेशा अपने रिश्तों की कद्र करनी चाहिए और एक-दूसरे का साथ देना चाहिए।

पहेली का उत्तर : पेड़
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प्रार्थना:
हे बुद्धिदाता श्रीगणेश, मुझे सदा सद्बुद्धि प्रदान कीजिए। हे विघ्नहर्ता, अपने पाश से मेरे सर्व ओर सुरक्षा कवच निर्मित कीजिए और मेरे जीवन में आने वाले सर्व संकटों का निवारण कीजिए।

हे मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम, मेरा जीवन भी आप ही की भांति आदर्श बने, इस हेतु आप ही मुझ पर कृपा कीजिए।

हे बजरंग बली, आपकी कृपा से निर्भयता, अखंड सावधानता, दास्यभाव आदि आपके गुण मुझमें भी आने दीजिए।

हे महादेव, आपकी ही भांति मुझमें भी वैराग्यभाव निर्मित होने दीजिए।

हे जगदंबे माता, मां की ममता देकर आप मुझे संभालिए। आपकी कृपादृष्टि मुझ पर निरंतर बनी रहे और आप मेरी सदैव रक्षा कीजिए।

मंत्र:
उद्यमेन हि सिद्ध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः।।

अर्थः उद्योग (परिश्रम) से ही कार्य सिद्ध होते हैं, केवल इच्छाओं से नहीं। सोए हुए शेर के मुंह में मृग स्वयं नहीं आते। 

गर्भ संवाद
"तुम्हारी सकारात्मकता और शांति हर परिस्थिति में तुम्हारा मार्गदर्शन करेगी। जब भी कठिनाई आएगी, तुम्हारी सोच और शांति तुम्हें सही रास्ता दिखाएगी। तुम अपनी ऊर्जा से न सिर्फ खुद को, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करोगे। तुम्हारे भीतर यह शक्ति है कि तुम हर मुश्किल को सकारात्मकता और शांति से पार कर सको।"

पहेली:
लाल-लाल आँखे, लम्बे-लम्बे कान 
रुई का फुहासा, बोलो क्या है उसका नाम ?

कहानी: हर सुबह नई शुरुआत
एक छोटे से गांव में एक किसान रहता था, जिसका नाम मोहन था। मोहन मेहनती था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से उसकी फसल खराब हो रही थी। हर बार जब वह खेतों में मेहनत करता, तो बारिश या सूखा उसकी मेहनत को बर्बाद कर देता। धीरे-धीरे मोहन का मन टूटने लगा, और उसने मान लिया कि किस्मत उसके साथ नहीं है।

एक दिन, गांव के बुजुर्ग पंडितजी ने मोहन को परेशान देखा। पंडितजी पूछा, “बेटा, क्या हुआ? तुम इतने उदास क्यों हो?”

मोहन ने उत्तर दिया, “पंडितजी, मैं हर साल मेहनत करता हूं, लेकिन मेरी मेहनत का फल कभी नहीं मिलता। अब तो लगता है कि सब कुछ छोड़ देना चाहिए।”

पंडितजी मुस्कुराए और बोले, “बेटा, कल सुबह सूरज उगते ही मेरे पास आना। मैं तुम्हें एक महत्वपूर्ण बात समझाऊंगा।”

अगले दिन, सूरज निकलने से पहले ही मोहन पंडितजी के पास पहुंच गया। पंडितजी उसे गांव के पास स्थित पहाड़ी पर ले गए। वहां से सूरज के उगने का अद्भुत नजारा दिखाई देता था।

जैसे ही सूरज की पहली किरण धरती पर पड़ी, पंडितजी ने कहा, “देखो, हर दिन यह सूरज नए सिरे से निकलता है। इसे परवाह नहीं कि कल क्या हुआ था। इसकी हर सुबह एक नई शुरुआत होती है। यह हमें सिखाता है कि बीते कल की असफलताओं को भूलकर आज को नए जोश और उम्मीद के साथ शुरू करना चाहिए।” मोहन को पंडितजी की बात समझ आ गई। उसने सोचा, “सच में, अगर सूरज हर दिन नई शुरुआत कर सकता है, तो मैं क्यों नहीं?”

उस दिन से मोहन ने अपनी सोच बदल दी। उसने अपने काम को नए उत्साह के साथ करना शुरू किया। उसने आधुनिक कृषि तकनीकों का उपयोग करना सीखा, गांव के दूसरे किसानों से सलाह ली, और अपने खेतों की देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ी।

धीरे-धीरे उसकी मेहनत रंग लाई। इस बार उसकी फसल पहले से बेहतर हुई। अगले कुछ वर्षों में, उसकी फसल इतनी अच्छी हुई कि वह गांव का सबसे सफल किसान बन गया। उसने न केवल अपनी जिंदगी बदली, बल्कि गांव के अन्य किसानों को भी नई शुरुआत करने के लिए प्रेरित किया।

मोहन को एहसास हुआ कि जीवन में असफलताएं आती हैं, लेकिन हर सुबह हमें एक नया अवसर देती है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस अवसर का उपयोग कैसे करते हैं।

शिक्षा
हर सुबह नई शुरुआत का प्रतीक है। बीते कल की असफलताओं को भूलकर आज को पूरे जोश और नई उम्मीदों के साथ जीना चाहिए। जीवन में जो भी कठिनाइयां आएं, उनका सामना धैर्य और सकारात्मक सोच के साथ करना ही सफलता की कुंजी है।

पहेली का उत्तर: खरगोश
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सप्तश्लोकी गीता 
श्री भगवान ने कहा— अनुभव, प्रेमाभक्ति और साधनों से युक्त अत्यंत गोपनीय अपने स्वरूप का ज्ञान मैं तुम्हें कहता हूं, तुम उसे ग्रहण करो। 
मेरा जितना विस्तार है, मेरा जो लक्षण है, मेरे जितने और जैसे रूप, गुण और लीलाएं हैं—मेरी कृपा से तुम उनका तत्व ठीक-ठीक वैसा ही अनुभव करो। 
सृष्टि के पूर्व केवल मैं-ही-मैं था। मेरे अतिरिक्त न स्थूल था न सूक्ष्म और न तो दोनों का कारण अज्ञान। जहां यह सृष्टि नहीं है, वहां मैं-ही-मैं हूं और इस सृष्टि के रूप में जो कुछ प्रतीत हो रहा है, वह भी मैं ही हूं और जो कुछ बचा रहेगा, वह भी मैं ही हूं। 
वास्तव में न होने पर भी जो कुछ अनिर्वचनीय वस्तु मेरे अतिरिक्त मुझ परमात्मा में दो चंद्रमाओं की तरह मिथ्या ही प्रतीत हो रही है, अथवा विद्यमान होने पर भी आकाश-मंडल के नक्षत्रो में राहु की भांति जो मेरी प्रतीति नहीं होती, इसे मेरी माया समझना चाहिए। 
जैसे प्राणियों के पंचभूतरचित छोटे-बड़े शरीरों में आकाशादि पंचमहाभूत उन शरीरों के कार्यरूप से निर्मित होने के कारण प्रवेश करते भी है और पहले से ही उन स्थानों और रूपों में कारणरूप से विद्यमान रहने के कारण प्रवेश नहीं भी करते, वैसे ही उन प्राणियों के शरीर की दृष्टि से मैं उनमें आत्मा के रूप से प्रवेश किए हुए हूं और आत्म दृष्टि से अपने अतिरिक्त और कोई वस्तु न होने के कारण उन में प्रविष्ट नहीं भी हूं। 
यह ब्रह्म नहीं, यह ब्रह्म नहीं— इस प्रकार निषेध की पद्धति से और यह ब्रह्म है, यह ब्रह्म है— इस अन्वय की पद्धति से यही सिद्ध होता है कि सर्वातीत एवं सर्वस्वरूप भगवान ही सर्वदा और सर्वत्र स्थित है, वही वास्तविक तत्व है। जो आत्मा अथवा परमात्मा का तत्व जानना चाहते हैं, उन्हें केवल इतना ही जानने की आवश्यकता है।
ब्रह्माजी! तुम अविचल समाधि के द्वारा मेरे इस सिद्धांत में पूर्ण निष्ठा कर लो। इससे तुम्हें कल्प-कल्प में विविध प्रकार की सृष्टि रचना करते रहने पर भी कभी मोह नहीं होगा।

मंत्र:
ॐ नारायणाय विद्महे 
वासुदेवाय धीमहि 
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्

अर्थ: हे भगवान् नारायण, आप तीनों लोकों के पालनकर्ता हैं, वासुदेव स्वरूप प्रभु मुझमें बुद्धि और ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें।

गर्भ संवाद 
— मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार, मैं तुम्हारी माँ हूँ.......माँ !

— मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम मेरे गर्भ में पूर्ण रूप से सुरक्षित हो, तुम हर क्षण पूर्ण रूप से विकसित हो रहे हो।

— तुम मेरे हर भाव को समझ सकते हो क्योंकि तुम पूर्ण आत्मा हो।

— तुम परमात्मा की तरफ से मेरे लिए एक सुन्दरतम तोहफा हो, तुम शुभ संस्कारी आत्मा हो, तुम्हारे रूप में मुझे परमात्मा की दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, परमात्मा ने तुम्हें सभी विलक्षण गुणों से परिपूर्ण करके ही भेजा है, परमात्मा की दिव्य संतान के रूप में तुम दिव्य कार्य करने के लिए ही आए हो। मेरे बच्चे! तुम
ईश्वर का परम प्रकाश रूप हो, परमात्मा की अनंत शक्ति तुम्हारे अंदर विद्यमान है, ईश्वर का तेज तुम्हारे माथे पर चमक रहा है, परमात्मा के प्रेम की चमक तुम्हारी आँखों में दिखाई देती है, तुम ईश्वर के प्रेम का साक्षात भण्डार हो, तुम परमात्मा के एक महान उद्देश्य को लेकर इस संसार में आ रहे हो, परमात्मा ने तुम्हें इंसान रूप में इंसानियत के सभी गुणों से भरपूर किया है।

— तुम हर इंसान को परमात्मा का रूप समझते हो, और सभी के साथ प्रेम का व्यवहार करते हो, तुम जानते हो अपने जीवन के महानतम लक्ष्य को, तुम्हें इस संसार की सेवा करनी है, सभी से प्रेम करना है, सभी की सहायता करनी है, और परमात्मा ने जो विशेष लक्ष्य तुम्हें दिया है, वह तुम्हें अच्छे से याद रहेगा।

— परमात्मा की भक्ति में तुम्हारा मन बहुत लगता है, तुम प्रभु के गुणों का गायन करके बहुत खुश होते हो, तुम्हारे रोम-रोम में प्रभु का प्रेम बसा हुआ है। स्त्रियों के प्रति तुम विशेष रूप से आदर का भाव अनुभव करते हो, सभी स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखते हो।

— तुम्हारा उद्देश्य संसार में सबको खुशियाँ बाँटना है, सब तरह से आजाद रहते हुए तुम सबको कल्याण का मार्ग दिखाने आ रहे हो, परमात्मा से प्राप्त जीवन से तुम पूर्ण रूप से संतुष्ट हो, तुम सदैव परमात्मा के साये में सुरक्षित हो।

— मानव जीवन के संघर्षो को जीतना तम्हें खूब अच्छी तरह से आता है, जीवन के प्रत्येक कार्य को करने का तुम्हारा तरीका बहुत प्यारा है, जीवन की हर परेशानी का हल ढूँढने में तुम सक्षम हो, तुम हमेशा अपने जीवन के परम लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहोगे।

— मेरी तरह तुम्हारे पिता भी तुम्हें देखने के लिए आतुर हैं, मेरा और तुम्हारे पिता का आशीष सदैव तुम्हारे साथ है।

— यह पृथ्वी हमेशा से प्रेम करने वाले अच्छे लोगों से भरी हुई है, यह सृष्टि परमात्मा की अनंत सुंदरता से भरी हुई है, यहाँ के सभी सुख तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, गर्भावस्था का यह सफर तुम्हें परमात्मा के सभी दैविक संस्कारों से परिपूर्ण कर देगा।

—घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।

पहेली:
रात गली में खड़ा खड़ा, 
डंडा लेकर बड़ा-बड़ा। 
रहो जागते होशियार, 
कहता है वो बार-बार ।

कहानी: मैं कर सकता हूँ
एक छोटे से गांव में एक बालक रहता था, जिसका नाम आदित्य था। आदित्य बहुत होशियार था, लेकिन उसे खुद पर विश्वास नहीं था। हर बार जब उसे कोई चुनौती मिलती, तो वह डर जाता और कहता, “मैं यह नहीं कर सकता।” उसकी इस आदत के कारण वह कई बार अच्छे अवसरों से चूक जाता।

एक दिन स्कूल में अध्यापक ने सभी छात्रों को एक महत्वपूर्ण दौड़ में भाग लेने के लिए कहा। यह दौड़ बहुत कठिन थी और जंगल के रास्ते से होकर गुजरती थी। सभी बच्चे उत्साहित थे, लेकिन आदित्य को अपनी असफलता का डर सताने लगा। उसने सोचा, “मैं यह दौड़ कभी नहीं जीत सकता। यह मेरे बस की बात नहीं है।”

अध्यापक ने जब देखा कि आदित्य दौड़ के लिए तैयार नहीं है, तो उन्होंने उससे पूछा, “तुम इतने घबराए हुए क्यों हो, आदित्य?”

आदित्य ने उत्तर दिया, “गुरुजी, मैं यह दौड़ नहीं जीत सकता। मैं हमेशा हारता हूं। मुझमें जीतने की ताकत नहीं है।”

अध्यापक मुस्कुराए और बोले, “कल सुबह जल्दी आना। मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं।”

अगले दिन, आदित्य अध्यापक के पास पहुंचा। वे उसे गांव के पास एक पहाड़ी पर ले गए। वहां उन्होंने उसे एक छोटे पौधे की ओर इशारा किया, जो पत्थरों के बीच उग रहा था।

अध्यापक ने कहा, “देखो, यह पौधा कितनी कठिनाई के बावजूद उग रहा है। इसे न तो मिट्टी मिली, न पानी। फिर भी इसने हार नहीं मानी और अपनी जगह बना ली। क्या तुम्हें लगता है कि यह सोचता होगा कि वह नहीं कर सकता?”

आदित्य ने चुपचाप सिर हिला दिया।

अध्यापक ने आगे कहा, “तुम्हारी क्षमता इस पौधे से कहीं अधिक है। फर्क सिर्फ इतना है कि यह पौधा हार नहीं मानता, जबकि तुम खुद को हार मानने के लिए तैयार कर लेते हो। तुम अपनी सोच को बदलो और खुद से कहो, “मैं कर सकता हूं।” 

आदित्य को यह बात गहराई तक समझ आ गई। उसने दौड़ में भाग लेने का फैसला किया।

दौड़ के दिन, आदित्य ने खुद से कहा, “मैं कर सकता हूं। मैं हार नहीं मानूंगा।” उसने दौड़ शुरू की और अपने डर को पीछे छोड़ते हुए पूरे आत्मविश्वास के साथ दौड़ता रहा। रास्ता कठिन था, लेकिन उसने हर चुनौती का सामना किया।

आखिरकार, आदित्य दौड़ पूरी करने में सफल हुआ। वह प्रथम नहीं आया, लेकिन उसने अपनी कमजोरी को हराया और दौड़ खत्म की। यह उसके लिए जीत से कम नहीं था।

उस दिन के बाद, आदित्य की सोच बदल गई। उसने खुद पर विश्वास करना सीखा। वह हर चुनौती का सामना “मैं कर सकता हूं।” के विश्वास के साथ करता, और धीरे-धीरे वह जीवन में सफल होता गया।

शिक्षा
आत्मविश्वास सबसे बड़ी शक्ति है। जब हम खुद पर विश्वास करते हैं और यह सोचते हैं कि “मैं कर सकता हूं,” तो हर कठिनाई आसान लगने लगती है। सफलता की शुरुआत हमारी सोच से होती है। हमें हर स्थिति में अपने अंदर की ताकत को पहचानना और आगे बढ़ना चाहिए।

पहली का उत्तर: चौकीदार 
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