Garbha Sanskar - 4 in Hindi Women Focused by Praveen Kumrawat books and stories PDF | गर्भ संस्कार - भाग 4 - ऐक्टिविटीज़–03

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गर्भ संस्कार - भाग 4 - ऐक्टिविटीज़–03

प्रार्थना:
हे न्यायाधीश प्रभु! आप अपनी कृपा से हमको काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, आलस्य, प्रमाद, ईर्ष्या, द्वेष, विषय-तृष्णा, निष्ठुरता आदि दुर्गुणों से मुक्तकर श्रेष्ठ कार्य में ही स्थिर करें। हम अतिदिन होकर आपसे यही मांगते हैं कि हम आप और आपकी आज्ञा से भिन्न पदार्थ में कभी प्रीति ना करें।

मंत्र:
ॐ नारायणाय विद्महे 
वासुदेवाय धीमहि 
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्

अर्थ: हे भगवान् नारायण, आप तीनों लोकों के पालनकर्ता हैं, वासुदेव स्वरूप प्रभु मुझमें बुद्धि और ज्ञान का प्रकाश प्रदान करें।

गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारी मासूमियत मेरी आत्मा को शांति देती है। मैं हर दिन तुम्हारे बारे में सोचती हूं और प्रार्थना करती हूं कि तुम्हारे जीवन में हमेशा दया और करुणा बनी रहे। जब भी मैं तुम्हारी हलचल महसूस करती हूं, तो मेरा दिल खुशी से भर जाता है। तुम मेरे जीवन का सबसे बड़ा आशीर्वाद हो।”

पहेली:
सीधी होकर, नीर पिलाती 
उलटी होकर दीन कहलाती?

कहानी: मैं कर सकता हूँ
एक छोटे से गांव में एक बालक रहता था, जिसका नाम आदित्य था। आदित्य बहुत होशियार था, लेकिन उसे खुद पर विश्वास नहीं था। हर बार जब उसे कोई चुनौती मिलती, तो वह डर जाता और कहता, “मैं यह नहीं कर सकता।” उसकी इस आदत के कारण वह कई बार अच्छे अवसरों से चूक जाता।

एक दिन स्कूल में अध्यापक ने सभी छात्रों को एक महत्वपूर्ण दौड़ में भाग लेने के लिए कहा। यह दौड़ बहुत कठिन थी और जंगल के रास्ते से होकर गुजरती थी। सभी बच्चे उत्साहित थे, लेकिन आदित्य को अपनी असफलता का डर सताने लगा। उसने सोचा, “मैं यह दौड़ कभी नहीं जीत सकता। यह मेरे बस की बात नहीं है।”

अध्यापक ने जब देखा कि आदित्य दौड़ के लिए तैयार नहीं है, तो उन्होंने उससे पूछा, “तुम इतने घबराए हुए क्यों हो, आदित्य?”

आदित्य ने उत्तर दिया, “गुरुजी, मैं यह दौड़ नहीं जीत सकता। मैं हमेशा हारता हूं। मुझमें जीतने की ताकत नहीं है।”

अध्यापक मुस्कुराए और बोले, “कल सुबह जल्दी आना। मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं।”

अगले दिन, आदित्य अध्यापक के पास पहुंचा। वे उसे गांव के पास एक पहाड़ी पर ले गए। वहां उन्होंने उसे एक छोटे पौधे की ओर इशारा किया, जो पत्थरों के बीच उग रहा था।

अध्यापक ने कहा, “देखो, यह पौधा कितनी कठिनाई के बावजूद उग रहा है। इसे न तो मिट्टी मिली, न पानी। फिर भी इसने हार नहीं मानी और अपनी जगह बना ली। क्या तुम्हें लगता है कि यह सोचता होगा कि वह नहीं कर सकता?”

आदित्य ने चुपचाप सिर हिला दिया।

अध्यापक ने आगे कहा, “तुम्हारी क्षमता इस पौधे से कहीं अधिक है। फर्क सिर्फ इतना है कि यह पौधा हार नहीं मानता, जबकि तुम खुद को हार मानने के लिए तैयार कर लेते हो। तुम अपनी सोच को बदलो और खुद से कहो, “मैं कर सकता हूं।” 

आदित्य को यह बात गहराई तक समझ आ गई। उसने दौड़ में भाग लेने का फैसला किया।

दौड़ के दिन, आदित्य ने खुद से कहा, “मैं कर सकता हूं। मैं हार नहीं मानूंगा।” उसने दौड़ शुरू की और अपने डर को पीछे छोड़ते हुए पूरे आत्मविश्वास के साथ दौड़ता रहा। रास्ता कठिन था, लेकिन उसने हर चुनौती का सामना किया।

आखिरकार, आदित्य दौड़ पूरी करने में सफल हुआ। वह प्रथम नहीं आया, लेकिन उसने अपनी कमजोरी को हराया और दौड़ खत्म की। यह उसके लिए जीत से कम नहीं था।

उस दिन के बाद, आदित्य की सोच बदल गई। उसने खुद पर विश्वास करना सीखा। वह हर चुनौती का सामना “मैं कर सकता हूं।” के विश्वास के साथ करता, और धीरे-धीरे वह जीवन में सफल होता गया।

शिक्षा
आत्मविश्वास सबसे बड़ी शक्ति है। जब हम खुद पर विश्वास करते हैं और यह सोचते हैं कि “मैं कर सकता हूं,” तो हर कठिनाई आसान लगने लगती है। सफलता की शुरुआत हमारी सोच से होती है। हमें हर स्थिति में अपने अंदर की ताकत को पहचानना और आगे बढ़ना चाहिए।

पहेली का उत्तर : नदी
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प्रार्थना:
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला 
या शुभ्रवस्त्रावृता। 
या वीणावरदण्डमण्डितकरा 
या श्वेतपद्मासना॥ 
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥1॥

ॐ सहनाववतु। 
सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै। 
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।

असतो मा सदगमय॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय॥
मृत्योर्मामृतम् गमय॥ 
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥

मंत्र:
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥

अर्थ: यह ब्रह्मांड पूर्ण है और उसकी हर रचना पूर्ण है। उस पूर्ण से जो लिया जाता है, वह भी पूर्ण ही रहता है।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारे आने का इंतजार मेरे हर दिन को खास बना रहा है। मैं तुम्हारे साथ बिताए हर पल की कल्पना करती हूं। तुम मेरी दुनिया का सबसे कीमती हिस्सा हो। तुम्हारे बिना मेरा जीवन अधूरा है, लेकिन तुम्हारे आने से यह पूरा हो जाएगा। मैं वादा करती हूं कि तुम्हें हमेशा प्यार और सुरक्षा दूंगी।”

पहेली:
8 को लिखो 8 बार उत्तर आये 1000

कहानी : दीपों का पर्व
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में एक परिवार रहता था। इस परिवार में नन्हा लड़का आर्यन भी था। आर्यन बहुत चंचल और जिज्ञासु था, लेकिन उसे त्योहारों का महत्व समझ नहीं आता था। हर साल जब दीवाली आती, तो उसके माता-पिता घर की सफाई करते, दीयों से सजाते, मिठाइयां बनाते और भगवान की पूजा करते। आर्यन यह सब देखकर सोचता, “इतना सब क्यों किया जाता है? यह दीयों का पर्व क्यों मनाया जाता है?”

एक बार दीवाली से पहले, आर्यन ने अपने दादा जी से पूछा, “दादाजी, हम हर साल दीवाली क्यों मनाते हैं? क्या यह केवल दीये जलाने और मिठाइयां खाने का पर्व है?”

दादाजी मुस्कुराए और बोले, “बेटा, दीवाली केवल एक पर्व नहीं, बल्कि हमारे जीवन में नई रोशनी लाने का संदेश है। यह अंधकार को दूर कर प्रकाश का स्वागत करने का त्योहार है। लेकिन इसे समझने के लिए तुम्हें एक कहानी सुननी होगी।”

दादाजी ने रामायण की कहानी सुनाई, जिसमें भगवान राम ने रावण को हराकर और माता सीता को वापस लाकर अयोध्या की जनता को सुख और शांति दी। दादाजी ने कहा, “दीपों का यह पर्व भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। लेकिन यह हमें केवल खुशी का नहीं, बल्कि अंधकार से लड़ने और सच्चाई के मार्ग पर चलने का भी संदेश देता है।”

आर्यन को यह सुनकर बहुत अच्छा लगा, लेकिन उसने पूछा, “दादाजी, यह तो भगवान राम की कहानी है। हमारे जीवन में इसका क्या महत्व है?”

दादाजी ने समझाया, “बेटा, दीवाली हमें यह सिखाती है कि जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, हमें सच्चाई और अच्छाई के मार्ग पर चलते रहना चाहिए। यह दीये प्रतीक हैं उस रोशनी के, जो हमारे जीवन से अंधकार और नकारात्मकता को दूर करती है।”

आर्यन ने दादाजी की बात को दिल से समझा। इस बार उसने अपनी मां की घर सजाने में मदद की, दीये जलाने में हाथ बंटाया और पूजा में ध्यान लगाया। जब उसने दीयों की रोशनी से जगमगाते घर को देखा, तो उसे ऐसा लगा जैसे उसकी आत्मा भी रोशनी से भर गई हो।

उस रात आर्यन ने दादाजी से कहा, “दादाजी, अब मुझे समझ में आया कि दीपों का पर्व केवल दीये जलाने का नहीं, बल्कि अपने जीवन को रोशन करने का त्योहार है।”

दादाजी ने आर्यन को गले लगाते हुए कहा, “बिल्कुल सही, बेटा। जब हम दूसरों के जीवन में भी रोशनी लाने की कोशिश करते हैं, तो यह त्योहार और भी खास हो जाता है।”

उस साल आर्यन ने अपने दोस्तों और गांव के गरीब बच्चों के साथ अपनी खुशियां बांटी। उसने उन्हें मिठाइयां दीं और उनके साथ मिलकर दीये जलाए। उस दिन उसने महसूस किया कि सच्ची खुशी दूसरों को खुश देखकर ही मिलती है।

शिक्षा
दीपों का पर्व केवल बाहरी रोशनी का नहीं, बल्कि भीतर की रोशनी जगाने का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि सच्चाई, अच्छाई और सकारात्मकता से हम अपने जीवन को उज्जवल बना सकते हैं। दीपावली का असली अर्थ तब पूरा होता है जब हम अपनी खुशियां दूसरों के साथ बांटते हैं और उनके जीवन में भी रोशनी लाते हैं।

पहेली का उत्तर : 888+88+8+8+8=1000
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प्रार्थना:
माँ सरस्वती वरदान दो 
माँ सरस्वती वरदान दो, 
मुझको नवल उत्थान दो। 
यह विश्व ही परिवार हो, 
सब के लिए सम प्यार हो । 
आदर्श, लक्ष्य महान हो । माँ सरस्वती..........

मन, बुद्धि, हृदय पवित्र हो, 
मेरा महान चरित्र हो। 
विद्या विनय वरदान दो। माँ सरस्वती.... 

माँ शारदे हँसासिनी, 
वागीश वीणा वादिनी। 
मुझको अगम स्वर ज्ञान दो। 
माँ सरस्वती, वरदान दो। 
मुझको नवल उत्थान दो।
उत्थान दो। उत्थान दो...।

मंत्र:
ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखम्। 
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्यु मृत्युं नमाम्यहम्॥

अर्थ: हे भगवान नरसिंह! आप उग्र, वीर और सभी दिशाओं में प्रकाश फैलाने वाले हैं। आप हमें भय से मुक्त करें।

गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम मेरे जीवन का सबसे उज्ज्वल हिस्सा हो। जब भी मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूं, तो मेरी आत्मा को रोशनी का एहसास होता है। तुमने मुझे सिखाया है कि सच्चा प्यार क्या होता है। मैं तुम्हारे जीवन को हर खुशी और सुरक्षा से भरने का प्रयास करूंगी। तुम मेरी आत्मा की सबसे प्यारी भावना हो।”

पहेली:
हरे रंग की टोपी मेरी, हरे रंग की दुशाला 
जब पक जाती हू मैं तो
हरे रंग की टोपी पर लाल रंग की दुशाला 
मेरे पेट में रहती मोतियो की माला 
नाम जरा बताओ मेरे लाला ?

कहानी: रंगों की होली
बहुत समय पहले, एक छोटे से गांव में रंगों से भरा त्योहार होली बड़ी धूमधाम से मनाया जाता था। यह त्योहार न केवल रंगों का, बल्कि प्रेम, समरसता और भाईचारे का प्रतीक था। लेकिन इस गांव में एक परिवार ऐसा भी था, जो कई वर्षों से होली नहीं मनाता था। इस परिवार में दो भाई, अजय और विजय, रहते थे।

कुछ साल पहले, अजय और विजय के बीच किसी बात को लेकर बड़ा झगड़ा हो गया था। दोनों भाई इतने नाराज़ हुए कि उन्होंने आपस में बात करना तक बंद कर दिया। उनके झगड़े के कारण पूरा परिवार और गांव भी दुखी था। हर साल होली आती और चली जाती, लेकिन उनके घर में रंग और खुशियों की कोई गूंज नहीं होती थी।

एक साल, होली के कुछ दिन पहले गांव में एक संत आए। उन्होंने गांव के लोगों को होली के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “होली केवल रंगों का त्योहार नहीं है, यह दिलों के बीच के फासलों को मिटाने और एकता का संदेश देने का पर्व है। जब तक हम अपने मन के नकारात्मक भावों को दूर नहीं करेंगे, तब तक हम सच्चे रंगों का आनंद नहीं ले सकते।”

संत की बातों का गांव के लोगों पर गहरा प्रभाव पड़ा। लेकिन अजय और विजय अब भी अपने गुस्से और अहंकार को छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे।

होली के दिन, पूरा गांव रंगों में डूबा हुआ था। हर घर से हंसी और खुशियों की आवाज आ रही थी। लेकिन अजय और विजय अपने अपने घर में बंद थे, उदास और अकेले।

संत ने सोचा कि उन्हें कुछ करना चाहिए। वे पहले अजय के घर गए और उससे कहा, “बेटा, क्या तुम सच में खुश हो? क्या तुम्हें नहीं लगता कि तुम्हारे भाई के साथ तुम्हारा झगड़ा खत्म होना चाहिए?”

अजय ने उदास होकर कहा, “गुरुजी, मैं अपने भाई को याद करता हूं, लेकिन वह मुझसे पहले माफी नहीं मांगेगा।” संत मुस्कुराए और बोले, “अगर तुम पहले कदम बढ़ाओगे, तो क्या होगा? क्या प्यार और अपनापन अहंकार से ज्यादा मूल्यवान नहीं है?” इसके बाद संत विजय के घर गए और वही बात उससे भी कही। विजय ने थोड़ी देर सोचा और कहा, “गुरुजी, मैं भी अपने भाई को बहुत याद करता हूं। लेकिन मुझे नहीं पता कि शुरुआत कैसे करूं।”

संत ने गांव के बच्चों से कुछ रंग मंगवाए और दोनों भाइयों के घर पहुंच गए। उन्होंने रंग अजय के चेहरे पर लगाया और कहा, “अब यह रंग तुम्हारे दिल की दीवारों को गिराने का काम करेगा। चलो, अपने भाई को रंग लगाओ।”

अजय ने साहस जुटाया और रंगों की थाली लेकर विजय के घर पहुंचा।

जब विजय ने दरवाजा खोला, तो अजय ने कहा, “भाई, होली का त्योहार हमें जोड़ने के लिए है, तो चलो हम भी इस झगड़े को खत्म करें और एक नई शुरुआत करें।”

विजय की आंखों में आंसू आ गए। उसने अजय को गले लगा लिया और कहा, “भाई, मैंने भी तुम्हें बहुत याद किया। अब हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं रहेगा।”

दोनों भाइयों ने मिलकर एक-दूसरे को रंग लगाया और खुशियों से भर गए। उनकी सुलह देखकर पूरा गांव खुश हो गया। उस दिन होली का त्योहार वास्तव में रंगों और प्रेम का प्रतीक बन गया।

शिक्षा 
होली का त्योहार हमें सिखाता है कि जीवन में नफरत और मतभेदों को खत्म करना चाहिए। रंगों की तरह हमें भी अपने दिलों को खुला और सकारात्मक बनाना चाहिए। सच्ची खुशी और शांति तभी आती है, जब हम प्यार, भाईचारे और एकता के रंगों में खुद को रंगते हैं।

पहेली का उत्तर : हरी मिर्च (पकने पे लाल)
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प्रार्थना
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ 
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे। 
हर शब्द तेरा, ये हर गीत तुझसे।। 
हम हैं अकेले, हम हैं अधूरे।
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ।।
हे शारदे माँ .....
मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी। 
वेदों की भाषा, पुराणों की वाणी।।
हम भी तो समझें, हम भी तो जानें।
विद्या का हमको तू अधिकार दे माँ।। 
हे शारदे माँ .....

तू श्वेतवर्णी कमल पे विराजे। 
हाथों में वीणा मुकुट सिर पे साजे।। 
मन से हमारे मिटा दो अँधेरे।
उजालों का हमको तू संसार दे माँ।।
हे शारदे माँ .....

मंत्र
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम्।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥१॥

अर्थः हे स्वर्ण के समान दिव्य तेज वाली लक्ष्मी! आप हमारे जीवन में धन और समृद्धि लेकर आएँ।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारी मुस्कान मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा होगी। जब तुम पहली बार मुस्कुराओगे, तो मेरी आत्मा को वो खुशी मिलेगी, जिसका मैंने कभी अनुभव नहीं किया। मैं चाहती हूं कि तुम्हारी हर हंसी मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी बने। मैं वादा करती हूं कि तुम्हारे चेहरे पर हमेशा मुस्कान बनी रहे।”

पहेली:
ऐसी कौन सी चीज है जिसे जितना खींचो उतनी ही कम होती जाती है?

कहानी: मां का अदम्य साहस
एक छोटे से गांव में राधा नाम की एक महिला रहती थी। राधा विधवा थी और उसकी पूरी दुनिया उसके इकलौते बेटे अर्जुन में सिमटी हुई थी। अर्जुन बहुत होनहार और मेहनती लड़का था। राधा ने अपनी सारी कठिनाइयों को दरकिनार करते हुए उसे पढ़ाने और एक अच्छा इंसान बनाने का सपना देखा था।

राधा दिन-रात खेतों में मेहनत करती। कभी-कभी उसे दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता, लेकिन उसने अपने बेटे की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। अर्जुन भी अपनी मां की मेहनत देखकर और अधिक मेहनत करता। 

एक दिन गांव में एक बड़ा संकट आ गया। पास के पहाड़ों में अचानक भारी बारिश के कारण भूस्खलन हो गया, जिससे नदी का जलस्तर बढ़ने लगा। गांव के लोगों को तेजी से अपना घर छोड़कर सुरक्षित स्थानों की ओर भागना पड़ा।

राधा और अर्जुन भी इस आपदा में फंस गए। जब वे नदी पार कर रहे थे, तो तेज बहाव में अर्जुन का पैर फिसल गया, और वह नदी में गिर गया। राधा ने बिना किसी डर के तुरंत नदी में छलांग लगा दी। वह अपने बेटे को बचाने के लिए तेज बहाव के खिलाफ संघर्ष करने लगी।

तेज धाराएं और ठंडा पानी राधा के लिए किसी दुश्मन से कम नहीं थे, लेकिन उसने हार नहीं मानी। वह बार-बार पानी में डूबती और फिर अपने बेटे को ढूंढने की कोशिश करती। आखिरकार, उसने अर्जुन का हाथ पकड़ लिया और पूरी ताकत से उसे किनारे की ओर खींचने लगी।

काफी संघर्ष के बाद, राधा अर्जुन को सुरक्षित किनारे पर ले आई। दोनों थके हुए थे, लेकिन जीवित थे। गांव के लोग उनकी बहादुरी देखकर दंग रह गए।

इस घटना ने पूरे गांव को राधा के अदम्य साहस का उदाहरण दिया। अर्जुन ने अपनी मां के इस बलिदान और साहस को जीवन भर याद रखा। उसने ठान लिया कि वह अपनी मां के सपने को पूरा करेगा और एक ऐसा इंसान बनेगा, जिस पर उसकी मां गर्व कर सके।

अर्जुन ने कड़ी मेहनत से पढ़ाई की और एक दिन वह एक सफल डॉक्टर बन गया। उसने अपनी मां के संघर्ष और साहस को अपनी प्रेरणा बनाया और अपनी पूरी जिंदगी दूसरों की मदद करने में लगा दी।

शिक्षा
मां का साहस और त्याग अपार है। वह अपने बच्चे की सुरक्षा और खुशी के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। एक मां का साहस हमें सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी मुश्किलें आएं, उन्हें दृढ़ता और धैर्य से पार किया जा सकता है। मां का प्रेम और साहस जीवन का सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत है।

पहेली का उत्तर : सिगरेट या बीड़ी।
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प्रार्थना:
हे प्रभु आनंद-दाता, ज्ञान हमको दीजिए,
शीघ्र सारे दुर्गुणों को, दूर हमसे कीजिए।
लीजिए हमको शरण में, हम सदाचारी बनें,
ब्रह्मचारी धर्म-रक्षक, वीर व्रत धारी बनें।
 हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए...॥

निंदा किसी की हम किसी से, भूल कर भी न करें,
ईर्ष्या कभी भी हम किसी से, भूल कर भी न करें।
सत्य बोलें, झूठ त्यागें, मेल आपस में करें,
दिव्य जीवन हो हमारा, यश तेरा गाया करें।
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए...॥

जाए हमारी आयु हे प्रभु, लोक के उपकार में,
हाथ डालें हम कभी न, भूल कर अपकार में।
कीजिए हम पर कृपा, ऐसी हे परमात्मा,
मोह मद मत्सर रहित, होवे हमारी आत्मा।
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए...॥

प्रेम से हम गुरु जनों की, नित्य ही सेवा करें,
प्रेम से हम संस्कृति की, नित्य ही सेवा करें।
योग विद्या ब्रह्म विद्या, हो अधिक प्यारी हमें,
ब्रह्म निष्ठा प्राप्त कर के, सर्व हितकारी बनें।
हे प्रभु आनंद-दाता ज्ञान हमको दीजिए...॥

मंत्र:
ॐ यक्षराजाय विद्महे, वैश्रवणाय धीमहि, तन्नो कुबेर: प्रचोदयात्।

अर्थ: कुबेर, यक्षों के राजा और विश्रवा के पुत्र हम आपको नमन करते हैं। आप हमारे जीवन को प्रबुद्ध करे।

गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे, तुम्हारे आने से मेरी जिंदगी में नई ऊर्जा और नई उम्मीदें जुड़ गई हैं। मैं चाहती हूं कि तुम्हारा हर दिन नई ऊर्जा और संभावनाओं से भरा हो। इस दुनिया की हर सकारात्मक शक्ति तुम्हें मजबूत और सफल बनाएगी। तुम्हारे जीवन में जोश और उत्साह कभी कम न हो। मैं तुम्हारे लिए भगवान से यही प्रार्थना करती हूं कि तुम हमेशा ऊर्जा से भरपूर और प्रेरित रहो।”

पहेली:
जितनी ज्यादा सेवा करता, उतना घटता जाता हूँ। 
सभी रंग का नीला पीला, पानी के संग भाता हूँ। बताओ क्या ?

कहानी: त्याग की मूर्ति
बहुत समय पहले की बात है, एक छोटे से गांव में जानकी नाम की एक महिला रहती थी। जानकी की पहचान गांव में एक आदर्श महिला के रूप में थी। उसकी सादगी, त्याग और प्रेम के कारण सभी लोग उसे बहुत सम्मान देते थे। जानकी का जीवन साधारण था, लेकिन उसकी सोच असाधारण थी।

जानकी के दो बेटे थे, रवि और मोहन। उनके पिता का निधन तब हो गया था, जब दोनों बच्चे बहुत छोटे थे। जानकी ने अपने बच्चों की परवरिश में कोई कसर नहीं छोड़ी। उसने दूसरों के घरों में काम किया, खेती की, और हर तरह से मेहनत की ताकि उसके बच्चों को अच्छी शिक्षा और जीवन मिल सके।

रवि और मोहन बड़े हो गए और शहर में पढ़ने चले गए। दोनों होशियार थे और अपनी मां की मेहनत को समझते थे। जानकी ने अपनी इच्छाओं और जरूरतों को हमेशा पीछे रखा ताकि उनके सपने पूरे हो सकें। उसने कभी अपने लिए नए कपड़े नहीं खरीदे, स्वादिष्ट खाना नहीं खाया, लेकिन उसने यह सुनिश्चित किया कि उसके बच्चों को किसी चीज की कमी न हो।

कुछ सालों बाद, रवि और मोहन ने अपनी पढ़ाई पूरी की और शहर में नौकरी करने लगे। दोनों अब अच्छे पैसे कमाने लगे थे। जानकी को गर्व था कि उसके बेटे उसके संघर्ष का फल देख पा रहे हैं।

लेकिन समय के साथ, दोनों बेटों की प्राथमिकताएं बदलने लगीं। शहर की चमक-दमक ने उन्हें अपनी मां के त्याग और प्रेम से दूर कर दिया। वे अपनी मां से बात करने और गांव लौटने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाते थे।

जानकी ने कभी शिकायत नहीं की। वह हर दिन अपने बेटों की खुशहाली के लिए प्रार्थना करती। उसने अपने अकेलेपन को भी अपने बच्चों की खुशियों के लिए सह लिया।

एक दिन, गांव में एक बड़ा उत्सव हुआ। जानकी ने अपने बेटों को बुलाया और उनसे अनुरोध किया कि वे कुछ समय के लिए गांव आएं। रवि और मोहन ने काम का बहाना बनाकर आने से इनकार कर दिया।

जानकी दुखी तो हुई, लेकिन उसने अपने मन को शांत रखा। उसने सोचा, “मेरे बच्चों को अपनी जिंदगी में आगे बढ़ना है । मेरा त्याग उनके लिए था, और मैं अपनी खुशी उनके सपनों में देखती हूं।”

कुछ समय बाद, रवि और मोहन को अपनी मां के त्याग और प्रेम का एहसास हुआ। उन्हें समझ में आया कि उनके पास जो कुछ भी है, वह उनकी मां की वजह से है। वे तुरंत गांव लौटे और अपनी मां से माफी मांगी।

जानकी ने उन्हें गले लगाते हुए कहा, “बेटा, मैं तुमसे कभी नाराज नहीं हुई। मेरा सारा जीवन तुम्हारे लिए ही था। अगर तुम खुश हो, तो मैं खुश हूं।”

उस दिन से रवि और मोहन ने अपनी मां का ख्याल रखना शुरू किया। उन्होंने महसूस किया कि जानकी केवल उनकी मां नहीं, बल्कि त्याग की मूर्ति थी।

शिक्षा 
मां का त्याग और प्रेम दुनिया की सबसे अनमोल चीज है। वह अपने बच्चों के लिए अपने सपनों, इच्छाओं और सुखों को त्याग देती है। हमें अपने माता-पिता के बलिदानों की कद्र करनी चाहिए और उनके प्रति सम्मान और प्रेम दिखाना चाहिए। त्याग का असली अर्थ तभी पूरा होता है, जब हम उसके मूल्यों को समझते और उनका आदर करते हैं। 

पहेली का उत्तर : साबुन
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प्रार्थना:
हे ईश्वर आप ही इस धरती और इस ब्रह्मांड के निर्माण करता हो। आप सभी के जीवन के करता-धर्ता है, आप ही सभी प्राणियों के सुख-दुख को हरने वाले हो। हे ईश्वर हमें सुख-शांति का रास्ता दिखाने का उपकार करें। हे श्रृष्टि के रचियता! हे परमपिता परमेश्वर! हमारी आपसे यही विनती है कि आप मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें और हमारे जीवन को उज्जवल बनाए।

मंत्र:
त्वमेव माता च पिता त्वमेव।
त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव।
त्वमेव विद्या द्रविणम् त्वमेव।
त्वमेव सर्वम् मम देव देव।

अर्थ: हे ईश्वर! तुम्हीं मेरी माता हो, तुम्हीं मेरे पिता हो, तुम्हीं मेरे भाई हो तथा तुम्हीं मेरे मित्र हो। तुम्हीं मेरा ज्ञान (विद्या), मेरा धन (संपदा,पराक्रम,सामर्थ्य आदि) हो। हे देवाधिदेव तुम्हीं मेरे सर्वस्व हो।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारे विचार और सोच में अद्भुत ताकत होगी। तुम्हारी सकारात्मक सोच तुम्हें हर मुश्किल का सामना करने में मदद करेगी। मैं जानती हूं कि तुम अपनी इस शक्ति से दुनिया में एक नई रोशनी लाओगे। तुम्हारा जीवन प्रेरणा और सकारात्मकता से भरा होगा। जब भी कोई चुनौती आए, तुम उसे अपने साहस और आत्मविश्वास से जीत लोगे।”

पहेली:
एक थाल मोतियों से भरा, सबके सिर पर उल्टा धरा। 
चारो ओर फिरे वो थाल, मोती उससे एक ना गिरे ?

कहानी: दया का महत्व
बहुत समय पहले, एक गांव में रमेश नाम का एक व्यापारी रहता था। वह अपने व्यवसाय में बहुत सफल था और गांव के सबसे अमीर लोगों में से एक था। लेकिन रमेश के पास धन तो बहुत था, पर उसका दिल कठोर और स्वार्थी था। वह किसी की मदद नहीं करता और हमेशा अपने स्वार्थ के बारे में सोचता।

एक दिन, एक बूढ़ा भिखारी रमेश के घर के पास आया। वह बहुत कमजोर और भूखा लग रहा था। उसने रमेश से कुछ खाना मांगा। रमेश ने उसे गुस्से से देखा और कहा, “मेरे पास तुम्हारे लिए कुछ नहीं है। जाओ, यहां से।”

भिखारी उदास होकर वहां से चला गया। लेकिन जाते-जाते उसने कहा, “आपके पास सब कुछ है, फिर भी आपके मन में दया नहीं। ऐसा जीवन किस काम का?”

उस रात रमेश ने एक अजीब सपना देखा। उसने देखा कि वह एक बड़े रेगिस्तान में अकेला भटक रहा है। उसे बहुत प्यास लगी थी, लेकिन दूर-दूर तक पानी का कोई स्रोत नहीं था। वह मदद के लिए चिल्लाता रहा, लेकिन कोई उसकी मदद करने नहीं आया।

अचानक, वही बूढ़ा भिखारी उसके सामने प्रकट हुआ। उसने कहा, “जब तुमने मेरी मदद नहीं की, तो अब तुम्हारी मदद कौन करेगा?” रमेश डर के मारे जाग गया। उसका दिल तेज़ी से धड़क रहा था।

अगले दिन, रमेश ने अपने सपने के बारे में सोचा और महसूस किया कि उसने अपने जीवन में कभी दया का महत्व नहीं समझा। उसने तय किया कि वह अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करेगा।

उसने सबसे पहले उस बूढ़े भिखारी को ढूंढा और उसे भोजन, कपड़े और रहने के लिए एक जगह दी। इसके बाद, उसने गांव के गरीब और जरूरतमंद लोगों की मदद करनी शुरू की। उसने बच्चों के लिए स्कूल बनवाया, गरीबों के लिए एक चिकित्सालय खोला, और गांव में पानी की सुविधा प्रदान की। 

धीरे-धीरे रमेश का दिल बदलने लगा। उसे महसूस हुआ कि दूसरों की मदद करने और उनके चेहरे पर मुस्कान लाने से जो खुशी मिलती है, वह किसी भी धन-संपत्ति से अधिक मूल्यवान है।

गांव के लोग अब रमेश को एक दयालु और उदार व्यक्ति के रूप में जानने लगे। उसने अपने जीवन में दया का महत्व समझा और दूसरों को भी इसका महत्व सिखाने लगा।

शिक्षा
दया का महत्व हमारे जीवन को सच्चा अर्थ देता है। यह न केवल दूसरों के जीवन में खुशियां लाती है, बल्कि हमें भी भीतर से सुख और संतोष प्रदान करती है। हमें हमेशा दूसरों की मदद करने के लिए तैयार रहना चाहिए, क्योंकि दया का छोटा सा कार्य भी किसी की जिंदगी बदल सकता है।

पहेली का उत्तर : आसमान
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प्रार्थना:
प्रार्थना है यही मेरी, हनुमान जी, 
मेरे सर पर भी अब हाथ धर दीजिए, 
राम सीता का दर्शन कराके मुझे, 
मेरे सपने को साकार कर दीजिए ॥

दुख देते है मुझे मेरे ही पाप, 
मेरे मन में है क्या, जानते आप हैं, 
आप हर रूप है इसलिए कर कृपा, 
मेरे हर एक संकट को हर लीजिए, 
प्रार्थना है यहीं .......

मैं भावुक तो हूं पर नहीं भक्त हूं, 
इसी कारण तो विषयों में आसक्त हूं 
वासना मुक्त कर मेरे मन को प्रभु 
राम सीता की भक्ति से भर दीजिए, 
प्रार्थना है यहीं...... 

तन निरोगी रहे, धन भी भरपुर हो, 
मन भजन में रहे, द्वंद्व दुख दूर हो, 
कर्ज भी ना रहे, मर्ज भी ना रहे, 
फर्ज निभाते रहे ऐसा वर दीजिए, 
प्रार्थना है यहीं .....II

मैं कथा भी कहूं सियाराम की, 
मैं भक्ति भी करूं तो सिया राम की, 
मेरे हर एक संकट को हर लीजिये ,
प्रार्थना है यहीं .....॥

मंत्र:
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये॥

अर्थ: जिनकी गति, मन के समान तथा वेग वायु के समान है, जिन्होंने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है, जो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, पवन के पुत्र एवं वानरों की सेना के मुखिया हैं तथा श्री रामचन्द्र के दूत हैं। ऐसे हनुमान जी की मै शरण लेता हूँ और उन्हें प्रणाम करता हूँ।

गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारा जीवन सूरज की रोशनी की तरह उज्ज्वल और ताकतवर होगा। जैसे सूरज हर सुबह नई शुरुआत करता है, वैसे ही तुम्हारा हर दिन नई उम्मीदें और सकारात्मकता लेकर आएगा। तुम्हारे चारों ओर हमेशा ऊर्जा और उत्साह का माहौल रहेगा। मैं तुम्हारे लिए यही चाहती हूं कि तुम हर दिन की शुरुआत मुस्कान और आत्मविश्वास से करो।”

पहेली:
कटोरी पे कटोरा बेटा बाप से गोरा ?

कहानी: कर्ण की उदारता
महाभारत के समय में कर्ण को उनकी उदारता के लिए जाना जाता था। वह अंग देश के राजा थे, लेकिन उनका जन्म और जीवन संघर्ष से भरा हुआ था। कर्ण को बचपन में अपनी पहचान और अपने अधिकारों के लिए लड़ना पड़ा, क्योंकि वह सूतपुत्र कहलाए और समाज ने उन्हें अपनाने से इंकार कर दिया। लेकिन इन सबके बावजूद, कर्ण का दिल बड़ा और उदारता से भरा था।

कर्ण के जीवन का हर अध्याय उनकी दयालुता और उदारता की कहानी कहता है। वह किसी भी याचक को खाली हाथ नहीं जाने देते थे। चाहे वह धन, वस्त्र, भोजन, या कुछ भी हो, कर्ण ने हमेशा अपने पास जो भी था, उसे दूसरों के साथ साझा किया। 

एक बार की बात है, जब कर्ण अंगदेश के राजा बन चुके थे। उनके दरबार में एक ब्राह्मण आया और उनसे अपनी गाय के लिए मदद मांगी, जो खो गई थी। कर्ण ने बिना सोचे-समझे अपने निजी खजाने से गायें देकर ब्राह्मण की मदद की। इस घटना ने उनके दरबार में उपस्थित सभी लोगों को उनकी उदारता का एक और प्रमाण दिया।

कर्ण की उदारता का सबसे बड़ा उदाहरण तब देखने को मिला जब भगवान इंद्र, अर्जुन के पिता, उनसे कवच और कुंडल मांगने आए।

कर्ण को यह पता था कि कवच और कुंडल उनके जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण थे, क्योंकि ये उन्हें किसी भी युद्ध में अमरता प्रदान करते थे। लेकिन जब इंद्र एक ब्राह्मण के वेश में उनके पास आए और उनसे ये कवच-कुंडल मांगे, तो कर्ण ने अपनी जान की परवाह किए बिना उन्हें सौंप दिया।

इस घटना ने उनकी सच्ची उदारता को उजागर किया। कर्ण के लिए अपनी प्रतिष्ठा और सिद्धांत किसी भी चीज से अधिक महत्वपूर्ण थे। उन्होंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया, वह दूसरों की भलाई और सम्मान के लिए किया।

कर्ण की उदारता केवल धन या वस्त्र तक सीमित नहीं थी। वह अपने मित्र, दुर्योधन, के प्रति भी अटूट निष्ठा रखते थे। चाहे परिस्थिति कैसी भी हो, उन्होंने हमेशा दुर्योधन का साथ दिया, भले ही इसके लिए उन्हें समाज और धर्म के विरुद्ध जाना पड़ा।

महाभारत के युद्ध में, जब उनका सामना अर्जुन से हुआ, तो उन्होंने अपनी पूरी शक्ति लगाई, लेकिन भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया। भगवान कृष्ण ने स्वयं उनकी प्रशंसा की और कहा कि कर्ण जैसा दानवीर योद्धा पूरे महाभारत में दूसरा कोई नहीं है।

शिक्षा
कर्ण की उदारता हमें सिखाती है कि जीवन में सच्चा मूल्य संपत्ति या शक्ति में नहीं, बल्कि दूसरों के प्रति हमारी दयालुता और उदारता में है। चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, हमें अपने सिद्धांतों और मूल्यों को बनाए रखना चाहिए। उदारता केवल दूसरों को देने का नहीं, बल्कि अपनी आत्मा को समृद्ध करने का माध्यम है।

पहेली का उत्तर : नारियल
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प्रार्थना:
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे।।
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे।।

साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे ॥ १ ॥
हे हंसवाहिनी .....

लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे ॥२॥
हे हंसवाहिनी.......

मंत्र:
श्री राम राम रामेति रमे रामे मनोरमा, सहस्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने।

अर्थ: श्री राम के नाम का ध्यान करने से व्यक्ति परम शक्ति की दिव्य, स्वर्गीय कृपा को प्राप्त कर सकता है। और श्री राम का नाम भगवान विष्णु के हजार नामों के समान महान है।

गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! जीवन में कई बार कठिनाइयां आएंगी, लेकिन मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा अपनी सकारात्मक सोच बनाए रखो। तुम्हारे पास वो शक्ति है, जो हर परिस्थिति को बेहतर बना सकती है। जब भी कोई मुश्किल आए, तो उसे एक सीखने का अवसर मानना। तुम्हारी सकारात्मकता तुम्हें हर समय ऊंचाई तक ले जाएगी।”

पहेली:
एक पहेली सदा नवेली, जो बूझे सो ज़िंदा। 
जिन्दा में से मुर्दा निकले, मुर्दे में से ज़िंदा।

कहानी: मां सीता का धैर्य
सीता, जिन्हें रामायण की कथा में मर्यादा और धैर्य का प्रतीक माना जाता है, उनका जीवन संघर्षों और परीक्षाओं से भरा हुआ था। अयोध्या के राजकुमार श्रीराम की पत्नी होने के बावजूद, उनका जीवन एक साधारण रानी का नहीं था। उनका धैर्य और सहनशीलता हर परिस्थिति में उनकी सबसे बड़ी शक्ति थी।

सीता का जीवन उस समय बदल गया जब राम, लक्ष्मण और वे स्वयं 14 वर्षों के वनवास पर चले गए। सीता, जो महलों में पली-बढ़ी थीं, ने बिना किसी शिकायत के वनवास को अपनाया। उन्होंने वन में कठोर जीवन को धैर्य के साथ स्वीकार किया। हर कठिनाई का सामना किया। 

वनवास के दौरान, रावण ने छलपूर्वक उनका अपहरण कर लिया। रावण ने उन्हें लंका में अशोक वाटिका में बंदी बना लिया। यह सीता के जीवन की सबसे कठिन परीक्षा थी। रावण ने हर संभव प्रयास किया कि सीता उसकी बात मान लें, लेकिन सीता ने अपने धैर्य और आत्मबल से रावण के सभी प्रलोभनों को नकार दिया।

अशोक वाटिका में, सीताजी अकेली थीं। चारों ओर राक्षस थे और कोई मदद का आसरा नहीं था। लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

उनका धैर्य और राम के प्रति उनकी आस्था उन्हें हर दिन मजबूती देती थी। उन्होंने स्वयं को मानसिक और आध्यात्मिक रूप से इतना सशक्त बनाया कि रावण की धमकियां और उसकी ताकत भी उन्हें डरा नहीं सकीं।

जब राम और उनकी सेना ने लंका पर विजय प्राप्त की और रावण का वध किया, तब सीताजी को राम के पास ले जाया गया। लेकिन उनकी परीक्षा यहीं समाप्त नहीं हुई। राम ने समाज के सामने उनकी पवित्रता को सिद्ध करने के लिए उन्हें अग्निपरीक्षा देने को कहा। मां सीता ने बिना किसी प्रतिरोध के इसे स्वीकार किया। उन्होंने अपनी पवित्रता को प्रमाणित करने के लिए अग्नि में प्रवेश किया और सुरक्षित बाहर आ गईं। यह उनकी आस्था, धैर्य और सत्य की जीत का प्रतीक था। 

उनका धैर्य तब भी देखने को मिला जब अयोध्या लौटने के बाद उन्हें गर्भवती अवस्था में राम के आदेश पर वन में छोड़ दिया गया। उन्होंने इसे अपनी नियति मानकर सहर्ष स्वीकार किया। वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में उन्होंने अपने दोनों बेटों, लव और कुश को बड़े धैर्य और प्रेम से पाला। उन्होंने अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ निभाया, भले ही परिस्थितियां उनके खिलाफ थीं।

सीता का जीवन संघर्षों और दुखों से भरा था, लेकिन उन्होंने कभी अपनी मर्यादा और धैर्य का त्याग नहीं किया। उनका जीवन यह सिखाता है कि सबसे कठिन परिस्थितियों में भी आत्मविश्वास और धैर्य बनाए रखना सफलता की कुंजी है।

शिक्षा
मां सीता का धैर्य हमें सिखाता है कि जीवन में कितनी भी कठिनाइयां क्यों न आएं, अगर हम अपने विश्वास और आत्मबल के साथ खड़े रहें, तो हम हर परीक्षा में सफल हो सकते हैं। धैर्य और सहनशीलता ही जीवन की सबसे बड़ी ताकत है, जो हमें हर संघर्ष से पार पाने का साहस देती है।

पहेली का उत्तर : अंडा
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