प्रार्थनाअंतर्यामी परमात्मा को नमन,
शक्ति हमेशा मिलती रहे आपसे;
ऐसी कृपा कर दो, अज्ञान दूर हो, आतम ज्ञान पाएँ।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन....
सद्बुद्धि प्राप्त हो, व्यवहार आदर्श हो, सेवामय जीवन रहे।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन....
मात-पिता का उपकार ना भूलें, हरदम गुरु के विनय में रहें, दोस्तों से स्पर्धा ना करेंगे, एकाग्र चित्त से पढ़ेंगे हम;
अंतर्यामी परमात्मा को नमन...
आलस्य को टालो, विकारों को दूर कर दो, व्यसनों से हम मुक्त रहें, ऐसे कुसंगों से बचा लो हमें।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन....
मन-वचन और काया से, दुःख किसी को हम ना दें।
चाहे ना कुछ भी किसी का, प्योरिटी ऐसी रखेंगे हम।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन....
कल्याण के हम सब, निमित्त बने ऐसे,
विश्व में शांति फैलाएँ।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन....
पूर्ण रूप से हम खिलें, मुश्किलों से ना डरें... धर्मों के भेद मिटा दें जग में, ज्ञानदृष्टि को पाकर हम।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन....
अभेद हो जाएँ, लघुतम में रहकर हम,
प्रेम स्वरूप बन जाएँ।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन....
मंत्र:
ॐ महालक्ष्म्यै च विद्महे।
विष्णुपत्नी च धीमहि।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात्।।
अर्थ: हे देवी महालक्ष्मी! आप विष्णु की पत्नी हैं। हम आपका ध्यान करते हैं, कृपया हमें समृद्धि प्रदान करें।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे, तुम्हारी ऊर्जा और जोश इस दुनिया के लिए एक प्रेरणा बनेंगे। मैं चाहती हूं कि तुम्हारा हर कदम उत्साह और आत्मविश्वास से भरा हो। तुम्हारी मेहनत और लगन तुम्हें हर जगह पर सफल बनाएगी। तुम इस दुनिया में अपनी उपस्थिति से हर किसी को प्रेरित करोगे। तुम्हारी ऊर्जा का जादू हर दिल को छू लेगा।”
पहेली:
छोटी सी छोकरी, लालबाई है नाम
पहने है घाघरा, एक पैसा है दाम
कहानी: रानी लक्ष्मीबाई का साहस
रानी लक्ष्मीबाई, जिन्हें झांसी की रानी के नाम से भी जाना जाता है, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का वह अद्वितीय नाम हैं, जिन्होंने साहस, बलिदान और दृढ़ता का प्रतीक बनकर भारत के इतिहास में अपनी अमिट छाप छोड़ी। उनका जन्म 19 नवंबर 1828 को काशी (वाराणसी) में हुआ था। बचपन में उन्हें मणिकर्णिका नाम से पुकारा जाता था, लेकिन घर में उन्हें प्यार से मनु भी कहा जाता था।
मनु बचपन से ही असाधारण थीं। उन्होंने घुड़सवारी, तलवारबाजी और युद्ध कौशल में महारत हासिल की। उनकी शिक्षा-दीक्षा ऐसी थी, जो आम लड़कियों से अलग थी। उनका आत्मविश्वास और निडर स्वभाव बचपन से ही स्पष्ट था। जब उनकी शादी झांसी के राजा गंगाधर राव से हुई, तो वह झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के रूप में प्रसिद्ध हुईं।
उनकी जिंदगी में सबसे बड़ा मोड़ तब आया जब राजा गंगाधर राव की मृत्यु हो गई। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने “डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स” की नीति के तहत झांसी को अपने अधिकार में लेने की कोशिश की, क्योंकि उनके कोई जीवित उत्तराधिकारी नहीं थे। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के इस फैसले को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा, “मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।”
अपने दृढ़ निश्चय के साथ, रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी की रक्षा के लिए सेना का गठन किया। उन्होंने महिलाओं को भी युद्ध कौशल सिखाया और उन्हें अपनी सेना में शामिल किया। उन्होंने हर व्यक्ति को यह विश्वास दिलाया कि झांसी की रक्षा करना उनका कर्तव्य है।
1857 के स्वतंत्रता संग्राम में, झांसी अंग्रेजों के निशाने पर थी। रानी लक्ष्मीबाई ने बहादुरी से अंग्रेजों का सामना किया। जब अंग्रेजों ने झांसी पर हमला किया, तो रानी ने अपनी सेना का नेतृत्व करते हुए दुश्मनों को कड़ी टक्कर दी। युद्ध के दौरान, उनकी बहादुरी और युद्ध कौशल देखकर सभी दंग रह गए।
जब झांसी का किला अंग्रेजों के हाथ में जाने लगा, तो रानी ने अपने पुत्र दामोदर राव को पीठ पर बांधकर घोड़े पर सवार होकर किले से बाहर निकलने का साहसिक निर्णय लिया। उन्होंने कालपी और ग्वालियर की ओर कूच किया और वहां से स्वतंत्रता संग्राम को जारी रखा।
अंत में, 18 जून 1858 को ग्वालियर के पास अंग्रेजों के साथ हुई लड़ाई में रानी लक्ष्मीबाई वीरगति को प्राप्त हुईं। लेकिन उनकी बहादुरी और साहस ने अंग्रेजों को भी उनकी प्रशंसा करने पर मजबूर कर दिया।
रानी लक्ष्मीबाई का जीवन यह दिखाता है कि एक महिला के जीवन में चाहे कितनी भी कठिन परिस्थितियां क्यों न हों, अपने साहस और दृढ़ निश्चय से हर चुनौती का सामना कर सकती है।
उन्होंने अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए देशभक्ति और आत्मसम्मान का उदाहरण प्रस्तुत किया।
शिक्षा
रानी लक्ष्मीबाई का साहस हमें सिखाता है कि जीवन में कठिन परिस्थितियों का सामना करते हुए अपने अधिकारों और कर्तव्यों के लिए लड़ना चाहिए। उनका जीवन प्रेरणा देता है कि सच्चा साहस केवल शारीरिक ताकत में नहीं, बल्कि अपने आदर्शों और निश्चय पर अडिग रहने में है। उनकी बहादुरी और त्याग हर पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत है।
पहेली का उत्तर : लाल मिर्च
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प्रार्थना
1. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे (दुःखे), न दुभाया (दुःखाया) जाए या दुभाने (दुःखाने) के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे, ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए ।
2. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी धर्म का किंचितमात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाए या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाए ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए।
3. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दीजिए।
4. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति न अनुमोदित किया जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
5. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाए, न बुलवाई जाए या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे, मृदु-ऋजु भाषा बोलने की शक्ति दीजिए।
6. हे भगवान! मुझे, किसी भी देहधारी के प्रति स्त्री, पुरुष या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचितमात्र भी विषय-विकार संबंधी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किए जाएँ, न करवाए जाएँ या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे, निरंतर निर्विकार रहने की परम शक्ति दीजिए।
7. हे भगवान ! मुझे, किसी भी रस में लुब्धता न हो ऐसी शक्ति दीजिए।
समरसी आहार लेने की परम शक्ति दीजिए।
8. हे भगवान ! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष, जीवित अथवा मृत, किसी का किंचितमात्र भी अवर्णवाद, अपराध, अविनय न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
9. हे भगवान ! मुझे, जगत् कल्याण करने का निमित्त बनने की परम शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए।
मंत्र:
ॐ आदित्याय च सोमाय मंगळाय बुधाय च।
गुरु शुक्र शनिभ्यश्च राहवे केतवे नमः॥
अर्थः सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु सभी ग्रहों की कृपा से हमारा जीवन शांतिपूर्ण हो।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारी मुस्कान इस दुनिया को रोशन कर देगी। जैसे एक छोटी सी लौ अंधेरे में उजाला करती है, वैसे ही तुम्हारी मुस्कान और सकारात्मकता सभी को प्रेरित करेगी। तुम जहां भी जाओगे, वहां खुशी का माहौल बना सकोगे। मैं चाहती हूं कि तुम्हारा हर दिन उत्साह और उम्मीद से भरा हो। तुम्हारी मुस्कान न केवल तुम्हारे चेहरे को बल्कि पूरे वातावरण को भी रोशन करेगी।”
पहेली:
हरा चोर लाल मकान उसमें बैठा काला शैतान
कहानी: अब्दुल कलाम के सपने
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम, जिन्हें भारत का मिसाइल मैन और भारत रत्न कहा जाता है, का जीवन संघर्ष, समर्पण और सपनों की कहानी है। उनका जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम, तमिलनाडु के एक साधारण परिवार में हुआ। उनका बचपन अभावों में बीता, लेकिन उन्होंने अपनी परिस्थितियों को कभी अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया।
अब्दुल कलाम के पिता एक नाविक थे और उनकी माता गृहिणी। परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, लेकिन उनके माता-पिता ने हमेशा उन्हें शिक्षा का महत्व समझाया। कलाम बचपन से ही उत्सुक और जिज्ञासु प्रवृत्ति के थे। स्कूल में उनकी रुचि विज्ञान और गणित में अधिक थी।
कलाम के सपनों की शुरुआत तब हुई जब वे अपने स्कूल के शिक्षक से हवाई जहाज और उड़ानों के बारे में सुना करते थे। उनका सपना था कि वे एक दिन वैज्ञानिक बनकर देश के लिए कुछ महान कार्य करें। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और अपनी पढ़ाई में कभी कोई समझौता नहीं किया।
किशोरावस्था में, उन्होंने अखबार बेचकर अपनी पढ़ाई का खर्च उठाया। उनका यह संघर्ष बताता है कि वे अपने सपनों को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे।
विज्ञान के प्रति उनकी रुचि और दृढ़ निश्चय ने उन्हें मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी तक पहुंचाया, जहां उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
उनके सपनों का सबसे बड़ा उद्देश्य था कि भारत को वैज्ञानिक और तकनीकी रूप से सशक्त बनाया जाए। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) से की, जहां उन्होंने मिसाइल प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व योगदान दिया। उनके प्रयासों से भारत ने अग्नि और पृथ्वी मिसाइलें विकसित कीं।
अब्दुल कलाम का एक और बड़ा सपना था कि भारत आत्मनिर्भर और विकसित राष्ट्र बने। इसके लिए उन्होंने युवाओं को प्रेरित करने का कार्य शुरू किया। उनका मानना था कि अगर भारत के युवा शिक्षित और प्रेरित हों, तो देश का भविष्य उज्जवल है। वे हमेशा कहते थे, “सपने देखो, क्योंकि सपने ही विचारों को जन्म देते हैं, और विचारों से ही सफलता मिलती है।”
राष्ट्रपति बनने के बाद भी उन्होंने अपना जीवन सादगी और सेवा में बिताया। उनका सपना था कि हर भारतीय को समान अवसर मिले, विशेषकर शिक्षा के क्षेत्र में। उन्होंने ग्रामीण विकास, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के माध्यम से सामाजिक सुधार की बात की।
अब्दुल कलाम ने अपने जीवन के हर क्षण को अपने सपनों और देश की सेवा में समर्पित किया।
उनका सबसे बड़ा सपना था "2020 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाना।" हालांकि वे इस लक्ष्य को जीते जी पूरा होते नहीं देख सके, लेकिन उनके विचार और दृष्टि आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।
शिक्षा
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का जीवन यह सिखाता है कि परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर हमारे पास बड़े सपने हैं और उन्हें पूरा करने का दृढ़ निश्चय है, तो हम असंभव को भी संभव बना सकते हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि कड़ी मेहनत, शिक्षा और सकारात्मक सोच से किसी भी लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है। हमें उनसे प्रेरणा लेकर अपने सपनों को साकार करने के लिए सतत प्रयास करना चाहिए।
पहेली का उत्तर : तरबूज
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प्रार्थना:
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
हम है अकेले, हम है अधूरे
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी
वेदों की भाषा, पुराणों की बानी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू श्वेतवर्णी, कमल पर विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
मन से हमारे मिटाके अँधेरे
हमको उजालों का संसार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
मंत्र
ॐ आदित्याय विद्महे। भास्कराय धीमहि। तन्नो: भानु: प्रचोदयात्॥
अर्थ: मैं सूर्य देवता को नमन करता हूं। हे प्रभु, दिन के निर्माता, मुझे बुद्धि दो और मेरे मन को प्रकाशित करो
गर्भ संवाद
”मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारी सकारात्मक सोच तुम्हारे जीवन की सबसे बड़ी ताकत होगी। जीवन में जो भी समस्याएं आएंगी, तुम उन्हें अपने सकारात्मक दृष्टिकोण से हल करोगे। तुम्हारा हर कदम विश्वास और आशा से भरा होगा। मैं जानती हूं कि तुम किसी भी कठिनाई को पार कर सकते हो। तुम्हारी सोच की शक्ति तुम्हें दुनिया की सबसे बड़ी बाधाओं को भी पार करने में मदद करेगी।”
पहेली:
साँपों से भरी एक पिटारी, सब के मुँह में एक चिंगारी ।
जोड़ो हाथ तो निकले घर से, फिर घर पे सिर पटक दे।।
कहानी: चिड़ियों का संदेश
एक बार की बात है, एक घने जंगल में अलग-अलग प्रजातियों की चिड़ियां रहती थीं। ये चिड़ियां अपनी मधुर आवाज़, सुंदर रंग और सामूहिकता के लिए प्रसिद्ध थीं। जंगल की हर सुबह उनकी चहचहाहट से शुरू होती, और हर शाम उनके झुंड की उड़ानों से। चिड़ियों के झुंड का जीवन एकता और सहयोग का प्रतीक था।
लेकिन समय के साथ, जंगल में कुछ बदलाव आने लगे। इंसानों ने जंगल के कई हिस्सों में पेड़ों को काटना शुरू कर दिया। चिड़ियों के घोंसले उजड़ने लगे, और उनका रहने का स्थान कम होता गया। जो चिड़ियां पहले एक-दूसरे के साथ मिल-जुलकर रहती थीं, वे अब नए घर को खोजने में लग गईं।
इस कठिन समय में, जंगल की सबसे बुजुर्ग चिड़िया, जिसे सब “दादी चिड़िया” कहते थे, ने सभी चिड़ियों को इकट्ठा किया। उसने कहा, “हम सबका घर खतरे में है। अगर हम साथ मिलकर इसका सामना नहीं करेंगे, तो हम सभी को इस जंगल से हमेशा के लिए जाना पड़ेगा।”
कुछ चिड़ियों ने कहा, “लेकिन हम क्या कर सकते हैं? इंसान तो हमसे कहीं ज्यादा ताकतवर हैं।”
दादी चिड़िया ने मुस्कुराते हुए कहा, “ताकत केवल शरीर की नहीं होती, बल्कि सामूहिकता और बुद्धिमानी में भी होती है। अगर हम मिलकर काम करें, तो हम अपनी दुनिया को बचा सकते हैं।”
इसके बाद, चिड़ियों ने मिलकर काम करने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने घोंसलों के लिए सुरक्षित स्थान चुने और पेड़ों की रक्षा के लिए उपाय सोचे। उन्होंने जंगल के अन्य जानवरों को भी अपनी योजना में शामिल किया। जब भी इंसान पेड़ों को काटने आता, तो चिड़ियां अपनी तेज आवाज़ और सामूहिक उड़ानों से उन्हें डराने की कोशिश करतीं। उनकी इस कोशिश ने जंगल के जानवरों को भी प्रेरित किया, और सभी ने मिलकर अपने घर की रक्षा शुरू कर दी।
चिड़ियों की एकता और साहस देखकर इंसान भी हैरान रह गए। उन्होंने महसूस किया कि उनका यह काम जंगल के जीवों के लिए कितना विनाशकारी है। धीरे-धीरे, इंसानों ने जंगल में पेड़ों को काटना बंद कर दिया।
इस जीत के बाद, दादी चिड़िया ने सभी से कहा, “हमने मिलकर दिखा दिया कि एकता में कितनी ताकत होती है। अगर हम अलग रहते, तो हम कुछ नहीं कर पाते। लेकिन जब हम साथ आए, तो हमने असंभव को संभव बना दिया।” जंगल फिर से चहचहाने लगा, और चिड़ियों का झुंड पहले की तरह अपनी दुनिया में खुशहाल हो गया।
शिक्षा
चिड़ियों का संदेश हमें सिखाता है कि एकता और सामूहिकता में असीम शक्ति होती है। चाहे परिस्थितियां कितनी भी कठिन क्यों न हों, अगर हम मिलकर काम करें, तो किसी भी समस्या का समाधान संभव है। साथ मिलकर काम करना ही किसी भी चुनौती का सामना करने का सबसे बड़ा उपाय है।
पहेली का उत्तर : माचिस
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प्रार्थना:
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे।।
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे।।
हे हंसवाहिनी......
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे ॥ १ ॥
हे हंसवाहिनी .....
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥२॥
हे हंसवाहिनी ......
मंत्र:
ॐ अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राणवल्लभे।
ज्ञान वैराग्य सिद्ध्यर्थं भिक्षां देहि च पार्वती॥
अर्थः हे मां अन्नपूर्णा! आप हमें भोजन, ज्ञान और वैराग्य का आशीर्वाद दें।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारी ऊर्जा और उत्साह से लोग प्रेरित होंगे। तुम्हारे पास वह जादुई शक्ति है, जो दूसरों को भी अपनी ओर आकर्षित करेगी। जब तुम सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ोगे, तो तुम्हारे पीछे कई लोग तुम्हारे साथ चलेंगे। तुम एक ऐसा दीपक बनोगे जो इस दुनिया में हर कोने को रोशन करेगा। तुम्हारी ऊर्जा इस दुनिया में बदलाव लाएगी।”
पहेली:
सावन भादों खूब चलत है माघ पूस में थोरी,
अमीर खुसरो यूँ कहें तू बूझ पहेली मोरी।
कहानी: धरती का स्नेह
धरती, हमारी मां की तरह है। यह हमें न केवल जीवन देती है, बल्कि अपनी गोदी में हमें हर प्रकार की सुख-सुविधाएं भी प्रदान करती है। यह कहानी एक छोटे से गाँव के एक बच्चे की है, जो धरती के स्नेह को महसूस करता है और धीरे-धीरे इसे समझने लगता है।
गाँव में एक छोटा सा लड़का था, जिसका नाम रवी था। रवी का घर गाँव के बाहर खेतों के पास था, जहाँ उसके माता-पिता खेती करते थे। रवी को हर दिन सुबह-सुबह खेतों में काम करने का आदी बना दिया गया था, ताकि वह धरती से जुड़ा रहे और जीवन की कठिनाइयों को समझ सके।
एक दिन रवी अपने पिता के साथ खेत में हल चला रहा था। उसने देखा कि खेतों में उग रहे हर पौधे में अद्वितीय सौंदर्य था। चिड़ियाँ खेतों में उड़ रही थीं, तितलियाँ फूलों के बीच रंग-बिरंगी हो रही थीं, और हवा के हल्के झोंके उसे शीतलता का अहसास दिला रहे थे। रवी ने अपने पिता से पूछा, “पापा, ये धरती हमें इतनी सारी खुशियाँ क्यों देती है?”
उसके पिता ने मुस्कुराते हुए कहा, “रवी, धरती अपने स्नेह को हम तक पहुंचाती है, क्योंकि हम उसी का हिस्सा हैं। जैसे हम अपने बच्चों का ख्याल रखते हैं, वैसे ही धरती भी हमसे प्यार करती है और हमें साकार रूप से सब कुछ देती है। हमें भी इसका आदर करना चाहिए और इसे नुकसान नहीं पहुँचाना चाहिए।”
रवी ने अपने पिता की बातों को ध्यान से सुना और उसने तय किया कि वह जीवन भर धरती के साथ अच्छा व्यवहार करेगा। उसने अपने दोस्तों को भी यह सिखाया कि धरती हमें जो कुछ भी देती है, उसका हमें सही तरीके से उपयोग करना चाहिए।
धीरे-धीरे, रवी का गाँव अन्य गाँवों के मुकाबले हरियाली और साफ-सफाई में बढ़ने लगा। रवी की यह छोटी सी पहल धीरे-धीरे एक बड़े आंदोलन में बदल गई, जिसमें सभी लोग धरती के प्रति अपना प्रेम और स्नेह दिखाने लगे।
शिक्षा
धरती का स्नेह हमें यह सिखाता है कि हमें अपनी मां के साथ ही साथ धरती का भी सम्मान और प्रेम करना चाहिए। धरती हमें जीवन देती है, और हमें इसे संरक्षित रखने का दायित्व है। जब हम इसका ध्यान रखेंगे, तभी यह हमें अपनी गोदी में सुरक्षित रखेगी।
पहेली का उत्तर : नाली (मोरी )
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प्रार्थना:
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तारदे माँ
तू स्वर की देवी, ये संगीत तुझसे
हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे
हम है अकेले, हम है अधूरे
तेरी शरण हम, हमें प्यार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
मुनियों ने समझी, गुणियों ने जानी
वेदों की भाषा, पुराणों की बानी
हम भी तो समझे, हम भी तो जाने
विद्या का हमको अधिकार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
तू श्वेतवर्णी, कमल पर विराजे
हाथों में वीणा, मुकुट सर पे साजे
मन से हमारे मिटाके अँधेरे
हमको उजालों का संसार दे माँ
हे शारदे माँ, हे शारदे माँ
अज्ञानता से हमें तार दे माँ
मंत्र:
ॐ श्रीं गं सौभाग्य गणपतये। वर्वर्द सर्वजन्म में वषमान्य नमः॥
अर्थः हे सिद्धि विनायक! आप हमें सौभाग्य और समृद्धि प्रदान करें।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे, हर दिन एक नई शुरुआत होती है। तुम्हारे लिए हर सुबह नई उम्मीद और नए अवसर लेकर आएगी। तुम्हारी सोच और आत्मविश्वास तुम्हें हमेशा सफलता की ओर ले जाएंगे। हर दिन को एक नए उत्साह के साथ जीना और हर दिन को सबसे बेहतरीन बनाना तुम्हारे हाथ में है। तुम जैसा सोचोगे, वैसा तुम्हारा दिन बनेगा।”
पहेली:
भीतर चिलमन बाहर चिलमन, बीच कलेजा धड़के।
अमीर ख़ुसरो यूँ कहे वह दो दो उंगल सरके।।
कहानी: प्रकाश का मार्ग
प्रकाश, चाहे वह सूरज का हो, दीपक का हो, या मनुष्य के भीतर का हो, हमेशा हमें मार्ग दिखाता है। यह कहानी एक छोटे से गाँव की लड़की की है, जो जीवन के अंधेरे से जूझते हुए, अंततः प्रकाश का मार्ग ढूंढ लेती है।
पार्वती नामक एक लड़की थी, जो बहुत गरीब थी, लेकिन उसमें एक अनोखा गुण था–वह कभी भी हार नहीं मानती थी। उसके माता पिता खेती करते थे, और पार्वती भी उनकी मदद करती थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बढ़ा, उसके जीवन में कठिनाइयाँ और भी बढ़ गईं। उसके गाँव में सूखा पड़ गया और फसलें नष्ट हो गईं। लोग परेशान थे, और पार्वती के माता-पिता भी असमर्थ हो गए थे।
एक दिन पार्वती अपनी माँ के साथ बगीचे में जा रही थी। रास्ते में उसे एक बुजुर्ग महिला मिली, जो बहुत ही शांत और सौम्य थी। वह महिला पार्वती से बोली, “तुम्हारी आँखों में एक खास चमक है। तुम जरूर कुछ बड़ा कर सकती हो, बस तुम्हें प्रकाश का मार्ग खोजने की जरूरत है।”
पार्वती ने हैरान होकर पूछा, “प्रकाश का मार्ग?”
बूढ़ी महिला मुस्कुराई और बोली, “प्रकाश केवल सूरज का नहीं होता, बल्कि वह आत्मा का भी होता है। जब तुम अपने भीतर के प्रकाश को पहचानोगी, तो तुम्हारे जीवन में कोई भी अंधेरा नहीं रहेगा।”
यह बातें सुनकर पार्वती के मन में हलचल मच गई। उसने अगले कई दिनों तक आत्ममंथन किया और धीरे-धीरे उसने समझा कि जब तक वह खुद पर विश्वास नहीं करेगी, तब तक जीवन में कोई सकारात्मक बदलाव नहीं आएगा। उसने ठान लिया कि वह अपनी मुश्किलों का सामना करेगी और अपने गाँव के लिए कुछ अच्छा करेगी।
पार्वती ने आत्मविश्वास से अपनी समस्याओं का समाधान ढूंढने का प्रयास किया। उसने गाँव के बच्चों को पढ़ाने का निर्णय लिया। वह जानती थी कि शिक्षा ही जीवन में असली प्रकाश है। उसने गाँव के प्रत्येक बच्चे को शिक्षा देने का प्रण लिया और जल्द ही गाँव में एक स्कूल खुल गया। पार्वती ने प्रकाश का मार्ग ढूंढ लिया था, जो न केवल उसे, बल्कि उसके पूरे गाँव को उज्जवल भविष्य की ओर ले जा रहा था।
शिक्षा
प्रकाश का मार्ग हमें यह सिखाता है कि हमारे भीतर जो आत्मविश्वास और क्षमता है, वह ही हमें जीवन के कठिन रास्तों पर प्रकाश दिखाता है। केवल जब हम खुद पर विश्वास करते हैं, तभी हम अंधेरे को पार कर सकते हैं।
पहेली का उत्तर : कैंची
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प्रार्थना:
हे न्यायाधीश प्रभु! आप अपनी कृपा से हमको काम, क्रोध, लोभ, मोह, भय, शोक, आलस्य, प्रमाद, ईर्ष्या, द्वेष, विषय-तृष्णा, निष्ठुरता आदि दुर्गुणों से मुक्तकर श्रेष्ठ कार्य में ही स्थिर करें। हम अतिदिन होकर आपसे यही मांगते हैं कि हम आप और आपकी आज्ञा से भिन्न पदार्थ में कभी प्रीति ना करें।
मंत्र:
ॐ देवी महालक्ष्म्यै च विद्महे।
महाशक्त्यै धीमहि।
तन्नो: दुर्गा प्रचोदयात्॥
अर्थः हे मां दुर्गा! आप महाशक्ति और लक्ष्मी का स्वरूप हैं। आप हमें सुख, शांति और विजय का आशीर्वाद दें।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारी मेहनत और सकारात्मकता से तुम निश्चित रूप से सफलता प्राप्त करोगे। हर बार जब तुम संघर्ष करते हो, तो वह तुम्हें और मजबूत बनाएगा। तुम अपनी मेहनत और सच्चाई के साथ दुनिया को बदल सकोगे। मैं जानती हूं कि तुम्हारी सोच और प्रयास तुम्हें हमेशा ऊंचाइयों तक ले जाएंगे। तुम्हारी सकारात्मकता तुम्हें सफलता की ओर लगातार बढ़ाएगी।”
पहेली:
एक कहानी मैं कहूँ, सुनले मेरे पूत।
बिन परों के उड़ जाये, वो बांध गले में सूत।।
कहानी: मन की शांति
मन की शांति वह अनमोल संपत्ति है, जिसे कोई भी बाहरी संपत्ति नहीं खरीद सकती। यह कहानी एक साधु की है, जो अपने जीवन में शांति और संतुलन की तलाश में था।
गाँव में एक साधु बाबा रहते थे, जिनका नाम श्रीविभूति था। वे हमेशा शांत, संतुष्ट और सादगी से भरे रहते थे। कोई भी समस्या हो, वह कभी घबराते नहीं थे। लोग उनसे अक्सर सलाह लेने आते, लेकिन एक दिन एक युवक ने उनसे पूछा, “बाबा, आपके पास जो शांति है, वह मुझे कैसे मिलेगी?”
श्रीविभूति ने गहरी साँस ली और कहा, “शांति बाहर नहीं, भीतर से आती है। तुम जितनी बार बाहर की दुनिया में शांति की तलाश को निकलोगे, उतना ही खो जाओगे। असली शांति तब मिलती है, जब तुम अपने भीतर के हिलोरों को शांत कर पाओ।”
युवक ने पूछा, “लेकिन बाबा, मेरे मन में तो हमेशा उथल-पुथल रहती है। मैं क्या करूँ?”
श्रीविभूति ने मुस्कुराते हुए कहा, “मन की शांति केवल साधना और ध्यान से आती है। तुम हर दिन कुछ समय खुद को देना शुरू करो, अपने विचारों को शांत करने के लिए जब तुम ध्यान में बैठोगे और अपने भीतर की आवाज़ सुनोगे, तो तुम्हें पता चलेगा कि तुम खुद ही अपने सबसे बड़े गुरु हो।”
युवक ने बाबा की बातों को गहराई के साथ ग्रहण किया और धीरे-धीरे उसने ध्यान करना शुरू किया। कुछ समय बाद, वह अनुभव करने लगा कि उसके मन की शांति वापस लौट रही है। उसने यह समझ लिया था कि जब हम अपने भीतर की शांति को पहचानने लगते हैं, तब हम बाहरी दुनिया की उथल-पुथल से प्रभावित नहीं होते।
शिक्षा
मन की शांति हमें यह सिखाती है कि बाहर के शोर से दूर हमें अपने भीतर की शांति की ओर ध्यान देना चाहिए। शांति बाहरी संसार में नहीं, बल्कि हमारे भीतर है, जिसे केवल आत्मनिरीक्षण और ध्यान से खोजा जा सकता है।
पहेली का उत्तर : पतंग
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प्रार्थना:
सभी सुखी हो, सबका मंगल हो, सबका कल्याण हो, सबका दुःख दुर हो, सबका वैर शांत हो। इस संसार मे रहने वाले सारे प्राणियो की पीड़ा समाप्त हो वे सुखी और शांत हो। चाहे वे जीव जल मे रहने वाले हो या स्थल मे या फिर गगन मे रहने वाले। सभी सुखी हो। इस पूरे ब्रह्माण्ड मे सभी दृश्य और अदृश्य जीवो का कल्याण हो। बह्मांड मे रहने वाले सभी जीव और प्राणी सुखी हो वे पीड़ा से मुक्त हो।
मंत्र:
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे।
महादेवाय धीमहि।
तन्नो: शिवः प्रचोदयात्॥
अर्थः हे महादेव! आप हमें सन्मार्ग और ज्ञान का प्रकाश दें।
गर्भ संवाद
— मेरे प्यारे शिशु, मेरे राज दुलार, मैं तुम्हारी माँ हूँ.......माँ !
— मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ, तुम मेरे गर्भ में पूर्ण रूप से सुरक्षित हो, तुम हर क्षण पूर्ण रूप से विकसित हो रहे हो।
— तुम मेरे हर भाव को समझ सकते हो क्योंकि तुम पूर्ण आत्मा हो।
— तुम परमात्मा की तरफ से मेरे लिए एक सुन्दरतम तोहफा हो, तुम शुभ संस्कारी आत्मा हो, तुम्हारे रूप में मुझे परमात्मा की दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, परमात्मा ने तुम्हें सभी विलक्षण गुणों से परिपूर्ण करके ही भेजा है, परमात्मा की दिव्य संतान के रूप में तुम दिव्य कार्य करने के लिए ही आए हो। मेरे बच्चे! तुम
ईश्वर का परम प्रकाश रूप हो, परमात्मा की अनंत शक्ति तुम्हारे अंदर विद्यमान है, ईश्वर का तेज तुम्हारे माथे पर चमक रहा है, परमात्मा के प्रेम की चमक तुम्हारी आँखों में दिखाई देती है, तुम ईश्वर के प्रेम का साक्षात भण्डार हो, तुम परमात्मा के एक महान उद्देश्य को लेकर इस संसार में आ रहे हो, परमात्मा ने तुम्हें इंसान रूप में इंसानियत के सभी गुणों से भरपूर किया है।
— तुम हर इंसान को परमात्मा का रूप समझते हो, और सभी के साथ प्रेम का व्यवहार करते हो, तुम जानते हो अपने जीवन के महानतम लक्ष्य को, तुम्हें इस संसार की सेवा करनी है, सभी से प्रेम करना है, सभी की सहायता करनी है, और परमात्मा ने जो विशेष लक्ष्य तुम्हें दिया है, वह तुम्हें अच्छे से याद रहेगा।
— परमात्मा की भक्ति में तुम्हारा मन बहुत लगता है, तुम प्रभु के गुणों का गायन करके बहुत खुश होते हो, तुम्हारे रोम-रोम में प्रभु का प्रेम बसा हुआ है। स्त्रियों के प्रति तुम विशेष रूप से आदर का भाव अनुभव करते हो, सभी स्त्रियों को सम्मान की दृष्टि से देखते हो।
— तुम्हारा उद्देश्य संसार में सबको खुशियाँ बाँटना है, सब तरह से आजाद रहते हुए तुम सबको कल्याण का मार्ग दिखाने आ रहे हो, परमात्मा से प्राप्त जीवन से तुम पूर्ण रूप से संतुष्ट हो, तुम सदैव परमात्मा के साये में सुरक्षित हो।
— मानव जीवन के संघर्षो को जीतना तम्हें खूब अच्छी तरह से आता है, जीवन के प्रत्येक कार्य को करने का तुम्हारा तरीका बहुत प्यारा है, जीवन की हर परेशानी का हल ढूँढने में तुम सक्षम हो, तुम हमेशा अपने जीवन के परम लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहोगे।
— मेरी तरह तुम्हारे पिता भी तुम्हें देखने के लिए आतुर हैं, मेरा और तुम्हारे पिता का आशीष सदैव तुम्हारे साथ है।
— यह पृथ्वी हमेशा से प्रेम करने वाले अच्छे लोगों से भरी हुई है, यह सृष्टि परमात्मा की अनंत सुंदरता से भरी हुई है, यहाँ के सभी सुख तुम्हारा इंतजार कर रहे हैं, गर्भावस्था का यह सफर तुम्हें परमात्मा के सभी दैविक संस्कारों से परिपूर्ण कर देगा।
—घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है।
गर्भ संवाद:
“मेरे प्यारे बच्चे, जीवन में हमेशा सच्चाई का पालन करना। सच्चाई का रास्ता कठिन जरूर हो सकता है, लेकिन यह हमेशा तुम्हें सही दिशा दिखाएगा। किसी भी स्थिति में सच्चाई से पीछे मत हटना, क्योंकि सच्चाई ही तुम्हें सम्मान और विश्वास दिलाएगी। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा सच्चे बनो, चाहे परिस्थितियां जैसी भी हों। तुम्हारी सच्चाई तुम्हारे जीवन को एक नई दिशा देगी।”
पहेली:
हाल-चाल यदि पूछो उससे, नहीं करेगा बात।
सीधा सादा लगता है, पर पेट में रखता दांत।।
कहानी: चींटी और कबूतर
बहुत समय पहले की बात है, एक हरे भरे जंगल में एक छोटी सी चींटी रहती थी। वह मेहनत और ईमानदारी से अपना काम करती थी। गर्मी के मौसम में चींटी दिन-रात भोजन इकट्ठा करती, ताकि सर्दी के मौसम में उसके पास खाने के लिए पर्याप्त भोजन हो। उसकी कड़ी मेहनत की कोई सीमा नहीं थी, और वह कभी भी थककर नहीं बैठती थी।
एक दिन की बात है, जब चींटी अपने घर से बाहर निकलकर नदी के किनारे अपने भोजन का सामान इकट्ठा करने जा रही थी। अचानक उसका पैर फिसला और वह नदी में गिर पड़ी। नदी का पानी बहुत तेज बह रहा था, और चींटी को बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। वह डूबने लगी, चिल्लाती रही, लेकिन कोई उसकी मदद नहीं कर रहा था।
तभी, एक कबूतर ने यह दृश्य देखा। कबूतर ने तुरंत सोचा और अपनी चोंच से एक हरा पत्ता तोड़ा, फिर उसे नदी के पानी में डुबोकर चींटी के पास ले आया। उसने पत्ते को पानी में डुबोकर चींटी के पास रखा। चींटी ने उस पत्ते पर चढ़कर खुद को बचाया। कबूतर ने उसकी मदद की, और चींटी सुरक्षित नदी के किनारे पहुंच गई।
चींटी ने कबूतर का धन्यवाद किया और कहा, “तुमने मेरी जान बचाई। मैं हमेशा तुम्हारी मदद करने के लिए तैयार रहूँगी।”
कबूतर ने मुस्कुराते हुए कहा, “यह मेरी छोटी सी मदद थी, लेकिन मुझे खुशी है कि मैं तुम्हारी सहायता कर सका।”
कुछ समय बाद, एक शिकारी ने कबूतर को फंसा लिया और एक जाल में पकड़ लिया। कबूतर बुरी तरह से फंस गया और बेचैन होकर चिल्ला रहा था। चींटी जो पास ही थी, उसने कबूतर की आवाज़ सुनी। वह तुरंत जाल के पास पहुंची और अपनी छोटी-सी काटने वाले जबड़ों से जाल को काटा। धीरे-धीरे जाल टूट गया और कबूतर बाहर आ गया।
कबूतर ने चींटी का धन्यवाद किया और कहा, “तुमने मेरी जान बचाई। कभी भी तुम्हारे एहसान को नहीं भूलूँगा।” चींटी ने मुस्कुराते हुए कहा, “तुमने मुझे बचाया था, तो यह मेरी जिम्मेदारी थी कि मैं तुम्हारी मदद करूँ।”
शिक्षा
यह कहानी हमें सिखाती है कि छोटी-सी मदद भी किसी के जीवन को बदल सकती है। हमें कभी यह नहीं सोचना चाहिए कि हम किसी की मदद करने में बहुत छोटे या कमजोर हैं। यदि हम अपनी क्षमता से मदद करते हैं, तो वह किसी के लिए बहुत मूल्यवान हो सकती है। किसी का अहसान कभी नहीं भूलना चाहिए, और मदद का सिलसिला हमेशा चलता रहना चाहिए।
पहेली का उत्तर : अनार
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प्रार्थना:
प्रह्लाद, नारद, पाराशर, पुंडरीक, व्यास, अंबरीश, शूक, शौनक, भीष्म, दाल्भ्य, रूक्मांगद, अर्जुन, वशिष्ठ और विभीषण आदि इन परम पवित्र वैष्णवो का मै स्मरण करता हूं।
वाल्मीकि, सनक, सनंदन, तरु, व्यास, वशिष्ठ, भृगु, जाबाली, जमदग्नि, कच्छ, जनक, गर्ग, अंगिरा, गौतम, मांधाता, रितुपर्ण पृथु, सगर, धन्यवाद देने योग्य दिलीप और नल, पुण्यात्मा युधिष्ठिर, ययाति और नहुष ये सब हमारा मंगल करें।
मंत्र:
ॐ नारायणाय विद्महे।
वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
अर्थः हे भगवान नारायण! आप हमारे मन को शुद्ध करें और हमें प्रेम और भक्ति का मार्ग दिखाएँ।
गर्भ संवाद:
मेरे प्यारे शिशु, मेरे बच्चे, मैं तुम्हारी माँ हूँ …… माँ!
— आज मैं तुम्हे तुम्हारे कुछ महानतम गुणों की याद दिला रही हूँ जो तुम्हें परमात्मा का अनमोल उपहार हैं।
— प्रेम स्वरूप परमात्मा का अंश होने के कारण तुम्हारा हृदय भी प्रेम से भरपूर है, तुम्हारी हर अदा में परमात्मा का प्रेम झलकता है।
— तुम्हारे हृदय में सम्पूर्ण मानवमात्र के प्रति समभाव है।
— तुम्हारा हृदय सबके लिए दया और करुणा से भरपूर रहता है।
— क्षमाशीलता के गुण के कारण सभी तुम्हारा सम्मान करते हैं, जिससे तुम्हारा स्वभाव और विनम्र हो जाता है।
— नम्रता तुम्हारा विशेष गुण है।
— मेरे बच्चे। तुम्हारा प्रत्येक कार्य सेवा-भाव से परिपूर्ण होता है।
— सहनशीलता तुम्हारा स्वाभाविक गुण है।
— धैर्यपूर्वक प्रत्येक कार्य को करना तुम्हारी महानता है।
— तुम्हारा मन आंतरिक रूप से स्थिर और शांत है।
— मेरे बच्चे! तुम बल और साहस के स्वामी हो।
— तुम अनुशासन प्रिय हो।
— कृतज्ञता का गुण तुम्हारे व्यवहार की शोभा बढ़ाता है।
— तुम अपनो से बड़ों को सम्मान और छोटों को प्रेम देते हो।
— तुम भाव से बहुत भोले हो लेकिन जरूरत पड़ने पर अपनी कठोरता भी दिखाते हो।
— तुम अपनो से छोटों के लिए प्रेरणा के स्त्रोत हो।
— तुम सत् और असत के पारखी हो।
— तुम्हारा व्यवहार चन्द्रमा के समान शीतल है।
— तुम सबसे इतना मीठा बोलते हो कि सभी तुम पर मोहित हो जाते हैं।
— तुम्हारा व्यक्तित्व परम प्रभावशाली है।
— तुम हमेशा सत्य बोलना ही पसंद करते हो।
— तुम हाजिर जवाबी हो।
— तुम्हारे मुख से निकला एक-एक शब्द मधुर और आकर्षक होता है।
— तुम मन, वचन और कर्म से पवित्र हो।
— घर के सभी सदस्यों का आशीर्वाद सदा तुम्हारे साथ है। तुम्हारे रूप में मुझे जैसे दिव्य संतान प्राप्त हो रही है, तुम्हे पाकर मैं बहुत प्रसन्न हूँ। जल्द ही इस सुन्दर संसार में तुम्हारा आगमन होगा। तुम्हारा स्वागत करने के लिए सभी बेचैन हैं।
पहेली:
गोल हूँ पर गेंद नहीं, लाल हूँ पर सेब नहीं।
जो भी मुझको खाते, मेरी गंध सदा फैलाते।
कहानी: कछुए और खरगोश की दौड़
यह कहानी एक जंगल के दो दोस्त कछुए और खरगोश की है। दोनों एक-दूसरे के अच्छे मित्र थे, लेकिन उनकी सोच और स्वभाव में काफी अंतर था। खरगोश बहुत तेज दौड़ता था और उसे यह विश्वास था कि वह किसी से भी तेज दौड़ सकता है। वहीं, कछुआ धीमी गति से चलता था, लेकिन उसका मन बहुत दृढ़ था और उसे अपने लक्ष्य तक पहुंचने की पूरी उम्मीद रहती थी।
एक दिन खरगोश ने कछुए को चिढ़ाते हुए कहा, “तुमसे धीमा दौड़ने वाला कोई नहीं हो सकता। मैं तुम्हें चुनौती देता हूं कि हम दोनों एक दौड़ लगाएं।” कछुए ने खरगोश की बातों को गंभीरता से लिया और उसने चुनौती स्वीकार कर ली।
दौड़ का दिन आया और दोनों तैयार हो गए। सभी जानवरों ने आकर उनकी दौड़ देखने का निर्णय लिया। दौड़ शुरू होते ही खरगोश ने तेज़ी से दौड़ लगाई और कछुए को पीछे छोड़ दिया। खरगोश इतना तेज दौड़ा कि कुछ ही देर में वह बहुत दूर निकल गया।
खरगोश ने सोचा, “इतनी तेज़ी से दौड़ रहा हूँ, अब मुझे थोड़ी देर आराम करना चाहिए। कछुआ तो बहुत पीछे है, वह कभी मुझे नहीं पकड़ पाएगा।” यह सोचकर वह एक पेड़ के नीचे आराम करने के लिए लेट गया और सो गया।
इधर कछुआ धीमी गति से दौड़ता चला जा रहा था। उसने ना तो रुकने की सोची और ना ही आराम किया। वह लगातार अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता गया, जबकि खरगोश गहरी नींद में था।
समय बीतता गया और अंत में कछुआ अपने लक्ष्य तक पहुंच गया। जब खरगोश नींद से जागा, तो उसने देखा कि कछुआ पहले ही फ़िनिश लाइन को पार कर चुका था। खरगोश चौंक गया, लेकिन उसे यह समझ में आ गया कि उसकी जल्दबाजी और घमंड ने उसे नुकसान पहुँचाया।
शिक्षा
यह कहानी हमें सिखाती है कि “धीरे-धीरे चलो, मगर बिना रुके चलो।” सफलता के लिए धैर्य, निरंतरता और एकाग्रता सबसे जरूरी हैं। घमंड और जल्दबाजी से हम अपने लक्ष्यों से दूर हो सकते हैं। वहीं, कड़ी मेहनत और सही दिशा में लगातार काम करने से सफलता जरूर मिलती है।
पहेली का उत्तर : प्याज
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