प्रार्थना:तूने हमें उत्पन्न किया, पालन कर रहा है तू।
तुझसे ही पाते प्राण हम, दुखियों के कष्ट हरता तू ॥
तेरा महान् तेज है, छाया हुआ सभी स्थान।
सृष्टि की वस्तु-वस्तु में, तू हो रहा है विद्यमान ॥
तेरा ही धरते ध्यान हम, मांगते तेरी दया।
ईश्वर हमारी बुद्धि को, श्रेष्ठ मार्ग पर चला ॥
मंत्र:
ॐ जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी ।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते ॥
अर्थः हे अष्टभुजा वाली मां दुर्गा! आप हमें विजय, शक्ति और ममता प्रदान करें।
गर्भ संवाद
“भगवान के साथ संबंध हमेशा प्यार और विनम्रता से होना चाहिए। जब तुम भगवान से अपने दिल की बात करते हो, तो उसमें कोई झूठ, धोखा या गर्व नहीं होना चाहिए। सच्चा प्यार और विनम्रता भगवान के साथ तुम्हारे संबंध को मजबूत बनाती है। मैं चाहती हूं कि तुम भगवान से अपनी बात दिल से करो, बिना किसी झूठ के, क्योंकि वही सच्चे रिश्ते की शुरुआत है।”
पहेली:
पानी से निकला दरख्त एक
पात नहीं पर डाल अनेक।
एक दरख्त की ठण्डी छाया,
नीचे एक बैठ न पाया।
कहानी: नवरात्रि के नौ दिन
नवरात्रि का पर्व भारत में एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो हर साल विशेष श्रद्धा और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यह नौ दिनों का पर्व देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होता है, जिसमें भक्त अपनी आस्था और भक्ति के साथ माता रानी के विभिन्न रूपों की पूजा करते हैं।
कृष्णा एक छोटे से शहर में अपनी माँ के साथ रहती थी। कृष्णा एक बहादुर और जिद्दी लड़की थी। उसकी माँ ने उसे हमेशा यह सिखाया था कि जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, लेकिन अगर हम अपनी मेहनत और आस्था से काम लें तो किसी भी समस्या का समाधान मिल सकता है। नवरात्रि का पर्व कृष्णा के लिए विशेष था, क्योंकि वह अपनी माँ के साथ हर साल माता रानी की पूजा करती थी। इस बार कृष्णा ने मन ही मन ठान लिया कि इस नवरात्रि वह अपनी माँ की मदद से एक विशेष रूप से उपवास और पूजा करेगी।
पहले दिन, कृष्णा ने माँ के साथ घर में एक सुंदर देवी दुर्गा की मूर्ति स्थापित की और पूरे दिन का उपवास रखा। वह पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ पूजा करती और देवी से अपने जीवन की परेशानियों से मुक्ति की कामना करती। दूसरे दिन, उसने संकल्प लिया कि वह न केवल अपनी पूजा पूरी करेगी, बल्कि हर दिन अपने आसपास के लोगों के लिए कुछ अच्छा करेगी।
तीसरे दिन कृष्णा ने अपनी माँ के साथ मंदिर में जाकर देवी दुर्गा की विशेष पूजा अर्चना की। मंदिर में हवन किया गया और मंत्रोच्चार से वातावरण पूरी तरह से आस्था से भर गया। कृष्णा ने हर दिन देवी दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की और उनके आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए पूरे दिल से प्रार्थना की।
इस बीच, कृष्णा के जीवन में कुछ अजीब घटनाएँ होने लगीं। उसकी मेहनत और कठिनाइयों के बावजूद, उसे अचानक एक अवसर मिला, जिसमें उसे अपनी पढ़ाई में एक बड़ा पुरस्कार मिला। उसकी मां को भी अपने काम में सफलता मिलने लगी। यह सब देख, कृष्णा को यह विश्वास हो गया कि देवी दुर्गा की पूजा और उनके आशीर्वाद से उसके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ रहे हैं।
नवरात्रि के नौवें दिन, कृष्णा ने पूरा उपवास रखा और पूरे हर्ष और उल्लास के साथ पूजा की। उसने देवी दुर्गा से आशीर्वाद लिया और ठान लिया कि वह अपनी जिंदगी में आगे भी इसी तरह अपने माता-पिता और समाज की सेवा करती रहेगी।
इस नवरात्रि ने कृष्णा को सिर्फ एक धार्मिक अनुभव ही नहीं दिया, बल्कि उसे अपने जीवन के उद्देश्य और कर्मों की सच्चाई का भी एहसास हुआ। देवी दुर्गा के आशीर्वाद से उसकी सोच और दृष्टिकोण पूरी तरह से बदल गया।
शिक्षा
नवरात्रि के नौ दिन हमें यह सिखाते हैं कि अगर हम अपनी आस्था और समर्पण से किसी कार्य को करते हैं, तो उसका फल हमें जरूर मिलता है। नवरात्रि हमे यह भी सिखाती है कि अपने कर्मों के प्रति ईमानदारी और श्रद्धा से काम करने से जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए जा सकते हैं । जैसे देवी दुर्गा ने अपने भक्तों की कठिनाइयों को दूर किया, वैसे ही हमें भी अपने संघर्षों से जूझते हुए अपने जीवन में सफलता की ओर बढ़ना चाहिए।
पहेली का उत्तर : फुहारा
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प्रार्थना:
हे जग त्राता विश्व विधाता,
हे सुख शांति निकेतन।
प्रेम के सिन्धु, दीन के बन्धु,
दुःख दारिद्र विनाशन।
हे जग त्राता विश्व विधाता,
हे सुख शांति निकेतन
हे नित्य अखंड अनंन्त अनादि,
पूरण ब्रह्म सनातन।
हे जग त्राता विश्व विधाता,
हे सुख शांति निकेतन
हे जग आश्रय जग-पति जग-वन्दन,
अनुपम अलख निरंजन।
हे जग त्राता विश्व विधाता,
हे सुख शांति निकेतन
प्राण सखा त्रिभुवन प्रति-पालक,
जीवन के अवलंबन।
हे जग त्राता विश्व विधाता,
हे सुख शांति निकेतन
हे जग त्राता विश्व विधाता,
हे सुख शांति निकेतन
हे सुख शांति निकेतन
हे सुख शांति निकेतन।
मंत्र:
रामो राजमणिः सदा विजयते रामं रमेशं भजे
रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नमः
रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासो ऽस्म्यहं
रामे चितलयः सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर
अर्थः राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं। मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ। सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ। श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं। मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ। मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ। हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! भगवान की उपस्थिति हर जगह होती है, वह हमें हर पल अपने साथ महसूस करवा रहे होते हैं। हमें भगवान को सिर्फ मंदिर या पूजा स्थल में नहीं, बल्कि अपने दिल में भी महसूस करना चाहिए। भगवान का आशीर्वाद तब ही मिलता है, जब हम उन्हें अपने भीतर से समझते और महसूस करते हैं। मैं चाहती हूं कि तुम भगवान को हर जगह और हर समय महसूस करो, क्योंकि उनका आशीर्वाद हर क्षण तुम्हारे साथ है।”
पहेली:
हमने देखा अजब एक बन्दा,
सूरज के सामने रहता ठण्डा।
धूप में जरा नहीं घबराता।
सूरज की तरफ मुँह लटक जाता।
कहानी: बेटी के लिए मां का संघर्ष
राधिका एक संघर्षशील महिला थी। उसकी शादी को कई साल हो गए थे और एक प्यारी सी बेटी पंखुड़ी, थी। पंखुड़ी का जन्म राधिका के लिए भगवान का आशीर्वाद था, लेकिन जीवन में आने वाली कठिनाइयों ने राधिका की जिंदगी को और भी चुनौतीपूर्ण बना दिया था। उसका पति अरुण, एक छोटे से ऑफिस में काम करता था, लेकिन उसकी आय इतनी कम थी कि परिवार का पालन-पोषण ठीक से नहीं हो पा रहा था।
राधिका की जिंदगी का सबसे बड़ा लक्ष्य अपनी बेटी को अच्छे संस्कार देना था। वह चाहती थी कि पंखुड़ी को किसी भी प्रकार की कमी महसूस न हो और उसकी शिक्षा, संस्कार, और जीवन के मूल्यों में कोई कमी न आए। लेकिन परिवार की आर्थिक स्थिति ने यह काम बहुत कठिन बना दिया था।
राधिका दिन-रात मेहनत करती थी। वह घर का काम करती, बच्चों को पढ़ाती और शाम को छोटे-मोटे कामों के लिए बाहर भी जाती। उसे बहुत कठिनाई होती थी, लेकिन उसने कभी भी हार नहीं मानी। वह हमेशा अपने पति से कहती, “हमारे पास जितना है, उससे संतुष्ट रहो, लेकिन हमारी बेटी को हमेशा अच्छी शिक्षा और संस्कार दो।”
एक दिन पंखुड़ी की स्कूल की फीस का समय आया और राधिका के पास पैसे नहीं थे। उसने अपने पति से मदद मांगी, लेकिन वह भी परेशान था। फिर भी, राधिका ने हार नहीं मानी। उसने अपने पुराने गहनों को बेच दिया, जिससे उसकी बेटी की फीस का इंतजाम हो गया। यह देख पंखुड़ी ने अपनी मां से कहा, “माँ, आप इतना क्यों करती हो मेरे लिए?”
राधिका मुस्कुराई और बोली, “बेटी, तुम मेरे लिए सबसे बड़ी धरोहर हो। तुम्हारी खुशी, तुम्हारी सफलता, यही मेरी असली पूंजी है।”
राधिका की मेहनत और समर्पण ने पंखुड़ी को जीवन में कठिनाइयों का सामना करना सिखाया। पंखुड़ी ने अपनी मां से हमेशा संघर्ष और समर्पण की शिक्षा ली और वह अपने जीवन में एक दिन बहुत सफल और आत्मनिर्भर महिला बनी।
शिक्षा
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि एक मां अपने बच्चों के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। उसकी ममता, संघर्ष, और समर्पण न केवल बच्चों के भविष्य को उज्जवल बनाते हैं, बल्कि उन्हें जीवन में हर मुश्किल से लड़ने की ताकत भी देते हैं। माता-पिता का संघर्ष बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए अनमोल होता है, और हमें उनका सम्मान और आभार हमेशा बनाए रखना चाहिए।
पहेली का उत्तर : सूरजमुखी
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प्रार्थना:
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे।।
जग सिरमौर बनाएँ भारत,
वह बल विक्रम दे। वह बल विक्रम दे।।
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..
साहस शील हृदय में भर दे,
जीवन त्याग-तपोमय कर दे,
संयम सत्य स्नेह का वर दे,
स्वाभिमान भर दे। स्वाभिमान भर दे ॥ १ ॥
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..
लव-कुश, ध्रुव, प्रहलाद बनें हम
मानवता का त्रास हरें हम,
सीता, सावित्री, दुर्गा मां,
फिर घर-घर भर दे। फिर घर-घर भर दे॥२॥
हे हंसवाहिनी ज्ञान दायिनी
अम्ब विमल मति दे। अम्ब विमल मति दे..
मंत्र:
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय धन्वंतरये।
अमृतकलश हस्ताय सर्वामय विनाशनाय।
त्रैलोक्यनाथाय श्री महाविष्णवे नमः॥
अर्थः हे भगवान धन्वंतरि! आप अमृत के स्वामी हैं। हमारे सभी रोगों को हर लें।
गर्भ संवाद:
“भगवान हमें दया और करुणा का अभ्यास करने के लिए कहते हैं। जब हम दूसरों की मदद करते हैं और उन्हें समझते हैं, तो भगवान हमारी मदद करते हैं। दया का भाव हमारे दिल को सच्चा और निर्मल बनाता है। मैं चाहती हूं कि तुम जीवन में दया और करुणा को अपने दिल से अपनाओ, ताकि तुम्हारा जीवन और दुनिया दोनों सुंदर बनें।”
पहेली:
सदा ही चलती रहती हूँ, फिर भी नहीं थकती हूँ।
जिसने मुझसे किया मुकाबला, उसका ही कर दिया तबादला।
कहानी: मां की ममता का अंतहीन सागर
ममता, एक ऐसा शब्द है जिसे शब्दों में बयां करना असंभव है। यह वह भावना है जो एक मां अपने बच्चे के प्रति महसूस करती है। एक मां का प्यार किसी सीमा में बंधा नहीं होता, यह एक अंतहीन सागर की तरह है, जो कभी खत्म नहीं होता।
कुमुदिनी एक ऐसी महिला थी, जिसे अपनी बेटी के लिए सब कुछ करना था। उसकी बेटी माया, एक दुर्बल बच्ची थी, जो शारीरिक रूप से कमजोर थी और कई स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही थी। डॉक्टरों ने कहा था कि माया को लंबा जीवन नहीं मिलेगा, लेकिन कुमुदिनी ने अपनी बेटी को कभी इस विश्वास से नहीं देखा। उसकी ममता ने उसे हमेशा उम्मीद और साहस दिया।
कुमुदिनी दिन-रात माया की देखभाल करती। वह उसे कभी भी अकेला महसूस नहीं होने देती। माया की छोटी-छोटी खुशियों में कुमुदिनी को सबसे बड़ी संतुष्टि मिलती। जब माया थोड़ा अच्छा महसूस करती, तो उसकी मां उसे हर छोटे काम में मदद करती। वह उसकी पसंदीदा किताबों को पढ़ती, उसे सुंदर सपने दिखाती और उसे समझाती कि जीवन में कुछ भी असंभव नहीं होता।
समय बीतता गया और माया की हालत और बिगड़ने लगी, लेकिन कुमुदिनी ने कभी हार नहीं मानी।
वह अपनी बेटी के इलाज के लिए लगातार मेहनत करती रही। वह जानती थी कि किसी न किसी दिन उसकी ममता और संघर्ष का रंग जरूर आएगा।
एक दिन, एक नई चिकित्सा पद्धति के बारे में कुमुदिनी को पता चला, जो माया के लिए कारगर हो सकती थी। उसने उस इलाज के लिए सब कुछ दांव पर लगा दिया—घर, पैसा, अपनी सारी जमा पूंजी। कुमुदिनी के संघर्ष और उसकी ममता ने माया को नई जिंदगी दी। उस इलाज के बाद, माया का स्वास्थ्य बेहतर होने लगा। उसकी मां की उम्मीद और संघर्ष ने उसे जीने की नई राह दी।
माया बड़ी हुई और जीवन में कई ऊँचाईयों को छुआ। उसने अपनी मां के संघर्ष और ममता को हमेशा अपने जीवन का आदर्श माना और पूरी दुनिया को दिखा दिया कि एक मां का प्यार और संघर्ष किसी चमत्कार से कम नहीं होता।
शिक्षा
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि मां की ममता का कोई अंत नहीं होता। वह अपने बच्चे के लिए किसी भी कठिनाई से पार पाने के लिए हर संभव प्रयास करती है। एक मां के प्यार और संघर्ष में एक ऐसी शक्ति होती है जो किसी भी हालात में अपने बच्चे को सही मार्ग पर ले आती है। ममता का यह सागर कभी खत्म नहीं होता, और यही उसकी सबसे बड़ी विशेषता है।
पहेली का उत्तर : घड़ी
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प्रार्थना:
ॐ एकदन्ताय विद्महे
वक्रतुंडाय धीमहि
तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात॥
अर्थ: हम भगवान गणपति, जिनके हाथी के दांत हैं और जो सर्वव्यापी है, उनको नमन करते हैं। हम भगवान गणेश जी से प्रार्थना करते हैं कि हमें अधिक बुद्धि प्रदान करें और हमारे जीवन को ज्ञान से रोशन कर दें। हम आपके सामने नतमस्तक होते हैं।
मंत्र:
ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः।
सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु।
मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत्॥
अर्थः सभी लोग सुखी रहें, स्वस्थ रहें और मंगलमय घटनाएँ देखें।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! भगवान के प्रति सच्ची पूजा सेवा में है। जब तुम दूसरों की मदद करते हो और बिना किसी स्वार्थ के काम करते हो, तो यह भगवान की सच्ची पूजा होती है। सेवा से ही हमें आत्मिक शांति और संतोष मिलता है। मैं चाहती हूं कि तुम जीवन में सेवा को सर्वोत्तम पूजा समझो, क्योंकि सेवा ही भगवान की सबसे बड़ी पूजा है, और इससे तुम्हारी आत्मा को सच्ची शांति मिलती है।”
पहेली:
लोहे को खींचू इतनी ताकत मुझमे,
पर रबड़ मुझे हरा देता,
गुम हुई सुई को मैं पा लेता,
मेरा खेल निराला,
कोई तो मेरा नाम बूझो ?
कहानी: विश्वास की शक्ति
एक छोटे से कस्बे में एक किसान रवि, अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रहता था। रवि का जीवन बहुत कठिन था, लेकिन उसकी मेहनत और दृढ़ निश्चय के कारण वह मुश्किलों का सामना करता था। उसने जीवन में बहुत संघर्ष किया था, लेकिन उसका एक विश्वास हमेशा मजबूत रहा — “अगर दिल में विश्वास हो, तो किसी भी मुश्किल को पार किया जा सकता है।”
रवि का एक दोस्त अजीत, एक व्यापारी था और उसने रवि से हमेशा यह कहा कि “मेरे पास जो कुछ भी है, वह मेरे व्यवसाय के कारण है।” लेकिन रवि ने हमेशा विश्वास किया कि मेहनत और ईमानदारी से किया गया काम किसी दिन फल जरूर देता है। अजीत ने कई बार रवि को व्यवसाय में निवेश करने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन रवि ने कभी भी , उस प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया। उसका मानना था कि मेहनत और विश्वास से जीवन में सफलता मिलती है, न कि व्यापार के जरिए।
एक दिन, गाँव में एक बड़ी प्राकृतिक आपदा आ गई। फसलें बर्बाद हो गईं, और कई लोग मुश्किल में पड़ गए। अजीत का व्यवसाय भी प्रभावित हुआ, लेकिन रवि ने इस स्थिति में अपने विश्वास को कायम रखा। उसने अपनी कठिनाई के बावजूद अपने आसपास के लोगों की मदद की, क्योंकि उसका मानना था कि अगर हम दूसरों के साथ अच्छे होते हैं, तो भगवान भी हमारे साथ अच्छे होते हैं।
किसी समय बाद, गाँव में बाढ़ आई। रवि ने अपनी मेहनत और ईमानदारी से खड़ा किया गया एक जलाशय बचा लिया, जो पूरे गाँव को पानी की आपूर्ति कर रहा था। उसका यह कदम गांव के लिए जीवन रक्षक साबित हुआ। लोग रवि की सराहना करने लगे, और धीरे-धीरे उसका परिवार फिर से समृद्ध हो गया।
रवि के विश्वास ने उसे न केवल मुश्किलों से बाहर निकाला, बल्कि गाँव में एक नया सम्मान भी दिलवाया। यह साबित हो गया कि अगर हम किसी काम में पूरी तरह विश्वास रखते हैं, तो हालात चाहे जैसे भी हों, हमें सफलता मिलती है।
शिक्षा
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि विश्वास एक ऐसी शक्ति है जो किसी भी कठिनाई को पार करने में मदद करती है। जब हम किसी कार्य में पूरी निष्ठा और विश्वास से जुटते हैं, तो मुश्किलें केवल अस्थायी होती हैं। जीवन में अगर आत्मविश्वास और ईमानदारी से किया गया काम हो, तो वह हमें सफलता की ओर ले जाता है।
पहेली का उत्तर : चुम्बक
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सप्तश्लोकी गीता
श्री भगवान ने कहा— अनुभव, प्रेमाभक्ति और साधनों से युक्त अत्यंत गोपनीय अपने स्वरूप का ज्ञान मैं तुम्हें कहता हूं, तुम उसे ग्रहण करो।
मेरा जितना विस्तार है, मेरा जो लक्षण है, मेरे जितने और जैसे रूप, गुण और लीलाएं हैं—मेरी कृपा से तुम उनका तत्व ठीक-ठीक वैसा ही अनुभव करो।
सृष्टि के पूर्व केवल मैं-ही-मैं था। मेरे अतिरिक्त न स्थूल था न सूक्ष्म और न तो दोनों का कारण अज्ञान। जहां यह सृष्टि नहीं है, वहां मैं-ही-मैं हूं और इस सृष्टि के रूप में जो कुछ प्रतीत हो रहा है, वह भी मैं ही हूं और जो कुछ बचा रहेगा, वह भी मैं ही हूं।
वास्तव में न होने पर भी जो कुछ अनिर्वचनीय वस्तु मेरे अतिरिक्त मुझ परमात्मा में दो चंद्रमाओं की तरह मिथ्या ही प्रतीत हो रही है, अथवा विद्यमान होने पर भी आकाश-मंडल के नक्षत्रो में राहु की भांति जो मेरी प्रतीति नहीं होती, इसे मेरी माया समझना चाहिए।
जैसे प्राणियों के पंचभूतरचित छोटे-बड़े शरीरों में आकाशादि पंचमहाभूत उन शरीरों के कार्यरूप से निर्मित होने के कारण प्रवेश करते भी है और पहले से ही उन स्थानों और रूपों में कारणरूप से विद्यमान रहने के कारण प्रवेश नहीं भी करते, वैसे ही उन प्राणियों के शरीर की दृष्टि से मैं उनमें आत्मा के रूप से प्रवेश किए हुए हूं और आत्म दृष्टि से अपने अतिरिक्त और कोई वस्तु न होने के कारण उन में प्रविष्ट नहीं भी हूं।
यह ब्रह्म नहीं, यह ब्रह्म नहीं— इस प्रकार निषेध की पद्धति से और यह ब्रह्म है, यह ब्रह्म है— इस अन्वय की पद्धति से यही सिद्ध होता है कि सर्वातीत एवं सर्वस्वरूप भगवान ही सर्वदा और सर्वत्र स्थित है, वही वास्तविक तत्व है। जो आत्मा अथवा परमात्मा का तत्व जानना चाहते हैं, उन्हें केवल इतना ही जानने की आवश्यकता है।
ब्रह्माजी! तुम अविचल समाधि के द्वारा मेरे इस सिद्धांत में पूर्ण निष्ठा कर लो। इससे तुम्हें कल्प-कल्प में विविध प्रकार की सृष्टि रचना करते रहने पर भी कभी मोह नहीं होगा।
मंत्र:
ॐ नारायणाय विद्महे।
वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो: विष्णुः प्रचोदयात्॥
अर्थः हे भगवान विष्णु! आप हमें ज्ञान और मोक्ष का वरदान दें।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे, जब भी तुम्हें जीवन में संघर्ष का सामना करना पड़े, तो उसे एक अवसर समझो। संघर्ष से डरने के बजाय, इसे अपनी ताकत बढ़ाने का मौका समझो। जब तुम संघर्षों का सामना करते हो, तो तुम अपनी सीमाओं को पार करते हो और अंदर से और भी मजबूत बनते हो। मैं चाहती हूं कि तुम कभी भी कठिनाई से डरो नहीं, क्योंकि संघर्ष ही तुम्हें सफलता की ओर ले जाता है और तुम्हारी क्षमता को उजागर करता है।”
पहेली:
एक नारी के है दो बालक,
दोनो एक ही रंग,
पहला चले दूसरा सोवे,
फिर भी दोनों संग।
कहानी: वचन का मूल्य
राजीव एक सम्मानित और ईमानदार व्यक्ति था, जिसे हमेशा अपने शब्दों की अहमियत थी। वह छोटे से गाँव में अपने परिवार के साथ रहता था और एक सरकारी कर्मचारी था। राजीव का मानना था कि एक व्यक्ति का वचन उसकी आत्मा का प्रतीक होता है। उसका दृढ़ विश्वास था कि जो वचन हम देते हैं, उसकी कीमत उसी के साथ जुड़ी होती है।
राजीव का एक दोस्त विक्की, जो एक व्यापारी था, हमेशा उसे कहता था, “जिंदगी में पैसे और व्यापार से बड़ी कोई चीज नहीं है। वचन देने से कुछ नहीं होता।” लेकिन राजीव का मानना था कि वचन और ईमानदारी सबसे मूल्यवान हैं।
एक दिन गाँव में एक बड़ा संकट आ गया। गाँव में सूखा पड़ने की वजह से लोगों को पानी की कमी हो रही थी। बहुत से लोग परेशान थे और उनके पास पानी खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। राजीव ने गाँव के लोगों से वचन लिया कि वह सभी लोग मिलकर एक जल स्रोत बनाएंगे और इसका खर्च सभी मिलकर उठाएंगे। विक्की, जो कि एक बड़ा व्यापारी था, राजीव से मिले और उन्हें बताया कि यह काम उनके लिए बहुत बड़ा है और इसमें बहुत धन की आवश्यकता होगी। विक्की ने कहा, “तुम ये सब करने का वचन मत लो, क्योंकि इस काम में बहुत जोखिम है।”
लेकिन राजीव ने विक्की की बातों को नजरअंदाज करते हुए गाँव के सभी लोगों से वचन लिया कि वह एकजुट होकर इस जल परियोजना को पूरा करेंगे। उसने हर व्यक्ति को यह विश्वास दिलाया कि हम सब मिलकर इस संकट से बाहर निकल सकते हैं।
राजीव का वचन न केवल गाँव के लोगों के दिलों में बसा था, बल्कि उसने यह साबित कर दिया कि वचन का पालन करने में ही सच्ची शक्ति है। गाँव के लोगों ने मिलकर जल स्रोत तैयार किया और सूखा मिटाया। इसके बाद विक्की ने राजीव से कहा, “तुम सही थे, वचन का मूल्य अनमोल होता है।”
राजीव के इस कार्य ने विक्की को यह सिखाया कि धन से बढ़कर एक इंसान का वचन होता है। उसने सीखा कि यदि किसी को किसी कार्य का वचन दें, तो उसे पूरा करना सबसे अहम है, क्योंकि यही हमारी इज्जत और आत्मविश्वास को बढ़ाता है।
शिक्षा
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि वचन का मूल्य हमारी ईमानदारी और विश्वास से जुड़ा होता है। अगर हम किसी को कोई वचन देते हैं, तो हमें उसे निभाना चाहिए, क्योंकि यह हमारे आत्मसम्मान और समाज में हमारी प्रतिष्ठा का प्रतीक होता है। वचन का पालन करना न केवल एक नैतिक कर्तव्य है, बल्कि यह हमारी सच्चाई और ईमानदारी को भी प्रमाणित करता है।
पहेली का उत्तर : चक्की
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प्रार्थना:
शान्ताकारं भुजंगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् ।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं।
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम् ॥
अर्थ: मैं ऐसे सर्वव्यापी भगवान विष्णु को प्रणाम करता हूं जिनका स्वरूप शांत है। जो शेषनाग पर विश्राम करते हैं, जिनकी नाभि पर कमल खिला है और जो सभी देवताओं के स्वामी हैं।
जो ब्रह्मांड को धारण करते हैं, जो आकाश की तरह अनंत और असीम हैं, जिनका रंग नीला है और जिनका शरीर अत्यंत सुंदर है।
जो धन की देवी लक्ष्मी के पति हैं और जिनकी आंखें कमल के समान हैं। जो ध्यान के जरिए योगियों के लिए उपलब्ध हैं।
ऐसे श्रीहरि विष्णु को नमस्कार है जो सांसारिक भय को दूर करते हैं और सभी लोगों के स्वामी हैं।
मंत्र:
ॐ विश्वं विष्णुर्वषट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः।
भूतकृद्भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः॥
अर्थः हे भगवान विष्णु! आप सृष्टि के कर्ता और पालनकर्ता हैं। आप हमें जीवन में स्थिरता और संतुलन प्रदान करें।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! सपने केवल देखने से नहीं पूरे होते, उनके लिए मेहनत करनी होती है। हर सपना जो तुमने देखा है, वह तुम्हारे भीतर की शक्ति और इच्छा से ही पूरा हो सकता है। मैं चाहती हूं कि तुम अपने सपनों के लिए पूरी मेहनत करो, क्योंकि मेहनत का कोई विकल्प नहीं है। मेहनत तुम्हें उस मुकाम तक पहुंचाएगी, जिसका तुमने सपना देखा है। अपने सपनों की दिशा में कदम बढ़ाओ, और किसी भी चुनौती से पीछे मत हटो।”
पहेली:
एक गुनी ने ये गुन कीना
हरियल पिंजरे में दे दीना
देखो जादूगर का कमाल
डाला हरा निकाला लाल
कहानी: द्रौपदी की प्रार्थना
महाभारत के युग में द्रौपदी, जो पांडवों की पत्नी थीं। साहस, निष्ठा और भक्ति का प्रतीक थीं। उनकी कहानी न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखती है, बल्कि यह जीवन में कठिन परिस्थितियों में विश्वास और भक्ति की शक्ति को दर्शाती है।
एक बार, द्रौपदी ने अपने जीवन की सबसे कठिन परीक्षा का सामना किया। यह वह समय था जब दुर्योधन ने कौरवों के साथ मिलकर पांडवों को जुए में हराया था और द्रौपदी को सभा में अपमानित करने का षड्यंत्र रचा। दुर्योधन और दुःशासन ने द्रौपदी को सभा में खींचकर लाने का आदेश दिया और उनका चीर हरण करने की कोशिश की। यह स्थिति द्रौपदी के लिए अत्यंत अपमानजनक और पीड़ादायक थी।
द्रौपदी ने अपनी शक्ति और साहस से पहले सभा के सभी आदमियों से मदद मांगी। लेकिन वहाँ बैठे बड़े-बड़े योद्धा, गुरुजन, और राजा अपनी दृष्टि झुकाकर चुप बैठे रहे। यह देखकर द्रौपदी ने अपनी आँखें बंद कीं और भगवान कृष्ण का ध्यान किया। उन्होंने प्रार्थना की— “हे गोविंद, हे मुरारी, हे जगत के पालनहार, मेरी रक्षा करें। मैं आपके सिवा किसी को अपना सहारा नहीं मानती।”
भगवान कृष्ण, जो अपने भक्तों की सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहते हैं। तुरंत द्रौपदी की पुकार सुनकर उनकी रक्षा के लिए आए।
जैसे ही दु:शासन ने द्रौपदी के वस्त्र खींचने का प्रयास किया, भगवान कृष्ण ने उनकी साड़ी को इतना लंबा कर दिया कि दुःशासन थक कर गिर गया लेकिन साड़ी का अंत नहीं हुआ। यह देखकर पूरी सभा स्तब्ध रह गई और द्रौपदी का सम्मान बच गया।
इस घटना ने यह साबित किया कि जब किसी भक्त की भक्ति सच्ची होती है और वह पूरे विश्वास के साथ भगवान को पुकारता है तो भगवान उसकी रक्षा के लिए हर हाल में आते हैं। द्रौपदी की प्रार्थना ने यह दिखाया कि ईश्वर के प्रति समर्पण और विश्वास हर कठिनाई को दूर कर सकता है।
शिक्षा
द्रौपदी की प्रार्थना हमें यह सिखाती है कि जीवन में कितनी भी कठिन परिस्थितियाँ क्यों न आएं, अगर हम सच्चे मन से भगवान को पुकारें और उन पर विश्वास रखें, तो वे हमारी मदद जरूर करते हैं। भगवान हमेशा अपने भक्तों की सहायता के लिए तत्पर रहते हैं बस हमारी भक्ति और विश्वास मजबूत होना चाहिए।
पहेली का उत्तर : पान
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प्रार्थना:
ॐ सह नाववतु।
सह नौ भुनक्तु।
सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
मंत्र:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥
अर्थः तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फलों में कभी नहीं। कर्म को फल की इच्छा से न करो और न ही आलस्यपूर्वक कर्म से विमुख हो।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! जीवन में कभी भी हार मानने का नाम मत लो, क्योंकि हर समस्या का हल होता है। मुश्किलों का सामना करने से ही तुम सच्चे विजेता बनते हो। जब तुम्हारे रास्ते में रुकावटें आएं, तो उन्हें अवसर के रूप में देखो। मैं चाहती हूं कि तुम अपनी मेहनत और संघर्ष से कभी हार न मानो, क्योंकि हर मुश्किल के बाद सफलता का पल तुम्हारे पास होता है।”
पहेली:
भीतर चिलमन, बाहर चिलमन, बीच कलेजा धड़के
अमीर खुसरो यूँ कहे वो दो-दो उँगल सरके
कहानी: भगवान विष्णु का अवतार
भगवान विष्णु, जिन्हें सृष्टि के पालनहार के रूप में जाना जाता है, जब भी पृथ्वी पर अधर्म बढ़ता है और धर्म संकट में आता है, तो वे किसी न किसी रूप में अवतार लेकर धरती पर आते हैं। उनके अवतारों का उद्देश्य केवल मानवता की रक्षा करना और धर्म को पुनः स्थापित करना होता है।
भगवान विष्णु के दस प्रमुख अवतारों में से हर एक अवतार का उद्देश्य पृथ्वी पर संतुलन बनाए रखना था। इनमें से सबसे प्रसिद्ध अवतार श्रीराम और श्रीकृष्ण हैं।
श्रीराम का अवतार रावण जैसे अत्याचारी राक्षस का अंत करने के लिए हुआ था। रावण, जो अपनी शक्ति और अहंकार में डूबा हुआ था, धर्म और मानवता के लिए एक बड़ा संकट बन गया था। भगवान विष्णु ने राम के रूप में अवतार लेकर धर्म की पुनः स्थापना की और यह सिखाया कि सत्य और धर्म का पालन करते हुए भी हम सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं।
श्रीकृष्ण का अवतार महाभारत के समय हुआ। कंस जैसे अत्याचारी का अंत करने और अर्जुन को गीता का ज्ञान देने के लिए भगवान ने यह अवतार लिया। उन्होंने मानवता को यह सिखाया कि कर्तव्य और धर्म का पालन करना जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है।
इसके अलावा भगवान विष्णु ने नृसिंह, वामन, परशुराम और बुद्ध जैसे अन्य अवतार लेकर मानवता और पृथ्वी की रक्षा की। हर अवतार यह संदेश देता है कि जब भी अधर्म और अन्याय बढ़ता है, तब भगवान किसी न किसी रूप में अवतार लेकर धर्म की पुनर्स्थापना करते हैं।
शिक्षा
भगवान विष्णु के अवतार हमें यह सिखाते हैं कि जीवन में सत्य, धर्म और कर्तव्य का पालन करना ही सबसे बड़ा उद्देश्य है। जब हम अपने कर्तव्यों और सच्चाई के रास्ते पर चलते हैं तो भगवान हमारी मदद करते हैं। उनके अवतार हमें यह विश्वास दिलाते हैं कि अधर्म और अन्याय का अंत निश्चित है और धर्म की हमेशा विजय होती है। उनके जीवन से हमें प्रेरणा मिलती है कि हम अपने जीवन में भी सच्चाई और धर्म का पालन करें।
पहेली का उत्तर : कैंची
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प्रार्थना:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
भावार्थ– हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन-पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें। जिस प्रकार से एक ककड़ी अपनी बेल से पक जाने के पश्चात् स्वतः की आज़ाद होकर जमीन पर गिर जाती है उसी प्रकार हमें भी इस बेल रुपी सांसारिक जीवन से जन्म-मृत्यु के सभी बन्धनों से मुक्ति प्रदान कर मोक्ष प्रदान करें।
मंत्र:
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥
अर्थ: जैसे इस शरीर में बाल्यावस्था, युवावस्था और वृद्धावस्था होती है, वैसे ही आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर को प्राप्त करती है। ज्ञानी मनुष्य इसमें शोक नहीं करता।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! तुम्हारे भीतर इतना आत्मविश्वास है कि तुम किसी भी डर को मात दे सकते हो। आत्मविश्वास से हर चुनौती छोटी लगने लगती है। जब तुम खुद पर विश्वास करते हो, तो तुम्हारी ताकत कई गुना बढ़ जाती है। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा खुद पर विश्वास करो क्योंकि आत्मविश्वास से तुम किसी भी डर को पराजित कर सकते हो। डर केवल तब तक मजबूत होता है जब तक तुम उससे लड़ने का साहस नहीं दिखाते।”
पहेली:
उज्जल अत्तीत मोती बरनी, पायी कबन्त दिए मोय धरनी
जहाँ धरी वहाँ नहीं पायी, हाट बाजार सभय ढूँढ आयी
ए सखी अब कीजै का ? पीय मांगे तो दीजै क्या?
कहानी:
सुभाष चंद्र बोस का पराक्रम
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सुभाष चंद्र बोस का योगदान अविस्मरणीय है। उनका जीवन एक प्रेरणा का स्रोत है जो न केवल भारतीयों, बल्कि दुनिया भर के लोगों को अपने कर्तव्य और देशभक्ति के प्रति जागरूक करता है। सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने एक नया मोड़ लिया था और उनकी संघर्षशीलता, पराक्रम और समर्पण ने उन्हें भारतीय इतिहास में एक महान योद्धा के रूप में स्थापित किया।
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को कटक, उड़ीसा में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा बहुत ही शानदार थी और वे शुरू से ही एक मेधावी छात्र रहे थे। सुभाष चंद्र बोस के भीतर बचपन से ही एक राष्ट्रवादी भावना पाई जाती थी। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे। उनका विश्वास था कि भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की आवश्यकता है।
सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में कार्य करते हुए महात्मा गांधी से प्रभावित होकर सत्याग्रह और अहिंसा के मार्ग को अपनाया था, लेकिन बाद में उन्होंने महसूस किया कि ब्रिटिश साम्राज्य को उखाड़ फेंकने के लिए किसी प्रकार की हिंसा की आवश्यकता हो सकती है। उनका यह दृष्टिकोण बहुत अलग था और इसके कारण वे गांधीजी के नेतृत्व से अलग हो गए।
आजाद हिंद फौज की स्थापना
1939 में सुभाष चंद्र बोस ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में महात्मा गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी और अपनी अलग दिशा तय की। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और विदेशी धरती पर जाकर भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नया आयाम दिया।
उन्होंने सिंगापुर में 'आजाद हिंद फौज' की स्थापना की, जो ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष के लिए तैयार थी। उनका उद्देश्य भारतीयों को एकजुट करना और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक सशस्त्र युद्ध छेड़ना था।
आजाद हिंद फौज की स्थापना के साथ ही सुभाष चंद्र बोस ने अपनी सारी शक्ति और ऊर्जा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में लगा दी। उन्होंने भारतीय सैनिकों को एकजुट किया और उन्हें ब्रिटिश सेना के खिलाफ प्रशिक्षण दिया। सुभाष चंद्र बोस का यह कदम बहुत ही साहसी था क्योंकि उस समय ब्रिटिश साम्राज्य का दुनिया में सबसे बड़ा साम्राज्य था। लेकिन सुभाष चंद्र बोस को विश्वास था कि भारतीय लोग अपनी स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए हर कीमत चुकाने को तैयार हैं।
द्वितीय विश्व युद्ध में भूमिका
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, सुभाष चंद्र बोस ने जर्मनी और जापान से सहायता प्राप्त करने की कोशिश की। उन्होंने अपनी आजाद हिंद फौज को मजबूत करने के लिए इन देशों से समर्थन प्राप्त किया।
जापान की मदद से उन्होंने दक्षिण-पूर्व एशिया में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को तेज किया और भारतीय सेना को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ एक मजबूत ताकत बनाई।
सुभाष चंद्र बोस का यह दृढ़ संकल्प था कि ब्रिटिश साम्राज्य को भारतीय धरती से खदेड़ा जाए। उन्होंने 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूँगा' का नारा दिया, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का प्रेरणास्त्रोत बन गया। उनका यह नारा आज भी भारतीयों के दिलों में गूंजता है, और यह स्वतंत्रता संग्राम के महान नेतृत्व का प्रतीक बन गया है।
नवयुवकों के लिए प्रेरणा
सुभाष चंद्र बोस का जीवन हमे यह सिखाता है कि अगर किसी कार्य के लिए सच्ची लगन और ईमानदारी से प्रयास किया जाए, तो सफलता निश्चित रूप से मिलती है। उनके जीवन से यह भी सीखा जा सकता है कि यदि सही उद्देश्य के लिए समर्पण और संघर्ष किया जाए तो किसी भी प्रकार की कठिनाई को पार किया जा सकता है। सुभाष चंद्र बोस ने यह साबित कर दिया कि किसी भी शक्ति के खिलाफ खड़ा होना केवल एक व्यक्ति की इच्छाशक्ति और संकल्प पर निर्भर करता है। उनका जीवन हमें यह प्रेरणा देता है कि हमें अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार रहकर, बिना डर के, पूरी ताकत से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ना चाहिए। उनका साहस, त्याग और संघर्ष स्वतंत्रता संग्राम के प्रतीक बने और उनकी यादें भारतीय इतिहास में हमेशा अमर रहेंगी।
शिक्षा
सुभाष चंद्र बोस के जीवन से हम यह सिख सकते हैं कि किसी भी बड़े उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए साहस, समर्पण और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। उनके जीवन का यह संदेश है कि अगर हम अपने कर्तव्यों के प्रति पूरी तरह से निष्ठावान रहें और किसी भी कठिनाई से डरें नहीं, तो हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं। सुभाष चंद्र बोस का पराक्रम हमें यह याद दिलाता है कि अपनी स्वतंत्रता और अधिकारों के लिए संघर्ष करना हमेशा सही होता है और हमें अपने लक्ष्य की ओर बिना किसी डर और संकोच के बढ़ना चाहिए।
पहेली का उत्तर : ओले
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प्रार्थना:
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला
या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा
या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा।।
ॐ सहनाववतु।
सह नौ भुनक्तु। सह वीर्यं करवावहै।
तेजस्वि नावधीतमस्तु मा विद्विषावहै।
असतो मा सदगमय॥
तमसो मा ज्योतिर्गमय॥
मृत्योर्मामृतम् गमय॥
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः॥
मंत्र:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
अर्थः हे भारत (अर्जुन), जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं (भगवान) स्वयं प्रकट होता हूँ।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! असफलता जीवन का एक हिस्सा है, लेकिन यह कभी भी अंतिम नहीं होती। हर असफलता हमें कुछ नया सिखाती है और यही हमारे सफलता के रास्ते को स्पष्ट करती है। जब तुम असफल होते हो, तो इसे एक सबक समझो और आगे बढ़ो। हर बार जब तुम गिरते हो, तुम कुछ और मजबूत होकर उठते हो। मैं चाहती हूं कि तुम असफलताओं से डरने के बजाय उन्हें एक मौका समझो सीखने और बेहतर बनने का।”
पहेली:
अपने समय में एक नर आये
टूक देखाय और फिर छुप जाये
मोहे अचम्भा आवत ऐसे
जल में अग्नि (आग) बसत हाय कैसे
कहानी:
झांसी की रानी की वीरता
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम भारतीय इतिहास में हमेशा स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा। उनका जीवन संघर्ष, साहस, और वीरता का प्रतीक है। रानी लक्ष्मीबाई ने न केवल अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपनी जान की आहुति दी, बल्कि उनका साहस आज भी हर भारतीय के दिल में प्रेरणा का एक स्रोत है।
रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को वाराणसी (काशी) में हुआ था। उनका असली नाम मणिकर्णिका था, लेकिन बचपन में उन्हें "मनु" के नाम से पुकारा जाता था। उनके माता-पिता का साया बचपन में ही सिर से उठ गया और फिर वे अपने नाना-नानी के घर में पली-बड़ी। रानी लक्ष्मीबाई का बाल्यकाल काफी साहसी और साहसिक था। वे बचपन में तलवारबाजी, घुड़सवारी और खेल कूद में बहुत रुचि रखती थीं। उनके मन में हमेशा से यह विचार था कि वह एक दिन अपनी मातृभूमि की सेवा करेंगी।
झांसी की रानी का राज्य संभालना
रानी लक्ष्मीबाई का विवाह 1842 में झांसी के राजा गंगाधर राव से हुआ। उनके विवाह के बाद उन्होंने झांसी के राजमहल में राजकुमारी के रूप में जीवन शुरू किया। लेकिन जल्द ही उनकी खुशियाँ आहत हुईं। राजा गंगाधर राव का निधन हो गया और उनके कोई संतान नहीं थी। इसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने झांसी की गद्दी को छीनने का प्रयास किया, जो उस समय की नीति के खिलाफ था।
ब्रिटिश सरकार ने दावे किए कि रानी का कोई वास्तविक उत्तराधिकारी नहीं है और इसलिए झांसी राज्य पर कब्जा कर लिया जाएगा। रानी लक्ष्मीबाई ने इस स्थिति का डटकर विरोध किया और ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ अपनी सेना को तैयार किया। उनका विश्वास था कि अगर झांसी को बचाना है, तो उसे ब्रिटिशों के खिलाफ मजबूत खड़ा होना होगा।
1857 का स्वतंत्रता संग्राम और रानी की वीरता
1857 का स्वतंत्रता संग्राम भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसमें रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी वीरता और साहस का अद्वितीय परिचय दिया। जब ब्रिटिशों ने झांसी पर हमला किया, तो रानी ने केवल राज्य की रक्षा ही नहीं की, बल्कि भारतीयों के आत्मसम्मान की रक्षा भी की। रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना का नेतृत्व किया और युद्ध में भाग लिया। उन्होंने न केवल झांसी के किले की रक्षा की, बल्कि युद्ध की रणनीतियों में भी महारत हासिल की।
रानी लक्ष्मीबाई ने अपने सैनिकों को प्रेरित किया और अपनी वीरता से सभी को चौंका दिया। उन्होंने युद्ध के मैदान में पूरी तरह से भाग लिया और यह बात ब्रिटिश सैनिकों के लिए एक बड़ा खतरा साबित हुई। रानी ने न केवल अपनी मर्दानगी से ब्रिटिशों का सामना किया, बल्कि उन्होंने युद्ध में उत्कृष्ट नेतृत्व और रणनीतिक निर्णयों का परिचय दिया।
रानी अपने घोड़े पर सवार होकर, तलवारों से लड़ी और कभी भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करने में पीछे नहीं हटीं।
एक प्रसिद्ध घटना है। जब रानी अपने बेटे को लेकर युद्ध भूमि से भागी थीं। उनका बेटा बहुत छोटा था, लेकिन रानी ने यह सुनिश्चित किया कि उनका बेटा सुरक्षित रहे। युद्ध के दौरान, रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी वीरता, साहस और संघर्ष को कभी भुलाया नहीं जा सकता।
रानी की वीरता के उदाहरण
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने युद्ध के मैदान में कई साहसिक कार्य किए, जिनकी कहानी आज भी हर भारतीय के दिल में बसी हुई है।
एक उदाहरण के रूप में, जब ब्रिटिश सेना झांसी पर हमला करने आई, रानी लक्ष्मीबाई ने एक ऐसी रणनीति अपनाई, जिसे ब्रिटिश सैनिकों ने कभी नहीं सोचा था। रानी लक्ष्मीबाई ने अपनी सेना को इतना प्रशिक्षित किया था कि वे युद्ध के मैदान में पूरी तरह से शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत थे। उन्होंने अपने सैनिकों से यह कहा, “हम अपनी मातृभूमि को नहीं छोड़ सकते, हम अपना कर्तव्य निभाएंगे, चाहे जो हो।” यह संदेश उनकी वीरता और साहस का प्रतीक था।
रानी का बलिदान
ब्रिटिश सेना से युद्ध में झांसी की रानी ने आखिरकार अपनी जान की आहुति दी लेकिन उनका बलिदान व्यर्थ नहीं गया। उनकी वीरता और साहस ने भारतीयों को यह सिखाया कि जब तक हमें अपनी मातृभूमि के लिए लड़ने की आवश्यकता है, तब तक हमें पीछे नहीं हटना चाहिए।
रानी की शहादत ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को और भी प्रेरित किया। रानी लक्ष्मीबाई का नाम हमेशा भारतीय इतिहास में अमर रहेगा, क्योंकि उन्होंने अपनी जान की कीमत पर भी देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उनका साहस भारतीयों के दिलों में हमेशा जीवित रहेगा।
शिक्षा
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का जीवन हमें यह सिखाता है कि किसी भी कठिनाई या समस्या के सामने हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए। रानी ने अपने देश और अपने लोगों के लिए न केवल संघर्ष किया, बल्कि उनका यह संघर्ष आज भी हर भारतीय के दिल में बसा हुआ है। उनका जीवन यह प्रेरणा देता है कि जब तक हम अपने कर्तव्यों के प्रति ईमानदार और समर्पित रहें, तब तक कोई भी शक्ति हमें हमारी मंजिल तक पहुँचने से रोक नहीं सकती। रानी लक्ष्मीबाई ने यह सिद्ध कर दिया कि वीरता, साहस और निष्ठा से हम किसी भी मुश्किल को पार कर सकते हैं।
पहेली का उत्तर : बिजली (आसमान में चमकने वाली)
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प्रार्थना:
हे ईश्वर आप ही इस धरती और इस ब्रह्मांड के निर्माण करता हो। आप सभी के जीवन के करता-धर्ता है, आप ही सभी प्राणियों के सुख-दुख को हरने वाले हो। हे ईश्वर हमें सुख-शांति का रास्ता दिखाने का उपकार करें। हे श्रृष्टि के रचियता! हे परमपिता परमेश्वर! हमारी आपसे यही विनती है कि आप मुझे सद्बुद्धि प्रदान करें और हमारे जीवन को उज्जवल बनाए।
मंत्र:
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥
अर्थः सज्जनों की रक्षा, दुष्टों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए मैं प्रत्येक युग में प्रकट होता हूँ।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! हर नया दिन तुम्हारे लिए नई ऊर्जा और उत्साह लेकर आता है। जब तुम सुबह उठकर अपने दिन की शुरुआत करते हो, तो उसे एक नए लक्ष्य और उद्देश्य के साथ शुरू करो। हर दिन एक नई उम्मीद के साथ जीना तुम्हें न केवल खुशी देगा, बल्कि तुम्हारे आत्मविश्वास को भी बढ़ाएगा। मैं चाहती हूं कि तुम हर दिन को पूरी ऊर्जा के साथ जियो, क्योंकि यह तुम्हारे जीवन में नए अवसरों और खुशियों का रास्ता खोलेगा।”
पहेली:
अपने समय में एक नर आये
टूक देखाय और फिर छुप जाये
मोहे अचम्भा आवत ऐसे
जल में अग्नि (आग) बसत हाय कैसे
कहानी: पवन का गीत
पृथ्वी पर अनगिनत कहानियाँ बसी हुई हैं, पर पवन की कहानी सबसे अनोखी है। यह कहानी केवल हवा की गति और संगीत की नहीं, बल्कि जीवन के संघर्ष, सामंजस्य और शांति की है। पवन, जो सृष्टि के हर कोने में बहता है, उसका गीत हमें जीवन के सबसे गहरे सत्य का एहसास कराता है।
एक समय की बात है, हिमालय की गोद में बसे एक छोटे से गाँव में लोग प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन व्यतीत करते थे। गाँव के लोग पवन को "जीवन का संदेशवाहक" मानते थे। उनकी मान्यता थी कि पवन का हर झोंका, हर सरसराहट उनके लिए एक संदेश लेकर आता है लेकिन पवन के गीत का सही अर्थ कोई समझ नहीं पाता था।
वहाँ एक लड़का आर्यन, अपनी माँ के साथ रहता था। आर्यन बचपन से ही पवन के प्रति आकर्षित था। वह अक्सर पहाड़ियों पर बैठकर पवन के बहने की आवाज सुनता और सोचता, "पवन का गीत क्या कहता है? क्या यह मुझे कोई संदेश दे रहा है?" उसकी माँ ने उसे सिखाया था कि पवन केवल हवा नहीं है, बल्कि जीवन का प्रतीक है। आर्यन ने ठान लिया कि वह पवन के गीत का अर्थ समझेगा।
पवन की यात्रा
एक दिन आर्यन ने पहाड़ियों की ओर एक लंबी यात्रा करने का निश्चय किया, ताकि वह पवन के स्रोत और उसके गीत का अर्थ जान सके। वह सुबह ताजगी भरी हवा के साथ अपनी यात्रा पर निकला। पहाड़ी रास्ते में पवन उसे तरह-तरह की आवाजों में बातें करता प्रतीत हुआ। कभी वह धीरे-धीरे फुसफुसाता, तो कभी जोर से चिल्लाता।
पहला दिन आर्यन ने एक नदी के किनारे बिताया। उसने देखा कि पवन जब नदी के पानी को छूता है, तो उसमें हलचल मच जाती है। नदी की लहरें जैसे पवन के संगीत पर नाचने लगती थीं। आर्यन ने नदी से पूछा, "पवन का गीत क्या कहता है?"
नदी मुस्कराई और बोली, "पवन का गीत मुझे बहने की प्रेरणा देता है। वह मुझे याद दिलाता है कि जीवन में निरंतरता और गतिशीलता आवश्यक है। रुकना मृत्यु है और बहना जीवन।" आर्यन ने इस बात को अपने दिल में बसा लिया और आगे बढ़ गया।
पवन और जंगल का संवाद
दूसरे दिन आर्यन एक घने जंगल में पहुँचा। वहाँ के पेड़ पवन के झोंकों से झूम रहे थे। पत्तियों की सरसराहट एक अलग ही ध्वनि उत्पन्न कर रही थी। आर्यन ने पेड़ों से पूछा, "पवन का गीत तुम्हारे लिए क्या कहता है?"
एक बूढ़ा बरगद का पेड़ धीरे से बोला, "पवन हमें सिखाता है कि लचीलापन जीवन का सबसे बड़ा गुण है। जब वह तेज बहता है, तो हम झुक जाते हैं, और जब वह शांत होता है, तो हम सीधे खड़े हो जाते। लचीलापन हमें किसी भी परिस्थिति में खड़े रहने की ताकत देता है।"
आर्यन ने इस सत्य को भी अपने भीतर आत्मसात कर लिया और अपनी यात्रा जारी रखी।
पवन का क्रोध
तीसरे दिन आर्यन एक खुले मैदान में पहुँचा। वहाँ पवन अपनी पूरी ताकत से बह रहा था। उसकी गति इतनी तेज थी कि पेड़ गिर रहे थे, मिट्टी उड़ रही थी और हर तरफ अफरातफरी मची हुई थी। आर्यन ने पवन से पूछा, "तुम इतने क्रोधित क्यों हो? तुम्हारा गीत अब इतना भयावह क्यों लग रहा है?"
पवन ने गंभीरता से उत्तर दिया, "हर क्रोध का कारण होता है। मैं जब तेज बहता हूँ, तो यह एक चेतावनी है। मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि यदि संतुलन बिगड़ जाए, तो विनाश अवश्यंभावी है। मेरी ताकत तुम्हें यह समझाने के लिए है कि प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर रहना आवश्यक है।"
आर्यन ने पवन की बात को समझा और उसे महसूस हुआ कि पवन का क्रोध भी एक तरह का संदेश है, जो हमें सतर्क रहने को कहता है।
पवन और ऊँचाई का सत्य
चौथे दिन आर्यन पहाड़ की सबसे ऊँची चोटी पर पहुँचा। वहाँ पवन बिलकुल शांत था। उसने पूछा, "पवन, यहाँ तुम्हारा गीत इतना शांत क्यों है?"
पवन ने मुस्कराकर उत्तर दिया, "जब जीवन में ऊँचाई पर पहुँचते हो, तो शांति अपने आप आ जाती है। मेरा गीत यहाँ तुम्हें यह सिखाने के लिए है कि शांति ही सबसे बड़ा आनंद है। जीवन की ऊँचाई केवल बाहरी सफलताओं में नहीं, बल्कि आंतरिक संतोष में है।"
आर्यन को अब पवन के गीत का गहरा अर्थ समझ आने लगा था। उसने महसूस किया कि पवन का हर स्वर जीवन के अलग-अलग पहलुओं को दर्शाता है।
पवन का अंतिम संदेश
अपनी यात्रा के अंतिम दिन आर्यन ने पवन से पूछा, "तुम्हारे गीत का सबसे महत्वपूर्ण संदेश क्या है?"
पवन ने एक लंबी साँस ली और कहा, "मेरा गीत जीवन की निरंतरता, लचीलापन, संतुलन, और शांति का प्रतीक है। मैं हर समय तुम्हें यह सिखाने की कोशिश करता हूँ कि जीवन में उतार-चढ़ाव आएँगे, लेकिन तुम्हें कभी रुकना नहीं है । मेरी गति तुम्हें यह सिखाने के लिए है कि हर मुश्किल के बाद शांति आती है और हर संघर्ष तुम्हें मजबूत बनाता है।"
आर्यन ने पवन को धन्यवाद दिया और अपने गाँव लौट आया। अब वह न केवल पवन के गीत का अर्थ समझ चुका था, बल्कि उसने जीवन को एक नई दृष्टि से देखना शुरू कर दिया। उसने यह सीखा कि जीवन की हर स्थिति, चाहे वह सुखद हो या कठिन, हमें कुछ न कुछ सिखाने के लिए आती है।
शिक्षा
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जीवन में हर परिस्थिति, चाहे वह शांत हो या उथल-पुथल से भरी, हमें एक मूल्यवान संदेश देती है। पवन का गीत हमें जीवन की निरंतरता, लचीलापन, संतुलन, और आंतरिक शांति का महत्व सिखाता है। अगर हम हर परिस्थिति को सीखने के अवसर के रूप में स्वीकार करें, तो हम जीवन को पूरी तरह से जी सकते हैं। जीवन में संघर्ष और शांति, दोनों का अपना महत्व है और इन्हें समझकर ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।
पहेली का उत्तर : शीशा
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प्रार्थना:
प्रार्थना है यही मेरी, हनुमान जी,
मेरे सर पर भी अब हाथ धर दीजिए,
राम सीता का दर्शन कराके मुझे,
मेरे सपने को साकार कर दीजिए ॥
दुख देते है मुझे मेरे ही पाप,
मेरे मन में है क्या, जानते आप हैं,
आप हर रूप है इसलिए कर कृपा,
मेरे हर एक संकट को हर लीजिए,
प्रार्थना है यही मेरी, हनुमान जी,
मेरे सर पर भी अब हाथ धर दीजिए,
मैं भावुक तो हूं पर नहीं भक्त हूं,
इसी कारण तो विषयों में आसक्त हूं
वासना मुक्त कर मेरे मन को प्रभु
राम सीता की भक्ति से भर दीजिए,
प्रार्थना है यही मेरी, हनुमान जी,
मेरे सर पर भी अब हाथ धर दीजिए,
तन निरोगी रहे, धन भी भरपुर हो,
मन भजन में रहे, द्वंद्व दुख दूर हो,
कर्ज भी ना रहे, मर्ज भी ना रहे,
फर्ज निभाते रहे ऐसा वर दीजिए,
प्रार्थना है यही मेरी, हनुमान जी,
मेरे सर पर भी अब हाथ धर दीजिए,
मैं कथा भी कहूं सियाराम की,
मैं भक्ति भी करूं तो सिया राम की,
मेरे हर एक संकट को हर लीजिये ,
प्रार्थना है यही मेरी, हनुमान जी,
मेरे सर पर भी अब हाथ धर दीजिए,
मंत्र का अर्थ:
मनुष्य को स्वयं अपने द्वारा अपना उद्धार करना चाहिए और स्वयं को अधोगति में नहीं ले जाना चाहिए। क्योंकि आत्मा ही मनुष्य का मित्र है और आत्मा ही शत्रु है।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! डर हमारी कल्पना का हिस्सा होता है, और हम जब उसे सामने से देखते हैं, तो वह उतना बड़ा नहीं लगता। मैं चाहती हूं कि तुम अपने डर से भागने के बजाय उनका सामना करो, क्योंकि डर तभी तक रहता है जब तक हम उससे सामना नहीं करते। जब तुम अपने डर का सामना करते हो, तो वह तुम्हारे लिए अवसर बन जाता है। इसलिए, हर चुनौती का सामना करो और अपने डर को सशक्त बनाओ।”
पहेली:
बनी रंगीली शर्म की बात, बे मौसम आयी बरसात,
यही अचम्भा मुझ को आये, ख़ुशी के दिन क्यों रोती जाये
कहानी: वृक्ष की वाणी
घने जंगल के बीचों-बीच एक विशाल बरगद का वृक्ष खड़ा था। यह वृक्ष बहुत पुराना था और कई पीढ़ियों का साक्षी था। उसकी शाखाएँ आसमान की ओर फैली थीं और उसकी जड़ें जमीन के गहरे तल में समाई हुई थीं। उस वृक्ष के नीचे एक छोटा गाँव था, जहाँ लोग उसे "जीवित वृक्ष" कहते थे। गाँव के बुजुर्ग मानते थे कि यह वृक्ष कभी-कभी इंसानों से बात करता है, लेकिन केवल उन्हीं से, जो उसकी आवाज़ को समझने की क्षमता रखते हैं।
इस गाँव में एक किशोर लड़का आर्यन, अपनी दादी के साथ रहता था। आर्यन का मन प्रकृति और पेड़ों की ओर आकर्षित रहता था। वह अक्सर उस विशाल वृक्ष के पास जाकर बैठता और उसकी छाँव में घंटों सोचता रहता। वह महसूस करता कि वृक्ष के भीतर कुछ विशेष है, मानो वह उसे बुला रहा हो।
एक दिन, जब आर्यन अकेले उस वृक्ष के पास बैठा हुआ था, उसने एक धीमी, गहरी आवाज़ सुनी। आवाज़ मानो उसकी आत्मा को रही हो। वह घबराया नहीं, बल्कि ध्यान से सुनने लगा। वृक्ष ने कहा, “आर्यन तुमने मुझे महसूस किया है, इसलिए मैं तुमसे बात कर रहा हूँ। मेरे पास तुम्हारे लिए एक संदेश है।”
आर्यन चौंका और बोला, “तुम बोल सकते हो? तुम कौन हो? और तुम मुझसे क्यों बात कर रहे हो?”
वृक्ष ने धीरे से कहा, “मैं प्रकृति का अंश हूँ, वही प्रकृति जो तुम्हें जीवन देती है। मैं यहाँ सैकड़ों वर्षों से खड़ा हूँ और मैंने इंसानों की हर पीढ़ी को आते-जाते देखा है। मैं तुम्हें यह बताने के लिए बोल रहा हूँ कि समय बदल रहा है और इंसान प्रकृति से दूर होता जा रहा है। मेरा संदेश है कि यदि इंसान ने प्रकृति का सम्मान नहीं किया, तो जीवन का संतुलन बिगड़ जाएगा।”
आर्यन ने वृक्ष की बात को ध्यान से सुना। उसने पूछा “मैं क्या कर सकता हूँ? मैं तो केवल एक साधारण लड़का हूँ।”
वृक्ष ने उत्तर दिया, “तुम्हारा छोटा-सा प्रयास भी बड़ा बदलाव ला सकता है। तुम अपने गाँव में पेड़ लगाने की पहल करो, लोगों को समझाओ कि प्रकृति का संरक्षण कितना आवश्यक है। अगर तुमने शुरुआत की तो ओर लोग भी तुम्हारा साथ देंगे।”
आर्यन ने वृक्ष से वादा किया कि वह इस संदेश को सबतक पहुँचाएगा। उसने गाँव के लोगों को इकट्ठा किया और उन्हें वृक्ष की वाणी सुनाई। कुछ लोग हँसे, कुछ ने उसे गंभीरता से लिया लेकिन आर्यन ने हार नहीं मानी। उसने खुद से शुरुआत की, एक छोटा बगीचा बनाया और गाँव में पेड़ लगाने की मुहिम शुरू की।
धीरे-धीरे, लोगों ने उसकी बात समझी और उसका साथ देना शुरू कर दिया। गाँव में हर तरफ हरियाली फैलने लगी। वह विशाल वृक्ष, जो कभी अकेला खड़ा था, अब नए वृक्षों के साथ एक बड़े परिवार का हिस्सा बन गया।
शिक्षा
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि प्रकृति हमारी माँ है और उसका संरक्षण हमारी जिम्मेदारी है। वृक्षों की तरह हमें धैर्य, स्थिरता और दूसरों के लिए कुछ करने का संकल्प लेना चाहिए। एक छोटा-सा प्रयास भी बड़ा बदलाव ला सकता है बशर्ते हमारे इरादे सच्चे हों। प्रकृति का सम्मान और उसकी देखभाल हमारे जीवन को अधिक संतुलित और खुशहाल बना सकती है।
पहेली का उत्तर : दुल्हन
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प्रार्थना:
अंतर्यामी परमात्मा को नमन,
शक्ति हमेशा मिलती रहे आपसे;
ऐसी कृपा कर दो, अज्ञान दूर हो, आतम ज्ञान पाएँ।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
सद्बुद्धि प्राप्त हो, व्यवहार आदर्श हो, सेवामय जीवन रहे।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
मात-पिता का उपकार ना भूलें, हरदम गुरु के विनय में रहें, दोस्तों से स्पर्धा ना करेंगे, एकाग्र चित्त से पढ़ेंगे हम;
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
आलस्य को टालो, विकारों को दूर कर दो, व्यसनों से हम मुक्त रहें, ऐसे कुसंगों से बचा लो हमें।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
मन-वचन और काया से, दुःख किसी को हम ना दें।
चाहे ना कुछ भी किसी का, प्योरिटी ऐसी रखेंगे हम।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
कल्याण के हम सब, निमित्त बने ऐसे,
विश्व में शांति फैलाएँ।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
पूर्ण रूप से हम खिलें, मुश्किलों से ना डरें... धर्मों के भेद मिटा दें जग में, ज्ञानदृष्टि को पाकर हम।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
अभेद हो जाएँ, लघुतम में रहकर हम,
प्रेम स्वरूप बन जाएँ।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
मंत्र:
य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् ।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते ॥
अर्थः जो आत्मा को मारने वाला समझता है और जो इसे मरा हुआ मानता है,
दोनों ही अज्ञानी हैं। आत्मा न किसी को मारती है और न ही मारी जाती है।
गर्भ संवाद
“मेरे प्यारे बच्चे! आत्मनिर्भरता तुम्हारी सबसे बड़ी ताकत है। जब तुम अपने फैसले खुद लेते हो और अपनी मेहनत से आगे बढ़ते हो, तो तुम्हारा आत्मसम्मान बढ़ता है। यह तुम्हें न केवल आत्मविश्वास देता है, बल्कि तुम्हारी पहचान को भी मजबूत बनाता है। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा आत्मनिर्भर बनो, क्योंकि यह तुम्हें किसी भी परिस्थिति में अपने पैरों पर खड़ा होने की ताकत देगा।”
पहेली:
नर नारी कहलाती है, और बिन वर्षा जल जाती है।
पूरख से अवे पूरख में जाइ
ना दी किसी ने बूझ बताई
कहानी: भक्ति का चमत्कार
कहानी प्राचीन समय की है, जब एक छोटे नगर में एक भक्त, धीरज रहता था। धीरज गरीब था लेकिन उसकी आस्था अमीरों से भी बढ़कर थी। वह हर दिन भगवान की पूजा करता और उनके चरणों में अपनी प्रार्थना अर्पित करता। वह मानता था कि भगवान हमेशा उसकी सुनते हैं, चाहे वह कितनी भी कठिनाई में क्यों न हो।
धीरज का जीवन सरल था लेकिन उसे रोजाना अपने परिवार के लिए भोजन जुटाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। उसकी पत्नी अक्सर उससे कहती “तुम्हारी भक्ति हमें भोजन तो नहीं देती। हमारा जीवन यूँ ही बीत जाएगा और हम कुछ भी नहीं कर पाएंगे।” धीरज केवल मुस्कुराता और उत्तर देता “भगवान हमारे साथ हैं। जब सही समय आएगा, वह हमारी मदद करेंगे।”
एक दिन, नगर में एक बड़ा संकट आया। बारिश न होने के कारण सूखा पड़ गया और लोग भोजन और पानी के लिए परेशान होने लगे। धीरज का परिवार भी इस स्थिति से जूझ रहा था। उसकी पत्नी अब और भी अधिक नाराज हो गई और बोली “देखो, तुम्हारी भक्ति का क्या फल मिला? भगवान ने हमें बिल्कुल अकेला छोड़ दिया।”
धीरज ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया, “भगवान की परीक्षा का समय है। वह हमें हमेशा कठिनाई के माध्यम से सिखाते हैं। हमें उनकी परीक्षा पर खरा उतरना होगा।”
एक रात, जब सब सो रहे थे, धीरज ने भगवान के चरणों में बैठकर अपनी पूरी श्रद्धा से प्रार्थना की। उसने कहा, “हे प्रभु, मैं आपकी परीक्षा से डरता नहीं हूँ। मैं जानता हूँ कि आप हमें देख रहे हैं। कृपया हमें सही रास्ता दिखाएँ।”
अगले दिन, धीरज को नगर के पास के जंगल में लकड़ी इकट्ठा करने जाना पड़ा। वहाँ उसे एक अद्भुत चीज दिखाई दी। एक बंजर जगह में, जहाँ कुछ भी उगने की संभावना नहीं थी, एक पेड़ पर चमचमाते फल लटक रहे थे। धीरज ने उन फलों को देखा और समझ गया कि यह भगवान की कृपा है। उसने कुछ फल तोड़े और उन्हें बाजार में बेच दिया। इन फलों से उसे इतना धन मिला कि उसने अपने परिवार के लिए खाना जुटाया और साथ ही अन्य जरूरतमंदों की मदद भी की।
धीरे-धीरे, धीरज के जीवन में सुधार होने लगा। वह फल, जो केवल धीरज को दिखाई दिए थे, अब उसके लिए आशा और विश्वास का प्रतीक बन गए। उसने उन फलों को “भगवान का प्रसाद” कहा और अपनी भक्ति को और भी दृढ़ किया।
लोगों ने जब यह सुना कि कैसे धीरज ने अपने विश्वास से कठिनाई को पार किया तो वे भी भगवान की भक्ति की शक्ति को समझने लगे। नगर के लोग अब धीरज को श्रद्धा से देखते और उसकी भक्ति से प्रेरणा लेते।
शिक्षा
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि भक्ति का चमत्कार तभी होता है जब हमारी आस्था अडिग हो। कठिनाइयाँ जीवन का हिस्सा हैं, लेकिन उनका सामना करते हुए भगवान पर भरोसा रखना हमें सही दिशा में ले जाता है। सच्ची भक्ति केवल पूजा और प्रार्थना तक सीमित नहीं होती बल्कि यह जीवन की हर परिस्थिति में भगवान पर विश्वास बनाए रखने का नाम है। भगवान हमेशा हमारी मदद करते हैं बस हमें उनकी कृपा को समझने और स्वीकार करने का धैर्य रखना चाहिए।
पहेली का उत्तर : नदी
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प्रार्थना:
1. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे (दुःखे), न दुभाया (दुःखाया) जाए या दुभाने (दुःखाने) के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे, ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए ।
2. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी धर्म का किंचितमात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाए या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाए ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दीजिए।
3. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दीजिए।
4. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति न अनुमोदित किया जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
5. हे अंतर्यामी परमात्मा! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाए, न बुलवाई जाए या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोले तो मुझे, मृदु-ऋजु भाषा बोलने की शक्ति दीजिए।
6. हे भगवान! मुझे, किसी भी देहधारी के प्रति स्त्री, पुरुष या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किंचितमात्र भी विषय-विकार संबंधी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किए जाएँ, न करवाए जाएँ या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
मुझे, निरंतर निर्विकार रहने की परम शक्ति दीजिए।
7. हे भगवान ! मुझे, किसी भी रस में लुब्धता न हो ऐसी शक्ति दीजिए।
समरसी आहार लेने की परम शक्ति दीजिए।
8. हे भगवान ! मुझे, किसी भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष, जीवित अथवा मृत, किसी का किंचितमात्र भी अवर्णवाद, अपराध, अविनय न किया जाए, न करवाया जाए या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाए, ऐसी परम शक्ति दीजिए।
9. हे भगवान ! मुझे, जगत् कल्याण करने का निमित्त बनने की परम शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए, शक्ति दीजिए।
मंत्र:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
अर्थः सब धर्मों को छोड़कर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूँगा, चिंता मत करो।
गर्भ संवाद
“असफलता कोई बुरी बात नहीं है, बल्कि यह जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जब हम असफल होते हैं, तो हमें वह सबक मिलता है जो हमें अगली बार सफलता दिला सकता है। मैं चाहती हूं कि तुम असफलताओं से डरने के बजाय, उनसे सीखो और उन्हें अपने आत्मविश्वास को और मजबूत करने का एक अवसर समझो। सफलता खुद ही तुम्हारे कदमों में आएगी जब तुम हार मानने के बजाय निरंतर सीखते रहोगे।”
पहेली:
एक नारी के सिर पर है नार
पिय की लगन में खड़ी लाचार
शीश चुवे और चलय न जोर
रो रो कर वो करय है भोर
कहानी: योग का रहस्य
बहुत समय पहले, हिमालय की ऊँचाइयों पर एक प्राचीन आश्रम था। यह आश्रम साधना और योग के लिए प्रसिद्ध था। वहाँ के गुरु, ऋषि वशिष्ठ एक महान योगी थे, जो योग के रहस्यों को समझने और सिखाने में सिद्धहस्त थे। उनका कहना था कि योग केवल शरीर को स्वस्थ रखने का साधन नहीं, बल्कि आत्मा, मन और शरीर को एक करने का माध्यम है।
उस आश्रम में अनेक शिष्य योग सीखने आते थे। उनमें एक युवक आर्यन भी था। आर्यन एक संपन्न परिवार से था, लेकिन उसका मन हमेशा बेचैन रहता था। वह भौतिक सुख सुविधाओं के बीच भी खालीपन महसूस करता था। जब उसने ऋषि वशिष्ठ के योग और साधना की ख्याति सुनी, तो वह उनकी शरण में पहुँचा । गुरु वशिष्ठ ने आर्यन का स्वागत किया और उससे पूछा, “बेटा, यहाँ क्यों आए हो?”
आर्यन ने उत्तर दिया, “गुरुजी, मेरे पास सब कुछ है, लेकिन फिर भी मैं असंतुष्ट हूँ। मुझे अपने मन की शांति और जीवन का उद्देश्य समझ नहीं आता। मैंने सुना है कि योग के माध्यम से मैं अपने जीवन का अर्थ जान सकता हूँ। कृपया मुझे योग का रहस्य सिखाइए।”
गुरु वशिष्ठ मुस्कुराए और बोले, “योग केवल आसनों का अभ्यास नहीं है। यह आत्मा, मन और शरीर को जोड़ने की प्रक्रिया है लेकिन योग का रहस्य तभी समझा जा सकता है जब तुम अपने भीतर झाँकने और अपने अहंकार को त्यागने के लिए तैयार हो। क्या तुम तैयार हो ?”
आर्यन ने सिर झुकाकर हामी भरी और अपनी साधना शुरू की। पहले दिन, गुरु ने उसे सूर्योदय के समय ध्यान करने को कहा। आर्यन ने अपनी आँखें बंद कीं, लेकिन उसका मन इधर-उधर भटकने लगा।
वह अपने घर, परिवार और भौतिक सुखों के बारे में सोचने लगा। जब उसने गुरु से अपनी परेशानी बताई, तो गुरु ने कहा, “यह स्वाभाविक है। तुम्हारा मन अनियंत्रित घोड़े की तरह है। योग का पहला कदम है इसे काबू में लाना।”
आर्यन ने धैर्य और अनुशासन के साथ अपनी साधना जारी रखी। धीरे धीरे, उसने महसूस किया कि उसका मन स्थिर होने लगा है। ध्यान के दौरान उसे भीतर की शांति का अनुभव होने लगा। एक दिन, जब वह ध्यान में डूबा हुआ था, तो उसने एक अद्भुत अनुभूति की मानो वह अपनी आत्मा के करीब पहुँच गया हो। उसे ऐसा लगा जैसे उसके भीतर एक प्रकाश फैला हो, जो हर शंका और भय को मिटा रहा हो।
गुरु वशिष्ठ ने उसे समझाया, “यह तुम्हारे योग साधना का पहला फल है। योग का रहस्य यह है कि यह हमें हमारी सच्ची पहचान से जोड़ता है। जब हम अपने मन को शांत करते हैं, तो हम आत्मा की आवाज सुन सकते हैं। यही सच्ची शांति है।”
आर्यन ने समझा कि योग केवल शारीरिक अभ्यास नहीं, बल्कि जीवन के हर पहलू में संतुलन और शांति लाने का साधन है। उसने अपने अनुभव को दूसरों के साथ साझा करने का निर्णय लिया। अब वह न केवल एक शिष्य, बल्कि एक प्रेरणा बन गया। उसने सीखा कि योग का रहस्य आत्मा, मन और शरीर को एक करना है और यह समझना है कि जीवन में सबसे बड़ा सुख आंतरिक शांति है।
शिक्षा
योग का रहस्य यह है कि यह केवल शारीरिक व्यायाम नहीं, बल्कि आत्मा, मन और शरीर का समन्वय है। यह हमें हमारे भीतर छिपी शक्ति और शांति को पहचानने में मदद करता है। योग हमें सिखाता है कि सच्चा सुख और शांति बाहरी चीज़ों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर है। यदि हम योग का सही अर्थ समझ लें, तो जीवन में आने वाली हर मुश्किल का सामना आसानी से कर सकते हैं।
पहेली का उत्तर : मोमबत्ती
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प्रार्थना:
अंतर्यामी परमात्मा को नमन,
शक्ति हमेशा मिलती रहे आपसे;
ऐसी कृपा कर दो, अज्ञान दूर हो, आतम ज्ञान पाएँ।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
सद्बुद्धि प्राप्त हो, व्यवहार आदर्श हो, सेवामय जीवन रहे।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
मात-पिता का उपकार ना भूलें, हरदम गुरु के विनय में रहें, दोस्तों से स्पर्धा ना करेंगे, एकाग्र चित्त से पढ़ेंगे हम;
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
आलस्य को टालो, विकारों को दूर कर दो, व्यसनों से हम मुक्त रहें, ऐसे कुसंगों से बचा लो हमें।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
मन-वचन और काया से, दुःख किसी को हम ना दें।
चाहे ना कुछ भी किसी का, प्योरिटी ऐसी रखेंगे हम।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
कल्याण के हम सब, निमित्त बने ऐसे,
विश्व में शांति फैलाएँ।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
पूर्ण रूप से हम खिलें, मुश्किलों से ना डरें... धर्मों के भेद मिटा दें जग में, ज्ञानदृष्टि को पाकर हम।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
अभेद हो जाएँ, लघुतम में रहकर हम,
प्रेम स्वरूप बन जाएँ।
अंतर्यामी परमात्मा को नमन
मंत्र का अर्थ:
यज्ञ के लिए किए गए कर्मों के अतिरिक्त अन्य सभी कर्म बंधनों को उत्पन्न करते हैं। इसलिए, हे अर्जुन! फलों की आसक्ति से मुक्त होकर कर्म करो।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! जब तुम मुश्किल समय से गुजर रहे होते हो, तो यह हमेशा याद रखो कि यह समय हमेशा के लिए नहीं है। जैसे रात के बाद सुबह आती है, वैसे ही कठिनाइयाँ भी एक दिन खत्म हो जाएंगी। तुम जितनी अधिक मेहनत और धैर्य से इस समय का सामना करोगे, उतना ही जल्दी यह मुश्किलें दूर होंगी। मैं चाहती हूं कि तुम हमेशा इस विश्वास के साथ आगे बढ़ो कि मुश्किल समय भी एक दिन समाप्त होगा और तुम फिर से अपनी राह पर होंगे।”
पहेली:
पवन चलत वे देहे बढ़वाए
जल पीवत वे जीव गंवाए
है वे पियारी सुन्दर नारि
नारि नहीं पर है वे नारि
कहानी: मोर और कोयल
हरे-भरे जंगल में एक समय मोर और कोयल दोनों रहते थे। दोनों की सुंदरता और मधुरता के लिए जंगल में उनकी अलग-अलग पहचान थी। मोर अपने रंग-बिरंगे पंखों के लिए मशहूर था, जबकि कोयल अपनी मधुर आवाज़ से सबका मन मोह लेती थी। दोनों एक-दूसरे को देखकर थोड़े ईर्ष्या करते थे, लेकिन कभी इस बारे में खुलकर नहीं बोलते थे।
एक दिन, मोर ने कोयल से कहा, “तुम्हारी आवाज़ कितनी मधुर है। पूरा जंगल तुम्हारी तारीफ करता है। मुझे कभी किसी ने मेरी आवाज़ के लिए नहीं सराहा।” कोयल मुस्कुराई और उत्तर दिया, “यह सच है कि मेरी आवाज़ मधुर है, लेकिन तुम्हारे जैसे खूबसूरत पंख मेरे पास नहीं हैं। तुम्हारी सुंदरता से पूरा जंगल मोहित है।”
मोर ने गहरी सांस ली और कहा, “क्या फायदा कोयल! मेरी सुंदरता केवल बाहर है, लेकिन तुम अपनी आवाज़ से सबके दिलों को छू लेती हो। मैं भी चाहता हूँ कि मेरी आवाज़ तुम्हारी तरह मधुर हो।”
कोयल ने उत्तर दिया, “पर मोर, क्या तुम जानते हो कि मैं भी तुम्हारे जैसे रंगीन पंखों की ख्वाहिश करती हूँ? मैं चाहती हूँ कि मेरी सुंदरता भी लोगों को दिखे, जैसे तुम्हारी दिखती है।”
दोनों की बातें सुनकर जंगल का एक बूढ़ा पेड़, जो वर्षों से सबकुछ देख रहा था, अचानक बोल पड़ा। उसने कहा, “मोर और कोयल, तुम दोनों प्रकृति की अद्भुत कृतियाँ हो। तुम्हारी अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। मोर, तुम्हारी सुंदरता अद्वितीय है, और कोयल, तुम्हारी आवाज़ अतुलनीय है। लेकिन तुम दोनों अपनी विशेषताओं को पहचानने और उनका आनंद लेने के बजाय, एक-दूसरे की ताकत से ईर्ष्या करते हो।”
मोर और कोयल ने पेड़ की बात पर विचार किया। उन्होंने महसूस किया कि वे अपनी-अपनी खूबियों को नजरअंदाज कर रहे थे और एक-दूसरे से तुलना करके अपने आत्मविश्वास को खो रहे थे।
उस दिन से मोर ने अपनी सुंदरता को गर्व के साथ अपनाया और कोयल ने अपनी मधुर आवाज़ के लिए आभार व्यक्त किया। दोनों ने एक-दूसरे की विशेषताओं को स्वीकार किया और दोस्ती का रिश्ता गहरा हो गया। अब वे एक-दूसरे की खूबियों की सराहना करते और जंगल में खुशी फैलाते।
शिक्षा
यह कहानी हमें सिखाती है कि हर व्यक्ति में अलग-अलग विशेषताएँ होती हैं, जो उसे अद्वितीय बनाती हैं। हमें अपनी खूबियों पर गर्व करना चाहिए और दूसरों की विशेषताओं से प्रेरणा लेनी चाहिए, न कि उनसे ईर्ष्या। जब हम अपनी ताकत को पहचानते हैं और दूसरों की सराहना करते हैं, तो हम जीवन में सच्चा संतोष और खुशहाली पाते हैं।
पहेली का उत्तर : आग
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प्रार्थना:
मनोजवं मारुततुल्यवेगं
जितेंद्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठम्।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं
श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये॥
अर्थ: जिनकी गति, मन के समान तथा वेग वायु के समान है, जिन्होंने अपनी इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली है, जो बुद्धिमानों में श्रेष्ठ हैं, पवन के पुत्र एवं वानरों की सेना के मुखिया हैं तथा श्री रामचन्द्र के दूत हैं। ऐसे हनुमान जी की मै शरण लेता हूँ और उन्हें प्रणाम करता हूँ।
मंत्र:
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्॥
भावार्थ: हम उस त्रिनेत्रधारी भगवान शिव की आराधना करते है जो अपनी शक्ति से इस संसार का पालन-पोषण करते है उनसे हम प्रार्थना करते है कि वे हमें इस जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त कर दे और हमें मोक्ष प्रदान करें। जिस प्रकार से एक ककड़ी अपनी बेल से पक जाने के पश्चात् स्वतः की आज़ाद होकर जमीन पर गिर जाती है उसी प्रकार हमें भी इस बेल रुपी सांसारिक जीवन से जन्म मृत्यु के सभी बन्धनों से मुक्ति प्रदान कर मोक्ष प्रदान करें।
गर्भ संवाद
“मेरे बच्चे! तुम्हारे भविष्य में सफलता की दिशा उसी आत्मविश्वास पर निर्भर करती है जो तुम आज अपने प्रयासों में रखते हो। जब तुम खुद पर विश्वास करते हो और अपने लक्ष्य को पाने के लिए पूरी मेहनत करते हो, तो तुम्हारा भविष्य साकार होता है। मैं चाहती हूं कि तुम अपने भविष्य को न केवल सोचो, बल्कि उसे अपनी मेहनत, आत्मविश्वास और दृढ़ संकल्प से हकीकत बनाओ। भविष्य हमेशा तुम्हारे हाथों में होता है, बस तुम्हें उसे सही दिशा में लेकर जाना है।”
पहेली:
बाल था जब सब को भाया, बड़ा हुआ कछु काम ना आया। खुसरो कह दिया उसका नाव (नाम), अर्थ करो नहि छाडो गाँव।।
कहानी: हिरण और बाघ
घने जंगल में एक हिरण और बाघ रहते थे। हिरण अपनी फुर्ती और तेज दौड़ने की क्षमता के लिए जाना जाता था, जबकि बाघ अपनी ताकत और शिकारी प्रवृत्ति के लिए मशहूर था। दोनों अलग-अलग स्वभाव के थे, लेकिन दोनों में एक अजीब सा तनाव था। हिरण हमेशा बाघ से डरता रहता था, और बाघ हिरण को अपना आसान शिकार समझता था।
एक दिन, जंगल में पानी की कमी हो गई। नदी और तालाब सूखने लगे, और सभी जानवर पीने के पानी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। हिरण भी बहुत परेशान था। वह कई दिनों से पानी की तलाश में घूम रहा था। एक दिन, जब वह जंगल के एक सूखे तालाब के पास पहुँचा, तो उसने देखा कि बाघ वहीं बैठा है।
हिरण डर गया। उसे लगा कि आज वह बाघ का शिकार बन जाएगा। वह धीरे-धीरे वापस जाने की कोशिश करने लगा। लेकिन बाघ ने उसे देख लिया और बोला, “हिरण भागने की कोशिश मत करो। मैं तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचाऊँगा। मुझे भी कई दिनों से पानी नहीं मिला है। अगर हम एक साथ प्रयास करें, तो शायद हमें पानी का कोई स्रोत मिल जाए।”
हिरण को बाघ की बात पर विश्वास नहीं हुआ, लेकिन उसकी हालत इतनी खराब थी कि उसने सोचा कि कोशिश करने में कोई बुराई नहीं है। दोनों ने मिलकर जंगल के हर कोने में पानी की तलाश शुरू की। इस यात्रा के दौरान, बाघ ने महसूस किया कि हिरण कितना फुर्तीला और समझदार है, और हिरण ने देखा कि बाघ केवल ताकतवर ही नहीं, बल्कि बुद्धिमान भी है।
कुछ घंटों बाद, दोनों को एक गुफा के पास पानी का एक छोटा स्रोत मिला। दोनों ने अपनी प्यास बुझाई और राहत की सांस ली। इस यात्रा ने दोनों के बीच का तनाव कम कर दिया। बाघ ने हिरण से कहा, “मैंने हमेशा तुम्हें केवल एक शिकार के रूप में देखा था, लेकिन आज मुझे समझ में आया कि सभी जीव अपनी जगह महत्वपूर्ण हैं। तुमने अपनी फुर्ती और बुद्धिमत्ता से मुझे सिखाया है कि सहयोग से बड़ी से बड़ी समस्या का हल निकाला जा सकता है।”
हिरण ने भी बाघ से कहा, “मैं हमेशा तुमसे डरता था, लेकिन आज मैंने देखा कि तुम्हारी ताकत के साथ-साथ तुम्हारा स्वभाव भी दयालु है। मुझे अब समझ में आया कि हर किसी में कुछ न कुछ अच्छा होता है।”
उस दिन से बाघ और हिरण के बीच मित्रता हो गई। वे एक-दूसरे के स्वभाव का सम्मान करने लगे और जंगल में शांति और सामंजस्य फैलाने में मदद करने लगे।
शिक्षा
यह कहानी हमें सिखाती है कि आपसी सहयोग और समझदारी से बड़ी से बड़ी मुश्किलों को हल किया जा सकता है। हमें दूसरों की विशेषताओं को समझना चाहिए और उनसे सीखना चाहिए। डर और पूर्वाग्रह को छोड़कर, जब हम साथ काम करते हैं, तो हर समस्या का समाधान संभव है। साथ ही, हमें यह समझना चाहिए कि हर व्यक्ति या जीव अपनी तरह से महत्वपूर्ण है और उसका सम्मान करना चाहिए।
पहेली का उत्तर : दिया (दीपक)
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