महाशक्ति – एपिसोड 11
"युद्ध का आरंभ और पहली मुलाकात"
भूमिका
समय के चक्र में एक नया अध्याय जुड़ने वाला था। देवताओं और राक्षसों के बीच महासंग्राम की घोषणा हो चुकी थी। यह सिर्फ एक युद्ध नहीं था, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच की अंतिम परीक्षा थी।
राक्षसों का नायक कालकेश, जो हजारों वर्षों की तपस्या के बाद अजेय बन चुका था, अपनी विशाल सेना के साथ स्वर्गलोक पर आक्रमण करने निकला। देवताओं ने भी अपनी सेना को तैयार कर लिया था, और इस युद्ध का नेतृत्व स्वयं अर्जुन कर रहा था।
लेकिन इस युद्ध में एक और रहस्यमयी शक्ति जुड़ने वाली थी—अनाया।
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युद्ध की शुरुआत
युद्धभूमि में शंखनाद हुआ। राक्षसों और देवताओं की सेनाएँ आमने-सामने खड़ी थीं।
कालकेश ने गर्जना करते हुए कहा,
"देवताओं! आज स्वर्गलोक को ध्वस्त कर दूँगा! कोई भी शक्ति मुझे नहीं रोक सकती!"
अर्जुन ने अपनी तलवार उठाई और ऊँचे स्वर में कहा,
"जब तक धर्म जीवित है, तब तक अधर्म की कोई विजय नहीं होगी!"
युद्ध शुरू हुआ।
राक्षसों की सेना अपने विकराल आकार और क्रूर शक्ति से देवताओं पर भारी पड़ने लगी। अर्जुन और उनके योद्धा पूरी शक्ति से लड़ रहे थे, लेकिन राक्षसों की शक्ति कम होने का नाम नहीं ले रही थी।
तभी, युद्धभूमि में अचानक एक रहस्यमयी ऊर्जा का संचार हुआ।
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अनाया का आगमन
आकाश से एक प्रकाश पुंज प्रकट हुआ। उस प्रकाश के मध्य से एक दिव्य योद्धा प्रकट हुई। वह तेजस्वी थी, उसकी आँखों में आत्मविश्वास की ज्वाला जल रही थी, और उसके शरीर पर युद्ध कवच चमक रहा था।
यह अनाया थी।
उसके हाथ में एक चमकती हुई तलवार थी, और जैसे ही उसने युद्धभूमि में कदम रखा, पूरी पृथ्वी उसकी ऊर्जा से गूँज उठी।
अर्जुन ने पहली बार उसे देखा।
एक क्षण के लिए युद्धभूमि का शोर मंद पड़ गया। अर्जुन की दृष्टि अनाया के चेहरे पर अटक गई। वह पहली बार इस स्त्री योद्धा से मिला था, लेकिन उसके हृदय में एक विचित्र स्पंदन हुआ।
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अनाया की शक्ति और अर्जुन का संशय
कालकेश ने अनाया को देखकर उपहास किया,
"एक स्त्री योद्धा? क्या यही तुम्हारी सेना की अंतिम आशा है, अर्जुन?"
अनाया मुस्कुराई और बिना उत्तर दिए कालकेश की ओर बढ़ी।
अगले ही क्षण, अनाया ने अपनी तलवार उठाई और हवा में वार किया।
तीव्र प्रकाश के साथ चार राक्षसों का वध हो गया।
पूरा युद्धक्षेत्र स्तब्ध रह गया।
अर्जुन यह देख कर चौंक गया। उसे अहसास हुआ कि यह कोई साधारण योद्धा नहीं थी।
"तुम कौन हो?" अर्जुन ने युद्ध के बीच पहली बार अनाया से पूछा।
अनाया ने उसकी ओर देखा और उत्तर दिया,
"जिसे तुमने बुलाया नहीं, लेकिन जिसके बिना यह युद्ध अधूरा था।"
अर्जुन कुछ कहता, उससे पहले ही अनाया कालकेश की ओर बढ़ गई।
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शिव जी की भविष्यवाणी
युद्ध समाप्त होने की कगार पर था। कालकेश पराजित हो चुका था, लेकिन तभी शिव जी का स्वर आकाश में गूँजा।
"जिसे तुम आज युद्धभूमि में मिले, वह सिर्फ तुम्हारे जीवन का एक हिस्सा नहीं, बल्कि तुम्हारे भाग्य की सबसे बड़ी परीक्षा होगी।"
"जब अग्नि की ज्वाला प्रेम की तपस्या बनेगी, तब तुम्हें वास्तविक सत्य का ज्ञान होगा।"
अर्जुन और अनाया दोनों स्तब्ध रह गए।
अर्जुन सोचने लगा, "क्या शिव जी की यह भविष्यवाणी मुझसे जुड़ी है? क्या अनाया मेरे जीवन का भाग्य बन चुकी है?"
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अर्जुन के मन में उठते प्रश्न
युद्ध समाप्त हो चुका था। देवताओं की सेना विजयी हुई थी। लेकिन अर्जुन के मन में एक नया द्वंद्व शुरू हो गया था।
क्या यह भविष्यवाणी सचमुच उसकी और अनाया की नियति थी?
दूसरी ओर, अनाया भी इस युद्ध के बाद अर्जुन को लेकर कुछ महसूस करने लगी थी।
युद्ध समाप्त हो चुका था, लेकिन अब कहानी का असली खेल शुरू होने वाला था...
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